Home केजरीवाल विशेष बिखर रहा है केजरीवाल का कुनबा, पार्टी होगी दो फाड़ ?

बिखर रहा है केजरीवाल का कुनबा, पार्टी होगी दो फाड़ ?

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दिल्ली के विवादास्पद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की पहचान किसी बड़ी शख्सियत पर झूठे और सनसनीखेज आरोप लगाने वाले नेता की रही है। लेकिन दिल्ली की जनता से झूठे वादे कर सत्ता हथियाने के दो साल आते-आते वो पूरी दुनिया में बेनकाब हो चुके हैं। अन्ना आंदोलन का दुरुपयोग कर मुख्यमंत्री बने नौटंकीबाज की पोल-पट्टी अब पूरी तरह खुल चुकी है। अपना मकसद पूरा होते ही उन्होंने प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव को जिस तरह से ‘लतिया’ कर पार्टी से निकालकर मक्कारी दिखाई थी, अब उन्हीं के लोगों ने उन्हें ठुकराकर पार्टी छोड़ने का सिलसिला शुरू कर दिया है। पंजाब और गोवा में उनकी औकात पता चलने के बाद आम आदमी पार्टी अब टूट की कगार पर खड़ी है। जो विधायक अभी साथ हैं उनका भी दम घुंट रहा है और पोस्टकार्ड न्यूज की खबर के अनुसार 30 से 35 विधायक सियासी नरक से बाहर निकलने का रास्ता ढूंढ रहे हैं।

आप में भगदड़, महिला उपाध्यक्ष ने छोड़ी पार्टी
केजरीवाल का असली चेहरा देखकर जिन नेताओं का मोहभंग हुआ है उनमें सबसे ताजा नाम आप की रोहिणी जिला महिला विंग की उपाध्यक्ष और रोगी कल्याण समिति की अध्यक्ष सीमा कौशिक का। वो अपने 250 समर्थकों के साथ कांग्रेस में शामिल हो गई हैं। आप छोड़ते वक्त उन्होंने आरोप लगाया कि, “आम आदमी पार्टी में अब भ्रष्टाचार का बोलबाला हो गया है। वो कहते कुछ और हैं और करते कुछ और हैं, नेता भ्रष्टाचार में डूबे हुए हैं और कार्यकर्ता मारे-मारे घूम रहे हैं। कार्यकर्ताओं को कुछ देने की बात आती है, तो रिश्तेदार आगे आ जाते हैं।”

आप विधायक वेद प्रकाश सतीश बीजेपी में शामिल
सीमा कौशिक से पहले बवाना से आप विधायक रहे वेद प्रकाश सतीश भी केजरीवाल का झाड़ू फेंककर कमल थाम चुके हैं। उन्हें पटाने के लिए खुद सीएम ने घड़ियालू आंसू बहाए और उनपर पार्टी में वापसी का दबाव भी बनाने की कोशिश की। उन्होंने यहां तक आरोप लगाया कि, केजरीवाल का एक ही काम है कि कैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उपराज्‍यपाल को बदनाम किया जाए। वे काम को पूरा किए बिना आरोप केंद्र सरकार पर मढ़ देते हैं।” उन्होंने बताया कि वो ही नहीं, पार्टी में कम से कम 30-35 विधायक हैं, जो पार्टी सुप्रीमो के व्यवहार से बेहद परेशान हैं। शायद यही वजह है कि 30 से ज्यादा विधायकों के जल्द ही आप छोड़ने के कयास लगाए जाने लगे हैं।
बेहद खराब तानाशाह हैं केजरीवाल- आप विधायक
सीमा कौशिक और वेद प्रकाश सतीश ने तो समय रहते केजरीवाल की गुलामी करने से इनकार कर दिया, लेकिन AAP में अभी भी ऐसे नेता हैं, जो वहां से किसी वजह से निकल तो नहीं पा रहे हैं, लेकिन भीतर रहकर ही तानाशाही सत्ता के खिलाफ बगावती तेवर अपनाए हुए हैं। उन्हीं में से एक हैं बिजवासन से आप विधायक कर्नल देवेंद्र सहरावत। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार उन्होंने पार्टी के अंदर अरविंद केजरीवाल की दबंगई पर जमकर भड़ास निकाली है। सहरावत के शब्दों में, ”अरविंद केजरीवाल खुद को मायावती से भी खराब तानाशाह साबित कर रहे हैं। स्‍थानीय नेतृत्‍व को बढ़ने की इजाजत नहीं है। विधायक जनता के बीच बुरे बन जाते हैं।”

सहरावत के अनुसार, पार्टी में भीतर ही भीतर क्रांति की ज्‍वाला धधक रही है, क्‍योंकि सारी ताकत सिर्फ केजरीवाल और उनके कुछ ‘छोटे समर्थकों’ के हाथ में केंद्रित है। सहरावत ने आरोप लगाया कि “पंजाब और गोवा में पार्टी की हार ने साबित किया है कि वे (केजरीवाल और उनके समर्थक) नाकारा हैं।” उन्‍होंने कहा,अपने काम पर ध्‍यान देने की जगह, वो (केजरीवाल) प्रधानमंत्री को भला-बुरा कहने में बहुत वक्‍त गंवाते हैं। शुरू-शुरू में यह ठीक था, मगर अब ये सब ऐसे हो रहा है जैसे स्‍कूल का कोई बच्‍चा प्रिंसिपल को गरिया रहा हो।”

मांझी जो नाव डुबोए, उसे कौन बचाए- आप विधायक
इससे पहले जनकपुरी के आप विधायक राजेश ऋषि ने भी पार्टी संयोजक को खूब खरी-खोटी सुनाई। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार ऋषि ने अपनी भड़ास निकालने के लिए व्यंग बाण का सहारा लिया। 30 मार्च को उन्होंने ट्वीट किया, “मंझधार में नैय्या डोले, तो मांझी पार लगाए, मांझी जो नाव डुबोए, उससे कौन बचाए।” एक और ट्वीट में उन्होंने लिखा, “जिस राजा में घमंड होता है, वो राजा अपने राज्य को खुद डुबो देता है।” उनका अगला ट्वीट ये था “अगर कोई चापलूसों पर भरोसा करता है, तो उसका शासन खत्म होने की तरफ है।”

तानाशाही प्रवृति वाले केजरीवाल करते रहे हैं यूज एंड थ्रो की राजनीति
अरविंद केजरीवाल अपनी सुविधा की राजनीति करने के लिए जाने जाते हैं। समय-समय पर कई संगठनों और व्यक्तियों का उन्होंने सीढ़ियों की तरह इस्तेमाल किया और आगे बढ़ते गए। इस यात्रा में जिस किसी ने भी उनकी सोच का विरोध किया, केजरीवाल ने उनका साथ छोड़ दिया। वो हर किसी को राजनीतिक स्वार्थ में इस्तेमाल करने के बाद दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकालकर फेंकते रहे हैं। आइए डालते हैं एक नजर उन साथियों पर जिन्हें केजरीवाल ने ठेंगा दिखाया है –

अरुणा रॉय का साथ छोड़ा
अरविंद केजरीवाल का मन आईआरएस की नौकरी से ज्यादा अपनी संस्था ‘परिवर्तन’ में ही लगा रहता था। इसी दौरान उनको मैगसासे अवार्ड मिला और उसके धन से दिसबंर 2006 में एक नई संस्था पब्लिक कॉज रिसर्च फाउंडेशन बनाया। इसके बाद सितंबर 2010 में अरुणा रॉय के नेतृत्व में स्वयंसेवी संस्थाओं के ग्रुप नेशनल कैंपेन फॉर पीपल राइट टू इनफॉरमेशन की लोकपाल ड्राफ्टिंग कमेटी के अध्यक्ष बने। यहां से केजरीवाल को एक नये आंदोलन की रूप-रेखा समझ में आयी और अरुणा राय को छोड़कर अन्ना हजारे के साथ महाआंदोलन की तैयारी करने लगे।

अन्ना का इस्तेमाल किया, फिर दरकिनार कर दिया
अन्ना हजारे के नेतृत्व में जनलोकपाल की ऐतिहासिक लड़ाई हुई, जिनके अनशन के सामने पूरी सरकार ने घुटने टेक दिए। पर, स्वार्थ का राजनीतिक फल खाने के लिए केजरीवाल ने अन्ना को ही ठेंगा दिखला दिया। केजरीवाल ने सारे आंदोलन को अपने हाथ में ले लिया। केजरीवाल ने कहना शुरु कर दिया कि राजनीति का कीचड़ साफ करना है तो कीचड़ में उतरना ही पड़ेगा। अन्ना के विरोध के बाद भी केजरीवाल ने 26 नवंबर 2012 को आम आदमी पार्टी का गठन कर दिया। अब अन्ना और केजरीवाल के सुर नहीं मिलते, अन्ना केजरीवाल पर धोखा देने तक का आरोप लगा चुके हैं।

शांति भूषण को किनारे किया
पार्टी के वयोवृद्ध और संस्थापक नेता शांति भूषण ने केजरीवाल की तानाशाही के खिलाफ अपनी आवाज बुलन्द की और आंतरिक लोकतंत्र का सवाल उठाया। उन्होंने पैसे लेकर टिकट बांटने के आरोप भी लगाए। बदले में केजरीवाल ने उन्हें अपना दुश्मन मान लिया और बुरा-भला कहते हुए पार्टी के दरवाजे शांति भूषण के लिए बंद कर दिए। जबकि पार्टी को खड़ा करने में इन्होंने अपनी गाढ़ी मेहनत की कमाई भी लगाई थी।

प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव को बेईज्जत कर निकाला
अन्ना आंदोलन से लेकर आम आदमी पार्टी बनाने तक केजरीवाल ने जिन मुद्दों पर देश में सुर्खियां बटोरी, वो सारे कानूनी दांवपेंच प्रशांत भूषण ने अपनी मेहनत से जमा किया। प्रशांत पार्टी का थिंक टैंक माने जाते थे। पर जैसे ही केजरीवाल की मनमानी का प्रशांत भूषण ने विरोध किया, आंतरिक लोकतंत्र की बात उठायी – केजरीवाल ने उन्हें बेईज्जत कर पार्टी से निकालने में देर नहीं की। भूषण की तरह ही केजरीवाल ने वही हाल अन्ना आंदोलन से लेकर AAP के गठन तक में थिंक टैंक का हिस्सा रहे योगेन्द्र यादव का भी किया। आप को शून्य से शिखर तक लाने में इनके राजनीतिक विश्लेषण का भरपूर इस्तेमाल किया गया। लेकिन जैसे ही इन्होंने केजरीवाल की मनमानी का विरोध किया, तो केजरीवाल ने उनके लिए गाली-गलौच करने तक से भी गुरेज नहीं की।

प्रोफेसर आनन्द कुमार भी हुए बाहर
टीम केजरीवाल में थिंकटैंक का हिस्सा रहे प्रोफेसर आनन्द कुमार ने जब पार्टी और सरकार में एक व्यक्ति एक पद की बात उठायी तो अरविन्द केजरीवाल भड़क गये। पार्टी के संयोजक पद से इस्तीफे का दांव खेलकर केजरीवाल ने प्रोफेसर आनन्द कुमार, योगेंद्र यादव और प्रशान्त भूषण को एक झटके में पार्टी से निकाल दिया।

अजित झा हो गए आजीज
प्रोफेसर आनन्द कुमार के साथ अजित झा ने भी पार्टी के भीतर लोकतंत्र की आवाज उठायी। आंदोलन और पार्टी में सक्रिय रहे। केजरीवाल ने चर्चित फोन टेप कांड में अजित झा के लिए भी अपशब्द कहे थे। योगेंद्र यादव, आनन्द कुमार, प्रशांत भूषण के साथ-साथ इन्हें भी पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।

किरण बेदी का भी साथ छोड़ा
अरविंद केजरीवाल और किरण बेदी ने अपने जीवन का सबसे महत्वपूर्ण आंदोलन ‘लोकपाल आंदोलन’ साथ ही किया। दोनों ही टीम अन्ना के अहम सदस्य थे, लेकिन 2011 में शुरू हुआ लोकपाल आंदोलन डेढ़ साल बाद जब एक सामाजिक आंदोलन से एक राजनीतिक पार्टी की तरफ बढ़ चला तो किरण बेदी ने राजनीति में आने से इनकार करते हुए केजरीवाल के साथ चलने से मना कर दिया, और केजरीवाल से अलग हो गई। केजरीवाल की तानाशाही रवैये का उन्होंने हमेशा विरोध किया।

शाजिया इल्मी को भी दिया धोखा
शाजिया इल्मी पत्रकारिता से अन्ना आंदोलन में आईं। आम आदमी पार्टी के चर्चित चेहरों में से एक थीं। जब शाजिया ने महसूस किया कि खुद केजरीवाल ने उन्हें लोकसभा चुनाव में हराने का काम किया ताकि उनका कद ऊंचा ना हो सके, तो उन्होंने केजरीवाल पर महिला विरोधी होने का आरोप लगाते हुए पार्टी छोड़ दी। अब शाजिया बीजेपी में हैं।

जस्टिस संतोष हेगड़े से भी दगा
जनलोकपाल का ड्राफ्ट जिन तीन लोगों ने मिलकर तैयार किया था उनमें से एक हैं जस्टिस संतोष हेगड़े। अन्ना आंदोलन में सक्रिय जुड़े रहे। पर, राजनीतिक महत्वाकांक्षा जगने के बाद केजरीवाल ने हेगड़े को भी किनारा करना शुरू कर दिया। उपेक्षित और अलग-थलग महसूस करने के बाद जस्टिस हेगड़े ने टीम अन्ना से दूरी बना ली। वो इतने खिन्न हो गये कि केजरीवाल के शपथग्रहण समारोह में बुलाए जाने के बाद भी नहीं पहुंचे।

एडमिरल रामदास ने भी कहा राम-राम
आम आदमी पार्टी में आंतरिक लोकपाल पूर्व नौसेनाध्यक्ष एडमिरल रामदास तब भौंचक रह गये जब उन्हें उनके पद से हटा दिया गया। एडमिरल रामदास ने कहा कि मैं यह जानकर चकित हूं कि अब पार्टी को मेरी जरूरत नहीं रही। आंदोलन से लेकर राजनीतिक दल बनने तक एडमिरल रामदास ने अरविन्द केजरीवाल का साथ दिया, लेकिन मौका मिलते ही उन्होंने उनसे इसलिए किनारा कर लिया क्योंकि लोकपाल के तौर पर उन्होंने किसी किस्म के समझौते से इनकार कर दिया था।

विनोद कुमार बिन्नी निकाले गए
दिल्ली में सरकार बनने के बाद सबसे पहले अरविन्द केजरीवाल की तानाशाही का विरोध विनोद कुमार बिन्नी ने ही किया था। बिन्नी ने खुलकर केजरीवाल के खिलाफ आरोप लगाए। इस वजह से उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया। बिन्नी तब से अरविन्द केजरीवाल के साथ थे जब अन्ना आंदोलन शुरू भी नहीं हुआ था।

एमएस धीर- धैर्य ने दिया जवाब
आप सरकार में स्पीकर रहे एमएस धीर का अरविन्द केजरीवाल से ऐसा मोहभंग हुआ कि उन्होंने पार्टी ही छोड़ दी। सिखों के प्रति केजरीवाल की कथनी और करनी में अंतर बताते हुए उन्होंने पार्टी छोड़ी। उन्होंने नेतृत्व पर सिख दंगे में मारे गये लोगों के परिजनों को इंसाफ दिलाने में विफल रहने का आरोप उन्होंने लगाया।

मुफ्ती शमून कासमी को किया किनारे

अन्ना हजारे को धोखा देने की वजह से अरविन्द केजरीवाल से खफा हो गये मुफ्ती शमून कासमी। उन्होंने केजरीवाल पर अन्ना के कंधे पर रखकर बंदूक चलाने का आरोप लगाया। दिल्ली विधानसभा चुनाव में मौलाना की शरण में जाने के लिए भी कासमी ने केजरीवाल की निन्दा की और तभी कह दिया कि जरूरत पड़ी तो ये आदमी कांग्रेस से भी हाथ मिला सकता है। कासमी का दावा था कि केजरीवाल की सत्ता के लिए भूख सबसे पहले उन्होंने ही पहचानी।

कैप्टन गोपीनाथ ने छोड़ी पार्टी
भारत में कम कीमत के हवाई यातायात में प्रमुख भूमिका निभाने वाले जी आर गोपीनाथ को भी पार्टी छोड़नी पड़ी। पार्टी छोड़ते हुए गोपीनाथ ने अरविन्द केजरीवाल की कार्यप्रणाली की आलोचना की। उन्होंने कहा कि पार्टी केजरीवाल के नेतृत्व में रास्ते से भटक गयी है।

तानाशाही से खिन्न मयंक गांधी ने भी साथ छोड़ा
योगेन्द्र यादव, प्रशांत भूषण और अन्य साथियों को जिस तरह से केजरीवाल ने साजिश के साथ बाहर निकाला था, उसका खुलासा मयंक गांधी अपने ब्लॉग में किया। वह जानते थे कि उनकी पारदर्शिता की मांग से एक न एक दिन उन्हें भी केजरीवाल बाहर का रास्ता दिखा ही देंगे। 11 नवंबर 2015 को मयंक गांधी ने भी केजरीवाल की तानाशाही प्रवृति से तंग आकर इस्तीफा दे दिया।अरविंद केजरीवाल ने धोखेबाजी की जिस बुनियाद पर आम आदमी पार्टी की नींव रखी थी, उसकी चूलें अब पूरी तरह डांवाडोल हो चुकी हैं। पंजाब-गोवा में वोटरों को उल्लू बनाने में नाकाम रहने के बाद उन्होंने प्रॉपर्टी टैक्स खत्म करने का लॉलीपॉप दिखाकर MCD चुनाव में नाक बचाने का षड़यंत्र रचा है। लेकिन हकीकत ये है कि दिल्ली की जनता क्या अब उनकी पार्टी के नेताओं तक में वो अपना भरोसा खो चुके हैं। उनकी असलियत जग-जाहिर हो चुकी है। यही वजह है कि MCD से ठीक पहले आप छोड़ने वाले नेताओं की लाइन लग गई है।

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