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डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर से लगा भ्रष्टाचार पर लगाम, 1.41 लाख करोड़ रुपये की हुई बचत

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में पिछले साढ़े पांच सालों में अभूतपूर्व तरक्की हुई है। एक तरफ जहां जनधन, मुद्रा, आयुष्मान, किसान सम्मान निधि, उज्ज्वला, उजाला जैसी योजनाओं से लोगों के जीवन में खुशियां आई हैैं तो दूसरी तरफ भ्रष्टाचार पर लगाम लगा है। करप्शन के खिलाफ लड़ाई में डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर सबसे महत्वपूर्ण कदम साबित हो रहा है। इसके जरिए कल्याणकारी योजनाओं की राशि लोगों के सीधे खाते में जमा हो रही है।  

आंकड़ों के मुताबिक डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के माध्यम से पिछले पांच वर्षों में 1.41 लाख करोड़ रुपये की बचत हुई है, जो पहले दलालों और बिचौलियों के हाथों में चले जाते थे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कई मंचों से इस बात को कह चुके हैं कि डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर से सरकारी फंड के बिचौलियों और दलालों के हाथों में जाने से बचाया गया है। अब तक भ्रष्टाचार अभियान के तहत 8 करोड़ से अधिक अलग अलग सरकारी योजनाओं के फर्जी लाभार्थियों को हटाया जा चुका है। इससे देश के लोगों की गाढ़ी कमाई के 1.41 लाख करोड़ रुपये बचाए गए हैं। 

एक जानकारी के मुताबिक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में 439 योजनाओं की 7.33 लाख करोड़ रुपये से अधिक की धनराशि लाभार्थियों के खाते में ट्रांसफर की गई। जिससे लोगों को काफी फायदा हुआ हैै।

भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई 

मोदी सरकार ने नौकरशाही को भ्रष्टाचार मुक्त बनाने के लिए नई मुहिम छेड़ दी है। भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाते हुए केंद्र सरकार ने अब तक 64 उच्च पदस्थ अधिकारियों सहित कुल 85 अधिकारियों को जबरन रिटायर किया गया है। इनमें 12 सीबीडीटी के अधिकारी थे। सरकार ने भ्रष्टाचार और कदाचार के मामलों में कार्रवाई करते हुए इन अधिकारियों की छुट्टी की है। सरकार ने इससे पहले भी भ्रष्ट अधिकारियों को जबरन रिटायर किया है। 

500 से ज्यादा अफसरों पर हो सकती है कार्रवाई

मीडिया में छपी खबरों के अनुसार मोदी सरकार का भ्रष्टाचार के खिलाफ ये कार्रवाई अभी मात्र शुरुआत है। सूत्रों की मानें तो आईबी से मिली जानकारी के अनुसार सरकार ने 500 के करीब अफसरों की पहचान की है,जिन्होंने भ्रष्टाचार के जरिए अकूत संपत्ति इकठ्ठा कर रखी है। इस लिस्ट में आईएएस, आईपीस, आईआरएस समेत अखिल भारतीय सेवा से जुड़े हर कैडर के अधिकारी शामिल हैं। इस लिस्ट में शामिल सभी अधिकारियों पर सरकार कड़ी नजर रखे हुए है और उनके रिकार्ड को खंगाला जा रहा है। साथ ही उनके खिलाफ चल रहे मामले की जांच में भी तेजी लाई गई है। 

रिश्वतखोरी के मामले में 10 फीसदी की कमी

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार की भ्रष्टाचार के प्रति नो टॉलरेंस की नीति रही है। मोदी सरकार ने कानूनों को सख्त किया है और हर वो तरीका अपनाया है कि जिससे करप्शन की गुंजाइश खत्म हो जाए। इसके लिए डिजिटलीकरण को बढ़ावा दिया गया है, तमाम सरकारी सेवाओं को ऑनलाइन कर दिया गया है। इन्हीं सब कदमों का परिणाम है कि देश में भ्रष्टाचार पर लगाम लग रही है। लोकलसर्कल्स और ट्रांसपरेंसी इंटरनेशनल इंडिया की ओर से कराए गए इंडिया करप्शन सर्वे के अनुसार रिश्वतखोरी के मामले में पिछले वर्ष के मुकाबले 10 प्रतिशत की कमी आई है। 20 राज्यों में किए गए सर्वे में 248 जिलों के 1.9 लाख प्रतिभागियों ने माना है कि सरकारी कार्यों में रिश्वतखोरी पर काफी हद तक लगाम लग गई है।

भ्रष्टाचार पर सख्ती के लिए बनाए गए कई कानून

मोदी सरकार ने हर बार यह साबित किया है कि भ्रष्टाचार के मामले में कोई कितना भी बड़ा क्यों ना हो बख्शा नहीं जाएगा। सरकार हर स्तर पर देश के आर्थिक अपराधियों को कानून के दायरे में लाने की कोशिश कर रही है और इसके लिए कई सख्त कानून भी बनाए हैं, आइए डालते हैं एक नजर-

-फ्यूजिटिव इकोनॉमिक ऑफेंडर्स ऑर्डिनेंस
-राष्ट्रीय वित्तीय सूचना प्राधिकरण को मंजूरी
-संपत्ति गुणवत्ता की समीक्षा
-इंसोल्वेंसी और बैंकरप्सी कोड
-अनरेग्युलेटेड डिपॉजिट स्कीम पर रोक विधेयक
-पीएसबी पुनर्पूंजीकरण
-एफआरडीआई विधेयक
-बेनामी लेनदेन (निषेध)अधिनियम

मोदी राज में भ्रष्टाचार सूचकांक में 16 अंकों का सुधार

प्रधानमंत्री मोदी की अगुवाई में देश में भ्रष्टाचार पर लगाम लगी है। वैश्विक भ्रष्टाचार सूचकांक भी इसकी पुष्टि कर रहा है। 2018 के वैश्विक भ्रष्टाचार सूचकांक के मुताबिक भारत की रैंकिंग सुधरी है। भ्रष्टाचार-निरोधक संगठन ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल द्वारा जारी वार्षिक सूचकांक के मुताबिक भारत में अब पहले की तुलना में कम भ्रष्टाचार है। इस सूचकांक में भारत 78वें पायदान पर पहुंच गया है। पहले भारत इसमें 81वें पायदान पर था। 2013 में यूपीए सरकार में 94वें स्थान की तुलना करें तो मोदी सरकार आने के बाद इस इंडेक्स में भारत 16 अंकों का सुधार कर चुका है।

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