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पश्चिम बंगाल में हर दिन होता है संविधान और सिस्टम से खिलवाड़

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असम में NRC ड्राफ्ट के सामने आने के बाद ममता बनर्जी के दो बयान देश की राजनीति और आम लोगों को आईना दिखाने वाले हैं। पहला ये कि ”बांग्लादेशी घुसपैठियों को देश से निकालने की कोई कोशिश होगी तो ‘गृह युद्ध’ हो जाएगा।” दूसरा यह कि ”भाजपा को ‘फिनिश’ कर देंगे।” ममता के इन दोनों बयानों से साफ है कि वह देश के संविधान और सिस्टम में विश्वास नहीं रखतीं और खुद को ‘सर्वशक्तिमान’ समझ रही हैं।

ममता ने संविधान और सिस्टम को तब भी ठेंगा दिखाया जब बीते 17 जुलाई को मेदनीपुर में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रैली की थी।  राज्य सरकार ने ‘ब्लू बुक’ फॉलो नहीं किया। पीएम की सुरक्षा के लिए SPG को संसाधन नहीं दिए गए और रैली स्थल से पांच किलोमीटर तक स्थानीय पुलिस की तैनाती नहीं की गई। रैली में टेंट टूटने की घटना में भी राज्य सरकार की लापरवाही सामने आई है।  11 अगस्त को भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की रैली की इजाजत नहीं देने का मामला भी ममता के ‘अक्खड़पन’ और उनके गिरे हुए राजनीतिक स्तर को ही दिखाता है।

गत चार जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने पंचायत चुनाव में 34 प्रतिशत उम्मीदवारों के निर्विरोध चुने जाने पर सवाल उठाया और टिप्पणी की कि बंगाल में निचले स्तर पर लोकतंत्र नहीं है। जाहिर है पश्चिम बंगाल में कानून का राज किसी भी मायने में नहीं है। राज्य में वही होता है, जो ममता बनर्जी चाहती हैं।

ममता ने बदले केंद्रीय योजनाओं के नाम

ममता सरकार ने ‘दीन दयाल उपाध्याय अंत्योदय योजना’ का नाम  ‘आनंदाधारा’, ‘स्वच्छ भारत अभियान’ का ‘मिशन निर्मल बांग्ला’, ‘दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना’ का ‘सबर घरे आलो’,‘राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन’ को ‘राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन’, ‘प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना’ को ‘बांग्लार ग्राम सड़क योजना’ और ‘प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना’ का नाम बदलकर ‘बांग्लार गृह प्रकल्प योजना’ कर दिया है।

ममता ने ‘सिस्टम’ की उड़ाई धज्जियां

  • NRC सत्यापन में सबसे बड़ी डिफॉल्टर
  • RERA कानून को लागू नहीं होने दिया
  • नदी जोड़ो परियोजना का किया विरोध
  • स्मार्ट सिटी मिशन से पीछे हटा बंगाल
  • लाल बत्ती विरोधी कानून का किया विरोध
  • हिंदुओं पर नबी दिवस मनाने का दबाव

पश्चिम बंगाल में क्या कानून का राज चलता है? यह आज एक बहुत बड़ा सवाल बन गया है। जिस तरह के हालात पश्चिम बंगाल में हैं, उससे से साफ जाहिर होता है कि वहां कानून नहीं बल्कि ममता बनर्जी का शासन चलता है। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की मर्जी के बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता, जो वह चाहती हैं राज्य में वही होता है।

30 प्रतिशत से ज्यादा सीटों पर हुआ था निर्विरोध निर्वाचन
पश्चिम बंगाल में मई के महीने में पंचायत के चुनाव हुए थे। इन चुनावों में जमकर धांधली और हिंसा के आरोप लगे थे। हैरत की बात यह है कि राज्य में ग्राम पंचायत, जिला परिषद और पंचायत समिति की 58,692 सीटों के लिए हुए चुनाव में 20,159 पर चुनाव लड़ा ही नहीं गया। 

फाइल

भाजपा, माकपा प्रत्याशियों को नहीं करने दिया था नामांकन
आपको बता दें कि पश्चिम बंगाल के पंचायत चुनाव में जिला परिषद में 24.61 प्रतिश्त, पंचायत समिति में 33.59 प्रतिशत और ग्राम पंचायत में 34.66 प्रतिशत सीटों पर निर्विरोध निर्वाचन हुआ था। जाहिर है कि पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनाव के दौरान जमकर हिंसा हुई थी। हालात इतने खराब थे की बड़ी संख्या में माकपा और भाजपा के प्रत्याशियों को नामांकन तक नहीं भरने दिया गया था।

पिछले दिनों की घटनाओं पर नजर डालें तो साफ हो जाएगा कि पश्चिम बंगाल में कानून का राज किसी भी मायने में नहीं है। इस राज्य में वही होता है, जो ममता बनर्जी चाहती हैं। उन्हीं के कहने पर पुलिस कार्रवाई करती है। विरोधियों की आवाज को दबाना ममता राज में आम बात है। डालते हैं एक नजर

ममता के बंगाल में खंभे पर लोकतंत्र… 
वामपंथ के कुशासन से मुक्ति के लिए पश्चिम बंगाल की जनता ने ममता बनर्जी को चुना था। मां, माटी और मानुष के नारे के बीच उम्मीद थी कि प्रदेश में लोकतंत्र को मजबूती मिलेगी, लेकिन प्रदेश के लोग आज ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। राजनीतिक हिंसा के क्षेत्र में ममता बनर्जी के शासन ने कम्युनिस्ट शासन की हिंसक विरासत को भी पीछे छोड़ दिया है। सबसे खाय यह कि जिस ‘लोकतंत्र खतरे में है’ गैंग को केंद्र सरकार और बीजेपी की राज्य सरकारों में हर रोज लोकतंत्र खतरे में दिखाई देता है, वो गैंग पश्चिम बंगाल पर एक भी शब्द बोलने को तैयार नहीं है।

01 जून को पश्चिम बंगाल के बलरामपुर में 32 साल के दुलाल कुमार को सिर्फ इसलिए मार दिया गया कि वह भारतीय जनता पार्टी से जुड़े हुए थे। इस कार्यकर्ता की हत्या की आशंका पश्चिम बंगाल बीजेपी के प्रभारी कैलाश विजय वर्गीय ने खुद एडीजी लॉ एंड ऑर्डर अनुज शर्मा से व्यक्त की थी। बावजूद इसके दुलाल की हत्या न सिर्फ पुलिस प्रशासन की नीयत पर सवाल खड़े कर रहा है बल्कि ममता राज में हर रोज हो रही लोकतंत्र की हत्या पर सत्ताधारी दल की सहमति की गवाही दे रहा है।

दरअसल पंचायत चुनाव के बाद पश्चिम बंगाल में भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्याओं का सिलसिला चल पड़ा है। मई महीने में ही 19 कार्यकर्ताओं की सरेआम हत्या कर दी गई। दो महीने में 24 कार्यकर्ताओं को अपनी जान गंवानी पड़ी है। विरोधियों न सिर्फ सरेआम मारा जा रहा है बल्कि मार कर लटका भी दिया जा रहा है। तालिबानी शासन शैली में किए जा रहे इस कृत्य के पीछे का उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ यही है कि पूरे प्रदेश में यह संदेश जाए कि बीजेपी को समर्थन किया तो यही हश्र होगा।

पहले भी ममता राज में पेड़ पर लटकाया गया था लोकतंत्र
29 मई को पुरुलिया के ही जंगल में 18 साल के त्रिलोचन महतो की हत्या कर शव को एक पेड़ से लटका दिया गया था। गौरतलब है कि दलित बिरादरी से आने वाले त्रिलोचन के पिता हरिराम महतो उर्फ पानो महतो भी भाजपा से जुड़े हैं, इसलिए उसने पश्चिम बंगाल के पंचायत चुनाव में जी-तोड़ मेहनत की थी। उसकी मेहनत के कारण बलरामपुर ब्लॉक की सभी सातों सीटों पर भाजपा को जीत मिली थी। जाहिर है यही सक्रियता उनके लिए जानलेवा साबित हुई और उन्हें सरेआम फांसी पर लटका दिया गया। त्रिलोचन ने जो टी-शर्ट पहनी थी, उसपर एक पोस्टर चिपका मिला जिसपर लिखा था कि बीजेपी के लिए काम करने वालों का यही अंजाम होगा।

भाजपा समर्थक महिला को निर्वस्त्र करने की कोशिश
बीते अप्रैल महीने में 24 परगना जिले में तृणमूल कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने भाजपा की महिला कार्यकर्ता की सरेआम पिटाई की। महिला प्रत्याशी पर उस समय हमला हुआ जब वह बारुईपुर एसडीओ ऑफिस में नामांकन दाखिल करने पहुंची। टीएमसी कार्यकर्ताओं ने महिला को सड़क पर पटक कर मारा और उसके साथ बदसलूकी की। उसे निर्वस्त्र तक करने की कोशिश की गई। हैरानी की बात है कि महिला कार्यकर्ता की मदद के लिए कोई आगे नहीं आया लोग वहां खड़े तमाशा देखते रहे।

लेफ्ट के दो पार्टी कार्यकर्ताओं को टीएमसी सपोर्टर्स ने जिंदा जलाया
पंचायत चुनाव के दौरान बंगाल के रायगंज में तैनात चुनाव अधिकारी राजकुमार रॉय की हत्या इसलिए कर दी गई कि उसने निष्पक्ष चुनाव करवाने की कोशिश की। इसी तरह उत्तर 24 परगना में पंचायत चुनाव के दौरान ही सीपीएम के एक कार्यकर्ता के घर में आग लगी दी गई। इसमें कार्यकर्ता और उसकी पत्नी इसमें जिंदा जल गई। सीपीएम ने आरोप लगया कि इसमें टीएमसी का हाथ है।

पंचायत चुनाव में ममता की पार्टी ने लोकतंत्र का किया था अपहरण
पश्चिम बंगाल के पंचायत चुनाव में टीएमसी ने बिना एक वोट डाले ही 34.2 प्रतिशत सीटें जीत लीं। ऐसा इसलिए हुआ कि इन सभी ग्रामीण सीटों पर टीएमसी यानि ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस की दहशत के सामने कोई दूसरी पार्टी उम्मीदवार ही नहीं खड़ा कर पाई। जाहिर है राजनीतिक प्रतिशोध में मारपीट, हत्या, बलात्कार का दूसरा नाम बन चुके बंगाल में दूसरी पार्टी का कोई उम्मीदवार चुनाव लड़ने का साहस ही नहीं जुटा सका। बीते दिनों सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा था कि पश्चिम बंगाल में जो रहा है वह लोकतांत्रिक मर्यादाओं के अनुकूल नहीं है।

 

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