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केजरीवाल एंड कंपनी की हार के 11 कारण जानिए

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एमसीडी चुनाव के नतीजों से साफ हो गया कि ‘आप’ का जादू खत्म हो गया है। पंजाब और गोवा विधानसभा चुनाव में करारी शिकस्त के बाद एमसीडी चुनाव में मिली इस पराजय से ये बात भी साबित हो गई कि ‘आप’ की राजनीतिक जमीन भी खिसक चुकी है। महज दो साल पहले दिल्ली विधानसभा चुनाव में 70 में से 67 सीटें जीतने वाली आप का ये हश्र क्यों हुआ? आखिर आम आदमी पार्टी के वोट प्रतिशत में इतनी बड़ी गिरावट क्यों आई? आत्ममंथन के बजाय आंदोलन की धमकी देने वाली केजरीवाल एंड कंपनी ईवीएम मशीन में गड़बडी और छेड़छाड़ का आरोप लगाकर अपना चेहरा छुपाने की कोशिश तो कर रही है, लेकिन पंजाब और गोवा की हार के बाद दिल्ली की इतनी बड़ी शिकस्त ईवीएम की आड़ में छिपेगी नहीं। एमसीडी चुनाव के नतीजों को दिल्ली में आम आदमी पार्टी के किए कामों से जोड़कर देखा जा रहा है।

1.फटाफट राजनीति से ‘आप’ को नुकसान
किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में पॉलिटिक्स टी-20 शैली में हो सकती है। इसमें एक या दो बार जीत तो मिल सकती है लेकिन ये लांग टर्म पॉलिसी का हिस्सा नहीं हो सकता है। दिल्ली में पहली जीत के बाद ही गोवा और पंजाब की राजनीति के मैदान में उतर जाना आम आदमी पार्टी की बड़ी भूल साबित हुई। जिस फटाफट अंदाज में गोवा, पंजाब, राजौरी गार्डन और अब एमसीडी चुनाव में हार हुई ये इसी फटाफट की राजनीति का जवाब भी है।

2.अति महत्वाकांक्षा ने ‘आप’ की लुटिया डुबोई
आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल ने राष्ट्रीय राजनीति में पांव पसारने का हरसंभव प्रयास किया। पंजाब से लेकर गोवा तक और आगे गोवा से लेकर गुजरात तक की तैयारी थी। लेकिन देश की जनता के मिजाज को शायद केजरीवाल एंड टीम समझ नहीं पाई और नेशनल फिगर बनने की चाहत में केजरीवाल ने राजनीति के नब्ज की गलत ट्रिगर दबा दी। स्थिति ये है कि दिल्ली की जमीन भी खोने की कगार पर जा बैठे हैं।

3.चुनाव आयोग पर सवाल उठाना पड़ा महंगा
आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल लगातार ईवीएम और चुनाव आयोग को टारगेट कर रही है। भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में बूथ कैप्चरिंग और मत नहीं डालने देने जैसी शिकायतें सामने आती रहीं हैं, लेकिन चुनाव आयोग को सीधे कठघरे में कभी खड़ा नहीं किया गया। लेकिन अरविंद केजरीवाल और आप की रणनीति ने चुनावी राजनीति को जिस निचले स्तर तक ले जाने का काम किया। दिल्ली की जनता ने उनकी इस राजनीति को उन्हीं की शैली में जोरदार जवाब दे दिया।

4.केजरीवाल को ‘भगोड़ा’ मानने लगी जनता
दिल्ली में 2015 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी का नारा था, ‘5 साल केजरीवाल’। लेकिन दिल्ली से बाहर लगातार पांव पसारने की ‘आप’ की रणनीति ने दिल्ली में भी उनकी जमीन खिसका दी। पंजाब के चुनाव में तो बार-बार ये मैसेज गया कि केजरीवाल ही पंजाब के मुख्यमंत्री बनेंगे। राजौरी गार्डन के विधायक जनरैल सिंह ने तो इस्तीफा देकर पंजाब से चुनाव भी लड़ा। ऐसे में दिल्ली की जनता खुद को ठगा हुआ महसूस करने लगी।

5.’वादातोड़’ पार्टी की छवि से हुआ बेड़ा गर्क
केजरीवाल एंड कंपनी ने दिल्ली की जनता से सैकड़ों वादे किए थे। लेकिन कई प्रमुख वादे जिनपर जनता की ज्यादा नजर थी वो भी पूरा कर पाने में नाकाम रही पार्टी। वाई-फाई, सीसीटीवी, आठ लाख नौकरियां देने, बसों में मार्शल की तैनाती जैसे कई प्रमुख वादे पूरा नहीं कर पाने के कारण पार्टी की नकारात्मक छवि बन गई। राज्य सरकार ने केंद्र सरकार पर काम में रोड़े अटकाने का ठीकरा फोड़ा, लेकिन दिल्ली की जनता ने उनकी दलील पर भरोसा नहीं किया।

6.’भ्रष्टाचार’ के गर्त में डूबती चली गई आप
भ्रष्टाचार के विरुद्ध संघर्ष कर आम आदमी पार्टी बनी और फिर सत्ता में आई, लेकिन वह भी उसी गर्त में डूब गई। ‘आप’ सरकार के मंत्रियों पर भ्रष्टाचार और तरह-तरह के आरोप लगे। कोई मंत्री फर्जी डिग्री पर घिरा तो कोई सेक्स सीडी में फंस गया और कई जेल भी गए। शुंगलू कमेटी की रिपोर्ट में भी केजरीवाल सरकार में फैले भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद लोगों के सामने आ गया।

7.मोदी विरोध में तोड़ी मर्यादा की सीमा 
राजनीति में शुचिता की दुहाई देने वाले अरविंद केजरीवाल ने पीएम मोदी पर व्यक्तिगत हमले किए। कई बार तो सीमा लांघते हुए केजरीवाल ने प्रधानमंत्री पर आपत्तिजनक टिप्पणी भी की। केजरीवाल के इन हमलों से पीएम मोदी की छवि पर कोई फर्क नहीं पड़ा, लेकिन लोगों ने इसे जायज नहीं माना। केजरीवाल एंड कंपनी उस दौर में भी पीएम मोदी को टारगेट करते रहे जब देश की जनता के बीच सर्वाधिक लोकप्रिय नेता हैं। पूर्व उपराज्यपाल नजीब जंग से उनकी टकराहट भी जगजाहिर रही।

8.अपनों के साथ भी ‘आप’ ने की गद्दारी
आम आदमी पार्टी ने आंदोलन के समय से ही अपने साथ रहे योगेंद्र यादव, प्रशांत भूषण और आनंद कुमार जैसे बड़े और साफ छवि के नेताओं को सत्ता में आते ही बाहर का रास्ता दिखा दिया। इन नेताओं ने भी बाहर होते ही पार्टी के खिलाफ बोलना शुरू कर दिया, जिससे पार्टी की नकारात्मक छ‌वि बनी। इसके अलावा पार्टी के बड़े और लोकप्रिय चेहरे कुमार विश्वास ने पार्टी में होते हुए भी नेताओं से दूरी बना ली। कई मौकों पर तो कुमार विश्वास ने सरकार और केजरीवाल की आलोचना भी की। हालत तो ये रही कि एमसीडी चुनावों में कुमार विश्वास ने पार्टी के लिए प्रचार तक नहीं किया।

 

9.दिल्ली की जनता को दी धमकी
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के वोटरों को धमकी दी कि अगर आम आदमी पार्टी को नहीं जिताया तो अगले पांच साल तक कूड़ा और मच्छर में रहना पड़ेगा। उन्होंने एमसीडी चुनाव के एक दिन पहले ये भी कहा कि अगर किसी के बच्चों को या उनके घर के किसी को डेंगू या चिकनगुनिया होगा तो सरकार इसकी जिम्मेदार नहीं होगी। जाहिर है दिल्ली की जनता को एक मुख्यमंत्री की ये भाषा रास नहीं आई।

10.केजरीवाल की प्रतिशोधात्मक पॉलिटिक्स
दो साल के कार्यकाल में अरविंद केजरीवाल की राजनीतिक शैली सकारत्मक नहीं रही। केजरीवाल कि विंडिक्टिव यानी प्रतिशोधात्मक राजनीति की शैली एमसीडी और राज्य सरकार के बीच टकराव से जगजाहिर होती रही। केजरीवाल ने तीन बार ऐसे हालात पैदा कर दिए कि एमसीडी के कर्मियों को वेतन के लाले पड़ गए। कर्मियों ने हड़ताल की और दिल्ली की जनता केजरीवाल के इस एटीट्यूड से नाराज होती चली गई। सिर्फ एमसीडी को नाकाम साबित करने के लिए की गई साजिश को दिल्ली की जनता ने भी जान लिया और वोट के जरिये जवाब दे दिया।

11.केजरीवाल के अहंकार के कारण हुई हार
दिल्ली की जनता ने जब 70 में से 67 सीटें केजरीवाल एंड कंपनी की पार्टी को दी तो बजाय जिम्मेदारी समझने के एकाधिकार समझ लिया गया। ऐसा भी दौर आया जब उन्होंने दिल्ली के उपराज्यपाल से टकराव लिया। जनता के मैंडेट को सिस्टम से भी ऊपर मानकर केजरीवाल ने सिस्टम तोड़ने की कोशिश की। लेकिन लोकतंत्र की खूबसूरती यही है कि जनता एक पर सिर माथे बिठाती है तो दूसरे पल उसे जमीन पर होने का अहसास भी कराती है। शायद जनता को भी यह बात गंवारा नहीं हुई और एक ही झटके में आप को जमीन पर ला दिया और अहंकार को चकनाचूर कर दिया।

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