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मेक इन इंडिया का कमाल: स्वदेशी बुलेटप्रुफ जैकेट से होगी 20 हजार करोड़ रुपए की बचत

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश तेजी के विकास पथ पर आगे बढ़ रहा है। देश रक्षा क्षेत्र में भी आत्मनिर्भर बनने की दिशा में अग्रसर है। मौजूदा समय में हम अधिकतर रक्षा उपकरणों के लिए आयात पर निर्भर हैं। लेकिन अब यह स्थिति बदलने लगी है और ‘मेक इन इंडिया’ के तहत भारत में ही अधिकतर रक्षा उपकरणों की मैन्युफैक्चरिंग शुरू हो रही है। रक्षा मंत्रालय ने हाल ही में स्वदेशी बुलेटप्रुफ जैकेट को मंजूरी दी है। इस स्वदेशी बुलेटप्रुफ जैकेट से सरकार को हर साल कम से कम 20 हजार करोड़ रुपए की बचत होगी। इस बुलेटप्रुफ जैकेट को भारतीय वैज्ञानिक ने ही बनाया है। 70 साल के इतिहास में यह पहला मौका होगा जब सेना स्वदेशी बुलेटप्रुफ जैकेट पहनेगी। यह विदेशी जैकेट से काफी हल्का और किफायती भी है। विदेशी जैकेट का वजन 15 से 18 किलोग्राम के बीच होता है जबकि इस स्वदेशी बुलेटप्रुफ जैकेट का वजन सिर्फ 1.5 किलोग्राम है।

इस जैकेट को अमृता यूनिवर्सिटी, कोयंबटूर के एयरोस्पेस इंजीनियरिंग के प्रमुख प्रोफेसर शांतनु भौमिक ने तैयार किया है। अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के अनुसार कार्बन फाइबर वाले इस जैकेट में 20 लेयर हैं। इसे 57 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान पर भी पहना जा सकता है। इस स्वदेशी बुलेटप्रुफ जैकेट से सेना को एक लाख रुपए की बचत भी होगी। विदेशी 1.5 लाख रुपए में मिलने वाली जैकेट की जगह यह सिर्फ 50 हजार रुपए में मिलेंगे। इस जैकेट को रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) और रक्षा मंत्रालय के संयुक्त उद्यम से बनाया जा सकता है।

रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने के लिए सरकार कई योजनाएं शुरू कर रही है जिससे दुनिया की प्रमुख डिफेंस कंपनियों के लिए भारत में यूनिट लगाना आसान होगा। वो भारतीय कंपनियों के साथ मिलकर भारत में ही प्लांट लगा सकेंगी।

डिफेंस मैन्युफैक्चरिंग पॉलिसी जल्द
घरेलू रक्षा विनिर्माण के लिए नीति बनाने का काम बहुत तेजी से चल रहा है। सीआईआई की वार्षिक बैठक में केंद्रीय रक्षा मंत्री अरुण जेटली के द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार इस नीति के लागू होने के बाद रक्षा क्षेत्र में आयात में भारी कमी लाई जा सकेगी। इस नीति से डिफेंस क्षेत्र में मैन्यूफैक्चरिंग को प्रोत्साहन मिलने के साथ ही बड़े-बड़े फाइटर जेट्स, युद्धक जहाज और पनडुब्बियों का भी भारत में निर्माण संभव हो सकेगा और आयात पर होने वाले खर्च में भारी कमी आएगी। इस समय भारत दुनिया का सबसे बड़ा हथियारों का आयातक है। देश अपने जीडीपी का 1.8 प्रतिशत हथियारों पर खर्च करता है, क्योंकि वो अपने 70 प्रतिशत रक्षा उपकरणों के लिए दूसरे देशों पर निर्भर है। मोदी सरकार इसी स्थिति में बदलाव लाना चाहती है।

मेक इन इंडिया की पहल
भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी सैन्य शक्ति है। यही नहीं रक्षा के क्षेत्र में सबसे अधिक खर्च करने वाले देश में भारत का स्थान छठा है। भारत परंपरागत रक्षा उपकरणों का सबसे बड़े आयातक देशों में शामिल है। ये अपने कुल रक्षा बजट का करीब 30 प्रतिशत इसपर खर्च करता है। मैन्युफैक्चरिंग में स्वदेशी को बढ़ावा देने के लिए मेक इन इंडिया के तहत पहल की गई है।

स्वदेशी मैन्युफैक्चरिंग पर फोकस
इसका लक्ष्य रक्षा के क्षेत्र में विदेशों पर से निर्भरता खत्म करने की है। पिछले कुछ सालों में इसका बहुत ही अधिक लाभ भी मिल रहा है। रक्षा मंत्रालय ने भारत में निर्मित कई उत्पादों का अनावरण किया है, जैसे HALका Tejas (Light Combat Aircraft), composites Sonar dome, Portable Telemedicine System (PDF),Penetration-cum-Blast (PCB), विशेष रूर से अर्जुन टैंक के लिए Thermobaric (TB) ammunition, 95% भारतीय पार्ट्स से निर्मित वरुणास्त्र (heavyweight torpedo)और medium range surfaceto air missiles (MSRAM).

Buy and Make (Indian)
भारत में बनाओ और भारत में बना खरीदो, इस नीति के तहत रक्षा मंत्रालय ने 82 हजार करोड़ की डील को मंजूरी दी है। इसके अतर्गत Light Combat Aircraft (LCA), T-90 टैंक, Mini-Unmanned Aerial Vehicles (UAV) और light combat helicopters की खरीद भी शामिल है। इस क्षेत्र में MSME को प्रोत्साहित करने के लिए कई सुविधाएं दी गई हैं।

नीतिगत पहल और निवेश
रक्षा उत्पादों का स्वदेश में निर्माण के लिए सरकार ने 100 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को मंजूरी दी हुई है। इसमें से 49 प्रतिशत तक की FDI को सीधे मंजूरी का प्रावधान है, जबकि 49 प्रतिशत से अधिक के FDI के लिए सरकार से अलग से मंजूरी लेनी पड़ती है।

रक्षा क्षेत्र में निर्यात
वित्त वर्ष 2015-16 में कुल रक्षा निर्यात 2059 करोड़ से भी अधिक हुआ था, जबकि 2014-15 में ये आंकड़ा 1682 करोड़ रुपये का रहा था। भारत में बने इन रक्षा उत्पादों का निर्यात 28 से अधिक देशों में किया गया। सार्वजनिक क्षेत्र के रक्षा उपक्रम और ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड के द्वारा जो कुछ बड़े रक्षा उपकरणों का निर्यात किया गया वो हैं- पेट्रोल वैसल्स, हेलीकॉप्टर एवं उसके पार्ट्स, सोनार एवं राडार, राडार वॉर्निंग रिसिवर्स (RWR), छोटे हथियार, हल्के इस्तेमाल बाले गोलाबारूद, ग्रेनेड और संचार उपकरण।

रक्षा उत्पादों के निर्यात के लिए विशेष रणनीति
इसके तहत रक्षा उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए स्पष्ट प्रक्रिया और संस्थागत व्यवस्था तय की है। इसके अंतर्गत विदेश व्यापार नीति के तहत गाइडलाइंस तय किए गए हैं। जिसमें निर्यात को बढ़ावा देने के लिए विदेशों में भारतीय दूतावासों और उच्चायोगों से सहयोग लेने की व्यवस्था है।

रक्षा उत्पादों के लिए मेक इन इंडिया पोर्टल
इस पोर्टल की मदद से रक्षा क्षेत्र में उत्पादन करने की इच्छुक कंपनियों को नीतिगत और प्रक्रिया से जुड़ी सभी तरह की जानकारी मिलती है। यही नहीं उन्हें इसका भी पता चलता है कि वो जांच सुविधाओं के लिए रक्षा संगठनों से जुड़े किस यूनिट की मदद ले सकते है। ये पोर्टल निवेशकों को इनसे से जुड़ी तमाम जानकारियां उपलब्ध कराता है।

स्किल डेवलपमेंट
इसके तहत 8 ITI का चुनाव किया गया है जो रक्षा उत्पाद के क्षेत्र में अपनी संरचना का विस्तार करने के लिए ट्रेनिंग के स्तर को सुधार सकते हैं। इसके लिए रक्षा संगठन उन्हें ट्रेनिंग के लिए आवश्यक विशेष उपकरण भी उपलब्ध कराते हैं।

मोदी सरकार डिफेंस मैन्युफैक्चरिंग के क्षेत्र में भारत को एक बड़ी अर्थव्यवस्था के तौर पर तैयार करने की ओर अग्रसर है। सरकार की मंशा है कि न्यू इडिया में देश रक्षा उत्पादों के क्षेत्र में न सिर्फ आत्मनिर्भर बने, बल्कि वो उसका नाम दुनिया के एक बहुत बड़े निर्यातक के तौर पर उभर कर सामने आए। यही वजह है कि सरकार ने 2025 तक हथियारों और रक्षा उपकरणों पर 250 अरब डॉलर खर्च करने की योजना तैयार की है।

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