भारत-चीन के बीच डोकलाम विवाद को लेकर दो महीने का वक्त गुजर चुका है, लेकिन चीन की जिद के कारण इसका हल निकलता नजर नहीं आ रहा है। अब चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा ”भारत के तर्कों को मानकर अगर उसके सैनिक भारत में घुसे तो ‘भयंकर अव्यवस्था’ फैल जाएगी।” दरअसल चीन यह कहना चाहता है कि वह अपनी सीमा में ढांचागत निर्माण कर रहा है तो भारत विरोध क्यों करता है? लेकिन चीन इस आड़ में यह छिपाना चाह रहा है कि उसने भूटान की डोकलाम की जमीन हड़पने की कोशिश की थी, जिसे भारतीय सैनिकों ने रोक दिया है। बहरहाल पीएम मोदी की नीतियों के कारण चीन अब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग पड़ता जा रहा है। शांति के प्रयासों के बीच चीन की तरफ से जारी यह बयान ड्रैगन के फ्रस्टेशन को ही दिखाता है। दरअसल भारत ने चीन की उस हेकड़ी पर हथौड़ा मारा है जिसके दम पर वह कुछ देशों को दबाता रहा है। डोकलाम विवाद में चारों तरफ से घिर चुका चीन अब भारत में नयी साजिश भी रच रहा है। लेकिन आने वाले वक्त में यह उसके लिए ही नुकसानदायक होने वाला है।
नक्सलियों की मदद कर रहा चीन!
ऐसी खबरें हैं कि डोकलाम मुद्दे पर युद्ध की गीदड़ भभकी दे रहे चीन ने भारत को अस्थिर करने के लिए नक्सलियों को मोहरा बनाने की रणनीति पर काम कर रहा है। उसकी सेना पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) की इंटेलिजेंस इकाई इस ब्लू प्रिंट पर काम कर रही है। एक अखबार में छपी खबर के मुताबिक चीनी सेना से जुड़े अधिकारी अरुणाचल प्रदेश से सटी सीमा पर सक्रिय प्रतिबंधित अलगाववादी नगा उग्रवादी संगठन एनएससीएन (खापलांग) से सीधा संपर्क बनाए हुए हैं और इस संगठन को हर तरह से मदद दे रहे हैं।
हथियार और पैसे दे रहा ‘ड्रैगन’
दरअसल इस उग्रवादी संगठन में अभी चार हजार से ज्यादा गुरिल्ला सदस्य हैं जिनमें कई को चीनी सेना के अधिकारियों ने प्रशिक्षित किया है। नगा उग्रवादी संगठन चीन की साजिश को आगे बढ़ाते हुए बंगाल, झारखंड, ओडिशा और छत्तीसगढ़ समेत देश के अन्य राज्यों में सक्रिय नक्सलियों को आर्थिक व हथियारों से ताकतवर बनाने में जुटा है। खबरों के अनुसार नगा संगठन को चीनी सेना की इंटेलिजेंस इकाई से तस्करी के जरिए सामरिक और आर्थिक मदद दी जा रही है। इसमें भारत विरोधी कई संगठन शामिल हैं।
दरअसल सीधे युद्ध की स्थिति में चीन भारत से जीत ही जाएगा इस बात का भरोसा खुद चीनी राजनीतिक नेतृत्व और सेना दोनों को नहीं है। ऐसे में वह बदली रणनीति के तहत ऐसे कार्य कर रहा है कि भारत अपनी समस्याओं में उलझा रहे। दरअसल चीन को यह पता चल गया है कि अगर भारत से युद्ध हुआ तो उसे कितना नुकसान होगा, लेकिन यह भी एक बड़ा तथ्य है कि चीन अगर भारत के विरुद्ध साजिशें रचता रहेगा तो उसकी साख को बट्टा लग जाएगा।
रेशम मार्ग में लग जाएगा रोड़ा !
चीन की OBOR परियोजना प्राचीन रेशम मार्ग को पुनर्जीवित करने की एक कोशिश है। लेकिन युद्ध की स्थिति में प्राचीन रेशम मार्ग को पुनर्जीवित करने की चीन की कोशिश को भारत का समर्थन नहीं मिलेगा और यूरोप को भी चीन के परियोजना पर सवाल खड़ा करने का मौका मिल जाएगा।
मैन्यूफैक्चरिंग हब नहीं रहेगा चीन
बीते तीन दशक से अग्रेसिव इंडस्ट्रियल पॉलिसी के चलते चीन दुनिया का मैन्यूफैक्चरिंग हब है। दरअसल वैश्विक स्तर पर अमेरिका और यूरोप से मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर का पलायन चीन में हुआ और इस दौरान वह दुनिया की सबसे तेज रफ्तार बड़ी अर्थव्यवस्था बना रहा। लेकिन युद्ध की स्थिति में चीन की आर्थिक ग्रोथ की रफ्तार को हमेशा कि लिए नुकसान पहुंचना तय है।
छिन जाएगा एशियाई दिग्गज का खिताब
एशिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और सबसे बड़ी सेना होने के कारण वह एशियाई दिग्गज है और ग्लोबल सुपर पावर बनने का सबसे प्रबल दावेदार भी है। लेकिन भारत से युद्ध की स्थिति में उसे मिलने वाली चुनौती उसकी एशियाई दिग्गज की छवि को धूमिल कर देगा। इसके साथ ही भारत की सैन्य और कूटनीतिक क्षमता के आगे उसे वैश्विक स्तर पर हार का सामना भी करना पड़ सकता है।
बैंकों को लगेगा बड़ा झटका
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के आंकड़ों के अनुसार जहां 2008 में चीन के बैंकों (कॉरपोरेट और सरकार) पर कर्ज 85 प्रतिशत (जीडीपी) बढ़ा था, वहीं 2017 में बैंकों पर कर्ज 150 प्रतिशत बढ़ा है। आईएमएफ का आंकलन है कि 2022 तक चीन के कॉरपोरेट और सरकार पर जीडीपी का लगभग 300 फीसदी कर्ज होगा। लिहाजा, युद्ध की स्थिति में चीन सरकार और कॉरपोरेट दोनों की कर्ज और भी खराब रूप ले सकती है।
ब्रिक्स में खत्म हो जाएगी चीन की साख?
ब्रिक्स देश (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) दुनिया के 25 फीसदी भूभाग पर दुनिया की 40 फीसदी आबादी का नेतृत्व करते हैं लेकिन वैश्विक व्यापार में अभी सिर्फ 18 फीसदी की हिस्सेदारी है। पर यह तथ्य है कि 15 सालों में ब्रिक्स देशों की अर्थव्यवस्थओं के आकर में 225 फीसदी से ज्यादा की बढ़ोत्तरी हुई है। जाहिर है युद्ध की स्थिति में इस गठजोड़ में चीन की स्थिति कमजोर पड़ने और ब्रिक्स समूह से बाहर निकलने की हो सकती है।