Home विचार एजेंडा पत्रकारों की खुली पोल, प्रचंड जीत के बावजूद हराने में जुटे

एजेंडा पत्रकारों की खुली पोल, प्रचंड जीत के बावजूद हराने में जुटे

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उत्तर प्रदेश में स्थानीय निकाय के चुनाव परिणाम ने एक बार फिर कुछ पत्रकारों का चेहरा बेनकाब कर दिया। भाजपा के खिलाफ कुछ पत्रकार एजेंडा चलाते हैं, इसकी बानगी आज एक बार फिर देखने को मिली। आज जब नतीजे आने शुरू हुए तो ठीक उसी समय कुछ पत्रकारों ने भाजपा को हराने के नए-नए एंगल तलाशने शुरू किए और प्रचंड जीत के बावजूद भाजपा को हारा हुआ दिखाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। हमने ऐसे ही कुछ पत्रकारों के प्रोफाइल को खंगालने की कोशिश की और जो जानकारियां सामने आईं, वो हैरान करने वाली हैं।

दिबांग- निकाय चुनाव रुझान में भाजपा को नुकसान, बसपा को उभार
वरिष्ठ टीवी पत्रकार और एबीपी न्यूज के प्राइम टाइम एंकर दिबांग ने शुरुआती रुझान देखकर ही भाजपा को हरा दिया। उन्होंने ट्वीट करते हुए हेडर ही लिखा कि इस चुनाव में भाजपा को नुकसान हुआ है। दिबांग ने यह भी नहीं देखा कि आंकड़े तेजी से बदल रहे हैं। खुद उन्होंने जो आंकड़ा दिया है, उसके मुताबिक 16 सीटों में बसपा को सिर्फ 4 सीटें ही मिली हैं, जबकि भाजपा को 11 सीटें मिलती दिख रही हैं।

 

अमन शर्मा ने योगी आदित्यनाथ को नर्वस बताया
इकोनॉमिक टाइम्स के पत्रकार हैं अमन शर्मा। शर्मा जी को पत्रकारिता करते-करते भाजपा को हराने की इतनी जल्दी रहती है कि थोड़ा इंतजार भी उन्हें गंवारा नहीं होता है। जहां जो तथ्य आए, बिना पड़ताल या इंतजार किए नतीजे तक पहुंच जाते हैं। अब निकाय चुनाव में भले ही भाजपा ने प्रचंड जीत हासिल की हो, लेकिन इन्होंने ट्वीट किया: “पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हाथी की चाल शुरू हो गई है। भाजपा को बड़ा नुकसान हुआ है और योगी आदित्यनाथ इससे जरूर नर्वस होंगे।“ वैसे इस पत्रकार महोदय ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान भी भाजपा को हराने के लिए जाने कितने पैंतरे आजमाए थे। जरा इस बार के भी इनके ट्वीट देखिए

एक वरिष्ठ पत्रकार टाइप की चीज हैं अशोक वानखेड़े। एबीपी न्यूज में ही इतने बड़े मौके पर बड़ी बात रखने के लिए मौजूद थे। इनके विश्लेषण का अंदाज ये है कि दूरबीन लेकर भाजपा की हार ढूंढते रहे। टीवी स्क्रिन पर पत्रकारिता कम और भाजपा की जीत पर शोक मना रहे थे। बार-बार भाजपा वालों से ही सवाल दाग रहे थे

  • भाजपा के नेताओं ने इतना प्रचार क्यों किया?
  • खुद योगी-केशव मौर्या और बाकी बड़े नेता चुनाव मैदान में क्यों उतरे
  • उत्तर प्रदेश चुनाव का गुजरात चुनाव से क्या लेना-देना?
  • अमेठी की हार को कांग्रेस की बड़ी हार कहना ठीक नहीं?
  • उत्तर प्रदेश की यह जीत कोई बड़ी जीत नहीं।

हालत यह है कि एबीपी न्यूज देख रहे लोग भी इस एजेंडा पत्रकार पर ट्वीटर पर अपनी बात रखने लगे

एबीपी न्यूज के संपादक हैं मिलिंद खांडेकर। इन्हें भी निकाय चुनाव के दौरान जो सबसे बड़ी खबर नजर आई, वह बसपा का Come Back है। इन्होंने नतीजों से संबंधित सिर्फ 2 ट्वीट किए। एक में यह बताना नहीं भूले कि पिछली बार भी भाजपा के 12 मेयर जीते थे और दूसरे ट्वीट में बसपा का Come Back दिखा रहे हैं।

जब संपादक महोदय ने भाजपा के खिलाफ खुली लाइन ले ली हो तो फिर इनके एंकरों का क्या कहना। एबीपी न्यूज के एंकर अखिलेश आनंद ने साफ कह दिया कि भाजपा की इस प्रचंड जीत को पार्टी के लिए किसी लहर से देखना ठीक नहीं रहेगा।

भाजपा और विशेषकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ एजेंडा चलाने वाले एक और संपादक महोदय हैं अजीत अंजुम। सुना है इस समय इनके पास कोई काम नहीं है। इन्होंने भी खुला ऐलान कर दिया कि बसपा वापसी कर रही है और भाजपा के लिए ये एक परेशानी का विषय है।

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान इकोनॉमिक टाइम्स के कई पत्रकारों ने एक तरह से भाजपा के खिलाफ एजेंडा चला रखा था। हालांकि इन लोगों को कोई सफलता नहीं मिली। आज भी इकोनॉमिक टाइम्स के एक और पत्रकार रजत अरोड़ा का ट्वीट पढ़ने को मिला। इस जनाब ने दलित वोट को लेकर अपना कमेंट किया है और कहा है कि अब दलित वोटर भाजपा से दूर हो गए हैं। अब जरा कोई इस जनाब से ये तो पूछे कि अगर दलित वोटर विमुख हो गया है तो फिर भाजपा को ये प्रचंड जीत कहां से मिली है।

NDTV के एक पत्रकार हैं उमाशंकर सिंह। ये जनाब भी जब-तब चैनल की लाइन लेते हुए एजेंडे पर उतर आते हैं। ये कभी भाजपा के खिलाफ लिखने वालों के लिए तो कुछ नहीं कहते, लेकिन अगर कोई पत्रकार नतीजे को तथ्यात्मक रूप में लिख दे या फिर भाजपा-मोदी की तारीफ कर दे तो उन्हें ऐसे पत्रकार सुपारी किलर की तरह लगने लगते हैं।

इंडिया टीवी की एंकर हैं मीनाक्षी जोशी। इन्होंने भी योगी पर कमेंट करने में देर नहीं लगाई। मीनाक्षी ने लिखा कि मुख्यमंत्री योगी का प्रचार काम न आया है, जबकि मायावती बिना प्रचार किए ही आगे हैं। शायद मीनाक्षी को ये समझ में नहीं आया कि किस प्रकार 16 में 14 सीट जीतने के बाद भी योगी का प्रचार फेल हो गया।

उधर एबीपी के एक और पत्रकार पंकज झा ने तो बकायदा हाथी की कीमत ही निकालनी शुरू कर दी।

कुल मिलाकर देखें तो भारत की पत्रकारिता इस समय बेहद दयनीय स्थिति में है और इसके गुनहगार खुद पत्रकार ही हैं जो अपनी तटस्थता छोड़कर भाजपा के खिलाफ एजेंडा चलाने का काम करते हैं।

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