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गुजरात होने का मतलब क्या है?

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”लगता है कि ईश्वर ने मुझे किसी अच्छे काम के लिए चुना है। मुझे अपने लिए जीने का अधिकार नहीं है। ईश्वर ने हर किसी को किसी निर्धारित काम के लिए चुना है। मान लीजिए अगर मैं एक ड्राइवर हूं तो मेरा फर्ज है कि अपने यात्रियों को सुरक्षित सफर कराऊं।”
– नरेंद्र मोदी

2008 में गुजरात के तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी का दिया गया ये बयान तब का है, जब वे राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और प्राकृतिक स्तर पर चुनौतियों से जूझते राज्य को अपने अंदाज में गढ़ रहे थे। आज उनकी अथक मेहनत और संकल्प शक्ति के कारण ही देश-दुनिया में ‘गुजराती मान-सम्मान’ को नया आयाम मिला है। ‘केम छो’ को अंतर्राष्ट्रीय पहचान मिली है, और ‘गुजरात का गौरव’ शब्द राज्य की छह करोड़ जनता की आन-बान-शान बन गई है। तब के गुजरात और आज के गुजरात में साफ अंतर दिखता है।

विकास का पर्याय बना गुजरात
2001 में मोदी जब गुजरात के सीएम बने तो गुजरात की छह करोड़ जनता ने उनमें विकास पुरुष देखा। ‘गुजरात नुं गौरव’ की रक्षा करने वाला एक दृढ़ निश्चयी व्यक्तित्व देखा। जनता ने उनमें सपने दिखाने वाला और उसे पूरा करने वाला नेता देखा। लोगों ने मोदी की आंखों से जो सपना देखा उसे उन्होंने अपने 12 वर्षों के मुख्यमंत्रित्व काल में पूरा कर दिखाया। 2014 में देश का प्रधानमंत्री बनने तक उन्होंने गुजरात को उस मुकाम पर लाकर खड़ा कर दिया है जहां यह राज्य दिन- प्रतिदिन विकास की नई ऊंचाइयां प्राप्त कर रहा है।

आज वो दिल्ली में हैं और देश की सवा सौ करोड़ लोगों की आशा-आकांक्षा को पूरा करने में लगे हैं। लेकिन यह भी सत्य है कि गुजरात हमेशा नरेंद्र मोदी के दिल में बसता है।

मोदी की ‘ऊर्जा’ से रोशन हुआ गुजरात
2001 में नरेंद्र मोदी जब गुजरात के सीएम बने थे तो उनसे मिलने वाले लोग कहते कि मोदीजी कुछ करो या न करो कम से कम डिनर के समय बिजली न जाए इसकी व्यवस्था कर दो।

ये पीड़ा गुजरात के उन छह करोड़ जनमानस की थी जो बिजली की किल्लत से कराह रही थी। तब नवीन विचारों के स्रोत और कभी न खत्म होने वाली ऊर्जा से ओत-प्रोत मोदी ने इस कमी को दूर करने की ठानी। आज उन्होंने विद्युत ऊर्जा के क्षेत्र में प्रदेश को ऐसी स्थिति में ला खड़ा किया है, जिससे न सिर्फ गुजरात रोशन हो रहा है, बल्कि दूसरे राज्य भी गुजरात की बिजली से अपना अंधेरा दूर कर रहे हैं।

ऊर्जा क्रांति ने बदल दी गुजरात की तस्वीर
ग्राम ज्योति योजना ने तो जैसे क्रांति ही ला दी। अब राज्य के 18, 066 गांवों में भी 24 घंटे बिजली है। आज गुजरात लगभग 29 हजार मेगावाट बिजली उत्पादन कर रहा है और सरप्लस बिजली हरियाणा और मध्यप्रदेश जैसे राज्यों को बेच भी रहा है। साल 2012 में नेशनल ग्रिड के फेल होने की वजह से जहां देश के 19 राज्यों में दो दिनों तक अंधेरा छा गया था तब गुजरात अपनी बिजली से जगमग कर रहा था।

जनशक्ति की मूक क्रांति से जल क्रांति
‘जनशक्ति सरकार की शक्ति से ज्यादा महत्वपूर्ण है ‘ – नरेंद्र मोदी
2001 में जब नरेंद्र मोदी ने गुजरात की कमान संभाली थी तो राज्य का 70 प्रतिशत भू-भाग भयंकर सूखा झेल रहा था। लेकिन उन्होंने राज्य को सूखे से निजात दिलाने का निश्चय किया, नीति बनाई और इसे करके दिखाया। जल है तो कल है, के सूत्र वाक्य के साथ जल संरक्षण के लिए जन सहभागिता का आह्वान किया। समाज के हर तबके को जल संरक्षण अभियान से जोड़ा और राज्य के लोगों ने ‘मूक क्रांति के जरिये जल क्रांति’ कर दिया।


सूखा राज्य आज पानी से लबालब
2003 से पहले सूखे राज्य का तमगा झेलता रहा गुजरात आज जल शक्ति से लबालब है। राज्य के हर गांव, हर खेत में पानी की सहज उपलब्धता है। प्रदेश में सरकारी और निजी सहभागिता मॉडल के तहत 6 लाख से ज्यादा चेक डैम, खेत, तलावड़ियां और बोरीबांधों का निर्माण किया गया है। नर्मदा नदी पर शुरू की गई सरदार सरोवर परियोजना दुनिया का सबसे बड़ा सिंचाई नेटवर्क है। इसके तहत दस सालों में 10 लाख से ज्यादा कुएं और बोरवेल फिर से भर दिए गए हैं। इन योजनाओं से 33 लाख हेक्टेयर भूमि तो सिंचित हुई ही भू-जल स्तर में भी तीन मीटर की बढ़ोतरी हो गई है।

हरा-भरा हो गया ‘गुजरात का कालापानी’
आशावादी होने के नाते मुझे विश्वास है कि हम सारी समस्याओं का समाधान निकाल सकते हैं। – नरेंद्र मोदी

आशावादी सोच, सुनियोजित नीति, समेकित योजना और कुशल प्रबंधन क्या होती है ये गुजरात के कच्छ और सौराष्ट्र के इलाके में आकर पता चलता है। नरेंद्र मोदी ने जब गुजरात का नेतृत्व संभालाा तब राज्य का सौराष्ट्र और कच्छ सूखे की जद में था। कच्छ को तो कालापानी कहा जाता था। यहां कोई कर्मचारी आना नहीं चाहता था। क्षेत्र की आबादी लगातार घट रही थी। यहां न खेती थी और न पानी। लोग घर-बार छोड़ पलायन कर रहे थे। लेकिन नमो की कर्मठता और दृढ़ निश्चय से इस इलाके की तस्वीर बदल गई है। मई 2003 में ही सबसे पहले 74 गांवों में पाइप लाइन से पानी पहुंचा दी गई। प्रयोग सफल रहा और साल के अंत तक 700 गांवों में पीने के पानी की कमी दूर हो गई। इसके बाद तो हालात ऐसे बदले कि कच्छ को कालापानी कहने वाले लोग भी एक बार कच्छ जरूर आना चाहते हैं। नर्मदा बांध से 2684 किलोमीटर लाइन के जरिये सौराष्ट्र, कच्छ, पंचमहल, गांधीनगर और अहमदाबाद तक पानी पहुंच रहा है। इन इलाकों के 5500 गांव और 106 शहरों में 55 लीटर औसत मांग की जगह 100 लीटर पानी प्रतिदिन प्रति व्यक्ति पानी पहुंच रहा है।


सड़कों से समृद्ध हुआ गुजरात
सड़कों से आती है समृद्धि – के मूल मंत्र को लेकर आगे बढ़ते हुए तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी ने 2001 के बाद सड़क निर्माण में संस्थागत सुधार किए गए। शहरों में ढुलाई के रास्ते, खेतों से उत्पाद को बाजार तक पहुंचाने वाले रास्ते और पर्यटक स्थलों तक तुरंत ले जाने वाले रास्तों को सबसे पहले ठीक किया गया। जिससे न सिर्फ ग्रामीण समृद्धि आई बल्कि पर्यटन को भी बढ़ावा मिला। गुजरात की ग्रामीण सड़कें पूरे देश में सबसे अच्‍छी मानी जाती हैं। नरेंद्र मोदी के 12 वर्षों के कार्यकाल में राज्‍य के 98.7 प्रतिशत गांवों को पक्‍की सड़कों के जरिए जोड़ा जा चुका है। सड़कों में सुधार से पर्यटन में भी बड़ी वृद्धि हुई। 2005-06 में जहां 60 लाख पर्यटक गुजरात आते थे अब ये संख्या दो करोड़ से ज्यादा है।

डिजिटल हुआ सड़क प्रबंधन 
सड़क प्रबंधन प्रणाली को कंप्यूटरीकृत किया गया जिससे सड़कों के रखरखाव में बेहतरीन सुधार हुए। रखरखाव में 80/20 का प्रावधान किया गया है यानी जिन 20 प्रतिशत रास्तों पर 80 प्रतिशत से ज्यादा लोग आते जाते हैं उसके रखरखाव पर ज्यादा ध्यान दिया गया। विश्व बैंक ने भी कई बार गुजरात के सड़कों के प्रबंधन की तारीफ की है। आज गुजरात का 68 हजार 900 किलोमीटर सड़कों का नेटवर्क भारत के अन्य राज्यों के मुकाबले बहुत अच्छा है।

दुनिया भर में गुजरात की धमक
2001 से पहले का वो दौर याद कीजिए जब गुजरात में निवेशक नहीं आ रहे थे। औद्योगिक विकास के मानकों पर प्रदेश पिछड़ता जा रहा था। लेकिन तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी ने इसे चैलेंज माना और 2003 से वाइब्रेंट गुजरात की शुरुआत कर दी। फिर तो वाइब्रेंट गुजरात के सफल आयोजन ने दुनिया के सामने गुजरात की ऐसी तस्वीर पेश कर दी जो ये राज्य आकर्षक इनवेस्टमेंट डेस्टिनेशन बन गया। आज हर छोटा-बड़ा उद्यमी गुजरात में निवेश करना चाहता है। वाइब्रेंट गुजरात आज की तारीख में उद्योग-जगत, विज्ञान और समाज के बीच संवाद का एक अंतर्राष्ट्रीय मंच है। इस मंच के सहारे अगल-अलग रंगों के सियासी और सामाजिक संदेश भी दुनिया को गए हैं। भारत के शीर्ष उद्योगपतियों और दुनिया के बेहतरीन सीईओ के साथ एक ही छतरी के नीचे एक साथ, एक मंच पर होना अपने आप में असाधारण बात है।

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