Home विचार विकास के हर मानक पर पिछड़ा क्यों है रायबरेली और अमेठी?

विकास के हर मानक पर पिछड़ा क्यों है रायबरेली और अमेठी?

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केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली अपना सांसद निधि का पैसा सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र रायबरेली में खर्च करेंगे। इसके लिए उन्होंने 2.5 करोड़ की पहली किस्त की चिट्ठी रायबरेली प्रशासन को भेज भी दी है। दरअसल यूपी से राज्यसभा सांसद होने के नाते अरुण जेटली ने रायबरेली को चुना है। आपको बता दें कि यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी इस क्षेत्र की सांसद हैं। बावजूद रायबरेली जिला जिस तरह से पिछड़ेपन का शिकार है, यही देखते हुए अरुण जेटली ने इस क्षेत्र को चुनने का का फैसला किया है।

गौरतलब है कि 1980 के बाद से रायबरेली कांग्रेस का गढ़ रहा है। सोनिया गांधी से पहले पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी यहां से जीतती रही थीं, लेकिन एक प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र होने और एक ‘अप्रत्यक्ष प्रधानमंत्री’ होने के बाद भी रायबरेली में 80 प्रतिशत कच्चे मकान हैं। सभी गांवों में सड़कों की पहुंच भी नहीं हो पाई है और जो हैं उसकी भी बुरी स्थिति है।

आपको बता दें कि रायबरेली की जनता स्टेडियम, यूनिवर्सिटी, सोलर लाइट और दूर-दराज के इलाकों में सोलर ऊर्जा से चलने वाले पंप की मांग कर रही है। जाहिर है रायबरेली अंधेरे में रहा है क्योंकि कांग्रेस शासन के समय यहां विकास नहीं हुआ, लेकिन अब यहां विकास की किरण आती दिख रही है।

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी को पूरे देश की चिंता है। ये अक्सर कहते हुए दिखाई देते हैं कि केंद्र सरकार देश के लिए कुछ नहीं कर रही है, विकास ठप हो गया है, जनता को गुमराह किया जा रहा है। अफसोस की बात ये है कि देश की फिक्र करने वाले इन दोनों नेताओं ने कभी अपने संसदीय क्षेत्र अमेठी और रायबरेली की तरफ झांका तक नहीं है।

सोनिया गांधी रायबरेली से सांसद हैं, तो राहुल गांधी अमेठी से सांसद है। दोनों कई बार वहां की जनता को विकास के सपने दिखाकर चुनाव जीत चुके हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि रायबरेली और अमेठी दोनों ही देश के सबसे पिछड़े इलाकों में आते हैं। अब सवाल यह उठता है कि आखिर अमेठी और रायबरेली की बदहाली की तरफ इनका ध्यान क्यों नहीं जाता है?

मोदी सरकार की सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत सोनिया गांधी ने रायबरेली के उड़वा गांव को गोद लिया था, जबकि राहुल गांधी ने अमेठी के जगदीशपुर गांव को गोद लिया था। सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत केंद्र सरकार की कल्याणकारी योजनाओं को बगैर सांसद की अतिरिक्त फंड के लागू किया जाता है, बस सांसद को इस पर ध्यान देना होता है कि, कौन सी योजना गांव के लोगों को लिए लाभकारी है। इन दोनों नेताओं के गोद लिए गांव के हालात देखकर समझ में आ सकता है कि ये दोनों अपने क्षेत्र के विकास को लेकर कितने सजग हैं।

सोनिया के गोद लिए गांव उड़वा की हकीकत
सबसे पहले बात करते हैं कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष और सांसद सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र रायबरेली के उड़वा गांव की। सोनिया गांधी ने चार वर्ष पहले इस गांव को सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत गोद लिया था। गांव के लोगों का कहना है कि चार वर्षों में एक बार भी सोनिया गांधी इस गांव में नहीं आईं। यह गांव रायबरेली मुख्यालय से महज 15 किलोमीटर दूर ऊंचाहार तहसील में स्थित है। इस गांव में सड़क, स्वास्थ्य किसी भी क्षेत्र के विकास पर ध्यान नहीं दिया गया है। यहां का जो सरकारी स्कूल है, वह भी बदहाल है। हालत यह है कि स्कूल के बच्चे ही वहां साफ-सफाई करते हैं। कक्षाओं में गंदगी है और मजबूरी में शिक्षक कक्षाओं के बाहर बच्चों को पढ़ाते हैं। स्कूल के टॉयलेट में ताला लटका रहता है, बच्चों को टॉयलेट के लिए बाहर खेतों में जाना पड़ता है। गांव वालों का कहना है कि विकास के नाम पर एक साल के भीतर लगभग 70 प्रधानमंत्री आवास का निर्माण हुआ है, लेकिन इससे कोई विशेष लाभ नहीं हुआ। गांव में शौचालय बन रहे है, लेकिन प्राथमिक शिक्षा के बाद बच्चों की आगे की पढ़ाई के बाद लिए कोई व्यवस्था नहीं है।

राहुल के गोद लिए गांव जगदीशपुर की हकीकत
उड़वा की तरह की राहुल गांधी द्वारा गोद लिए गए गांव जगदीशपुर की है। डीह ब्लॉक में स्थित यह गांव अमेठी संसदीय क्षेत्र में आता है। इस गांव के स्कूल में भी दुर्दशा दिखाई देती है। बच्चे जमीन पर बैठकर पढ़ने को मजबूर हैं। स्कूल में शिक्षक आते नहीं है, पढ़ाई-लिखाई भगवान भरोसे चल रही है। स्कूल में कक्षाएं बनी तो हैं, लेकिन इनमें बच्चे नहीं बल्कि कूड़ा नजर आता है। गांव में इंटर कॉलेज नहीं है, बच्चों को आगे की पढ़ाई के लिए कई किलोमीटर दूर जाना पड़ता है। राहुल गांधी देशभर में दौरा करते हैं, लेकिन आज तक उन्होंने अपने गोद लिए गांव का दौरा नहीं किया है।

तो यह है हकीकत सोनिया गांधी और राहुल गांधी के गोद लिए गांवों की। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि इन गांवों का ही यह हाल नहीं है, दोनों नेताओं के पूरे संसदीय क्षेत्र का यही हाल है। एनडीए सरकार से पहले दस वर्षों तक यूपीए की सरकार थी और सोनिया-राहुल उस सरकार के सर्वेसर्वा थे। ये दोनों नेता चाहते तो अमेठी और रायबरेली की तस्वीर बदल सकते थे, लेकिन इन्होंने ऐसा नहीं किया। केंद्र में मोदी सरकार ने आने के बाद सबका साथ सबका विकास के मंत्र के तहत अमेठी और रायबरेली पर भी ध्यान दिया गया है। 

अमेठी को मिली अपनी कचहरी
2011 में कचहरी बनवाने का एलान किया गया था, लेकिन 2017 तक ये नहीं बन पाया था। जब राज्य में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी तो ही कचहरी का निर्माण हो पाया। अमेठी के गांवों में आते ही कच्ची सड़कें, बिलबिलाती कीचड़ के बीच फंसती गाड़ियां, इंदिरा आवास योजना होने के बावजूद कच्चे मिट्टी के घर ये साबित करते हैं कि विकास के मामले में अमेठी कितना पिछड़ा है।

पिपरी गांव को मिला बांध
जनता की उपेक्षा का आलम यह था कि पिपरी और उसके आस पास के गांव गोमती नदी की कटान में निरंतर कट रहे थे। लोगों ने राहुल गांधी से कई बार कहा, लेकिन उन्होंने अनसुना कर दिया। बांध नहीं बनने की वजह से पिपरी के मतदाताओं ने 2014 के चुनाव का बहिष्कार किया था। योगी सरकार आते ही इसके लिए 15 करोड़ रुपये स्वीकृत कर दिये और एक करोड़ रुपये रिलीज भी हो गए हैं।

भाजपा सरकार में विकास को मिली तेज रफ्तार
ऊंचाहार से रेल लाइन का वादा पंडित नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और राहुल गांधी ने किया तो जरूर, लेकिन उस योजना के लिए सर्वे और 190 करोड़ का आवंटन पीएम नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में पूरा हुआ है। इसके साथ ही अस्पताल में टीबी का यूनिट भूमि परीक्षण प्रयोगशाला, एफएम रेडियो स्टेशन, जैसी योजनाएं भी धरातल पर उतर रही हैं।

31 वर्ष बाद परसौली में बनी सड़क
अमेठी विधानसभा के परसौली में बीते 31 वर्षों से सड़क नहीं थी, इसी कारण यहां के लोगों ने विधानसभा चुनाव में मतदान का बहिष्कार भी किया था। प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार ने आते ही सबसे पहले सड़कों के निर्माण की प्रक्रिया शुरू की और परसौली को भी सड़क मिल गया है। बहरहाल हम ये भी जानने का प्रयास करते हैं कि गांधी परिवार के शासनकाल में विकास की दौड़ में अमेठी किस तरह पिछड़ा हुआ था और इसकी वजह क्या थी।

योजनाओं के नाम पर जमीन हड़पने का खेल
यूपीए सरकार के समय ही अमेठी के जगदीशपुर को इंडस्ट्रियल हब के रूप में विकसित करने का प्रस्ताव पास हुआ था। दावा किया गया था कि यहां 300 से अधिक फैक्ट्रियां लगेंगी, लेकिन कुछ लोगों ने वहां जमीनों के नाम पर सरकार से सब्सिडी ली और फरार हो गए। अब अधिकतर जमीनें खाली पड़ी हैं। मेगा फ़ूड पार्क, हिंदुस्तान पेपर मिल, आईआईआईटी, होटल मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट जैसी तमाम योजनाएं लाई गईंं जो केवल जमीन हड़पने के लिए ही इस्तेमाल की गईं।

राजीव गांधी ट्रस्ट के नाम पर जमीन कब्जा
अमेठी के जायस के रोखा गांव में 1.0360 हेक्टेयर जमीन जिसे जिला प्रशासन ने स्वयं सहायता समूहों को व्यावसायिक प्रशिक्षण देने के लिये दिया था, उसे कागजों में हेराफेरी करके राजीव गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट के नाम कर दिया। एक लंबी कानूनी प्रक्रिया के बाद अमेठी जिला प्रशासन को अब दोबारा इस पर कब्जा मिला है।

टूरिस्ट के तौर पर अमेठी आते हैं राहुल
राहुल गांधी जब भी अमेठी आते हैं वह एक राजनीतिक पर्यटन की तरह होता है। कई बार तो लोगों ने उनके लापता होने की पोस्टर तक लगा दिए हैं। अमेठी के राजनीतिक-सामाजिक हलकों में यह बात आम हो गई है कांग्रेस के युवराज केवल ‘राजनीतिक पर्यटक’ के तौर पर ही उत्तर प्रदेश आते हैं।

अमेठी को अपनी मिलकियत समझते हैं राहुल गांधी
दरअसल यह सब इसलिए है कि गांधी परिवार ने अमेठी को एक संसदीय क्षेत्र के तौर पर नहीं बल्कि अपनी जागीर माना है। कोई आपदा या मृत्यु में भी वह चार-छह महीने के बाद पहुंचते हैं। यही नहीं बल्कि वे अमेठी दौरे पर हमेशा ही चुनिंदा जगह ही पहुंचते हैं। वह भी उनके कुछ खास लोग तय करते हैं कि उन्हें कहां जाना है या कहां जाना चाहिए।

मोदी सरकार ने रायबरेली के लिए खजाना खोला
राहुल गांधी और सोनिया गांधी ने खुद तो अपने संसदीय क्षेत्र के विकास के लिए कुछ नहीं किया, और जब मौका लगा तो मोदी सरकार पर उनके संसदीय क्षेत्र के भेदभाव करने का आरोप लगा दिया। आपको कुछ सच्चाई से रूबरू कराते हैं। यूपीए के जमाने में राजीव गांधी के नाम पर रायबरेली में जो पेट्रोलियम यूनिवर्सिटी स्थापित की गई थी उसे पांच वर्षों के दौरान यूपीए सरकार ने महज 1 करोड़ रुपये दिए थे। जबकि मोदी सरकार ने पहले दो वर्षों में इस यूनीवर्सिटी के लिए 360 रुपये देकर इसे एक संस्थान के रूप में विकसित किया। इतना ही नहीं रायबरेली में स्थित इंडियन टेलीकॉम इंडस्ट्रीज नाम का संस्थान बंद होने के कगार पर था और वहां अफसरों को वेतन तक नहीं मिल पा रहा था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने इस संस्थान को 500 करोड़ आवंटित कर जीवनदान दिया और 1100 करोड़ रुपये का आर्डर भी दिलाया।

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