Home पश्चिम बंगाल विशेष पश्चिम बंगाल को दूसरा ‘बांग्लादेश’ तो नहीं बना रही हैं ममता ?

पश्चिम बंगाल को दूसरा ‘बांग्लादेश’ तो नहीं बना रही हैं ममता ?

SHARE

 

मोहतरमा ममता बनर्जी के शासनकाल में पश्चिम बंगाल में हिंदुओं को अपने धार्मिक रीति-रिवाज, पर्व-त्योहार मनाने तक की स्वतंत्रता नहीं रह गई है। हाल के वर्षों में ममता सरकार ने हिंदुओं के खिलाफ कई ऐसे कदम उठाए हैं, जिससे लगता है कि अपने ही देश के भीतर बहुसंख्यकों को अपनी पूजा-पद्धति और संस्कार बचाने के लाले पड़ गए हैं। इसका तात्कालिक और सबसे बड़ा उदाहरण कोलकाता में रामनवमी की पूजा के लिए अनुमति नहीं मिलना है। जी हां, अगर कलकत्ता हाईकोर्ट ने दखल नहीं दिया होता तो इसबार भी (हाल में कई मौकों पर पश्चिम बंगाल में अदालत के आदेश के बाद ही पश्चिम बंगाल में पूजा-विधि संपन्न हो सकी है) दक्षिण कोलकाता में रहने वाले हिंदू रामनवमी की पूजा नहीं कर पाते।

हाईकोर्ट के आदेश से हो सकी रामनवमी की पूजा
सुनने में अजीब जरूर लगता है, लेकिन ये सच्चाई है कि पश्चिम बंगाल में अब हिंदुओं की पूजा और उपासना की स्वतंत्रता खतरे में पड़ चुकी है। बात-बात में अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर देश के टुकड़े करने की बात करने वालों पर ममता बरसाने वाली पश्चिम बंगाल की टीएमसी सरकार हिंदुओं के धार्मिक अनुष्ठानों पर आए दिन रोक लगा रही है। ताजा मामला कोलकाता के दक्षिणी दमदम नगरपालिका का है जहां ‘लेक टाउन रामनवमी पूजा समिति’ने पिछले 22 मार्च को ही पूजा की अनुमति के लिए आवेदन दिया था। लेकिन जब राज्य सरकार के दबाव में नगरपालिका ने पूजा की अनुमति नहीं दी तो याचिकाकर्ता ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। याचिका की सुनवाई करते हुए कलकत्ता हाईकोर्ट की सिंगल बेंच के जज न्यायमूर्ति हरीश टंडन ने नगरपालिका के रवैये पर नाखुशी जताते हुए पूजा शुरू करने की अनुमति देने का आदेश दिया।


मुहर्रम के चलते दुर्गा विसर्जन पर लगाई थी रोक
पिछले शारदीय नवरात्रि की बात है। पंचांग के अनुसार मां दुर्गा की प्रतिमाओं के विसर्जन के लिए तय समय पर रोक लगाकर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इसलिए उसकी समय-सीमा तय कर दी ताकि उसके अगले दिन मुहर्रम का जुलूस निकालने में कोई दिक्कत न हो। बंगाल के इतिहास में इससे बड़ा काला दिन क्या हो सकता है, क्योंकि दुर्गा पूजा बंगाल की अस्मिता से जुड़ा है, इसमें राज्य की पहचान और सदियों की संस्कृति छिपी है। हैरानी की बात तो ये है कि मुख्यमंत्री ने अपने तुष्टिकरण वाले फैसले का ये कहकर बचाव किया कि वो तो सांप्रदायिक सौहार्द के लिए ऐसा करती हैं।
लेकिन कलकत्ता हाईकोर्ट ने उसबार भी राज्य की मुख्यमंत्री के चेहरे पर से कथित धर्मनिर्पेक्षता का नकाब हटा दिया और जमकर फटकार लगाई थी। जस्टिस दीपांकर दत्‍ता की सिंगल बेंच ने अपने आदेश में कहा था, “राज्‍य सरकार का यह फैसला, साफ दिख रहा है कि बहुसंख्‍यकों की कीमत पर अल्‍पसंख्‍यक वर्ग को खुश करने और पुचकारने वाला है।” कोर्ट ने यहां तक कहा कि, “प्रशासन यह ध्‍यान रख पाने में नाकाम रहा कि इस्‍लाम को मानने वालों के लिए भी मुहर्रम सबसे महत्‍वपूर्ण त्‍योहार नहीं है। राज्‍य सरकार ने लापरवाही से एक समुदाय के प्रति भेदभाव किया है ऐसा करके उन्‍होंने मां दुर्गा की पूजा करने वाले लोगों के संवैधानिक अधिकारों पर अतिक्रमण किया।”

मकर संक्रांति की सभा में डाला था अड़ंगा
इसी साल 14 जनवरी को मकर संक्रांति के अवसर पर कोलकाता के ब्रिगेड परेड ग्राउंड में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने एक रैली आयोजित की थी। लेकिन सारे नियमों और औपचारिकताओं को पूरा करने के बाद भी राज्य की सरकार के दबाव में कोलकाता पुलिस इस रैली के लिए अनुमति नहीं दे रही थी। इस रैली को स्वयं राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सर संघचालक मोहन जी भागवत को संबोधित करना था। लेकिन ममता सरकार को लग रहा था कि अगर रैली के लिए अनुमति दे दी तो उनका मुस्लिम वोट बैंक बिदक जाएगा। यही वजह है कि उसने सारी कानूनी और संवैधानिक मर्यादाओं को ताक पर रखकर रैली की अनुमति देने से साफ मना कर दिया। ममता बनर्जी सरकार के इस तानाशाही रवैए के खिलाफ कलकत्ता हाईकोर्ट में अपील दायर की गई और वहां से आदेश मिलने के बाद ही रैली संपन्न हो सकी।

हिंदुओं को क्यों निशाना बना रही हैं ममता ?
तमाम घटनाओं को देखने के बाद सवाल उठना स्वभाविक है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री की सोच किसी मुस्लिम राष्ट्र के शासक की सोच की तरह क्यों होती जा रही है? क्योंकि भारत का संविधान सबको अपनी मान्यताओं के अनुसार पूजा और उपासना की स्वतंत्रता देता है, फिर पश्चिम बंगाल की सरकार जानबूझकर सिर्फ हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को ही क्यों आहत करती है ? मोहतरमा ममता बनर्जी क्या देश विरोधी ताकतों के इशारे पर ऐसे देश तोड़ने वाले हथकंडे अपना रही हैं ? राज्य में बेतहाशा बढ़ती मुस्लिम जनसंख्या और टीएमसी सरकार की हिंदू विरोधी सोच के बीच
कौन सी खिचड़ी पक रही है?

 

बंगाल का भयावह जनसंख्या समीकरण

  • 1947 में हिंदुस्तान के विभाजन के समय, बांग्ला बोलने वाले मुस्लिमों में कुछ भारत के हिस्से में रह गए और बाकी आज के बांग्लादेश के हिस्से में आए।
  • 1947 में पश्चिम बंगाल में 12 प्रतिशत मुस्लिम जनसंख्या थी।
  • अभी राज्य में मुस्लिमों की संख्या बढ़कर 27 प्रतिशत के पार पहुंच गई है।
  • 1947 में आज के बांग्लादेश में 27 प्रतिशत हिंदू थे।
  • आज बांग्लादेश में हिंदुओं की जनसंख्या घटकर 8 प्रतिशत रह गई है।

पश्चिम बंगाल बना ‘देशद्रोहियों’ का अड्डा ?
हाल के वर्षों में कई ऐसी घटनाएं हुई हैं, जिसमें देखा गया है कि पश्चिम बंगाल में भारत विरोधी ताकतें बहुत तेजी से सक्रिय हैं। ऐसा नहीं है कि राज्य सरकार को इन राष्ट्रविरोधी गतिविधियों की भनक नहीं है। वो सबकुछ जानते-समझते हुए भी सच्चाई से आंखें मूंदे हुए है। शायद वो सोच  रही है कि कट्टरपंथी ताकतों पर अगर शिकंजा कसा गया तो उनके हाथ से उनका मुस्लिम वोट बैंक खिसक जाएगा। आंकड़े भी बताते हैं कि राज्य में हिंदुओं की जनसंख्या घटती जा रही है, जबकि मुस्लिमों की जनसंख्या विस्फोटक रूप से बढ़ती जा रही है। आजतक की एक रिपोर्ट के अनुसार पश्चिम बंगाल धीरे-धीरे जेहादियों का अड्डा बनता जा रहा है, जो देश की एकता और अखंडता के लिए बहुत बड़ी चुनौती है।

तुष्टिकरण के लिए तारिक फतेह का सेमिनार रद्द कर दिया
पिछले 7 जनवरी को ‘द सागा ऑफ बलूचिस्तान’विषय पर कोलकाता में सेमिनार आयोजित किया गया था। इस सेमिनार में कई जाने-माने लोगों के साथ पाकिस्तानी मूल के लेखक, चिंतक और विश्लेषक तारिक फतेह को भी बुलाया गया था। लेकिन कट्टरपंथी मुल्ले नाराज न हो जाएं इसीलिए राज्य सरकार के दबाव में आयोजकों ने सेमिनार को ही रद्द कर दिया। दरअसल तारिक फतेह इस्लाम धर्म पर बेबाकी से अपनी राय बताते रहे हैं। लेकिन उनकी ये सच्चाई और सहृदयता कठमुल्लों को पचती नहीं है और वो उनके विरोध में फतबे जारी करते रहते हैं। ऐसे में अपने को
मुसलमान से बड़ा मुसलमान साबित करने पर तुलीं मुख्यमंत्री अपने राज्य में तारिक फतेह जैसे बेबाक मुसलमान को अपने विचार की अभिव्यक्ति की अनुमति कैसे दे सकती हैं। ये बात अलग है कि जब यही अभिव्यक्ति की आजादी का नारा देश विरोधी ताकतें उठाती हैं तो दीदी का ममतामयी दिल पसीजने लगता है। लेकिन कोई कठमुल्लों पर सवाल उठाए ,इस बात को वो कैसे हजम कर सकती हैं।

तसलीमा नसरीन के मामले में दोहरा चरित्र
हिंदू विरोध की राजनीति करने वाली ममता बनर्जी खुद को धर्मनिरपेक्ष गैंग की अगुवा साबित करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ती हैं। लेकिन उनकी इस छद्म धर्मनिरपेक्षता की पोल-पट्टी खुद मुस्लिम चिंतक और समाज सुधारक ही खोलते रहे हैं। बांग्लादेशी लेखिका और समाज सुधारक तसलीमा नसरीन ने अपने साथ पश्चिम बंगाल में अपनाए जाते रहे दोहरे मापदंडों पर कई बार गंभीर सवाल खड़े किए हैं। इस्लाम में सुधार की आवाज उठाने के चलते पश्चिम बंगाल के कुछ कठमुल्ले उनकी जान लेने तक का फतवा जारी कर चुके हैं, लेकिन ऐसे मामलों में छद्म धर्मनिरपेक्षा के किसी भी सदस्य की तरह ममता भी चुप्पी साधे रखने में ही भलाई समझती हैं। उस समय सच के लिए आवाज बुलंद करने वाली एक महिला चिंतक के बचाव में दो शब्द बोलने तक की हिम्मत वो नहीं जुटा पातीं। क्योंकि उन्हें पता है कि जो तसलीमा नसरीन के सिर पर इनाम की घोषणा करते हैं, उन्हें खुश रखकर ही तो वो सत्ता में बनी रह सकती हैं। उनकी धर्मनिरपेक्षता तो सिर्फ हिंदुओं के अपमान तक सीमित रह गई है, शायद उन्हें लगता है कि उनकी सियासत मुस्लिमों के प्रति उनकी राजनीतिक दीवानगी पर ही टिकी रह सकती है।

Leave a Reply