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मोदी के मानववादी विकास से धराशायी हुआ कांग्रेस और लेफ्ट का नेहरूवादी समाजवाद

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2019 का लोकसभा चुनाव पहला ऐसा चुनाव रहा जिसमें कभी यह सवाल नहीं उठा कि देश का नेतृत्व कौन करेगा, बल्कि हमेशा यह सवाल उठता रहा कि विपक्ष का नेतृत्व कौन करेगा। और ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास पंडित दीनदयाल उपाध्याय द्वारा प्रतिपादित एकात्म मानववाद के आधार पर मानव का विकास था वहीं दूसरी तरफ लेफ्ट का साम्यवाद, कांग्रेस का नेहरूवादी समाजवाद जिसे अभी तक असफल कहा जा सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने पांच साल के कार्यकाल के दौरान जिस प्रकार समाज के अंतिम छोड़ पर खड़े अंतिम व्यक्ति को केंद्र मानकर बिना किसी भेदभाव के उनके विकास के लिए जो काम किया वही उनकी जीत का आधार बना। उन्होंने देश में समावेशी राजनीति और विकास पर ध्यान केंद्रित किया। इसी कारण देश में वैचारिक आधार पर लेफ्ट का साम्यवाद और कांग्रेस का नेहरूवादी समाजवाद मोदी के मानववाद विकास से धराशायी हो गया।

देश से वामपंथ लगभग खत्म

देश में पहली बार ऐसा हुआ है कि वामपंथ सिर्फ हाशिए पर नहीं गया बल्कि लगभग खत्म सा हो गया। आजादी के बाद से सन 1991 तक भारतीय राजनीति और सत्ता में उसकी अहम भागीदारी रही है। केरल और पश्चिम बंगाल में तो उसकी रिकॉर्ड समय तक सत्ता रही है। उसकी विचारधारा भी पूरे देश में स्वीकार्य थी। भाजपा को छोड़ पार्टी जो कोई भी हो लेकिन उनके नेताओं की पृष्ठभूमि वामपंथी हुआ करती थी। 15 साल पहले तक लोकसभा में वामपंथियों के सांसदों की संख्या 60 होती थी। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उद्भव के साथ ही उनकी संख्या घटती चली गई और उनकी नौबत यहां तक आ गई है कि 2019 लोकसभा चुनाव में उनकी सांसदों की संख्या एक बची है। वामपंथ की यह दुर्गति पीएम मोदी के मानव विकास से ही संभव हो पाई है।

खात्मे की ओर कांग्रेस

2019 के लोकसभा चुनाव में 2014 की तुलना में भले ही कांग्रेस को 8 सीटें अधिक मिली हो, लेकिन जिस प्रकार राज्य दर राज्य उसकी अनुपस्थिति बढ़ती जा रही है, इससे साफ है कि कांग्रेस अब खात्मे की ओर अग्रसर है। इस चुनाव में जहां कांग्रेस का 18 राज्यों में खाता भी नहीं खुला है तो कई राज्य ऐसे हैं जहां वह सिर्फ एक-आध सीटों पर सिमट गई हैं। केरल, पंजाब और असम को छोड़ दें तो कांग्रेस जिस किसी राज्य में अच्छा प्रदर्शन किया भी तो वह दूसरे के बल पर किया है। ऐसे में भाजपा का कांग्रेस मुक्त भारत के सपने को स्वयं कांग्रेस साकार करने की ओर अग्रसर है। इस चुनाव में कांग्रेस के प्रदर्शन को देखें तो कांग्रेस सिर्फ एक राज्य केरल में सिंगल लार्जेस्ट पार्टी के रूप में उभरी है। कांग्रेस की यह सांख्यिकी हार नहीं है बल्कि विचारधारा के रूप में हार है। कांग्रेस ने अपनी सरकार नेहरूवादी समाजवाद के तौर पर चलाया है। जिसका समर्थन बहुत हद तक वामपंथी भी करते रहे हैं। लेकिन आजादी के 70 सालों बाद भी देश के नागरिकों को मूलभूत सुविधा से रहना उस सत्ता व्यवस्था की असफलता ही कही जाएगी जिसके सिद्धांत के आधार पर शासन किया गया।

मोदी से घृणा करने वाले डूबे

2019 का लोकसभा चुनाव एक प्रकार से मोदी वर्सेज ऑल के रूप में लड़ा गया। लेकिन विपक्षी धरा में दो ग्रुप थे। एक था जो मोदी से घृणा को अपना औजार बनाया जबकि एक ग्रुप मोदी विरोध को अपना राजनीतिक हथियार बनाया। मोदी से घृणा करने वाले समूह में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, उत्तर प्रदेश के मायावती और अखिलेश यादव, आंध्र प्रदेश के चंद्रबाबू नायडू, महाराष्ट्र के शरद पवार, पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी, और कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी और उनकी बहन प्रियंका गांधी शामिल थे। इस चुनाव में इन लोगों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ही अपना मुद्दा बना लिया। चुनाव प्रचार के दौरान अपनी बात कम लेकिन मोदी के प्रति घृणा फैलाने की बात ज्यादा करने लगे। आज परिणाम सब के सामने है। मोदी को तो ऐतिहासिक जीत मिली लेकिन उनके प्रति घृणा फैलाने वाले और उन्हें गाली देने वाले खुद ध्वस्त हो गए।

मोदी का विरोध करने वाले बचे

कहा जाता है कि राजनीति में विरोध के लिए हमेशा जगह रहती है। भाजपा इसका सबसे अच्छा उदाहरण है। मोदी के नेतृत्व जिस भाजपा को ऐतिहासिक जीत मिली है उसकी शुरुआत विरोध की राजनीति से हुई। लेकिन उन्होंने अपने विरोध को कभी घृणा में नहीं बदलने दिया। उसी प्रकार जिसने इस चुनाव में मोदी का राजनीतिक रूप से विरोध किया उसकी साख भी बची रही और सत्ता भी। वह चाहे ओड़िशा के नवीन पटनायक हो या फिर आंध्र प्रदेश के जगन मोहन रेड्डा हों, तेलंगाना के केसीआर हों या तमिलनाडु के स्टालिन हों, जम्मू-कश्मीर के ओमर अब्दुलाह हों या फिर पंजाब के कैप्टन अमरिंदर सिंह हों। ये लोग भी भाजपा के खिलाफ ही चुनाव लड़े लेकिन सभी ने अपने-अपने प्रदेशों में अच्छा प्रदर्शन किया है। मोदी से उनका राजनीतिक विरोध घृणा में कभी नहीं बदला। परिणाम सब के सामने है। सभी ने अपने राज्यों में अच्छा प्रदर्शन किया है।

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