Home पश्चिम बंगाल विशेष हिंदुओं के विरुद्ध ‘जिहाद’ की नायिका हैं ममता बनर्जी?

हिंदुओं के विरुद्ध ‘जिहाद’ की नायिका हैं ममता बनर्जी?

एंटी हिंदू मानसिकता के तहत शासन चलाती हैं ममता बनर्जी, रिपोर्ट

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पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी मुस्लिम प्रेम में पूरी तरह अंधी हो चुकी हैं। मुस्लिम तुष्टिकरण को छिपाने के लिए स्वयं को धर्मनिरपेक्षता की सबसे बड़ी ठेकेदार बताती हैं। लेकिन ये छद्म धर्मनिरपेक्षता सिर्फ हिंदुओं पर थोपी जाती है। दरअसल भीतर ही भीतर पश्चिम बंगाल का इस्लामीकरण हो रहा है और इसकी नायिका ममता बनर्जी हैं। ममता के शासनकाल में हिंदुओं को अपने धार्मिक रीति-रिवाज, पर्व-त्योहार मनाने तक की स्वतंत्रता नहीं रह गई है। हाल के दिनों में ममता ने हिंदुओं के खिलाफ कई ऐसे कदम उठाए हैं, जिससे लगता है कि अपने ही देश के भीतर बहुसंख्यकों को अपनी पूजा-पद्धति और संस्कार बचाने के लाले पड़ गए हैं। आलम यह है कि मुस्लिम प्रेम में ममता ने हाईकोर्ट तक के आदेश को धता बता दिया है और अब एक बार फिर हिंदुओं की धार्मिक आस्था को ठेस पहुंचायी है। मुख्यमंत्री ने इस बार भी मोहर्रम के चलते दुर्गा मूर्ति विसर्जन पर रोक लगा दी है।

मुस्लिमों से मोहब्बत, हिंदुओं से नफरत
ममता बनर्जी ने दुर्गा पूजा के बाद मूर्ति विसर्जन को लेकर 30 सितंबर की शाम 6 बजे से 1 अक्टूबर तक रोक का आदेश दिया है। इस फरमान के मुताबिक, पश्चिम बंगाल में मोहर्रम के जुलूसों के दौरान दुर्गा की मूर्ति के विसर्जन पर रोक रहेगी। इस साल 1 अक्टूबर को मोहर्रम है। सिर्फ एक दिन विसर्जन नहीं किया जा सकेगा और वो दिन है 1 अक्टूबर, यानी एकादशी के दिन। ममता बनर्जी ने बुधवार (23 अगस्त) को कहा कि मोहर्रम के जुलूसों के चलते दुर्गा प्रतिमा के विसर्जन पर यह रोक रहेगी। कोलकाता हाईकोर्ट में पिछले साल दायर की गई तमाम जनहित याचिकाओं के बावजूद इस साल भी ऐसा किया जा रहा है।

कलकत्ता हाईकोर्ट ने लगाई थी फटकार
पिछले साल भी ममता सरकार ने इसी तरह से मूर्ति विसर्जन पर प्रतिबंध जारी किया था क्योंकि तब भी विजय दशमी मोहर्रम से एक दिन पहले मनाया गया था। ममता के इस फैसले के खिलाफ तब कलकत्ता हाइकोर्ट में याचिका दायर की गई थी। तब जस्टिस दीपांकर दत्‍ता की सिंगल बेंच ने अपने आदेश में कहा था, “साफ दिख रहा है कि राज्‍य सरकार का यह फैसला बहुसंख्‍यकों की कीमत पर अल्‍पसंख्‍यक वर्ग को खुश करने और पुचकारने वाला है।” हाईकोर्ट ने साफ कहा था कि ये तुष्टिकरण करने की राजनीति है। ये माइनॉरिटी अपीजमेंट की राजनीति है । कोर्ट ने ममता बनर्जी को हिदायत दी थी कि ऐसा नहीं करना है। लेकिन ममता की दोहरी मानसिकता देश में एक विभाजन का माहौल पैदा कर रही है।

कलकत्ता हाईकोर्ट और ममता बनर्जी के लिए चित्र परिणाम

हाईकोर्ट ने बताया था ‘अभूतपूर्व’ घटना
पिछले साल दुर्गापूजा में विजयदशमी के दिन विसर्जन को लेकर ममता बनर्जी ने जो फैसला किया, वो देश के करोड़ों हिन्दुओं की भावनाओं को आहत करने वाला था। मुख्यमंत्री ने हिन्दुओं की आस्था पर चोट की और कहा कि ”वो तो सांप्रदायिक सौहार्द के लिए ऐसा करती हैं।’‘ लेकिन हाईकोर्ट ने टिप्पणी की, ”मूर्तियों के विसर्जन पर रोक लगाना बंगाल के इतिहास में ”अभूतपूर्व घटना’ है।” डीएनए/स्वराज ने 2016 में लिखा, ”इस साल अक्टूबर में दुर्गा पूजा मूर्ति विसर्जन और मुहर्रम ताजिया जुलूस के दौरान राज्य भर में 12 जगहों पर सांप्रदायिक दंगे हुए। इसके बीज तब ही पड़ गये थे जब ममता बनर्जी ने मूर्ति विसर्जन पर प्रतिबंध लगाया क्योंकि उस दिन मुहर्रम पड़ रहा था।”

ममता के राज में हिंदुओं के लिए ‘फतवा’
दरअसल पिछले साल भी ममता सरकार ने फतवा जारी किया था कि दुर्गा पंडाल वाले 11 अक्टूबर, 2016 को शाम 6 बजे से पहले-पहले विसर्जन कर लें। अगर वो ऐसा नहीं कर पाए तो उन्हें 13 तारीख के बाद ही इजाजत मिलेगी, क्योंकि 12 को मोहर्रम है। दरअसल मां दुर्गा की प्रतिमाओं के विसर्जन के लिए तय समय पर रोक लगाकर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पंचांग उलटने की कोशिश की। उन्होंने अपनी ओर से नयी समय-सीमा तय कर दी। विसर्जन की नयी समय-सीमा इसलिए तय की गयी ताकि उसके अगले दिन मोहर्रम का जुलूस निकालने में मुस्लिमों को कोई परेशानी न हो। ममता का रुख कुछ ऐसा रहा कि हिन्दुओं को अपना उत्सव मनाना छोड़ देना चाहिए ताकि मुस्लिम उत्सव मना सकें।

चार साल से कांगलापहाड़ी में दुर्गा पूजा नहीं
ममता बनर्जी की सरकार में मुसलमानों को तो दामाद की तरह रखा जा रहा है, लेकिन हिंदू अपने ही देश में बेगाने हो गए हैं। 10 अक्टूबर, 2016 को कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश से ये बात साबित होती है। ममता बनर्जी के राज में बीरभूम जिले का कांगलापहाड़ी गांव भुक्तभोगी है। गांव में 300 घर हिंदुओं के हैं और 25 परिवार मुसलमानों के हैं, लेकिन इस गांव में चार साल से दुर्गा पूजा पर पाबंदी है। मुसलमान परिवारों ने जिला प्रशासन से लिखित में शिकायत की कि गांव में दुर्गा पूजा होने से उनकी भावनाओं को ठेस पहुंचती है, क्योंकि दुर्गा पूजा में बुतपरस्ती होती है। शिकायत मिलते ही जिला प्रशासन ने दुर्गा पूजा पर बैन लगा दिया। गांव के लोग जगह-जगह फरियाद करके थक गए, लेकिन लगातार चौथे साल भी यहां दुर्गा पूजा नहीं हुई।

हाईकोर्ट के आदेश से हो सकी रामनवमी की पूजा
‘लेक टाउन रामनवमी पूजा समिति’ ने इसी साल 22 मार्च को पूजा की अनुमति के लिए आवेदन दिया था। लेकिन एंटी हिन्दू एजेंडा चला रही राज्य सरकार के दबाव में नगरपालिका ने पूजा की अनुमति नहीं दी। लेकिन जब राज्य सरकार के दबाव में नगरपालिका ने पूजा की अनुमति नहीं दी तो याचिकाकर्ता ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। याचिका की सुनवाई करते हुए कलकत्ता हाईकोर्ट की सिंगल बेंच के जज न्यायमूर्ति हरीश टंडन ने नगरपालिका के रवैये पर नाखुशी जताते हुए पूजा शुरू करने की अनुमति देने का आदेश दिया।

हनुमान जयंती के जुलूस की अनुमति नहीं
11 अप्रैल, 2017 को पश्चिम बंगाल में बीरभूम जिले के सिवड़ी में हनुमान जयंती के जुलूस पर पुलिस ने लाठीचार्ज किया। मुस्लिम तुष्टिकरण के कारण ममता सरकार से हिन्दू जागरण मंच को हनुमान जयंती पर जुलूस निकालने की अनुमति नहीं दी। हिंदू जागरण मंच के कार्यकर्ताओं का कहना था कि हम इस आयोजन की अनुमति को लेकर बार-बार पुलिस के पास गए लेकिन पुलिस ने मना कर दिया। लेकिन धार्मिक आस्था के कारण निकाले गए जुलूस पर पुलिस ने बर्बता से लाठीचार्ज किया। इसमें कई लोग घायल हो गए।

हिंदुओं पर लगा दी आर्म्स एक्ट की धाराएं
ममता बनर्जी ने 6 अप्रैल, 2017 को बयान दिया – “भगवान राम ने दुर्गा की पूजा फूलों के साथ की थी, तलवारों के साथ नहीं। राम ने रावण को मारने के लिए दंगे नहीं किए। अगर कोई नेता या कार्यकर्ता हथियारों के साथ जुलूस में शामिल होता है तो कानून अपना काम करेगा। चाहे वह कोई भी क्यों ना हो। सभी बराबर हैं।” ममता हथियारों के साथ मुहर्रम के मौके पर जुलूस निकलने पर ऐसा कोई बयान नहीं देती और न ही पुलिस कभी किसी को गैर जमानती धारा में इस वजह से गिरफ्तार करती है। ममता सरकार का इशारा मिलते ही पुलिस ने एक्शन शुरू कर दिया। हनुमान जयंती जुलूस में शामिल होने पर पुलिस ने 12 हिन्दुओं को गिरफ्तार कर लिया। उन पर आर्म्स एक्ट समेत कई गैर जमानती धाराएं लगा दीं।

धूलागढ़ दंगे में एंटी हिंदू एक्शन
धूलागढ़ दंगे में भी ममता सरकार की भूमिका संदेह के घेरे में रही। इस दंगे में हिन्दू परिवारों पर आक्रमण हुए। उनके घर जलाए गये, उन्हें मारा-पीटा गया, महिलाओं के साथ बलात्कार हुए। लेकिन ममता सरकार ने हिन्दुओं के बचाव के लिए कुछ नहीं किया। धूलागढ़ हिंसा में 65 लोगों को गिरफ्तार करने पर मुसलमानों को खुश करने के लिए हावड़ा के एसपी (ग्रामीण) सब्यसाची रमन मिश्रा का तबादला कर दिया गया। इतना ही नहीं रिपोर्ट कवर करने गए जी न्यूज की रिपोर्टर, संपादक पर केस दर्ज कराया गया। उन्हें गिरफ्तार करने की कोशिश की गयी। बीजेपी के प्रतिनिधिमंडल प्रतिनिधिमंडल के दो सांसदों जगदम्बिका पाल और सतपाल सिंह तथा एक बीजेपी के राष्ट्रीय नेता राहुल सिन्हा को धूलागढ़ नहीं जाने दिया गया।

पुस्तकालयों में नबी दिवस-ईद मनाना अनिवार्य
11 जनवरी 2017 को ममता सरकार ने आदेश जारी किया कि नबी दिवस को सरकारी पुस्तकालयों में भी मनाया जाएगा। बंगाल सरकार के इस नये नियम के हिसाब से राज्य के सभी 2480 से ज्यादा सरकारी पुस्तकालयों में साल के दूसरे प्रस्तावित कार्यक्रम की तरह नबी दिवस मानने की भी बात कही गई। इतना ही नहीं इसे मनाने के लिए सरकारी खजाने से फंड देने की भी व्यवस्था की गई। इस आदेश में 51 इवेंट्स की सूची जारी की गई है। जिसमें ईद-उद-मिलाद-उन-नबी जो की मोहम्मद पैगंबर की जन्मदिन के तौर पर मनाया जाता है, भी शामिल है।

ममता राज में ईद मनाइये, सरस्वती पूजा नहीं
एक तरफ बंगाल के पुस्तकालयों में नबी दिवस और ईद मनाना अनिवार्य किया गया तो एक सरकारी स्कूल में कई दशकों से चली आ रही सरस्वती पूजा ही बैन कर दी गई। ये मामला हावड़ा के एक सरकारी स्कूल का है, जहां पिछले 65 साल से सरस्वती पूजा मनायी जा रही थी, लेकिन मुसलमानों को खुश करने के लिए ममता सरकार ने इसी साल फरवरी में रोक लगा दी। जब स्कूल के छात्रों ने सरस्वती पूजा मनाने को लेकर प्रदर्शन किया, तो मासूम बच्चों पर डंडे बरसाए गए। इसमें कई बच्चे घायल हो गए।

ममता सरकार ने बदला ‘राम’ का नाम
‘रामधनु’ को ‘रंगधनु’ किया – तीसरी क्लास में पढ़ाई जाने वाली किताब अमादेर पोरिबेस (हमारा परिवेश) ‘रामधनु’ (इंद्रधनुष) का नाम बदल दिया गया है। उसे ‘रंगधनु’ कर दिया है। साथ ही ब्लू का मतलब आसमानी रंग बताया गया है। शिक्षाविद् मुखोपाध्याय का कहना है कि साहित्यकार राजशेखर बसु ने सबसे पहले ‘रामधनु’ का प्रयोग किया था, लेकिन अब एक समुदाय विशेष को खुश करने के लिए किताब में इसका नाम ‘रामधनु’ से बदलकर ‘रंगधनु’ कर दिया है।

मकर संक्रांति की सभा में डाला था अड़ंगा
इसी साल 14 जनवरी को मकर संक्रांति के अवसर पर कोलकाता के ब्रिगेड परेड ग्राउंड में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने एक रैली आयोजित की थी। लेकिन सारे नियमों और औपचारिकताओं को पूरा करने के बाद भी राज्य की सरकार के दबाव में कोलकाता पुलिस इस रैली के लिए अनुमति नहीं दे रही थी। इस रैली को स्वयं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघचालक मोहन जी भागवत को संबोधित करना था। लेकिन ममता सरकार को लग रहा था कि अगर रैली के लिए अनुमति दे दी तो उनका मुस्लिम वोट बैंक बिदक जाएगा। यही वजह है कि उसने सारी कानूनी और संवैधानिक मर्यादाओं को ताक पर रखकर रैली की अनुमति देने से साफ मना कर दिया। ममता बनर्जी सरकार के इस तानाशाही रवैए के खिलाफ कलकत्ता हाईकोर्ट में अपील दायर की गई और वहां से आदेश मिलने के बाद ही रैली संपन्न हो सकी।

बीफ खाने का समर्थन
ममता ने 21 जुलाई, 2016 को शहीद दिवस पर कोलकाता में कहा, ”अगर मैं बकरी खाती हूं तो कोई समस्या नहीं है, लेकिन कुछ लोग गाय खाते हैं तो यह समस्या है। मैं साड़ी पहनती हूं तो समस्या नहीं है, लेकिन कुछ लोग सलवार कमीज पहनते हैं तो यह समस्या है। हम धोती पहनना पसंद करते हैं लेकिन कुछ लुंगी पहनने को प्राथमिकता देते हैं। आप कौन हैं तय करने वाले कि लोग क्या पहनें और क्या खाएं?”18 दिसंबर 2016 को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने हुगली में मुसलमानों को संबोधित करते हुए बीफ खाने के प्रति अपना समर्थन दोहराया, ”यह पसंद का मामला है। मेरा अधिकार है मछली खाना। वैसे ही, आपका अधिकार है मांस खाना। आप जो कुछ भी खाएं – बीफ या चिकन, यह आपकी पसंद है।” ममता ने इस कानून को धार्मिक रंग देने की कोशिश की और मुसलमानों से जोड़ते हुए कहा कि यह रमजान से पहले जान बूझकर लगाया गया प्रतिबंध है।

ममता राज के 8000 गांवों में एक भी हिंदू नहीं
दरअसल ममता राज में हिंदुओं पर अत्याचार और उनके धार्मिक क्रियाकलापों पर रोक के पीछे तुष्टिकरण की नीति है। लेकिन इस नीति के कारण राज्य में अलार्मिंग परिस्थिति उत्पन्न हो गई है। प. बंगाल के 38,000 गांवों में 8000 गांव अब इस स्थिति में हैं कि वहां एक भी हिन्दू नहीं रहता, या यूं कहना चाहिए कि उन्हें वहां से भगा दिया गया है। बंगाल के तीन जिले जहां पर मुस्लिमों की जनसंख्या बहुमत में हैं, वे जिले हैं मुर्शिदाबाद जहां 47 लाख मुस्लिम और 23 लाख हिन्दू, मालदा 20 लाख मुस्लिम और 19 लाख हिन्दू, और उत्तरी दिनाजपुर 15 लाख मुस्लिम और 14 लाख हिन्दू। दरअसल बंगलादेश से आए घुसपैठिए प. बंगाल के सीमावर्ती जिलों के मुसलमानों से हाथ मिलाकर गांवों से हिन्दुओं को भगा रहे हैं और हिन्दू डर के मारे अपना घर-बार छोड़कर शहरों में आकर बस रहे हैं।

ममता राज में घटती जा रही हिंदुओं की संख्या
पश्चिम बंगाल में 1951 की जनसंख्या के हिसाब से 2011 में हिंदुओं की जनसंख्या में भारी कमी आयी है। 2011 की जनगणना ने खतरनाक जनसंख्यिकीय तथ्यों को उजागर किया है। जब अखिल स्तर पर भारत की हिन्दू आबादी 0.7 प्रतिशत कम हुई है तो वहीं सिर्फ बंगाल में ही हिन्दुओं की आबादी में 1.94 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है, जो कि बहुत ज्यादा है। राष्ट्रीय स्तर पर मुसलमानों की आबादी में 0.8 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है, जबकि सिर्फ बंगाल में मुसलमानों की आबादी 1.77 फीसदी की दर से बढ़ी है, जो राष्ट्रीय स्तर से भी कहीं दुगनी दर से बढ़ी है।

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