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बैलेट पेपर की मांग कर देश को पीछे धकेलना चाहते हैं राहुल गांधी!

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लगता है कि सत्ता की तड़प और लगातार मिलती हार ने कांग्रेस पार्टी को बौखलाहट में डाल दिया है। यही वजह है कि दिल्ली में हुए कांग्रेस के महाधिवेशन में राहुल गांधी ने ईवीएम का ही विरोध कर दिया। राहुल ने अपने भाषण में कहा कि ईवीएम विश्वसनीय नहीं है और दोबारा बैलेट पेपर से चुनाव की तरफ लौटने की जरूरत है। इतना ही नहीं कांग्रेस के महाधिवेशन में जो राजनीतिक प्रस्ताव पारित किया गया है, उसमें भी इसका जिक्र है। मलतब साफ है कि दुनिया में सबसे भरोसेमंद चुनाव प्रणाली पर कांग्रेस पार्टी को भरोसा नहीं है और वह पारदर्शी चुनाव व्यवस्था को खत्म करने पर आमादा है।

कांग्रेस समेत सभी दलों की सहमति से ही लागू हुई थी ईवीएम
चुनाव के लिए इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) की कवायद करीब 40 वर्ष पहले शुरू हुई थी। 1998 में कांग्रेस समेत तमाम राजनीतिक दलों की सहमति के बाद ही इसे लागू किया गया था। जब से ईवीएम से चुनाव कराने का विचार शुरू हुआ है, हर चर्चा में कांग्रेस पार्टी अहम हिस्सा रही है। आज यही कांग्रेस पार्टी ईवीएम का विरोध कर रही है। 1998 में ईवीएम आने के बाद 1999 से 2004 के बीच कई विधानसभा चुनावों में इसका प्रयोग किया गया और 2004 में पहली बार लोकसभा चुनाव भी ईवीएम से कराए गए।

विश्व की सबसे विश्वसनीय चुनाव प्रणाली है भारत की
ईवीएम सिर्फ भारत ही नहीं विश्व के तमाम देशों में इस्तेमाल की जाती है। ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम, ब्राजील, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, नीदरलैंड, दक्षिण कोरिया, यूएई, ब्रिटेन समेत कई देशों में ईवीएम से ही चुनाव कराए जाते हैं। अमेरिका में भी बड़े स्तर पर ईवीएम का इस्तेमाल होता है। पूरी दुनिया में भारत का लोकतंत्र सबसे बड़ा है और यहां निष्पक्ष चुनाव कराना बड़ी चुनौती है, लेकिन जिस तरह चुनाव आयोग निष्पक्षता और शांतिपूर्ण तरीके से चुनाव संपन्न कराता है, उसकी तारीफ पूरी दुनिया करती है। कई देशों की सरकारें अपने अधिकारियों को भारतीय चुनाव व्यवस्था को समझने के लिए भारत भेजती रहती हैं।

बैलट पेपर से धांधली की आशंका, ईवीएम से चुनाव में पारदर्शिता
ईवीएम से पहले देश में बैलट पेपर से ही चुनाव होते थे, लेकिन तब बूथ लूटने की घटनाएं और चुनाव में धांधली आम बात थी। जब से ईवीएम का इस्तेमाल शुरू हुआ है, चुनाव में धांधली पूरी तरह खत्म हो चुकी है। ईवीएम से चुनाव कराने में जहां पारदर्शिता रहती है, वहीं वक्त भी कम लगता है, चुनाव परिणाम भी जल्दी आते हैं।

बैलेट पेपर से चुनाव की मांग, देश को पीछे धकेलने की कोशिश
कांग्रेस पार्टी लगता है टेक्नोलॉजी की दुश्मन है। ईवीएम में नई तकनीकि का इस्तेमाल हो रहा है और पारदर्शी चुनाव व्यवस्था स्थापित हुई है। ऐसे में कांग्रेस पार्टी फिर से बैलट पेपर की मांग कर देश को पीछे धकेलना चाहती है। ऐसा कोई पहला मौका नहीं है, पहले भी डीबीटी, आधार को तमाम योजनाओं से जोड़ने जैसे कदमों का विरोध कांग्रेस कर चुकी है।

चुनाव आयोग ने दी थी ईवीएम हैक करने की चुनौती
ईवीएम पर अंगुली उठाना कोई नई बात नहीं है। जब भी कोई विपक्षी पार्टी चुनाव हारती है तो इसके लिए ईवीएम को दोष दिया जाने लगता है। इसीलिए जून 2017 में चुनाव आयोग ने सभी राजनीतिक दलों को आमंत्रित कर उन्हें ईवीएम हैक करने की चुनौती दी थी। चुनाव आयोग ने 7 राष्ट्रीय दलों और 48 राज्य स्तरीय दलों को बुलाया था। 3 जून से 26 जून, 2017 तक ईवीएम हैक करने के लिए सभी पार्टियों को चार-चार घंटे का समय भी दिया गया। देश में लोकतंत्र को स्थापित करने वाली ईवीएम को परीक्षा से गुजरना पड़ा। लेकिन कोई भी चुनाव आयोग के तय समय में ईवीएम को हैक नहीं कर पाया। ऐसे में सारे आरोप धरे के धरे रह गए। इसके बाद दिसंबर 2017 में कांग्रेस पार्टी ने ईवीएम को इंटरनेट जरिए हैक करने का शिगूफा छोड़ा था।

जहां जीते वहां चुप्पी, हारने पर ईवीएम का विरोध
यह भी बड़ी बिडंबना है कि राजनीतिक जब चुनाव जीतते हैं तो ईवीएम के खिलाफ कुछ नहीं बोलते हैं और हारते ही ईवीएम का विरोध करने लगते हैं। 2014 के आम चुनाव के बाद देश में कई राज्यों में चुनाव हो चुके हैं। बिहार, पंजाब, दिल्ली में जब विपक्षी दलों को जीत मिली तो ईवीएम सही थी, लेकिन उत्तर प्रदेश, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, मणिपुर, त्रिपुरा जैसे राज्यों में विपक्ष हार गया तो ईवीएम पर सवाल उठा दिए। हाल ही में राजस्थान, उत्तर प्रदेश में हुए लोकसभा के उपचुनाव में भी कांग्रेस और समाजवादी पार्टी को जीत मिली है, तब ईवीएम पर कोई सवाल नहीं उठाया गया।

संवैधानिक संस्था का अपमान
बीजेपी की प्रत्येक जीत के बाद कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष ने चुनाव आयोग को निशाने पर लिया। ईवीएम पर सवाल उठाकर उसकी निष्पक्षता और विश्वसनीयता को भी कटघरे में खड़ा करने की कोशिश की। यहां तक कि चुनाव आयुक्तों पर सरकार से मिलीभगत का आरोप लगाकर संवैधानिक संस्था का अपमान किया। इसको देखते हुए आयोग ने गुजरात चुनाव में सभी मतदान केंद्रों पर वीवीपैट का इस्तेमाल किया था और मतगणना के दौरान उसकी जांच भी की थी ताकि चुनाव आयोग की विश्वसनीयता को कायम रखा जा सके। 

 

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