‘सजग रहना सबसे अच्छा बचाव है।’ इसी सूत्र वाक्य के साथ भारतीय उप-महाद्वीप में उभर रही सुरक्षा स्थितियों और हिंद महासागर इलाके में अतिरिक्त क्षेत्रीय शक्तियों के दखल पर भारत सरकार ‘अलर्ट मोड’ में है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार रक्षा क्षेत्र से जुड़े सभी मुद्दों पर बेहद सकारात्मकता के साथ काम कर रही है। 30 अगस्त, 2017 भारतीय रक्षा क्षेत्र के लिए एक ऐतिहासिक दिन बन गया है क्योंकि इस दिन केंद्र सरकार ने आर्मी में स्वतंत्रता के पश्चात सबसे बड़े सुधारों को स्वीकृति दे दी है।
आजादी के बाद का सबसे बड़ा रिफॉर्म
दरअसल पिछले साल केंद्र सरकार ने रिफॉर्म्स की सिफारिशों के लिए रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल डीबी शेकटकर की अध्यक्षता में एक कमिटी बनाई गई थी। 11 सदस्यों वाली कमिटी ने 400 साल के युद्ध इतिहास के अनुभव से ये रिपोर्ट बनाई है जिससे देश का रक्षा विभाग भविष्य में आने वाली युद्ध परिस्थितियों को निपटने के लिए तैयार हो सके। कमिटी ने सुरक्षा खामियों को जल्द से जल्द दूर करने के लिए संसाधनों में वृद्धि करने के अतिरिक्त आर्मी की कॉम्बेट कैपेसिटी को बढ़ाने के लिए अहम सिफारिशें की थीं।
क्विक एक्शन लेती है मोदी सरकार
मार्च 2016 में गठित पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल डी बी शेकटकर कमिटी ने छह महीनों के अथक परिश्रम के बाद 188 सुझावों वाली रिपोर्ट रक्षा मंत्रालय को अक्टूबर 2016 में सुपुर्द की थी। दरअसल इसके पहले न जाने कितनी ही समितियां बनीं और कितने कमिटी के सुझावों को अमल किया गया, इसपर एक बड़ा प्रश्न चिह्न है। लेकिन पहल बार किसी केंद्रीय सरकार ने इतना क्विक एक्शन लिया और आजादी के बाद के सबसे बड़े रिफॉर्म को मंजूर कर लिया।
99 सुझावों में से 65 को मिली स्वीकृति
कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में 188 सुझाव दिये थे जिनमें से 99 सुझावों को सरकार ने योग्य माना। इनमें से 65 सुझावों को अमल करने का आदेश जारी भी हो चुका है। ये सभी रिफॉर्म्स 31 दिसंबर 2019 तक लागू भी कर दिए जाएंगे। दरअसल एक साल के भीतर इतने बड़े पैमाने का फैसला लेना मोदी सरकार के बूते की ही बात है क्योंकि स्वतंत्रता के पश्चात रक्षा क्षेत्र में देश का सबसे बड़ा रिफॉर्म प्रोग्राम है।
‘tooth-to-tail’ तक सुधार
सरकार का यह फैसला न सिर्फ रक्षा बजट के बेहतर इस्तेमाल का रास्ता साफ करेगा, बल्कि सेना में ‘टीथ टू टेल रेशो’ को भी सुधारेगा। दरअसल ‘टीथ टू टेल रेशो’ सेना में इस्तेमाल होने वाला एक टर्म है, जिसका मतलब होता है सीमा पर तैनात हर सिपाही के लिए आवश्यक समान पहुंचाने या उसके सहयोग के लिए तैनात अन्य लोगों का अनुपात। इसके मायने ये हैं कि जो सुधार किए जाएंगे वो सप्लाई और सपोर्ट देने वाले जवानों से फ्रंट पर मौजूद सैनिकों तक होंगे। सेना की क्षमता बढ़ाने के लिए आर्मी विंग्स में सिविलियंस की तैनाती फिर की जएगी।
ऊपर से नीचे तक किया जा रहा सुधार
आजादी के बाद यह पहली बार है जब प्लानिंग के तहत सेना में रिफॉर्म्स किए जा रहे हैं। पहले फेज में करीब 57 हजार सीनियर और जूनियर अफसरों, जवानों और सिविलियंस की नए सिरे से तैनाती की जाएगी। इसके अलावा सेना के अनावश्यक विभागों को बंद किया जाएगा और एक ही तरह के काम में लगे विभागों को एक साथ मिलाया जाएगा। शांति वाले इलाकों में मिलिट्री फार्म और मिलिट्री पोस्टल सर्विस बंद की जाएंगी। 39 मिलिट्री फार्म को तय वक्त में बंद किया जाएगा। सेना की सप्लाई और एनिमल ट्रांसपोर्ट यूनिट का बेहतर इस्तेमाल किया जाएगा। नेशनल कैडेट कॉर्प्स को भी पहले से ज्यादा बेहतर बनाया जाएगा।
युद्ध की चुनौतियों के लिए बनी थी कमिटी
दरअसल मोदी सरकार ने यह जानने की कोशिश की थी कि युद्ध को लेकर किस तरह से चुनौतियां आ रही हैं और इसे सरकारी स्तर पर कैसे खत्म किया जा सकता है। कमिटी ने करगिल युद्ध, चीन की घुसपैठ, पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध पर भी विचार किया। पाकिस्तान की बार-बार मिल रही युद्ध की चेतावनी का भारत पर क्या असर हो सकता है, पाक-चीन एकसाथ मिलकर भविष्य में क्या कर सकते हैं, ऐसे तमाम पहलुओं समिति ने विचार किया। आंतरिक सुरक्षा, नक्सलवाद, समुद्री किनारे की सुरक्षा, इन मुद्दों को ध्यान में लिया गया। तकनीक, युद्ध प्रकार, शस्त्र के प्रकार को लेकर जरूरतों पर विचार किया गया। कमिटी ने जवानों की संख्या बढ़ाने की बजाय उनकी क्षमता बढ़ाने पर जोर दिया है।