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क्या केजरीवाल ने प्रिंट मीडिया को खरीद लिया है?

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क्या दिल्ली के विवादास्पद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने प्रिंट मीडिया को खरीद लिया है? क्या केजरीवाल अखबारों में पेड न्यूज दे रहे हैं? क्या दिल्ली के पत्रकारों ने केजरीवाल के आगे सरेंडर कर दिया है? आखिर हम ये सवाल क्यों कर रहे हैं? दरअसल आज, 23 जुलाई को दिल्ली से छपने वाले ज्यादातर अखबारों में एक जैसी खबर छपी हुई है। सिर्फ मेन टाइटल को छोड़ दें तो सारी की सारी खबर एक जैसी है। जी हां, अखबार कई हैं, लेकिन उनमें खबर एक जैसी है। अखबार की भाषा एक है, लोगों की तस्वीर और उनके बयान एक हैं। अब सोचिए ये कैसे संभव हो सकता है? क्योंकि सभी अखबारों के रिपोर्टर अलग-अलग है, संपादक अलग-अलग हैं, तो फिर खबर हू-ब-हू एक जैसी कैसे? ये साफ संकेत हैं कि अरविंद केजरीवाल अखबार में दिल्ली सरकार की झूठी तारीफ के लिए पैसे दे रहे हैं। पेड न्यूज के जरिए लोगों को गुमराह करने की साजिश में दिल्ली के बड़े अखबार भी शामिल हो गए हैं।

दैनिक जागरण अखबार के दिल्ली एडिशन में ‘कॉलोनियों के नियमितिकरण में केंद्र की शर्तों को मानने का निर्देश’ टाइटल से विस्तृत खबर छपी हुई है। इसमें नौ लोगों का इंटरव्यू भी है।

नवभारत टाइम्स में पूरी की पूरी यही खबर ‘ दिल्ली में कच्ची कॉलोनियां, कितनी बदली तस्वीर?’ शीर्षक से छपी है। इसमें भी उन्हीं नौ लोगों के साथ बातचीत हू-ब-हू प्रकाशित की गई है।

इसके बात पंजाब केसरी अखबार में भी यही खबर ‘कच्ची कॉलोनियों में रहने वालों ने कहा, केजरीवाल ने बदल दी जिंदगी’ नाम से छपी है। इसमें भी उन्हीं नौ लोगों के साथ की गई बातचीत को जगह दी गई है।

इन खबरों से लोगों को गुमराह करने की कोशिश की गई है। ऐसे में यह सवाल उठना सही है कि क्या केजरीवाल ने प्रिंट मीडिया को खरीद लिया है?

ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। आइए देखते हैं-

4.5 करोड़ के काम और 22.75 करोड़ का विज्ञापन
हाल ही में पूरी दुनिया में ईमानदारी का ढोल पीटने वाले दिल्ली के विवादास्पद मुख्यमंत्री ने ऐसा कारनामा कर दिखाया, जो राजधानी में किसी भी नागरिक के गले नहीं उतरा। मुख्यमंत्री केजरीवाल ने महज 4.50 करोड़ रुपये के काम के लिए 22.75 करोड़ रुपये विज्ञापन पर लुटा दिए। वैसे भी केजरीवाल काम से ज्यादा ढिंढोरा पीटने में विश्वास करते हैं। गौरतलब है कि वेस्ट लक्ष्मी मार्केट और खुरेजी खास में सीवर लाइन बदलने के समारोह का विज्ञापन दिया गया। ध्यान रहे कि सीवर लाइन डलवाने पर 4 करोड़ 50 लाख रुपये खर्च आएगा, जबकि कार्य के शुभारंभ के लिए 22.75 करोड़ रुपये विज्ञापन पर खर्च किया गया। बाद में केजरीवाल ने दिल्ली के अलग अलग इलाके और मोहल्लों के नाम पर अलग-अलग विज्ञापन छपवाया, जिससे खर्च में भारी इजाफा हुआ और दिल्ली के सभी अखबारों में विज्ञापन पर करोड़ों रुपये लुटा दिया गया।

विज्ञापन घोटाला
केजरीवाल पर विज्ञापनों को लेकर सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों के उल्लंघन का भी आरोप है। इसके लिए उनकी पार्टी से 97 करोड़ रुपये वसूले भी जाने हैं। जांच में पाया गया है कि सरकारी विज्ञापनों के माध्यम से केजरीवाल ने अपनी और अपनी पार्टी का चेहरा चमकाने की कोशिश की है। इनमें से उनकी पार्टी की ओर से दिए गए कई झूठे और बेबुनियाद विज्ञापन भी शामिल हैं। सीएजी की रिपोर्ट के अनुसार भी केजरीवाल सरकार पर दूसरे राज्यों में अपने दल का प्रचार करने के लिए दिल्ली की जनता के खजाने पर डाका डालने का आरोप है। पहले साल के काम-काज पर तैयार रिपोर्ट कहती है कि पहले ही साल में केजरीवाल सरकार ने 29 करोड़ रुपये दूसरे राज्यों में अपने दल के विज्ञापन पर खर्च किए। 2015-16 में केजरीवाल ने जनता के 522 करोड़ रुपये विज्ञापन पर खर्च कर किए थे।

पत्रकारों के जरिए केजरीवाल करते हैं मीडिया को मैनेज!

दिल्ली के विवादास्पद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अपनी छवि चमकाने के लिए मीडिया का जमकर इस्तेमाल करते हैं। इसके लिए उन्होंने पत्रकारों की एक फौज भी खड़ी की हुई है। उनकी टीम में कई लोग ऐसे हैं जिन्होंने पहले तो पत्रकारिता करते हुए उनकी मदद की और बाद में उनकी पार्टी से ही जुड़ गये। ऐसे पत्रकारों की भी तादाद बड़ी है जिन्हें केजरीवाल सरकार ने पत्रकारिता की नौकरी से अलग कहीं न कहीं ‘एडजस्ट’ कर रखा है। 

सीएम केजरीवाल ने अपने भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन को खड़ा करने के लिए पत्रकारों का बहुत ही सधे अंदाज में इस्तेमाल किया। शुरुआती दौर में मीडिया हाउस और पत्रकारों को साधने का काम उनके आंदोलन में सहयोगी बने पत्रकार मित्र मनीष सिसौदिया, आशुतोष, शाजिया इल्मी, योगेन्द्र यादव, अभिनंदन शेखरी, नागेंद्र और उनके स्वयंसेवी संस्थाओं के मित्र संजय सिंह, प्रशांत भूषण, हर्ष मंदर, शेखर सिंह आदि मित्रों ने बखूबी निभाई।

केजरीवाल जब आंदोलन का पाला बदलकर राजनीति में घुसे तो जिन पत्रकारों और चैनलों ने उनका विरोध किया, उन पत्रकारों और चैनलों को केजरीवाल बिका हुआ बताने लगे। लेकिन दिलचस्प बात यह कि केजरीवाल ने खुद पत्रकारों और मीडिया को खरीदने का एक सरकारी तंत्र खड़ा किया, केजरीवाल की राजनीति का यह एक रोचक घटनाक्रम है-

केजरीवाल के मीडिया और पत्रकारों से शुरुआती मधुर रिश्ते
केजरीवाल ने साल 2000 में भारतीय राजस्व सेवा की नौकरी छोड़ी और शहरों के गरीबों के हक की आवाज उठाने के लिए परिवर्तन नाम की संस्था अपने पत्रकार मित्र मनीष सिसौदिया के साथ शुरु की। 2006 में परिवर्तन को छोड़कर आरटीआई के लिए अरुणा राय के साथ काम किया फिर इसे भी छोड़कर 2011 में इंडिया अंगेस्ट करप्शन और अन्ना के साथ जुड़कर जनलोकपाल के लिए आंदोलन खड़ा किया। इस यात्रा में उनके पत्रकारों और मीडिया चैनलों के साथ अच्छे संबंध रहे।

अरविंद केजरीवाल ने जब आप पार्टी बनायी तो कई पत्रकारों ने परोक्ष- अपरोक्ष रुप से आप का समर्थन किया। इसी दौरान टीवी पत्रकार आशुतोष ने आप को ज्वाइन कर लिया। तहलका और गुलेल न्यूज पोर्टल में काम करने वाले आशीष खेतान भी आप में शामिल हो गये। केजरीवाल ने जब पहली बार दिल्ली में सरकार बनायी तो उनके मीडिया से आपसी संबंध वैसे नहीं रहे जैसे आंदोलन के समय थे।

पत्रकार और मीडिया कांग्रेस से उनके होने वाले गठजोड़ और जनलोकपाल बिल पर विरोध में खड़ी दिखाई पड़ी। केजरीवाल ने जब 2015 में 70 में से 67 सीट जीत कर फिर से सरकार बनायी तो उनके सामने मीडिया के साथ इस तरह के रिश्ते रखने की चुनौती थी जिससे सरकार की सकारात्मक छवि ही जनता के सामने आये। मीडिया से बनने वाले ऐसे रिश्ते को दिल्ली डायलाग कमीशन नाम दिया गया।

दिल्ली डायलाग कमीशन
दिल्ली डायलाग कमीशन को पूर्व पत्रकार आशीष खेतान के साथ-साथ मनीष सिसौदिया को सौंप दिया गया। केजरीवाल इसके चेयरमैन और आशीष खेतान वाइस चेयरमैन बने। सिसौदिया सदस्य के रुप में इससे जुड़ गये। इस कमीशन को तमाम तरह की नागरिक सुविधाओं, महिला सुरक्षा, सफाई, जल प्रबन्धन इत्यादि पर समाधान प्राप्त करना था। ऑड- ईवेन कार्यक्रम का विचार इसी कमीशन की उपज थी। इस डायलाग में पत्रकारों को आमंत्रित किया जाने लगा। इस डायलाग के दौरान दिल्ली सरकार की सकारात्मक खबरों को देने की व्यवस्था हुई, जिससे खबरें जनता के पास पहुंचे। खबरों के साथ- साथ पत्रकारों को कॉलेजों की गवर्निंग बॉडी में मनोनीत किया जाने लगा। 

इस तरह से दिल्ली के 28 कालेजों मे 27 पत्रकारों को केजरीवाल ने गवर्निंग बॉडी का सदस्य बनाया। ये सभी पत्रकार जमकर केजरीवाल सरकार की अपने लेखों या ब्लॉग में तारीफ करते रहे, उनमें से कुछ इस तरह से हैं

सबा नकबी
पत्रकार सबा नकबी को 2015 में ही कमला नेहरु कालेज के गवर्निंग बॉडी का सदस्य नियुक्त कर दिया गया। उन्होंने दिल्ली चुनावों के ऊपर एक किताब The Capital Conquest: How the AAP’s Victory has Redefined Indian Elections लिखी है। इस किताब में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के तारीफों के पुल बांधे गये हैं। जनवरी 2016 में Scroll.in के लिए केजरीवाल सरकार की पहली वर्षगांठ पर एक जबरदस्त सकारात्मक लेख लिखा।

राजेश रामचन्द्रन
इकनॉमिक टाइम्स में राजनीति संपादक को मैत्रयी कालेज की संचालन समिति में नियुक्त किया गया। इसके बाद इन्होंने अपने ब्लॉग में दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल की प्रसंशा की।

नेहा लालचंदानी
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्टर नेहा आप के बारे में रिपोर्ट लिखती रही हैं। उन्हें गार्गी कालेज की संचालन समिति में सदस्य बनाया गया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी या उपराज्यपाल के साथ होने वाली जबानी जंग में केजरीवाल को शब्दों से नायक साबित करती रही हैं। उनके अनुसार केजरीवाल के पास भविष्य का एक विज़न है और वह सिस्टम को बदलने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

शरद शर्मा
शरद शर्मा एनडीटीवी में पत्रकार हैं। केजरीवाल की सरकार ने उन्हें कमला नेहरु कालेज की संचालन समिति में सबा नकबी के साथ नियुक्त किया। वह केजरीवाल की ईमानदारी और अखंडता के गीत गाते रहते हैं।

अभय कुमार दूबे
राजनीति समीक्षक व विश्लेषक अभय दूबे को दिल्ली कालेज ऑफ आर्ट्स एण्ड कामर्स की संचालन समिति में नियुक्त किया गया। 6 जून 2016 को एनडीटीवी में रविश कुमार के डिबेट शो में योगेन्द्र यादव और प्रशात भूषण के सामने केजरीवाल का जमकर बचाव किया। दोनों योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण ने केजरीवाल के मनमाने तौर-तरीकों को लेकर काफी विरोध किया था, जिसके परिणामस्वरुप दोनों को आप से अप्रैल 2015 में बाहर होना पड़ा था। अभय दूबे को दिल्ली सरकार ने एक विशेषज्ञ समिति का भी सदस्य बनाया।

अनुराग धंडा
अनुराग धंडा टीवी पत्रकार हैं। केजरीवाल की सरकार ने उन्हें दिल्ली के शहीद सुखदेव कालेज ऑफ बिजनेस स्टडीज़ की संचालन समिति में सदस्य नियुक्त किया। दो भाग के अपने ब्लॉग- आप की महाभारत का सच– में केजरीवाल की भूषण और यादव से हुई सार्वजनिक जूतम-पैजार के बारे में लिखा है। ब्लॉग में उन्होंने साफ- साफ केजरीवाल के साथ खड़े होने के बारे में लिखा है। वह लिखते है कि केजरीवाल से इस झगड़े के पीछे की असली वजह योगेन्द्र यादव का अतिमहत्वाकांक्षी होना है। वह भूषण के साथ मिलकर केजरीवाल की सत्ता पलटना चाहते थे। उनके ब्लॉग का यही निष्कर्ष है कि आप पार्टी ने एक साथ मिलकर योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण को पार्टी से निकाला था, इस तरह से पूरी पार्टी केजरीवाल के साथ थी।

भाषा सिंह
पत्रकार भाषा सिंह को दिल्ली सरकार ने महर्षि वाल्मिकी कालेज की संचालन समिति में सदस्य के रुप में नियुक्त किया। वह केजरीवाल का अक्सर इंटरव्यू करती रहती हैं। विधान सभा चुनाव से पहले और बाद में, या सरकार की वर्षगांठ पर। इन सभी इंटरव्यू में केजरीवाल को प्रधानमंत्री मोदी या केन्द्र सरकार पर हमला करने का मौका देने वाले प्रश्न पूछे जाते हैं।

सईद फाज़ील अली
पत्रकार सईद फाज़ील अली को केजरीवाल सरकार ने दिल्ली कालेज ऑफ कॉमर्स एण्ड आर्ट्स के संचालन समिति में सदस्य नियुक्त किया। उनके लेखों से आप की राजनीति पर उनका रुख एकदम से स्पष्ट हो जाता है, उदाहरण के लिए- “AAP Made A Tryst With Destiny… At The Stroke Of The Midnight Hour, When The World Was Half Asleep, Prashant, Yogendra Were expelled.”

पंकज वोहरा
पत्रकार पंकज बोहरा को केजरीवाल सरकार ने शहीद सुखदेव कालेज ऑफ बिजनेस स्टडीज की संचालन समिति में सदस्य नियुक्त किया। वैसे तो वह आप के बारे में कम ही लिखते हैं लेकिन चैनलों के डिबेट शोज़ में केजरीवाल का बचाब करते हैं।

संजय मिश्रा
प्रिंट मीडिया से जुड़े पत्रकार संजय मिश्रा को केजरीवाल सरकार ने श्री अरविंदो कालेज की संचालन समिति का सदस्य नियुक्त किया।

अंबिका पंडित
टाइम्स ऑफ इंडिया की अंबिका पंडित को दिल्ली की सरकार ने मैत्रयी कालेज की संचालन समिति में नियुक्त किया। लेकिन सभी पत्रकारों में मात्र यही एक थी जिन्होंने केजरीवाल सरकार की ऑड-ईवेन स्कीम और सरकार के जेडर रिसोर्स सेन्टर को बंद करने के फैसले की आलोचना की थी।

राजदीप सरदेसाई और पुण्य प्रसून वाजपेयी
आप संयोजक अरविंद केजरीवाल पत्रकारों की जिस फौज के साथ अपनी राजनीतिक लड़ाई जितना चाहते थे, उसमें ऐसे कई छुपे रुस्तम भी थे जो निष्पक्ष पत्रकारिता की आड़ में उनके साथ खड़े थे। इसमें सबसे पहले नाम आता है राजदीप सरदेसाई और पुण्य प्रसून वाजपेयी का। दोनों ही न्यूज चैनल के नामचीन एंकर हैं। राजदीप को पीएम मोदी से विरोध था तो गरीब और मजदूरों की बात करने वाले साम्यवादी एंकर वाजपेयी को केजरीवाल के रूप में राजनीतिक स्तर पर मोदी का विरोध करने वाले एक प्लेटफार्म की जरूरत थी।
इनके साथ ही पत्रकार मुकेश केजरीवाल और रूपाश्री नंदा ने भी केजरीवाल को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई है।

इतना ही नहीं केजरीवाल सरकार ने सरकारी विज्ञापनों की निगरानी के लिए वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी की अध्यक्षता में एक कमिटी का गठन किया। कमिटी में थानवी के अलावा शैलेश कुमार और जगतीत सिंह देसवाल को सदस्य बनाया गया। केजरीवाल को राजनीति का एक अहम नायक बनाने में पत्रकार और मीडिया की फौज ने एक बड़ी भूमिका निभाई, लेकिन सत्ता में आने के बाद जिन पत्रकारों और चैनलों ने केजरीवाल का विरोध किया उसे वो सुपारी पत्रकारिता की संज्ञा देकर बदनाम करने लगे।

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