Home पश्चिम बंगाल विशेष संवैधानिक व्यवस्थाओं से क्यों खेल रही हैं ममता बनर्जी ?

संवैधानिक व्यवस्थाओं से क्यों खेल रही हैं ममता बनर्जी ?

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पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की टकराव की प्रवृत्ति संविधान की मर्यादाओं को तार-तार कर रही है। विरोध के नाम पर वो किसी भी हद तक चली जाती हैं। भारतीय संविधान में केंद्र-राज्यों के संबंधों की विस्तार से व्याख्या की गई है। राज्यों और केंद्र को अलग-अलग अधिकार और शक्ति हासिल हैं। लेकिन मुख्यमंत्री बनर्जी को शायद ये नहीं पता कि व्यक्तिगत खुन्नस और शासन-व्यवस्था दो अलग-अलग चीजें हैं। अगर कोई राजनीतिक सत्ता आपको पसंद नहीं है, तो आप वैचारिक स्तर पर उसका विरोध कर सकती हैं। लेकिन जब आप एक मुख्यमंत्री के तौर पर राज्य की करोड़ों जनता का प्रतिनिधित्व करती हैं तब अपनी कुंठा को सार्वजनिक नहीं होने दें यही सबके लिए आवश्यक है। अपनी जिद के चलते संवैधानिक व्यवस्थाओं के अपमान का अधिकार किसी को नहीं है। लेकिन दीदी हैं कि मोदी विरोध के नाम पर सियासी तौर पर अंधराई हुई प्रतीत होती हैं। केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र से जुड़ा कोई मामला हो या कोई केंद्रीय परियोजना, पश्चिम बंगाल सरकार हर बात में अड़ंगा लगाने के लिए तैयार बैठी रहती है। ऐसा लगता है कि वो हर समय सियासी टकराव के मूड में है।

शाही इमाम को क्यों दी मनमानी की छूट ?
समाचार पत्र जनसत्ता ऑनलाइन के अनुसार कोलकाता की टीपू सुल्तान मस्जिद के शाही इमाम अभी भी कानून को ताक पर रखकर लाल बत्ती वाली गाड़ी में घूम रहे हैं। जब पत्रकारों ने इमाम से पूछा कि आप ऐसा क्यों कर रहे हैं, ये तो अब गैर-कानूनी है, तो उन्होंने जवाब दिया, ‘ममता बनर्जी बोली आप जला के रखें, खूब जलाएं, आप घूमते रहें, हम हैं।’ एक लोकतांत्रिक देश में एक राज्य की चुनी हुई मुख्यमंत्री की इस सोच पर सवाल उठना स्वभाविक है। सवाल ये भी उठता है कि क्या कोई राजनेता वोटों की राजनीति के लिए ऐसी हरकतें कैसे कर सकता है ?

लाल बत्ती पर मोदी सरकार ने लगाया है बैन
मोदी सरकार ने एक मई, 2017 से लाल बत्ती की गाड़ियों पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया है। सिर्फ इमरजेंसी वाहनों को आवश्यकतानुसार लाल-नीली बत्ती के इस्तेमाल का अधिकार दिया गया है। प्रधानमंत्री की पहल पर ये फैसला देश में 70 सालों से चले आ रहे वीआईपी कल्चर को खत्म करने की मकसद से लिया गया है। राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री तक को लाल बत्ती लगाने की अनुमति नहीं दी गई है। पूरे देश में मोदी सरकार के इस कदम की खूब सराहना हो रही है। लेकिन अपने आपको गरीबों की नेता बताने वाली ममता बनर्जी को ये जन-सम्मान वाला फैसला रास नहीं आ रहा है। जबकि उन्हें भलि-भांति पता है कि मोटर व्हिकल एक्ट के तहत इस तरह के नियमों में बदलाव करना केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है। लेकिन लगता है कि वो वीआईपी कल्चर के खात्मे की कोशिश को पचाने के लिए तैयार नहीं हैं।

ये एक मामला नहीं है। हाल के समय में पश्चिम बंगाल सरकार के कई कदम संदेह के दायरे में हैं। यूं लगता है कि वो पूरे भारत से अलग राह पर चलने की कोशिशों में जुट गया है। राजनीतिक विरोध अलग बात है, लेकिन जिस तरह के परिणाम देखने को मिल रहे हैं वो आने वाले समय के लिए बड़े खतरे के संकेत हो सकते हैं। 

केंद्रीय योजनाओं के नाम बदलने का खेल
देश के हर राज्य में केंद्रीय योजनाएं एक समान नामों से चल रही हैं। लेकिन, पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने उन सभी नामों को बदल दिया है। नाम बदलने के पीछे ममता का तर्क है कि इन सभी योजनाओं में राज्य भी 40 प्रतिशत खर्च वहन करता है, इसलिए उसे नाम बदलने का हक है। लेकिन असलियत में उन्हें लगता है कि योजनाओं में प्रधानमंत्री या केंद्रीय योजनाओं का नाम देखते ही जनता सच्चाई जान जाएगी। इसीलिए राज्य सरकार ने ‘दीन दयाल उपाध्याय अंत्योदय योजना’का नाम बदलकर ‘आनंदाधारा’, ‘स्वच्छ भारत अभियान’ का नाम बदलकर ‘मिशन निर्मल बांग्ला’, ‘दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना’ का ‘सबर घरे आलो’,‘राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन’ को ‘राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन’, ‘प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना’ को ‘बांग्लार ग्राम सड़क योजना’ और ‘प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना’ का नाम बदलकर ‘बांग्लार गृह प्रकल्प योजना’ कर दिया है।

‘स्मार्ट सिटी मिशन’ से पीछे हट गईं ममता
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जून 2015 में 100 स्मार्ट शहरों के विकास की योजना का शुभारंभ किया था। शुरुआत में पश्चिम बंगाल ने चार शहरों कोलकाता, विधान नगर, न्यू टाउन और हल्दिया को इस योजना के लिए नामांकित किया। लेकिन, बाद में न्यूटाउन जो 100 शहरों में से एक शहर चुना गया था उसे ममता बनर्जी ने स्मार्ट सिटी योजना से हटा लिया। इसके पीछे तर्क दिया कि ऐसी योजनाऐं असमान विकास को बढ़ावा देंगी। इस योजना की जगह मुख्यमंत्री ने राज्य में ‘हरित व स्मार्ट सिटी’ विकसित करने की नई योजना शुरु कर दी। इस के तहत वो 10 शहरों के विकास का दावा कर रही हैं।

RERA कानून भी नहीं बनने दिया
एक मई से पूरी तरह से लागू करने के लिए RERA कानून के तहत नियमों को नहीं बनाने वाले कुछ राज्यों में पश्चिम बंगाल भी शामिल है। मई 2016 में संसद ने घर खरीदने वालों के अधिकारों को सुरक्षित रखने के लिए इस कानून को पारित किया था। तब राज्यों को केन्द्र के कानून के आधार पर नियमों को अधिसूचित करने के लिए 27 नवंबर 2016 तक का समय दिया गया था। लेकिन मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस कानून के तहत नियमों को अधिसूचित करके घर खरीदने वाले सामान्य लोगों को धोखेबाज बिल्डरों और कंपनियों से बचाने के लिए नियम नहीं बनाया। इतना ही नहीं उन्होंने शहरी विकास मंत्रालय की जनवरी 17 व मार्च 27 की बैठकों में भी हिस्सा नहीं लिया। ये कानून विशेष रूप से शहरी मध्यम वर्ग के हितों की रक्षा के हिसाब से बनाया गया है। लेकिन ममता बनर्जी को लगता है कि उनके यहां अगर लोकहितकारी ये कानून बन गया तो मध्यम वर्ग प्रधानमंत्री मोदी की प्रशंसा करने लगेगा।

नदियों को जोड़ने की परियोजना के लिए तैयार नहीं
केंद्र की मोदी की सरकार ‘सबका साथ, सबका विकास’ के ध्येय को पूरा करने के उद्देश्य से मानस-संकोष-तिस्ता-गंगा नदियों को जोड़ने की परियोजना शुरू करना चाहती है। इससे असम, पश्चिम बंगाल और बिहार में बाढ़ की समस्या पर नियंत्रण पाया जा सकेगा और पेयजल और सिंचाई के लिए पानी की व्यवस्था भी हो सकेगा। लेकिन ममता बनर्जी की पश्चिम बंगाल की सरकार इस योजना में शामिल होने के लिए तैयार नहीं है। केंद्रीय जल संशाधन मंत्री उमा भारती ने ममता बनर्जी को इस योजना में शामिल होने के लिए कई पत्र लिखे, लेकिन उन्होंने राज्य को इससे होने वाले नुकसान का हवाला देते हुए इसमें शामिल होने से मना कर दिया। लेकिन, मोदी सरकार अब भी इस योजना पर आगे बढ़ रही है । ममता को लगता है कि अगर ये परियोजना शुरू हो गई तो प्रधानमंत्री करोड़ों गरीबों और निम्न वर्ग के लोगों के दिलों में राज करने लगेंगे, इसी खुन्नस में वो जन-कल्याण के इस काम में अड़ंगा लगा रही हैं।

संयुक्त इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा (JEE)का विरोध
देश के सभी इंजीनियरिंग कालेजों में प्रवेश के लिए एकल संयुक्त परीक्षा के मोदी सरकार की पहल का ममता बनर्जी ने जमकर विरोध किया। पश्चिम बंगाल के शिक्षा मंत्री पार्था चटर्जी ने केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को पत्र लिखकर कहा, कि राज्य की इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा को रद्द करके एकल संयुक्त परीक्षा राज्यों के अधिकार क्षेत्र पर केंद्र का अतिक्रमण है। लेकिन सच्चाई है कि ममता को लगता है कि इस पहल से पीएम मोदी करोड़ों युवाओं के दिल-दिमाग पर छा जाएंगे, इसीलिए वो इस नेक काम में भी अड़ंगा लगाने से नहीं रुकीं।

स्वच्छ भारत सर्वेक्षण से परेशान ममता 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में स्वच्छता अभियान के प्रति और जागरुकता पैदा करने और उसमें लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए एक स्वच्छता सर्वेक्षण करवाने का निर्णय किया। केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय ने देश के 500 शहरों में ये सर्वेक्षण कराने का फैसला लिया, लेकिन ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल के 60 शहरों को इस सर्वेक्षण से बाहर कर लिया। दरअसल ममता, जनता के मन में मोदी के लिए उत्पन्न होने वाली प्रतिबद्धता से घबरा गईं थीं।

ममता बनर्जी को लगता है कि वो अपनी नकारात्मक राजनीति से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विकासपुरुष वाली छवि से जनता को दूर करके रख लेंगी। शायद वो पश्चिम बंगाल में भाजपा के प्रति बढ़ रहे अपार जनसमर्थन से अंदर ही अंदर हिल उठी हैं, उन्हें पता चल चुका है कि उनके किले का आधार उखड़ चुका है, ईमानदार राजनीतिज्ञ की उनकी छवि दागदार हो चुकी है। यही वजह है कि वो राज्य की भोली-भाली जनता में हो रही जागृति को रोकने पर तुली हुई हैं। लेकिन इतिहास गवाह है कि जन-मानस के साथ जब भी ऐसा कुकृत्य किया गया है, वह ऐसा निर्णय सुनाती है कि कोई नामलेवा भी नहीं बच जाता।


आपको ये भी अहसास होना चाहिए कि अगर कोई राजनेता अपनी सनक के चलते संविधान की व्यवस्थाओं का उल्लंघन करता है तो संविधान में ही उसके उपाय भी दिए गए हैं। लेकिन शायद राज्य की सीएम को लगता है कि सियासी नौटंकीबाजी में उन्हें कोई पछाड़ नहीं सकता। अगर संवैधानिक व्यवस्थाओं के ध्वस्त होने के चलते किसी तरह की कार्रवाई होती है, तो हम छाती पीट-पीट कर लोकतंत्र की दुहाई देते हुए जनता को बरगला सकते हैं। लेकिन मुख्यमंत्री को ये बात पता होना चाहिए, कि राजनीतिक नौटंकीबाजी के दिन अब लद चुके हैं। देश की सवा सौ करोड़ जनता न्यू इंडिया का सपना लेकर के जी रही है। उसे देश के भले-बुरे की बहुत अधिक चिंता है। न्यू इंडिया की युवाशक्ति में वो समझ विकसित हो चुकी है जो ड्रामेबाज नेताओं और राजनीतिक पार्टियों को अब सबक सिखाने के लिए तैयार बैठी है। अगर नकारात्मक सोच वाले हमारे नेताओं और सियादी दलों को ये बात समझ में आ गई तो ठीक है, नहीं तो जनता अपना काम करने के लिए तो तैयार है ही।

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