Home नरेंद्र मोदी विशेष कश्मीर पर पीएम मोदी की नीतियों को अंतरराष्ट्रीय समुदाय का साथ

कश्मीर पर पीएम मोदी की नीतियों को अंतरराष्ट्रीय समुदाय का साथ

कश्मीर पर पीएम मोदी की सफल नीति का सकारात्मक असर पर रिपोर्ट

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‘इतिहास की गलतियां भविष्य में भारी पड़ती हैं।’ इस कथन की पुष्टि भारत के जम्मू-कश्मीर राज्य के संदर्भ में बिल्कुल सटीक है। भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने ऐसी तीन गलतियां की जो भारत के लिए नासूर बन गईं। पहला कश्मीर के मामले को संयुक्त राष्ट्र में ले जाना। दूसरा 1948 में भारत-पाक के युद्ध के बीच अचानक सीजफायर की घोषणा और तीसरा आर्टिकल 370 के जरिये कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देना। इन तीनों ही वजहों से कश्मीर समस्या भारत की परेशानी का सबब बना हुआ है। हालांकि अब दौर बदला है… और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में कश्मीर समस्या समाधान के रास्ते पर है।

बुरहान को ‘हीरो’ बनाने की कवायद फेल
2016 के 7 जुलाई को जब कश्मीर में आतंक का रोल मॉडल बन चुका बुरहान वानी सेना के हाथों मारा गया, तो कश्मीर के अलगावादियों ने इसे खूब भुनाया। पाकिस्तान की सरपरस्ती में बुरहान को कश्मीर के युवाओं का आदर्श स्थापित करने की भी कोशिश की गई। इसी कारण हिजबुल कमांडर वानी की बरसी पर विश्व के कई हिस्सों में प्रदर्शन की योजना बनाई गई, लेकिन पीएम मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार के प्रयासों से ये योजना फेल हो गई। सड़कों पर थोड़े बहुत प्रदर्शनकारी आए लेकिन भारत विरोधी प्रदर्शन इस बार कुछ फीका रहा।

हुर्रियत की अपील का अब कोई असर नहीं
पीएम मोदी की पॉलिसी और एक्शन से साबित हो गया है कि कश्मीर में आतंक की आग के पीछे का चेहरा अलगाववादी हैं। ऐसे में अलागववादियों के प्रति कश्मीर के लोगों का नजरिया भी बदला है। बुरहान वानी की पहली बरसी के मौके पर अलगाववादी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस ने विरोध प्रदर्शन का एक कैलेंडर जारी किया था, जिसमें प्रवासी कश्मीरियों से कश्मीर के मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र और दूसरी अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों तक पहुंचाने की अपील की गई थी। लेकिन हुर्रियत की इस अपील का असर कहीं देखने को नहीं मिला। PoK में तो उल्टा पाकिस्तान के विरुद्ध ही प्रदर्शन हुए। भारत के विरोध के बाद ब्रिटेन के बर्मिंघम में भी रैली के लिए जगह नहीं मिली।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कठघरे में घिरा पाकिस्तान
एक समय कांग्रेस के शासनकाल का था, जब कश्मीर में अलगाववाद का मुद्दा एक अंतरराष्ट्रीय मुद्दा माना जाता था। कांग्रेस की नीतियों में खामियों की वजह से कश्मीर के भारत में विलय के बाद से ही कश्मीर की आवाज को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर समर्थन मिलता रहा है। 1990 के दशक में इसके समर्थन में कई देश सामने आ गए थे। पाकिस्तान इस मसले को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठाने में अकसर कामयाब हो रहा था। अरब देश भी कश्मीरियों के हक में बयान दिया करते थे। लेकिन पीएम मोदी की पॉलिसी ने हालात बदल दिये हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अब इस मसले को कोई खास तवज्जो नहीं मिल रही। इतना ही नहीं उल्टा पाकिस्तान ही कठघरे में खड़ा दिखता है।

मोदी की नीति से गिरी पाकिस्तान की साख
प्रधानमंत्री मोदी की आक्रामक विदेश नीति के आगे पाकिस्तान पानी मांग रहा है। आतंकवाद के मुद्दे पर अलग-थलग पड़ चुका पाकिस्तान अपने पाप को छिपाने में भी कामयाब नहीं हो पा रहा है। अब उसकी साख इतनी गिर चुकी है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसकी कोई पूछ नहीं रही। चीन और इक्के-दुक्के मुस्लिम देशों को छोड़कर पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय समुदाय से समर्थन नहीं मिल रहा है। ऐसे में पाकिस्तान कश्मीर के मुद्दे को आवाज दे पाने में अब नाकाम साबित हो गया है।

सार्क देशों में अलग-थलग पड़ गया पाकिस्तान
पाकिस्तान एक्सपोज हो चुका है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय अब यह मानने लगा है कि जो देश खुद आतंकवाद का जनक है वह कश्मीर की बात कैसे कर सकता है। इस बीच पीएम मोदी की नीतियों से आर्थिक-राजनीतिक स्तर पर भी सार्क देशों से अलग-थलग पड़ गया है। भारत ने सार्क सेटेलाइट के जरिये पाकिस्तान को छोड़ अन्य सभी पड़ोसी देशों से संबंध बेहतर किए हैं। वहीं आपदा के वक्त पीएम मोदी की सरकार पड़ोसी देशों की मदद को हर घड़ी तैयार रहती है।

पीएम मोदी की नीतियों से कश्मीर घाटी में बढ़ा बीजेपी का आधार
कश्मीर में पीडीपी से गठबंधन करने का फैसला बीजेपी के लिए कठिन था। लेकिन विचारधारा के स्तर पर बिल्कुल अलग पार्टियों का मिलकर सरकार चलाना कश्मीर के आवाम में भरोसा जगाने के लिए एक संदेश था कि हम सब एक हैं। आज आलम यह है कि कश्मीर घाटी में हिना बट के नेतृत्व में बीजेपी का जनाधार बढ़ा है। बीजेपी के करीब तीन लाख सक्रिय सदस्य घाटी में हैं।

आतंकियों पर कहर बरपा रही सेना
केंद्र सरकार ने सुरक्षाबलों को घाटी में आतंकियों से मोर्चा लेने के लिए खुली छूट दे दी है। जुलाई तक कश्‍मीर घाटी में 95 आतंकियों को मौत के घाट उतारा जा चुका है। सुरक्षाबलों ने कहा है कि घाटी में करीब 180 आतंकवादी हैं और कई ने वानी की मौत के बाद आतंकी संगठनों को ज्‍वॉइन किया था। सबसे खास बात है कि जिन 92 आतंकियों का खात्‍मा किया गया है वे सभी हाई प्रोफाइल टारगेट थे। सेनाओं ने सिर्फ लो रैंक आतंकियों को नहीं मारा है लेकिन आतंकी संगठन के कमांडर्स को भी निशाना बनाया गया है।

इंटेलिजेंस की सतर्कता से मिल रही सफलता
पीएम मोदी और एनएसए अजीत डोवाल की नीतियों से इंटेलिजेंस नेटवर्क मजबूत हुआ है। आतंकियों से जुड़ी इंटेलीजेंस भी तुरंत मिल रही है। यूनिट कमांडर उस इंटेलीजेंस पर तुरंत एक्‍शन लेता है और बिना समय गंवाए कॉर्डन और सर्च ऑपरेशन लॉन्‍च कर दिया जाता है। स्‍थानीय पुलिस आतंकियों से जुड़ी इंटेलीजेंस में रीढ़ की हड्डी की तरह हो गई है। उनकी जानकारी 10 में से नौ बार एकदम सही होती है। इस वर्ष दो जुलाई तक घाटी में 95 आतंकवादियों को मारा जा चुका है। पिछले वर्ष यानी 2016 में 150 आतंकी मारे गए थे। 2015 में 108 तो 2014 में 110 आतंकियों को मौत के घाट उतारा गया था। वहीं वर्ष 2012 से 2013 तक 72 आतंकी मारे गए थे।

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