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झूठ, फरेब, भय और भ्रम की राजनीति कर देश में अविश्वास का वातावरण तैयार कर रही कांग्रेस

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यह बात सिद्ध हो चुकी है कि जब कांग्रेस को इस देश की जनता का समर्थन नहीं है। हालांकि सत्ता से बेदखल होने की खीझ में वह झूठ और फरेब के हथकंडे अपना रही है। पूरी पार्टी भय और भ्रम फैलाने के साथ झूठे तथ्यों के आसरे ही राजनीति कर रही है और ऐसे मामलों पर शोर मचा रही है जो पूरी तरह ‘अनैतिक’ है।

कांग्रेस किस कदर देश में भ्रम फैलाती रही है इसका उदाहरण पिछले कुछ महीनों में देख चुके हैं। पहले सहारनपुर और ऊना में दलितों पर अत्याचार की झूठी खबरें फैलाई गईं, लेकिन बाद में इसमें कांग्रेस की साजिश सामने आ गई। इसके बाद एससी-एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को आधार बनाकर आरक्षण खत्म किए जाने का हल्ला उड़ा दिया। जाहिर है ऐसे ही झूठ और भ्रामक प्रचार से कांग्रेस द्वारा देश का माहौल बिगाड़ने की एक संगठित कोशिश की जा रही है। कर्नाटक में राज्यपाल द्वारा येदियुरप्पा को सरकार बनाने के लिए न्योता दिए जाने को लेकर जो हौव्वा खड़ा किया गया, वह भी भ्रम और झूठ फैलाने की एक कोशिश भर है।

18 मई को सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने फैसले में राज्यपाल वजुभाई बाला के निर्णय पर कोई टिप्पणी नहीं की। जाहिर है इससे यह साबित हो गया कि राज्यपाल का फैसला उचित है और कांग्रेस द्वारा जान बूझकर झूठ फैलाया जा रहा है। हालांकि कांग्रेस अब भी भ्रम और झूठे तथ्यों के आधार पर चार राज्यों- गोवा, मणिपुर, बिहार और मेघालय में सरकारों के गठन पर हाय तौबा मचा रही है। जबकि तथ्यों के आईने में इसे देखें तो कांग्रेस के दावे निराधार हैं।

कर्नाटक: ‘अनैतिक’ गठबंधन कर बैकडोर’ से सत्ता चाहती है कांग्रेस
कर्नाटक के चुनाव परिणामों से साफ है कि प्रदेश की जनता भारतीय जनता पार्टी की सरकार चाहती है। कांग्रेस को 2013 के 122 सीटों के मुकाबले इस बार के चुनाव में महज 78 सीटें मिलीं। वहीं जेडीएस को 2013 के 40 सीटों के मुकाबले 38 सीटें मिलीं और उनका वोट शेयर भी तीन प्रतिशत गिर गया। जबकि भारतीय जनता पार्टी को 2013 के 40 सीटों के मुकाबले इस बार 104 सीटें मिलीं। इन आंकड़ों से साफ है कि जनादेश भाजपा के लिए है न कि चुनाव बाद किसी ‘अनैतिक’ गठबंधन के लिए। वह भी तब, जब गठबंधन कर रहे दोनों ही दलों ने एक दूसरे के विरुद्ध चुनाव लड़ा हो।

गोवा : कांग्रेस ने नहीं पेश किया था सरकार बनाने का दावा
वर्ष 2017 में हुए चुनाव में कांग्रेस ने 17 सीटें जीती थीं और 40 विधानसभा सीटों वाले सदन में वह सबसे बड़ी पार्टी थी। कांग्रेस सरकार बनाने का दावा भी कर सकती थी, लेकिन पार्टी को लगा कि बहुमत उनके पास नहीं है तो उन्होंने सरकार बनाने का दावा ही पेश नहीं किया। उस वक्त पार्टी के महासचिव दिग्विजय सिंह पर आरोप भी लगे थे कि वे गोवा सरकार बनाने की कोशिशों के लिए नहीं, बल्कि छुट्टियां मनाने गए थे। बहरहाल संख्या बल के आधार पर 12 मार्च 2017 को गवर्नर ने 14 सीटें हासिल करने वाली बीजेपी को आमंत्रित किया। दरअसल कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी जरूर थी, लेकिन अन्य छोटे दलों ने उन्हें समर्थन देने से इनकार कर दिया था। जाहिर है जो पार्टी सरकार बनाने में सक्षम थी उन्हें मौका दिया गया।

मणिपुर : कांग्रेस के पास सरकार बनाने नही थी ताकत
राज्य की कुल 60 सीटों में कांग्रेस ने 28 सीटें जीती थीं, लेकिन वह बाकी दलों का समर्थन जुटाने में नाकाम रही। राज्यपाल को वह आश्वस्त नहीं कर पाई कि उनके पास बहुमत का आंकड़ा है। दूसरी ओर भाजपा ने अपनी 21 सीटों के साथ टीएमसी की एक, नगा पीपुल्स फ्रंट की चार, लोक जनशक्ति पार्टी की एक, नेशनल पीपुल्स पार्टी की चार और एक निर्दलीय विधायक का समर्थन पत्र राज्यपाल को सौप दिया। जाहिर है कांग्रेस अपनी रणनीति में नाकाम रही और सरकार बनाने का मौका भाजपा को दिया गया।

मेघालय: एनपीपी के आगे बौनी साबित हुई कांग्रेस
मेघालय की 60 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा की महज 2 सीटें हैं, लेकिन कांग्रेस आरोप लगा रही है कि भाजपा ने उसे सरकार बनाने नहीं दिया। दरअसल विधानसभा में बहुमत के लिए 31 सीटें चाहिए, लेकिन किसी दल के पास बहुमत नहीं था। कांग्रेस 21 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी जरूर है, लेकिन बहुमत के लिए उसके पास पर्याप्त आंकड़े नहीं थे। दूसरी ओर नेशनल पीपुल्स पार्टी 19 सीटों के साथ दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है। उन्हें बीजेपी के दो, यूडीपी की छह, एचएसपीडीपी की दो, पीडीएफ के चार विधायकों का भी समर्थन हासिल है, जो कुल मिलाकर 34 हो जाते हैं। जाहिर है कांग्रेस महज भ्रम फैलाने में लगी है, क्योंकि उनके पास पर्याप्त सीटें नहीं हैं।

बिहार : कांग्रेस + आरजेडी मिलकर भी बहुमत से दूर
243 सदस्यीय बिहार विधानसभा में आरजेडी की 80 सीटें हैं। कांग्रेस की 27, सीपीआई (एमएल) की तीन और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा की एक सीट है। यानि कुल मिलाकर 108 की संख्या उनके पास है। दूसरी तरफ सरकार सत्ताधारी जनता दल यूनाईटेड की 70, बीजेपी की 53, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी का दो, लोक जनशक्ति पार्टी की दो सीटें हैं। इसके साथ ही चार निर्दलीय विधायकों का भी समर्थन इन्हें हासिल है। जाहिर है ये संख्या 131 तक पहुंच जाती है। 243 सदस्यीय विधानसभा में बहुमत के लिए जरूरी 122 सीटें सत्ताधारी गठबंधन के साथ है, ऐसे में कांग्रेस द्वारा राज्यपाल के निर्णय पर सवाल उठाना, झूठ और भ्रम फैलाना नहीं तो और क्या है?

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