Home केजरीवाल विशेष जरूर पढ़िए, झूठे अरविंद केजरीवाल की फरेबी दुनिया

जरूर पढ़िए, झूठे अरविंद केजरीवाल की फरेबी दुनिया

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दिल्ली के विवादास्पद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की लोकप्रियता तीन साल आते-आते रसातल में मिल चुकी है। बावजूद इसके उनके झूठ और फरेब के खुलासे का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। दरअसल केजरीवाल ने अपनी पूरी सियासी इमारत ही झूठ के पुलिंदों पर खड़ी की है, इसीलिए जैसे-जैसे उसकी चूलें हिल रही हैं, उसके मलबे में दबे हुए उनकी मक्कारी के सबूत भी निकल कर के सामने आ रहे हैं। 

आरोप लगते ही इस्तीफे का वादा तोड़ा
आम आदमी पार्टी के तानाशाह केजरीवाल ने 2012 में ये भी घोषणा की थी कि अगर उनके खिलाफ प्राथमिक तौर पर भी कोई मामला आता है, तो वो तुरंत इस्तीफा दे देंगे। केजरीवाल ने ये घोषणा टाइम्स नाउ चैनल पर एक बहस के दौरान दी थी, लेकिन अपने ही कैबिनेट सहयोगी रहे कपिल मिश्रा के बड़े आरोप के बावजूद उन्होंने निर्लज्जता की सारी हदें पार कर दी हैं। 2 करोड़ रिश्वत लेने के मामले में इस्तीफा देना तो दूर वो उसपर सफाई देने की साहस भी नहीं जुटा पा रहे हैं। जबकि उन्होंने अपनी सियासी जमीन ही बड़े-बड़े लोगों पर बिना सबूत लांछन लगाकर तैयार की है।

कुर्सी के लिए बच्चों की कसम तोड़ी
केजरीवाल वो इंसान हैं जिन्हें सत्ता के सामने अपने बच्चों के प्यार के भी कोई मायने नहीं हैं। दुनिया का शातिर से शातिर अपराधी भी कभी अपने बच्चों की झूठी कसमें नहीं खा सकता। लेकिन केजरीवाल को उससे भी परहेज नहीं है। उन्हें तो सिर्फ भोग-विलास और सियासी अय्याशी के लिए कुर्सी चाहिए, फिर उसके लिए बच्चों को ही क्यों न दांव पर चढ़ाना पड़ जाय। जब 2013 में उनकी पार्टी पहली बार दिल्ली विधानसभा का चुनाव लड़ रही थी, तब उन्होंने अपने दोनों बच्चों की कसम खाकर वादा किया था कि चाहे कुछ भी हो जाय चुनाव के बाद किसी भी पार्टी से गठबंधन नहीं करेंगे। लेकिन, कुर्सी नजर आते ही उन्होंने सारी कसमें तोड़ दीं और कांग्रेस की शरण में गिरकर दिल्ली के मुख्यमंत्री बन गए।

अपनी रिश्वतखोरी पर आपराधिक चुप्पी
केजरीवाल की सियासत भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन की पैदावार है। लेकिन आज जिस कदर उनपर और उनकी आम आदमी पार्टी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं उसने भ्रष्ट से भ्रष्ट नेताओं को भी लज्जित कर दिया है। सीएम केजरीवाल पर तो खुद उनके अपने सहयोगी मंत्री रहे कपिल मिश्रा ने ही दो करोड़ रुपये घूस लेने का आरोप लगाया है। एक जमाने में इस्तीफे की मांग करने वाली फैक्ट्री रहे केजरीवाल अब अपने कारनामे पर कुछ नहीं बोल पा रहे हैं। उनकी बोलती बंद है और उन्होंने बकवास करने के लिए अपने उन नेताओं को छोड़ रखा है, जिनपर पार्टी के अंदर ही गंभीर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे हैं।

चंदे में पारदर्शिता का वादा तोड़ा
केजरीवाल दूसरी राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाले चंदे को लेकर शुरू से सवाल उठाते थे। उन्होंने इसे भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा कारण बताया था। लेकिन जब अपनी पार्टी के फंड की पारदर्शिता की बात आई तो उनके सारे सिद्धांत हवा हो गए। उनपर अपने फायदे के लिए देश विरोधी ताकतों से भी चंदे लेने के आरोप लगते रहे हैं, लेकिन अब उनके पास बोलने को कुछ भी नहीं बचा है।

वीआईपी कल्चर से दूर रहने का वादा तोड़ा
केजरीवाल एंड कंपनी भ्रष्टाचार का विरोध और वीआईपी कल्चर से दूर रहने की बात करके ही सत्ता में आई थी। लेकिन एकबार दिल्ली की जनता को झांसे में लिया लिया, तो सारे वादे भूल गए। मुख्यमंत्री और उनके तमाम मंत्रियों ने बड़े-बड़े बंगले और बड़ी-बड़ी गाड़ियों से घूमना शुरू कर दिया। जो केजरीवाल कभी सुरक्षा नहीं लेने का वादा करके सत्ता में आए थे, उनके आसपास किसी आम आदमी का फटकना भी आज असंभव है। जो केजरीवाल खुद को आम आदमी बताते थे, उनसे बड़ा वीआईपी तामझाम कम ही लोगों का होता है। हां ये बात अलग है कि दिखावा अभी भी वो आम आदमी होने का करते हैं। लेकिन उनकी असलियत वही जानता है, जिसने उन्हें पहले भी देखा है और आज भी करीब से महसूस कर रहा है।

हाईकमान कल्चर से दूर रहने का वादा तोड़ा
मुख्यमंत्री बनने से पहले अरविंद केजरीवाल जनता के लिए जिस स्वराज की बात करते थे, उस स्वराज को वह अपने दल में स्थापित नहीं कर सके। दिल्ली की सत्ता मिलने के बाद उन्होंने अपने को पार्टी का तानाशाह बना लिया। उनके इशारे के बिना पार्टी में पत्ते को भी हिलने की अनुमति नहीं है। जिस किसी ने भी उनके इस कलंकित साम्राज्य को चुनौती दी, उसे पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। पार्टी में आज उनके और उनके चाटुकारों के अलावा किसी की भी कोई हैसियत नहीं बची है। ये वो संस्कृति है जिसका विरोध करके ही केजरीवाल ने राजनीति की शुरुआत की थी।

 राजनीतिक शुचिता का मजाक बनाया

केजरीवाल राजनीति को बदलने के लिए राजनीति में आए थे। लेकिन राजनीति में आते ही उन्होंने फिल्मी विलेन की तरह अपना असली चेहरा दिखाना शुरू कर दिया। उन्होंने पैसों के लिए हर उस इंसान को टिकट बांटे जिसका चरित्र दागदार रहा है। उनकी पार्टी में टिकट की बोली लगाई गई और जिसने अधिक पैसे दिए उसी को टिकट दिया गया। आज भी सत्येंद्र जैन जैसे लोगों को मंत्री बनाकर रखा है जिनपर भ्रष्टाचार के गंभीर मामले दर्ज हैं। केजरीवाल की लाचारी सिर्फ ये है कि जैन उनके लिए सोने के अंडे देने वाली मुर्गी की तरह हैं। 

मुख्यमंत्री की गरिमा को दागदार किया

यूं तो अरविंद केजरीवाल ने अपने  पहले ही कार्यकाल से रंग-ढंग दिखाना शुरू कर दिया था। गणतंत्र दिवस के कार्यक्रम को बाधित करने की धमकी देकर धरना शुरू कर दिया। दूसरे कार्यकाल में तो इन्होंने लोकतंत्र के पवित्र मंदिर कहलाने वाले विधानसभा की गरिमा को भी ठेस पहुंचाना शुरू कर दिया। विधायकों के बहुमत का जितना नाजायज इस्तेमाल केजरीवाल और उनकी कंपनी ने किया है, उतना कहीं भी किसी ने नहीं किया है। उन्होंने अपने निहित स्वार्थ के लिए सदन की कार्यवाही भी संचालित करवाई। कभी तो विदेश नीति के मुद्दे पर, तो कभी ईवीएम में गड़बड़ी का बहाने विधानसभा की प्रतिष्ठा और नियमों की खिल्ली उड़ाने की कोशिश की।  

सत्ता का जमकर दुरुपयोग किया 

केजरीवाल के कार्यकाल में नियमों को ताक पर रखकर वो और उनके मंत्री, विधायक, पार्टी के नेता और नाते-रिश्तेदारों ने जमकर अय्याशियां की हैं। एक आंकड़े के अनुसार उनके मंत्री बिना एलजी के अनुमति के 24 बार विदेश यात्रा पर हो आए। कपिल मिश्रा ने इसीलिए अनशन शुरू किया क्योंकि वो जानना चाहते हैं कि आम आदमी पार्टी के पांच नेताओं के विदेश दौरे का खर्च किसने उठाया और उनकी यात्रा का मकसद क्या था ? इतना ही नहीं हद तो ये हो गई कि आम आदमी की बात करने वाली पार्टी की सरकार ने सिर्फ डेढ़ साल में ही सवा करोड़ रुपये चाय-समोसे पर उड़ा दिए। यही नहीं दिल्ली सरकार की एक दावत में 16-16 हजार रुपये की थाली परोसी गई। इस सारे काले कारनामों के सरगना खुद विवादास्पद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल हैं, जो अपने उपचार के नाम पर जनता की गाढ़ी कमाई पानी की तरह बहाने में भी अपना गौरव समझते हैं।

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