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योग के विस्तार से ‘विश्वगुरु’ बनने की राह पर अग्रसर भारत

योग के जरिये भारतीय संस्कृति और सभ्यता का प्रचार-प्रसार

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अनथक प्रयास से योग को आज पूरी दुनिया में एक नई दृष्टि से देखा जाने लगा है। यह अनायास नहीं है कि पूरी दुनिया में योग का डंका बज रहा है। ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की भारत की नीति और भारतीय होने पर गौरव की अनुभूति से प्रभावित प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने योग का पूरी दुनिया में प्रसार किया है। 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाने के यूएन के निर्णय से यह साफ है कि एकबार फिर भारतीय वैदिक परम्परा की यह जीवन पद्धति विश्व पटल पर स्वीकार की जा रही है और इसे भारत के बढ़ते वैश्विक प्रभाव के तौर पर भी देखा जाना चाहिए। साफ है कि योग वो जरिया बन गया है जिससे प्राचीन काल से समृद्ध रही भारतीय सभ्यता-संस्कृति का वैश्विक स्तर पर प्रचार-प्रसार हो रहा है।

आधुनिक विश्व को बड़ा उपहार
भारत ने विश्व को आध्यात्मिक, दार्शनिक, वैज्ञानिक क्षेत्र में अमूल्य योगदान दिया है। शून्य की तरह विश्व को भारत की सबसे बड़ी देन योग को माना जा रहा है। दरअसल योग एक विचार नहीं बल्कि भारतीय जीवन पद्धति है जिसमें भारतीय जीवन मूल्य यानि संस्कृति समाहित हैं। शून्य के आधार पर आधुनिक विज्ञान स्थापित हुआ उसी तरह आधुनिक जीवन का आधार बनता जा रहा है योग।

पश्चिम के देशों में योग का विस्तार
योग तो भारतीय जीवन पद्धति का हिस्सा शताब्दियों से रहा है… लेकिन 1990 के दशक में पश्चिम के देशों में हुए वैज्ञानिक शोधों से यह निकलकर आया कि लाइफस्टाइल के कारण उत्पन्न बीमारियों के कारगर इलाज के लिए योग अचूक है। इसके बाद अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी और कनाडा जैसे देशों में योग के प्रति आकर्षण बढ़ा और इसका प्रसार होने लगा।

अमेरिका में योग की धूम
Yog Alliance की रिपोर्ट के अनुसार, 2016 में, अमेरिका में 3 करोड़ 60 लाख लोग योग से स्वस्थ रहने के तरीकों को अपना रहे हैं। इसी रिपोर्ट के अनुसार 90 प्रतिशत अमेरिकी योग के बारे में जानते हैं, जबकि 2012 में 70 प्रतिशत को ही इसके बारे में जानकारी थी। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा भी योग के मुरीद हैं।

योग अमेरिका में आध्यात्मिक अभ्यास की एक सार्वभौमिक भाषा, धर्म और संस्कृतियों की कई रेखाओं को पार कर गया है, और लाखों अमेरिकी योग को अपने स्वास्थ्य और समग्र ध्यान में सुधार करने के लिए अपने ध्यान और आध्यात्मिक आयामों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।- बराक ओबामा

रूस ने भी मानी योग की महत्ता
21 जून को हर वर्ष ‘विश्व योग दिवस’ के तौर पर मनाने का अपना प्रस्ताव भारत ने 2014 में जब संयुक्त राष्ट्र महासभा के समक्ष रखा, तब रूस उसके सबसे उत्साही सह प्रायोजकों में से एक था। पहले ‘विश्व योग दिवस’ पर रूस के 80 शहरों में 33 हजार लोगों ने मिल कर योग किया। रूसी प्रधानमंत्री मेद्वेदेव और पूर्व राष्ट्रपति बोरिस येल्त्सिन का परिवार भी योगाभ्यास का शौकीन है।

रूस में चल रहे हैं योग केंद्र
‘योगा जर्नल’ के रूसी भाषा संस्करण की संपादक एलेन फेरबेक मॉस्को में 1999 से अपना ‘अष्टांग योग केंद्र’ चला रहे हैं। मिखाइल कोन्स्तांतिनोव भी अपने योग केंद्र में 1500 लोगों को योग सिखा रहे हैं। अकेले मॉस्को में इस समय 270 से अधिक योग स्टूडियो हैं। फाइव स्टार होटलों तक में योग-शिक्षा के कोर्स चलते हैं। हर 90 मिनट के अभ्यास के लिए 50 डॉलर तक मांगे जाते हैं। यही नहीं कई रूसी नौजवान भारत में गोवा, हरिद्वार या ऋषिकेश जाकर वहां योग सीखते हैं। 

जर्मन स्कूलों में भी योग
जर्मनी के सामान्य स्कूलों और किंडरगार्टनों के बच्चों को भी स्वैच्छिक आधार पर हठयोग सिखाया जा रहा है। योग का प्रचार-प्रसार कमाई का भी बड़ा जरिया बन गया है। दरअससल स्वामी विष्णु-देवानंद के शिष्य सुखदेव ब्रेत्स द्वारा 1992 से ‘योग विद्या’ केंद्र चलाया जा रहा है। आज अकेले इस संस्था के पास योग सिखाने के 102 केंद्र हैं। चार सुरम्य स्थानों पर ‘सेमिनार सेंटर’ कहलाने वाले ऐसे योगाश्रम भी हैं, जहां किसी अच्छे होटल जैसी सारी सुवधाएं हैं। इतना ही नहीं इस संस्था ने अब तक 13 हजार योग-शिक्षक तैयार किये हैं। अब यह यूरोप की सबसे बड़ी जनहितकारी बहुमुखी गैर लाभकारी योग-संस्था बन गई है।

आंकड़े बताते हैं कि सवा आठ करोड़ की जनसंख्या वाले जर्मनी में 24 लाख महिलाओं सहित 26 लाख लोगों, यानी 3.3 प्रतिशत जनता को योगाभ्यास का शौक है। देश में इस समय लगभग 20 हजार योग-शिक्षक हैं। इतना ही नहीं अकेले योग कक्षाओं की फीस ही दो से तीन अरब यूरो के बराबर आंकी जा रही है।


ब्रिटेन में भी योग का धमाल
ब्रिटेन में पहला योग स्कूल भारत में ब्रिटिश राज के एक अधिकारी रह चुके सर पॉस ड्यूक्स ने 1949 में एपिंग में खोला था। 1965 में ‘ब्रिटिश व्हील ऑफ योगा’ (बीडब्ल्यूवाई) की स्थापना हुई। 1995 से यह अब ‘यूरोपीय खेल परिषद’ और इंग्लैंड की खेल परिषद के भी अधीन है। प्रौढ़ शिक्षा के तहत 1970 के बाद से पूरे देश में सैकड़ों योग-कक्षाएं भी लगने लगीं और अनेक प्रइवेट स्कूल भी खुलने लगे थे। इस समय पांच लाख से अधिक ब्रिटिश नागरिक योगाभ्यास करते हैं। योगाभ्यास और उससे जुड़ी वस्तुओं-सेवाओं का ब्रिटिश बाजार एक अरब डॉलर से अधिक आंका जाता है।

फ्रांसीसियों को भी रास आया योग
फ्रांसीसी वैसे तो कसरत या शारीरिक व्यायाम के लिए जाने नहीं जाते, तब भी योग करना उन्हें भी धीरे-धीरे रास आने लगा है। पेरिस सहित कई शहरों में भी अनेक योग-स्टूडियो खुल गए हैं या फिटनेस सेंटरों में योग सीखने-करने की सुविधाएं मिलने लगी हैं। योग-महोत्सवों और कार्यशालाओं का आयोजन होता है, जिनमें सैकड़ों-हज़ारों की संख्या में लोग आते हैं। पेरिस के आइफल टॉवर या ‘ले ग्रां पाले’ जैसी जगहों पर होने वाले इन आयोजनों का उद्देश्य योगसाधना का प्रचार करना अधिक, लोगों को शिक्षित-प्रशिक्षित करना कम ही होता है।

पेरिस में कई योग स्टूडियो हैं जिनमें हर बैठक के लिए 20 से 25 यूरो लिए जाते हैं। फ्रांस में 2016 का दूसरा विश्व योग दिवस शनिवार, 18 जून को ही शुरू हो गया था। पेरिस के सबसे बड़े पार्क ‘पार्क दे ला वियेत’ में दो हजार से अधिक योग-प्रेमी इकठ्ठा हुए थे।


चेक गणराज्य में भी योग का जोश
पूर्वी यूरोप के अन्य भूतपूर्व कम्युनिस्ट देशों की तरह भूतपूर्व चेकोस्लोवाकिया में भी योग-ध्यान वर्जित था। 1989 में कम्युनिस्ट तानाशाही के अंत और 1993 में स्लोवाकिया के अलग हो जाने के ढाई दशकों के भीतर चेक गणराज्य में योग की जड़ें गहराई तक जम गयी हैं। वास्तव में पूर्वी या पश्चिमी यूरोप में अब शायद ही ऐसा कोई देश बचा है, जहां योग अभी तक नहीं पहुंचा हो।


यूरोपीय मीडिया पर छाया योग
पिछले दो-तीन दशकों में योग के चौतरफा विस्तार में यूरोपीय पत्र-पत्रिकाओं, रेडियो-टेलीविजन, पुस्तक प्रकाशन गृहों और फिल्म निर्माताओं का भी बहुत बड़ा योगदान रहा है। 2010 में एक ऑस्ट्रियाई फिल्म निर्माता पीए स्ट्राउबिंगर की डॉक्यूमेट्री फ़िल्म ‘(सृष्टि के) आरंभ में प्रकाश था’ ने काफी खलबली मचा दी थी। इसमें गुजरात के प्रहलाद जानी और उन्हीं के जैसे यूरोप, रूस और चीन के ऐसे कई लोगों के साथ बातचीत और डॉक्टरों-वैज्ञानिकों के मतों के आधार पर दिखाया गया था कि योग-ध्यान जैसी विधियों से, बिना भोजन के भी, सामान्य जीवन जीना संभव है।

जनवरी 2012 में रीलीज हुई ‘द ब्रीदिंग गॉड’ यानि (सांस लेता ईश्वर) में उसके निर्माता, जर्मनी के यान श्मिट-गारे, इस प्रश्न का उत्तर खोजते हैं कि योग कहां से आया? कब उसकी उत्पत्ति हुई? उत्तर वे आधुनिक योग के जनक कहे जाने वाले और इंद्रा देवी के गुरु रहे स्वयं तिरुमलाई कृष्णामाचार्य और उनके शिष्यों के कई मूल ऐतिहासिक फिल्मांकनों के साथ देते हैं । 105 मिनट की इस फिल्म को 90 हजार लोगों ने देखा।
2012 में ही आई 52 मिनट की ‘योग– जीवन जीने की कला’ एक फ्रेंच-जर्मन साझा रचना है। इस फिल्म में चेन्नई के एक योगगुरु और दार्शनिक, श्रीराम के माध्यम से, योगसाधना के दार्शनिक-मर्म और श्रीराम के गुरु रहे स्वामी शिवानंद की धरोहर को दर्शाया गया है। इसके अलावा योग पर सबसे नई फिल्म अक्टूबर 2015 में आई ‘जागो – योगानंद का जीवन’ (अवेक – द लाइफ ऑफ योगानंदा) है। डेढ़ घंटे की इस डॉक्यूमेंट्री फिल्म में अमेरिका की दो महिला फिल्मकारों पाओला दि फ्लोरियो और लीजा लीमैन ने परमहंस योगानंद की जीवनी और योगसाधना के लिए उनके योगदान का वर्णन किया है। योगानंद ने 1920 वाले दशक में अमेरिका में योगसाधना का प्रचार किया था।
विश्वगुरू रहा है भारत
भारत अपनी तमाम विद्याओं एवं पद्धतियों की वजह से विश्वगुरु के रूप में हमेशा से जाना जाता रहा है। योग विद्या उन्हीं में से एक है। भारत में वैदिक काल से ही योग विद्या को स्वस्थ जीवन शैली के लिए जरूरी माना जाता रहा है। वैदिक पुस्तकों में योग प्रणाली के जिक्र के साथ विश्व की कई प्राचीन सभ्यताओं में योग क्रियाओं का प्रमाणित दर्शन मिलता है।

योग में भारत का नेतृत्व
योग के जरिये किस प्रकार भारत की सभ्यता का प्रसार दुनिया के हर कोने में हो रहा है ये इस आंकड़े को देखकर पता लगता है। भारत ने जब योग का प्रस्ताव दिया तो योग को स्वीकार करने वाले देशों में उत्तरी अमेरिका के 23, दक्षिणी अमेरिका के 11, यूरोप के 42, एशिया के 40, अफ्रीका के 46 एवं अन्य 12 देश शामिल हैं। गौर करने वाली बात ये है कि ईरान, पाकिस्तान और अरब समेत कुल 47 इस्लामिक देशों ने भी योग के महात्म्य को समझा और इसे स्वीकार किया।


बौद्ध धर्म से कई देशों में पहुंचा योग
पूरी दुनिया में शायद ही ऐसा कोई देश है जो योग शब्द से परिचित न हो। योग की महत्ता प्राचीन काल से है। भारत से बौद्ध धर्म का विश्व के अन्य देशों में विस्तार हुआ तो चीन, जापान, तिब्बत, दक्षिण पूर्व एशिया और श्रीलंका जैसे देशों में ये फैल गया। समय के साथ वहां की संस्कृति के अनुसार विभिन्न स्तरों पर इसका विस्तार होता चला गया। पश्चिम के देशों में भी अब योग को सहज अपनाया जा रहा है। 

योगगुरुओं ने किया योग का विस्तार
योग के प्रचार-प्रसार में विश्व प्रसिद्ध योगगुरुओं का भी योगदान रहा है। अयंगर योग के संस्थापक बी के एस अयंगर और योगगुरु रामदेव ने इसे आधुनिक विश्व में विस्तार करने में अपना योगदान दिया है। महात्मा गांधी भी स्वस्थ जीवन के लिए योग को जरुरी मानते थे।

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