Home केजरीवाल विशेष टूट की कगार पर खड़ी है केजरीवाल एंड कंपनी !

टूट की कगार पर खड़ी है केजरीवाल एंड कंपनी !

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एमसीडी चुनाव में हार के बाद आम आदमी पार्टी आत्ममंथन में जुटी है। लेकिन वरिष्ठ नेताओं के बागी सुर ने पार्टी की परेशानी बढ़ा दी है। कहा तो ये जा रहा है कि दिल्ली में एमसीडी चुनाव में हार की असल वजह पार्टी की अंदरुनी कलह है। ईवीएम पर हार का ठीकरा फोड़ने की रणनीति में भी पार्टी के दो सुर साफ सुनाई दे रहे हैं। दूसरी तरफ 27 एमएलए की विधायकी पर भी खतरा मंडरा रहा है। कई मंत्रियों के भ्रष्टाचार के मामले में फंसे होने की वजह से पार्टी की किरकिरी पहले से हो रही है। वहीं अब खबर है कि कई विधायक केजरीवाल की कार्यशैली से नाराज हैं और पार्टी पर टूट का खतरा है। सवाल ये कि क्या जनता की नजरों में गिर चुकी ‘आप’ अपना अस्तित्व खो देगी? आखिर क्यों उठ रहे हैं ये सवाल? 

पार्टी नेताओं के बागी सुर
एमसीडी चुनाव में हार के बाद पार्टी का असंतोष सतह पर आ गया है। एक तरफ दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया और मंत्री गोपाल राय ने पार्टी की हार का ठीकरा ईवीएम पर फोड़ा, वहीं सांसद भगवंत मान, मंत्री कपिल मिश्रा और विधायक अलका लांबा जैसी पार्टी की कद्दावर नेता ने ईवीएम में गड़बड़ी की बात से इनकार किया। जबकि एमसीडी में हार पर प्रदेश के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के विनम्र प्रतिक्रिया आने से ये साफ हो गया कि पार्टी के अंदर एका नहीं है।

एमसीडी हार के साइड इफेक्ट
आम आदमी पार्टी पंजाब, गोवा और गुजरात में अपना पांव पसारने की कवायद कर रही थी। लेकिन एक के बाद एक हार ने तो पार्टी की फ्यूचर प्लानिंग ही गड़बड़ कर दी। दिल्ली एमसीडी के नतीजों ने तो पार्टी की नींव ही हिलाकर रख दी। पार्टी के कद्दावर नेताओं के इस्तीफे की झड़ी लग गई। चुनाव नतीजों के बाद आप के दिल्‍ली प्रभारी दिलीप पांडे ने इस्‍तीफा दे दिया तो उसके 24 घंटे के भीतर ही पार्टी के पंजाब के प्रभारी संजय सिंह ने अपना पद छोड़ दिया।

40 सीटों पर जमानत जब्त
2015 में आम आदमी पार्टी ने जहां 70 में से 67 विधानसभा सीटों पर जीत पार्टी के चढ़ाव का चरम थी। वहीं एमसीडी के 270 सीटों में से 40 सीटों पर आप के चालीस प्रत्याशी अपनी जमानत भी नहीं बचा पाए। सबसे खास ये रहा कि ये उम्मीदवार सम्‍माजनक आंकड़ा भी हासिल नहीं कर सके। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि उतार की ओर तेजी से बढ़ रही पार्टी क्या खत्म हो जाएगी?

डर गई केजरीवाल एंड कंपनी
एमसीडी चुनाव नतीजों के बाद ‘आप’ ने गुरुवार को पार्टी नेताओं और नये चुने गए पार्षदों की मीटिंग बुलाई। जिसमें पार्षदों को शपथ दिलाई गई कि वे किसी भी हाल में पार्टी का दामन नहीं छोड़ेंगे। सवाल उठ रहे हैं कि जिस पार्टी के बारे में केजरीवाल ये दावा करते हैं कि बिना किसी लोभ के कार्यकर्ता उनकी पार्टी से जुड़े हैं तो उन्हें शपथ दिलाने की जरूरत क्यों पड़ी? दरअसल जब केजरीवाल एंड कंपनी के बड़े नेताओं ने ही आम आदमी की पहचान छोड़ वीआईपी कल्चर को अपना ली तो डर तो लगेगा ही। विधायक, पार्षद पर वो भरोसा भी कैसे रहेगा जब करोड़ों खर्च कर चुनाव जीतने की होड़ में शामिल रहे। जाहिर है एमसीडी चुनाव नतीजों ने पार्टी की बुनियाद हिलाकर रख दी है।

21 विधायकों पर खतरा
जुलाई में राष्ट्रपति चुनाव के बाद ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले में ‘आप’ के 21 विधायकों के भविष्य पर फैसला होगा। अगर, चुनाव आयोग ने ‘आप’ विधायकों के पक्ष में निर्णय नहीं लिया, तो इनकी सदस्यता जा सकती है। वहीं विधायक वेद प्रकाश ने अपनी सदस्यता से इस्तीफा देकर भाजपा का दामन थाम लिया है जबकि राजौरी गार्डन उपचुनाव में ‘आप’ ने अपनी सीट गंवा दी। इस तरह कुल 65 विधायक ही बचे हैं अगर इनमें से यदि 21 की सदस्यता चली गई तो ‘आप’ के पास 44 विधायक ही बचेंगे। उधर चुनाव आयोग को गलत जानकारी देने के मामले में आम आदमी पार्टी से सदर बाजार विधायक सोम दत्त को भी कोर्ट का नोटिस मिल चुका है। जाहिर है एक के बाद एक हार के बाद केजरीवाल के सामने पार्टी विधायकों को संभाले रखना एक कठिन चुनौती है।

दिल्ली में होंगे मध्यावधि चुनाव!
क्या दिल्ली में अगले छह महीनों में विधानसभा के चुनाव हो सकते हैं? दरअसल खबर ये है कि निगम चुनाव हारने पर 34 विधायकों ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से इस्तीफा मांगा है। वहीं दिल्ली की राजनीतिक फिजा में ये खबर भी फैल रही है कि आप के 27 विधायक पार्टी छोड़ सकते हैं। बहरहाल खबर में सच्चाई कितनी है ये तो वक्त बताएगा लेकिन ये बात साफ हो रही है कि दिल्ली में मिड टर्म चुनाव की तस्वीर बनती दिख रही है। जाहिर है फिलहाल ऐसे हालात बनते हैं तो आम आदमी पार्टी के लिए रिकवर करना बेहद मुश्किल होगा।

56 सीटें जीत सकती है बीजेपी
एमसीडी नतीजों को विधानसभा सीटों में बदलें तो बीजेपी को 70 में से 56 सीटें मिलतीं। वहीं, आप को 7 सीटों पर ही जीत हासिल हो पाती और कांग्रेस को महज 5 सीटों पर संतोष करना पड़ता। 2015 के विधानसभा चुनावों बीजेपी को 32.2 प्रतिशत वोट मिले थे, जबकि निकाय चुनाव में उसे 36.1 प्रतिशत वोट मिले हैं। लेकिन ‘आप’ की बात करें तो उसके वोट प्रतिशत में आधे से ज्यादा की गिरावट आई है। विधानसभा चुनाव में केजरीवाल की पार्टी को 54.3 प्रतिशत वोट मिले थे, जबकि इस बार उसे 26.2 प्रतिशत वोट ही मिले हैं।

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