Home विचार खिचड़ी से खादी तक मोदी सरकार के प्रयास

खिचड़ी से खादी तक मोदी सरकार के प्रयास

SHARE

वर्ल्ड फूड इंडिया- 2017 के उद्घाटन सत्र के मंच से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक बार फिर विश्व को यह संदेश दिया है कि इस देश के सामान्य से खान-पान तक में इतनी विशिष्ठता है कि उसके लाभ से न केवल देश को, बल्कि संपूर्ण विश्व को लाभ पहुंच सकता है। भारत का खान-पान, रहन-सहन, संस्कृति, कलाएं, पुरातन धरोहरें, ये सभी इस देश की अमूल्य निधियां हैं। इस देश के कण-कण में बसी विशेषता के महत्त्व को समझना और समझाना उनकी सरकार की प्रमुख नीतियों में सम्मिलित है।

इस विषय में मोदी सरकार द्वारा किए गए प्रयासों को जानने के लिए उनके द्वारा उठाए गए कदमों पर एक नजर डालना प्रासंगिक होगा।

पूरे देश का नियमित प्रिय भोजन खिचड़ी

वर्ल्ड फूड इंडिया- 2017 के इस कार्यक्रम का उद्देश्य इतने विशाल रूप में खिचड़ी की विशेषताओं, इसकी पौष्टिकता और इसके गुणों को, पूरे विश्व के सामने लाना है। साथ ही भारत के सबसे लोकप्रिय एवं रुचिकर भोजन के तौर पर इसे ‘गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड’ में स्थान दिलाए जाने का प्रयास करना है। उत्तर से लेकर दक्षिण तक, पूरे भारत में खिचड़ी एक नियमित भोजन के रूप में जानी जाती है। पंजाब की चना दाल खिचड़ी से लेकर दक्षिण के पोंगल तक खिचड़ी का अलग स्वाद और अलग महत्त्व है। दाल और चावल के सम्मिश्रण से बनने वाले इस भोजन को और अधिक पौष्टिक व स्वादिष्ट बनाने के लिए इसमें कई प्रकार की सब्जियां और मसाले डाले जाते हैं। यह इतना महत्वपूर्ण भोजन है कि उत्तर भारत में ‘मकर संक्राति’ के पर्व को ‘खिचड़ी’ के नाम से भी जाना जाता है। इस पर्व पर इसे देवताओं के प्रिय भोजन के रूप में महत्त्व मिलता है। दक्षिण में पोंगल के नाम से मनाए जाने वाले पर्व का मुख्य भोजन भी खिचड़ी है, जिसे वहां ‘पोंगल’ ही कहा जाता है। सूर्य और इंद्र को देवों को यह समर्पित की जाती है। यहां तक कि खिचड़ी के महत्त्व का वर्णन पुरातन भारतीय आयुर्वेद पर आधारित ग्रंथ ‘चरक संहिता’ तक में मिलता है। इस ग्रंथ में इसे अत्यंत पौष्टिक और स्वास्थ्यकारी भोजन के रूप में मान्यता दी गई है।

अत: अपनी इस पुरातन निधि को सहेजे जाने और वैश्विक स्तर पर गौरव दिलाने के लिए जब वर्ल्ड फूड इंडिया के रूप में प्रयास किया गया तो प्रधानमंत्री मोदी व्यक्तिगत रूप से स्वयं इस अवसर से जुड़ गए। यदि इससे आगे बढ़ें तो मोदी सरकार ने ऐसे कई और प्रयास भी किए हैं, जो कि प्राचीन धरोहरों को सहेजने और संरक्षित करने की दिशा में महत्वपूर्ण हैं।

दुनिया तक पहुंचाया योग का संदेश

ऐसा नहीं है कि मोदी सरकार के सत्ता में आने से पहले संसार में कोई योग के महत्त्व के बारे में जानता ही नहीं था। योग भारत की अमूल्य निधि है और पूरा विश्व इससे परिचित है, परंतु किसी चीज के बारे में जानना और उसे साक्षात अनुभव करना दो अलग बातें हैं। योग केवल आसन-ध्यान भर नहीं है, बल्कि एक संपूर्ण जीवनशैली है। मोदी सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में पूरे विश्व का आह्वान किया कि सभी भारत की इस चिर-पुरातन निधि से जुड़ें और आरोग्य बनें। पहली बार यह प्रयास मोदी सरकार द्वारा जून, 2015 में किया गया। इस आह्वान के परिणामस्वरूप पूरा विश्व इस अभियान से जुड़ गया। तब से अब तक निरंतर यह आयोजन किया जा रहा है, जिसका लाभ उत्साहजनक रूप से देखने को मिल रहा है। विदेशियों में योग अपनाने को लेकर भारी उत्साह है, क्योंकि कुछ दिनों के निरंतर योगाभ्यास से ही उन्हें आश्यर्यजनक परिणान देखने को मिले।

ध्यान पर तो हाल ही में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में हुए शोध के आधार पर यह बात सशक्त रूप में कही गई है कि योग-ध्यान आदि के द्वारा तनाव जैसे विकारों का उपचार सहज ही संभव है।

कला-संस्कृति का संरक्षण

मोदी सरकार ने अपने अस्तित्व में आने के साथ ही भारतीय सांस्कृतिक धरोहरों एवं निधियों को सहेजने का कार्य प्रारंभ कर दिया था। इसके अंतर्गत 42 स्वतंत्र इकाइयों में परिवर्तन को नियंत्रित करने और उसकी कार्यप्रणाली में सुधार लाने के लिए उन्हें संस्कृति मंत्रालय के अधीन लाने का प्रयास किया गया। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, भारतीय संग्रहालय, कला क्षेत्र, नेहरू स्मारक संग्रहालय और पुस्तकालय, भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण और राष्ट्रीय अभिलेखागार आदि इस समन्वयन के अंतर्गत आते हैं। इसके अतिरिक्त साहित्य की शाखाओं का संचालन करने वाली इकाई ललित कला एवं संगीत नाटक अकादमी भी संस्कृति मंत्रालय की इस संरक्षण-योजना का भाग के रूप में ही चिन्हित की गई थीं। यह भी उल्लेखनीय है कि अनेक ऐसी अनमोल धरोहरें जो पूर्व सरकारों की उपेक्षापूर्ण नीतियों के चलते देश से बाहर जा चुकी थीं, वे भी मोदी सरकार के प्रयासों से देश में वापस लाई जा सकीं।

खादी का उत्थान

प्रधानमंत्री मोदी जब देश के कण-कण के विकास की बात करते हैं तो उनकी दृष्टि में उस वर्ग का संरक्षण भी जुड़ा होता है, जो बरसों की उपेक्षा के कारण सरकारी विकास योजनाओं में रहा तो जरूर, मगर केवल कागजों तक ही। कितने आश्चर्य की बात है कि जिन कुटीर उद्योगों से बने हस्तशिल्प को हमेशा ‘एलिट क्लास’ द्वारा अपनाया-स्वीकारा गया, उसी वर्ग की सुध पुरातन सरकारों द्वारा सिरे से नकारी जाती रही। खादी एक ऐसा वस्त्र है, जो आज भी ग्रामीण भारत को चेहरा है। प्रधानमंत्री मोदी ने इस वर्ग के उत्थान का लक्ष्य लेते हुए सबसे पहले तो अपने ही निजी जीवन से जोड़ा। उसके बाद ‘मन की बात’ कार्यक्रम के द्वारा पूरे देश का आह्वान किया कि सभी अपने जीवन से खादी को अवश्य जोड़ें, चाहे वह एक रूमाल के रूप में ही क्यों न हो। परिणाम यह रहा कि देश में खादी की बिक्री रिकॉर्ड स्तर पर पहुंची। देश के स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी खादी पहले खादी फॉर नेशन से खादी फॉर फैशन बनी। अब प्रधानमंत्री मोदी ने खादी फॉर ट्रांसफॉर्मेशन से इसे नया स्वरूप दे दिया। प्रधानमंत्री का यह सपना है कि जल्दी ही खादी इतनी ऊंचाइयों को छुए कि यह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक बड़ा भारतीय ब्रांड बन जाए।

Leave a Reply