Home नरेंद्र मोदी विशेष अर्थव्यवस्था में ढांचागत सुधार से संवरेगा भारत का भविष्य

अर्थव्यवस्था में ढांचागत सुधार से संवरेगा भारत का भविष्य

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स्वतंत्रता के 70वें साल में भारत ‘आर्थिक क्रांति’ की राह पर अग्रसर है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश की आर्थिक दशा-दिशा बदलने का प्रयास सतत रूप से जारी है। अर्थव्यवस्था की ‘सफाई’ के साथ ढांचागत बदलाव भी किए जा रहे हैं। वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी और विमुद्रीकरण यानी नोटबंदी जैसे निर्णयों में भारतीय अर्थव्यवस्था का स्वरूप बदलने की क्षमता है। जीएसटी के माध्यम से ‘पूरा देश एक बाजार’ के कंसेप्ट को 01 जुलाई, 2017 से अपना चुका है और वन नेशन, वन टैक्स के दायरे में आ चुका है। वहीं नोटबंदी ने भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था को नियमशील यानी formalist होने के लिए मजबूत आधार तैयार किया है। इसके साथ ही कई अन्य तरह के ढांचागत बदलाव हो रहे हैं जो आने वाले समय में भारत के आर्थिक परिदृश्य को पूरी तरह बदल देंगे।

नोटबंदी से ‘क्लीन मनी’ अभियान को बढ़ावा
8 नवंबर, 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब विमुद्रीकरण यानी नोटबंदी की घोषणा की तो देश-दुनिया के लोग आश्चर्य में पड़ गए। दरअसल भारत जैसे देश में नोटबंदी का निर्णय सफलतापूर्वक लागू करना कठिन था, लेकिन प्रधानमंत्री के नेतृत्व कौशल और आर्थिक प्रबंधन के कारण यह निर्णय न केवल लागू हुआ बल्कि अब इसका असर भी दिखने लगा है। दरअसल नोटबंदी का उद्देश्य था कि टैक्स बेस बढ़े और कालाधन जमा करने वाले लोगों के खिलाफ कार्रवाई हो। जाली नोटों का पता लगाने के साथ देश में डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देना और आतंकवादी-नक्सली नेटवर्क पर गहरी चोट करना भी इसका बड़ा उद्देश्य था।

नोटबंदी से पहले 1000 रुपये के 633 करोड़ नोट सर्कुलेशन में थे। इनमें से नोटबंदी के बाद 98.6 फीसदी नोट वापस बैंकों में जमा हो गए। यानी 8,900 करोड़ रुपये बैंकों में वापस नहीं लौटे हैं। स्पष्ट है कि सरकार के लिए अब इन नोटों का हिसाब-किताब लगाना अब आसान हो गया है। ये जानना सहज हो गया है कि इनमें कितने वैध हैं और कितने अवैध? नोटबंदी (विमुद्रीकरण) के बाद तीन लाख करोड़ रुपये बैंकिंग सिस्टम में वापस आ गए हैं तो ये साफ हुआ कि सरकार का उद्देश्य एक हद तक पूरा हो गया है। देश में छिपे अरबों नोट जो बैंकिंग व्यवस्था से बाहर हो गए थे वो बैंकों के पास वापस आ गए।

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जीएसटी ने बदला देश का आर्थिक परिदृश्य
जीएसटी का लागू होना एक संरचनात्मक बदलाव इसलिए है क्योंकि इसने पूरे देश को एक बाजार के रूप में बदलने का काम किया है। इस कर सुधार के बाद 8 प्रतिशत की विकास दर हासिल करने की संभावनाएं मजबूत हुई हैं। देश में जीएसटी को लागू करना एक साहसिक निर्णय था। प्रधानमंत्री ने कहा था, Goods & Services Tax यानी GST सही में Good And Simple Tax साबित हुआ है और अब तक व्यापारी से लेकर उपभोक्ता तक इसके अभ्यास में आ चुके हैं।

सच तो ये है कि दुनिया भी हैरान है कि विविधताओं से भरे भारत जैसे देश में कैसे बिना किसी शोरशराबे के GST लागू हो गया। दरअसल पीएम मोदी की अगुआई में सुधार का ऐसा कदम है जो देश के कारोबार जगत को इतना पारदर्शी बना रहा है, जितना वो पहले कभी नहीं था। जीएसटी के लागू होने मात्र से केवल चुंगी नाकों पर लगने वाली ट्रकों की कतार खत्म हो गई। इसके साथ ही तीन हजार करोड़ रुपये की डीजल की खपत भी कम हो गई। जाहिर तौर पर ऐसे ढांचागत बदलाव से न सिर्फ बचत हो रही है बल्कि पर्यावरण को भी नुकसान होने से बचाया जा सका है। इसी तरह कई राज्यों ने एंट्री टैक्स खत्म कर दिए हैं जिससे आम लोगों का हजारों करोड़ रुपया बच रहा है।

डिजिटलाइजेशन से पारदर्शी हो रही आर्थिक प्रणाली
रिजर्व बैंक के अनुसार 4 अगस्त तक लोगों के पास 14,75,400 करोड़ रुपये की करेंसी सर्कुलेशन में थे। जो वार्षिक आधार पर 1,89,200 करोड़ रुपये की कमी दिखाती है। जबकि वार्षिक आधार पर पिछले साल 2,37,850 करोड़ रुपये की वृद्धि दर्ज की गई थी। इस प्रकार, बिना किसी प्रतिबंध के, नोटबंदी के बाद कैश का प्रचलन कम हो रहा है। इससे पता चलता है कि लेस कैश के अभियान में सरकार ना सिर्फ सफल रही है बल्कि बिना हिसाब-किताब वाले धन की जमाखोरी में भी तेजी से गिरावट आई है।

नीति आयोग के मुताबिक मार्च 2017 में 63,80,000 डिजिटल ट्रांजेक्शन्स हुए जिनमें 2,425 करोड़ रुपयों का लेनदेन हुआ। नवंबर 2016 से अगर इसकी तुलना की जाए तो उस वक्त 2,80,000 डिजिटल लेनदेन हो रहे थे जिनमें 101 करोड़ रुपयों का लेनदेन हुआ था। यानि इसमें 23 गुना की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। जाहिर है पांच महीने में बढ़ोतरी दर्शाता है कि लोग डिजिटल ट्रांजेक्शन्स के साथ सहज होते जा रहे हैं। कंसल्टेंसी कंपनी डिलॉयट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, सालाना 126 प्रतिशत की दर से बढ़ते हुए मूल्य के हिसाब से मोबाइल वॉलेट से लेनदेन 2022 तक 32,000 अरब रुपये पर पहुंच जाएगा। मोबाइल वॉलेट से लेनदेन की संख्या में हर साल 94 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो रही है।

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व्यापार संतुलन स्थापित करने की कवायद
भारत सरकार के आंकड़ों के अनुसार अप्रैल-जुलाई 2013-14 में अनुमानित व्‍यापार घाटा 62448.16 मिलियन अमरीकी डॉलर का था, वहीं अप्रैल-जनवरी, 2016-17 के दौरान 38073.08 मिलियन अमेरिकी डॉलर था। जबकि अप्रैल-जनवरी 2015-16 में यह 54187.74 मिलियन अमेरिकी डॉलर के व्‍यापार घाटे से भी 29.7 प्रतिशत कम है। यानी व्यापार संतुलन की दृष्टि से भी मोदी सरकार में स्थिति लगातार बेहतर होती जा रही है और 2013-14 की तुलना में लगभग 35 प्रतिशत तक सुधार आया है।

नोटबंदी से अर्थव्यवस्था बढ़ी के लिए चित्र परिणाम

भारत को मैन्युफैक्चरिंग हब बनाने पर सरकार का जोर
25 सितंबर, 2014 को मेक इन इंडिया की शुरुआत हुई थी। इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली के विज्ञान भवन में उद्यमियों को संबोधित करते हुए एफडीआई का एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत किया और कहा- FDI यानि फर्स्ट डेवलप इंडिया। उन्होंने निवेशकों से आग्रह किया था कि वह भारत को सिर्फ एक बाजार के रूप में न देखे, बल्कि इसे एक अवसर समझे। प्रधानमंत्री की इस अपील को देशी-विदेशी उद्योग जगत ने सकारत्मक तरीके से लिया और उनमें एक नये उत्साह का संचार हुआ। इसी का परिणाम है कि बीतते समय के साथ भारत अब विश्व का सबसे बड़ा मैन्युफैक्चरिंग हब बनने की ओर अग्रसर है। बीते तीन सालों में 95 मोबाइल कंपनियों ने भारत में अपना यूनिट लगाया है।

देश में पहली बार नेवी के लिए प्राइवेट सेक्टर के शिपयार्ड में बने दो युद्धपोत पानी में उतारे गए हैं। रिलायंस डिफेंस एंड इंजीनियरिंग लिमिटेड ने 25 जुलाई, 2017 को गुजरात के पीपावाव में नेवी के लिए दो ऑफशोर पैट्रोल वेसेल (OPV) लॉन्च किए, जिनके नाम शचि और श्रुति हैं। अमरीकी एयरोस्पेस कंपनी लॉकहीड मार्टिन को अगर भारत में एफ-16 विमान बनाने की अनुमति मिल गई तो भारत एफ-16 विमानों के रखरखाव का ग्लोबल हब बन सकता है। ऐसी उम्मीद है कि लॉकहीड मार्टिन टाटा के साथ मिलकर भारत में एफ-16 के ब्लॉक 70 का निर्माण करेगी। भारत में बनाओ, भारत में बना खरीदो … इस नीति के तहत रक्षा मंत्रालय ने 82 हजार करोड़ की डील को मंजूरी दी है।

फडीआई में 51 प्रतिशत की वृद्धि
मेक इन इंडिया इनिशियेटिव से पहले अगर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश प्रवाह की बात करें तो अप्रैल 2012 से सितंबर 2014 के तीस महीनों के दौरान 90.98 बिलयन डॉलर था। जबकि इसके मुकाबले अक्टूबर 2014 से मार्च 2017 के दौरान इसमें 51 प्रतिशत की वृद्धि हुई और यह आंकड़ा 137.44 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया। वहीं विनिर्माण क्षेत्र की बात करें तो यह 14 प्रतिशत की वृद्धि के साथ मेक इन इंडिया की सफलता की कहानी कहती है। अप्रैल 2012 से सितंबर 2014 के 35.52 बिलियन डॉलर के मुकाबले अक्टूबर 2014 से मार्च 2017 के दौरान यह बढ़कर 40.47 बिलियन डॉलर हो गया। पिछले तीन साल में ऑटोमोबाइल सेक्टर में 44 प्रतिशत, हार्डवेयर क्षेत्र में 53, कंस्ट्रक्सन सेक्टर में 75, माइनिंग सेक्टर में 56, कंप्यूटर हार्डवेयर में 53 , इलेक्ट्रिकल में 52, रिन्यूएबल एनर्जी का 49 और टेक्सटाइल सेक्टर में 45 प्रतिशत इसी सरकार तीन साल कार्यकाल में आया है।

पीएम मोदी और एफडीआई के लिए चित्र परिणाम

विदेशी कर्ज घटाने की नीति पर चल रही सरकार
केंद्र सरकार की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत का विदेशी ऋण 13.1 अरब डॉलर यानि 2.7% घटकर 471.9 अरब डॉलर रह गया है। यह आंकड़ा मार्च, 2017 तक का है। इसके पीछे प्रमुख वजह प्रवासी भारतीय जमा और वाणिज्यिक कर्ज उठाव में गिरावट आना है। रिपोर्ट के अनुसार मार्च, 2017 के अंत में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) और विदेशी ऋण का अनुपात घटकर 20.2% रह गया, जो मार्च 2016 की समाप्ति पर 23.5% था। इसके साथ ही लॉन्ग टर्म विदेशी कर्ज 383.9 अरब डॉलर रहा है जो पिछले साल के मुकाबले 4.4% कम है।

विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ाने पर जोर दे रहे पीएम मोदी
देश का विदेशी मुद्रा भंडार 2.60 अरब डॉलर बढ़कर 400.72 अरब डॉलर हो गया है जो अब तक का रिकॉर्ड उच्च स्तर है। भारतीय रिजर्व बैंक ने 8 सितंबर को समाप्त हुए सप्ताह के आधार पर ये आंकड़े जारी किए हैं। इससे पिछले हफ्ते में यह 3.57 अरब डॉलर बढ़कर 398.12 अरब डॉलर था। देश का स्वर्ण भंडार इसी अवधि में बिना 20.69 अरब डॉलर रहा।

एफडीआई में वृद्धि: विदेशी निवेश में चीन को पछाड़ा
2015 में पहली बार भारत ने चीन को विदेशी निवेश के मामले में पीछे छोड़ दिया था। जहां भारत को 63 बिलियन डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) मिला था वहीं चीन को महज 56 बिलियन और अमेरिका को महज 59 बिलियन डॉलर मिला था। फाइनेंसयल टाइम्स लिमिटेड के एफडीआई इंटेलिजेंस के आंकडों के अनुसार FDI के मामले में भारत अव्वल है। लगातार दूसरे साल दुनिया में सबसे ज्यादा नया प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) आकर्षित करने वाला देश रहा है। 2016 में भारत में 809 परियोजनाओं में 62.3 अरब डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आया। 2014 में मेक इन इंडिया इनिसिएटिव के बाद इक्विटी प्रवाह में जबरदस्त बढ़ोतरी है। अक्टूबर 2014 से मार्च 2017 के आंकड़ों को देखें तो 30 महीने में यह 99,72 बिलियन अमेरिकी डॉलर है। यह मेक इन इंडिया इनिसिएटिव से पहले के तीस महीनों से 62 प्रतिशत अधिक। यानि अप्रैल 2012 से सितंबर 2014 के बीच यह आंकड़ा 61.41 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।

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