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कैब पर कांग्रेस की गंदी राजनीति, मनमोहन सिंह ने की थी नागरिकता कानून की वकालत

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नागरिकता संशोधन विधेयक पर कांग्रेस सिर्फ और सिर्फ देश में भ्रम फैला रही है। इतना ही नहीं अपने वोट बैंक की राजनीति के लिए वह देश में मुसलमानों को डराने का प्रयास कर रही है, जबकि सच्चाई यह है कि कांग्रेस के ही पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह जब 2003 में राज्यसभा में विपक्ष के नेता थे, तब उन्होंने बांग्लादेश और अन्य देशों के अल्पसंख्यक शरणार्थियों की वकालत की थी और सरकार से उचित कदम उठाने की मांग की थी।

राज्यसभा में तत्कालीन विपक्ष के नेता मनमोहन सिंह ने कहा था, “मैं शरणार्थियों के ट्रीटमेंट के बारे में कुछ बात रखना चाहता हूं। देश के विभाजन के बाद बांग्लादेश जैसे देशों में अल्पसंख्यको को अत्याचारों का सामना करना पड़ा है। ये हमारा नैतिक उत्तरदायित्व है कि ऐसे लोग जो परिस्थितियों से मजबूर हैं, ऐसे दुर्भाग्यशाली लोग अगर हमारे देश मे शरण चाहते हैं, तो ऐसे दुर्भाग्यशाली लोगों को नागरिकता देने का हमारा दृष्टिकोण उदार होना चाहिए।” 

प्राप्त जानकारी से स्पष्ट होता है कि मनमोहन सिंह उस समय राज्यसभा में विपक्ष के नेता थे। केंद्र में एनडीए की सरकार थी अटल बिहारी वाजपेयी इस सरकार के मुखिया थे। उस समय मनमोहन सिंह के द्वारा इस मांग को उठाया गया था और आज कांग्रेस के द्वारा इसी बात का विरोध किया जा रहा है।

मा‌र्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के तत्कालीन महासचिव प्रकाश करात ने मई 2012 में मनमोहन सिंह को याद दिलाया था कि एनडीए के शासनकाल में जब नागरिकता संशोधन विधेयक- 2003 लाया गया था और आपने उस समय राज्यसभा में बतौर विपक्ष के नेता उन्होंने बांग्लादेशी शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता देने की वकालत की थी। सवाल ये हैं कि जिस पार्टी के नेता नागरिकता संशोधन विधेयक की वकालत कर रहे थे, उस पार्टी के नेता आज इसका विरोध कर रहे हैं।

राजनीतिक गलियारों में ये चर्चा है कि मुस्लिम तुष्टिकरण के कारण कांग्रेस नागरिकता संशोधन विधेयक का विरोध कर रही है, जबकि उनके नेता मनमोहन सिंह में खुद पड़ोसी देशों की शरणार्थियों को लेकर चिंता व्यक्त की थी और तत्कालीन वाजपेयी सरकार से कार्रवाई करने की मांग की थी।

 क्या है नागरिकता संशोधन विधेयक ?

इस विधेयक द्वारा अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से 31 दिसंबर, 2014 से पहले आने वाले 6 धर्मों के शरणार्थियों को भारत की नागरिकता प्रदान करने का रास्ता खोल दिया जाना था। ये धर्म हैं-हिंदू, बौद्ध, जैन, सिख, पारसी और ईसाई। गौरतलब है कि इस्लाम मानने वालों को इसमें शामिल नहीं किया गया था। नागरिकता के लिए उन्हें सात साल भारत में रहना सिद्ध करना होगा। नागरिकता देने के लिए उनसे कोई दस्तावेज नहीं मांगा जाएगा।

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