Home चुनावी हलचल बवाना के वोटर ‘आप’को कड़ा सबक सिखायेंगे!

बवाना के वोटर ‘आप’को कड़ा सबक सिखायेंगे!

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बुधवार, 23 अगस्त को दिल्ली के बवाना विधानसभा उपचुनाव को लेकर वोटिंग का दिन है। इस सीट से चुनाव मैदान में उम्मीदवार तो आठ हैं लेकिन मुख्य मुकाबला बीजेपी और आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार के बीच माना जा रहा है। चुनाव प्रचार के दौरान AAP ने यहां हर तिकड़म आजमाने की कोशिश की, क्योंकि यहां की हार के बाद उसे शायद ही उठने का कोई और मौका मिले।  

 मुख्य मुकाबला बीजेपी और AAP के उम्मीदवार में

बवाना की सुरक्षित सीट (SC) से बीजेपी उम्मीदवार हैं वेदप्रकाश जो पहले आम आदमी पार्टी में थे लेकिन आप ने जब भ्रष्टाचार के मामलों को लेकर गंभीरता नहीं दिखाई तो उन्होंने पार्टी को बाय-बाय कर दिया। आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार हैं रामचंद्र जिनके लिए यहां केजरीवाल और उनकी कैबिनेट ने दिन-रात एक कर दी। यहां से कांग्रेस उम्मीदवार हैं सुरेंद्र कुमार लेकिन जनता का रुझान देखकर लगता है कि बवाना से भी दिल्ली विधानसभा में कांग्रेस का खाता नहीं खुल पाएगा। इस सीट पर करीब 2 लाख 94 हजार मतदाता अपने मताधिकार का इस्तेमाल करेंगे।

AAP ने धर्म के नाम पर प्रभावित करने की कोशिश की

बवाना के चुनाव प्रचार के आखिरी दिन आम आदमी पार्टी के अल्पसंख्यक विंग के नाम से खास तौर पर पर्चे वितरित किये गये। ये जाहिर करता है कि पार्टी ने अपनी हार को सामने देखकर सीधा सांप्रदायिक कार्ड खेल दिया। कपिल मिश्रा ने ऐसे ही एक पर्चे को ट्वीट करते हुए लिखा कि धर्म के नाम पर वोटरों को प्रभावित करने की ये कोशिश केजरीवाल के मंत्री इमरान हुसैन ने की है। उन्होंने ये भी बताया कि इस पर्चे से पल्ला जाड़ते हुए इमरान ने इसकी शिकायत तब पुलिस में की जब मीडिया में उनकी करतूत की खबरें सुर्खियां बनने लगीं। दिल्ली बीजेपी के अध्यक्ष मनोज तिवारी ने दिल्ली के मुख्य चुनाव अधिकारी से आम आदमी पार्टी के खिलाफ चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन को लेकर कार्रवाई की मांग की है।

मनोज तिवारी को वोटरों ने सुनाया अपना दर्द

दिल्ली बीजेपी के अध्यक्ष मनोज तिवारी जब अपने प्रचार के दौरान इलाके में थे तो कुछ जगहों पर महिलाओं ने उन्हें घेरकर जनता की मुसीबतों की दास्तान सुनाई। शाहाबाद डेयरी की झुग्गी बस्ती में पानी के टैंकर के इंतजार में खड़ी महिलाओं ने मनोज तिवारी को बताया कि उन्हें चार-चार दिन बाद पानी नसीब हो पाता है। जनता की ऐसी शिकायतों से जाहिर है कि केजरीवाल ने जिसके दम पर अपनी सरकार बनाई उसी जनता से उन्होंने छल करने से कोई गुरेज नहीं किया।

ठुकराई जाएगी भ्रष्टाचार के आरोप में घिरी AAP?

दिल्ली की जनता को बड़े-बड़े सपने दिखाकर सत्ता में आने वाले अरविंद केजरीवाल ने अपने ढाई साल के कामकाज में कोई भी ऐसा काम करके नहीं दिखाया जिसको लेकर लोगों का उनमें भरोसा बनता। उनकी सरकार पर आये दिन भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे। उनके एक पर एक कई मंत्री संगीन आरोपों में घिरकर अपनी कुर्सी गंवाते रहे। केजरीवाल अपनी सरकार के करोड़ों के विज्ञापन सरकारी तिजोरी के खर्च से करने के आरोपों में भी घिरे। अब तो ये बात भी सिद्ध हो चुकी है कि केजरीवाल अपने गिरेबां में कभी नहीं झांकते सिर्फ दूसरी पार्टियों के नेताओं पर बेबुनियाद आरोप लगाते रहते हैं। लोग देख चुके हैं मानहानि के ढेर सारे मामले में बुरी तरह फंसे केजरीवाल को तो कुछ मामलों में तो माफी भी मांगनी पड़ी है।

   

नगर निगम चुनाव में बीजेपी ने चटाई थी धूल 

पिछले अप्रैल में दिल्ली नगर निगम के चुनावों में हैट्रिक जमाकर बीजेपी ने राजधानी में AAP के ताप को ठंडा कर दिया। उत्तरी, दक्षिणी और पूर्वी तीनों ही नगर निगमों में बीजेपी ने धमाकेदार जीत दर्ज की थी। कुल 204 सीटों में से आप 50 का आंकड़ा भी पार नहीं कर पाई थी। भ्रष्टाचार के आरोपों में लिपटे आप को वोटरों ने औकात में लाने का काम कर दिया था।

सत्ता पाने के बाद दिल्ली में हमेशा ठुकराई गई AAP

फरवरी 2015 में विधानसभा चुनावों में जीत के बाद आम आदमी पार्टी दिल्ली का एक भी चुनाव नहीं जीत पाई है। ऐसे में केजरीवाल ने बवाना में लगातार प्रचार में खुद को झोंके रखा..क्योंकि उन्हें मालूम है कि यहां की हार के बाद उनकी नींद हराम हो जाएगी। AAP इससे पहले राजौरी गार्डन विधानसभा सीट के उपचुनाव में अपनी जमानत भी नहीं बचा पाई थी। अब बवाना की तयशुदा मानी जा रही हार से इस बात पर मुहर लग जाएगी कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी की लोकप्रियता खत्म हो चुकी है।   

परमानेंट हो जाएगी केजरीवाल की चुप्पी !

बवाना उपचुनाव का नतीजा 28 अगस्त को आएगा। आम आदमी पार्टी को पता है कि जनता बार-बार चकमा नहीं खाने वाली। पिछले करीब चार साल से दिल्लीवालों की आंखों में धूल झोंकती आ रही AAP और उसके मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का खेल पकड़ा जा चुका है। केजरीवाल सरकार की गनीमत अब इसी में है कि किसी तरह से वो सत्ता में अपने पांच साल पूरे कर ले। उसके बाद शायद AAP भी लुप्त प्रजाति वाली पार्टियों में शुमार हो जाएगी! फिलहाल तो सवाल ये है कि क्या बवाना में हारने के बाद केजरीवाल की चुप्पी परमानेंट हो जाएगी?

 

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