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‘अर्बन नक्सल’ से दिग्विजय की सहानुभूति का रहस्य उजागर, पुलिस कर रही है पूछताछ की तैयारी

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महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव में हुई हिंसा के तार कांग्रेस के विवादित नेता दिग्विजय सिंह से जुड़ते दिख रहे हैं। इस मामले की जांच करते हुए पुणे पुलिस नक्सलियों का रिकॉर्ड खंगाल रही है। इसी तफ्तीश के दौरान ये खुलासा हुआ है कि नक्सलवादी अपने अनर्गल बयानों के लिये कुख्यात दिग्विजय सिंह को मददगार मानते हैं। इतना ही नहीं, उनके पास दिग्विजय सिंह का मोबाइल नंबर भी है। पुणे पुलिस इस मामले में दिग्विजय सिंह से पूछताछ भी कर सकती है। पुणे पुलिस ने जो सबूत जमा किए हैं उससे साफ नजर आ रहा है कि अर्बन नक्सलियों का ये गिरोह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की जान लेना चाहता था।

क्या है भीमा कोरेगांव हिंसा की साजिश ?
इसी साल एक जनवरी 2018 को पुणे के नजदीक भीमा-कोरेगांव लड़ाई की 200वीं वर्षगांठ मनाने के लिए यलगार परिषद ने एक समारोह आयोजित किया गया था। इस समारोह के बाद हिंसा भड़क उठी थी जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई थी। भीमा-कोरेगांव लड़ाई जनवरी 1818 को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना और पेशवाओं की सेना के बीच हुई थी। इस लड़ाई में अंग्रेज़ों की तरफ से ज्यादातर सैनिक महार जाति के थे और इसमें पेशवा की सेना हार गई थी। इसी को महार जाति के लोग अपनी जीत और स्वाभिमान मानते हैं और हर साल इस जीत का जश्न मनाते हैं।

इसी घटना के बाद दलित संगठनों ने मुंबई समेत नासिक, पुणे, ठाणे, अहमदनगर, औरंगाबाद, सोलापुर सहित अन्य इलाकों में दो दिनों का बंद बुलाया। इसमें भी खूब तोड़-फोड़ और आगजनी हुई। महाराष्ट्र सरकार का दावा है कि इस हिंसा के पीछे सुनियोजित साजिश थी। शुरूआत में इस केस में पांच लोगों को गिरफ्तार किया गया। बाद में इस हिंसा की जांच में कई सनसनीखेज तथ्य सामने आए।

दिग्विजय पर गहराता शक !

जैसे जैसे इस केस की जांच आगे बढ़ रही है, इसमें अर्बन नक्सल का हाथ होने की आशंका बढ़ती जा रही है। पुलिस ने इस सिलसिले में पांच ‘अर्बन नक्सल’ वारावरा राव, वर्नोन गोंजाल्विस, गौतम नवलखा, अरुण फरेरा और सुधा भारद्वाज को गिरफ्तार किया था। इनकी गिरफ्तारी पर हायतौबा मचाते हुए इनके हिमायतियों ने इसे राजनीतिक गिरफ्तारी बताने की साजिश रची। ये लोग कोर्ट भी पहुंच गए लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने भी इन्हें राहत नहीं दी। सर्वोच्च न्यायालय ने साफ कहा कि गिरफ्तारियां राजनीतिक असहमति की वजह से नहीं बल्कि प्रतिबंधित सीपीआई (माओवादी) के साथ संबंध रखने के कारण हुए हैं। कोर्ट ने SIT जांच की मांग को भी खारिज करते हुए पुणे पुलिस को जांच जारी रखने को भी कहा है। जाहिर है कोर्ट का यह फैसला राहुल गांधी और उनके वकीलों की उस फौज को Expose करता है जो इन्हें बचाने में लगे हुए हैं।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की हत्या की साजिश रचने के आरोप में गिरफ्तारी के बाद नजरबंद किए गए ‘एक्टिविस्ट्स’ और ‘एकेडमिशियन्स’ से कांग्रेस की सहानुभूति जगजाहिर हो चुकी है। इसके साथ ही कांग्रेस की इस सहानुभूति का राज भी पूरी तरह से खुलता जा रहा है। नक्सलियों पर कांग्रेस के बड़े नेताओं के बयान और ‘कॉमरेडों’ के बीच हुए पत्रों के आदान-प्रदान में कांग्रेस नेताओं को लेकर जिस प्रकार का जिक्र हुआ है, वो कहीं ना कहीं नक्सल-कांग्रेस साठगांठ को सामने लाता है।

नक्सली पर अक्सर नरम दिखी है कांग्रेस
जहां कॉमरेडों ने एक-दूसरे को लिखे पत्रों में कांग्रेस नेताओं के समर्थन और मदद का दावा किया है, वहीं कांग्रेस के मौजूदा अध्यक्ष राहुल गांधी, पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी से लेकर दिग्विजय सिंह सरीखे नेता नक्सलियों पर हमेशा नरम दिखते रहे हैं। दिग्विजय सिंह की मानें तो भाजपा को हराने के लिए नक्सलियों की मदद से भी कांग्रेस को गुरेज नहीं। दरअसल दिग्विजय सिंह वही नेता हैं जो आतंकी सरगनाओं के लिए भी सम्मान का भाव रखते हैं। पूरे देश को पता है कि उन्होंने ओसामा बिन लादेन को ‘ओसामा जी’ और हाफिज सईद को ‘हाफिज सईद साहब’ कहकर संबोधित किया था। सवाल अब ये उठ रहा है कि पत्रों के संदर्भ से जो कांग्रेसी नक्सलियों के लिए ‘दोस्त’ हैं, उनमें दिग्विजय सिंह भी शामिल तो नहीं हैं? नीचे कुछ ऐसे तथ्य और बयान हैं जो कांग्रेस-नक्सल प्रेम को स्थापित करने वाले हैं।

कांग्रेस का नक्सल प्रेम!

28 अगस्त, 2018

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने नक्सली लिंक के आरोप में हुई गिरफ्तारियों पर उठाए सवाल। मामले की गंभीरता को समझे बिना राहुल ने अपने ही स्तर पर दे दी आरोपियों को क्लीन चिट।

2 जनवरी, 2018

सूत्रों के मुताबिक भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में जून में गिरफ्तार रोना विल्सन के लैपटॉप से एक कॉमरेड के मिले ई-मेल में देश में अराजकता फैलाने के लिए कांग्रेस का साथ मिलने का दावा।

25 सितंबर, 2017

कॉमरेड प्रकाश द्वारा कॉमरेड सुरेन्द्र को भेजे एक पत्र में लिखा है कि कांग्रेस नेता आंदोलन को उग्र करने की उनकी योजना में फंड करने को तैयार हैं। पत्र में ‘दोस्त’ बताते हुए जिस फोन नंबर का उल्लेख है, वह कांग्रेस पार्टी की वेबसाइट पर दिग्विजय सिंह का है।

दिसंबर, 2014

झारखंड विधानसभा चुनाव में पार्टी उम्मीदवारों के लिए प्रचार करते हुए दिग्विजय सिंह ने कहा था कि भाजपा को हराने के लिए नक्सली कांग्रेस का साथ दें। उन्होंने नक्सलियों को हिंसा छोड़ कांग्रेस में शामिल होने का न्योता भी दिया था।

मई, 2013

दिग्विजय सिंह ने कहा था कि नक्सली आतंकी नहीं, भ्रमित हैं।

मई, 2010

तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पार्टी नेताओं को पत्र लिखकर कहा था कि नक्सली हिंसा की जड़ को समझने की जरूरत है।

अराजकता फैलाने में कांग्रेस का साथ मिलने का दावा
दैनिक जागरण की रिपोर्ट के मुताबिक भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में गिरफ्तार रोना विल्सन के लैपटॉप में एक बड़े नक्सली नेता का ई-मेल मिला है। दो जनवरी को लिखे इस मेल में ‘कामरेड एम’ ने दलित आंदोलन की आड़ लेकर देश में अराजकता फैलाने में कांग्रेस का साथ मिलने का दावा किया है। विल्सन को भेजे इस ई-मेल में लिखा गया है कि शहर में रहने वाला शीर्ष नक्सल नेतृत्व कांग्रेस में हमारे कुछ दोस्तों के साथ संपर्क में हैं और ये दोस्त हर प्रकार की कानूनी और आर्थिक सहायता देने को तैयार हैं। गौर करने वाली बात यह भी है कि भीमा कोरेगांव हिंसा के दो दिन बाद के इस ई-मेल में वहां चले आंदोलन को बेहद सफल बताया गया है। इतना ही नहीं हिंसा में एक व्यक्ति की मौत को मुद्दा बनाते हुए आगे भी आंदोलन चलाने और दुष्प्रचार सामग्री तैयार करने का निर्देश दिया गया है।

‘नक्सल की फंडिंग को कांग्रेस नेता तैयार’
वहीं 25 सितंबर 2017 को कॉमरेड प्रकाश की ओर से कॉमरेड सुरेन्द्र को भेजे गए पत्र में लिखा है, ‘’छात्रों को शामिल करके हमें अपने आंदोलन को देश भर में तेज करना चाहिए। सुरक्षा बल स्टूडेंट्स पर नरम रहेंगे जो सरकार के लिए एक डिस्एडवांटेज होगा और हम पर कार्रवाई करना उसके लिए आसान नहीं होगा।‘’ इसी में आगे लिखा है, ‘’कांग्रेस नेता इस पूरी योजना में हमारा साथ निभाने को उत्सुक हैं और वे आने वाले आंदोलनों के लिए जब भी जरूरत पड़ेगी, हमें फंड करने को तैयार हैं। इस बारे में आप हमारे दोस्त से 99102…..पर संपर्क कर सकते हैं।‘’ जिस फोन नंबर का पत्र में उल्लेख है वह कांग्रेस पार्टी की वेबसाइट पर दिग्विजय सिंह का बताया जा रहा है।

नक्सल पर कांग्रेस के दोहरे रवैये का पर्दाफाश
साफ है, कांग्रेस और ‘अर्बन नक्सली’ की ओर से जिस तरह के तथ्य और कथ्य सामने आए हैं वो कांग्रेस के दोहरे रवैये को उजागर करने वाले हैं। इनसे कांग्रेस की यही कोशिश दिखती है कि अर्बन नक्सली पर एफिडेविट भी दे दो और अंदर से उनकी मदद भी करो, ताकि ये संदेश ना जाए कि कांग्रेस नक्सलियों की हितैषी है। गौर करने वाली बात है कि नवंबर, 2013 में सुप्रीम कोर्ट में दिए अपने एक एफिडेविट में तत्कालीन यूपीए सरकार ने ‘अर्बन नक्सलियों’ को जंगलों में सक्रिय माओवादी संगठन पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी (PLGA) से भी कहीं अधिक खतरनाक करार दिया था। लेकिन ये समझते हुए भी उसने इस दिशा में कोई गंभीर कदम नहीं उठाए।

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