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देश के किसानों और कारोबारियों के हित में पीएम मोदी का बड़ा फैसला, RCEP समझौते में शामिल नहीं होगा भारत

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए देश और देशवासियों का हित सबसे ऊपर होता है और इसके लिए वे कड़े फैसले से भी नहीं हिचकते हैं। थाईलैंड में रीजनल कॉम्प्रिहेंसिव इकनॉमिक पार्टनरशिप यानि RCEP के शिखर सम्मेलन में ऐलान किया कि भारत अपने देश के किसानों और कारोबारियों के हितों को देखते हुए इस समझौते से दूर रहेगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सोमवार को बैठक को संबोधित करते हुए कहा कि भारत 16 देशों के बीच होने वाले क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते में शामिल नहीं होगा। उन्होंने कहा कि भारत द्वारा उठाए गए मुद्दों और चिंताओं का संतोषजनक ढंग से समाधान नहीं किए जाने की वजह से ये फैसला लिया गया है।

जाहिर है कि अब वो दिन लद गए हैं जब भारत की सरकार वैश्विक शक्तियों के दबाव में आ जाती थी। लेकिन अब प्रधानमंत्री मोदी की अगुआई में भारत फ्रंटफुट पर खेलता है। आरईसीपी समिट में पीएम मोदी ने कहा, भारत क्षेत्रीय एकता के लिए खड़ा है और साथ ही खुले व्यापार का पक्षधर है। प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत पिछले सात सालों के नेगोशियशन पर नजर रखे हुए है, लेकिन मौजूदा आरईसीपी समझौता पहले की मूल भावना से अलग है।

बैठक के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, ”भारत व्यापक क्षेत्रीय एकीकरण के साथ मुक्त व्यापार और नियम आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था का पक्षधर है। आरसीईपी वार्ताओं की शुरुआत के साथ ही भारत इसके साथ रचनात्मक और अर्थपूर्ण तरीके से जुड़ा रहा है। भारत ने आपसी समझबूझ के साथ ‘लो और दो की भावना के साथ इसमें संतुलन बैठाने के लिए कार्य किया है। पीएम मोदी ने कहा, ”जब मैं आरसीईपी करार को सभी भारतीयों के हितों से जोड़कर देखता हूं, तो मुझे सकारात्मक जवाब नहीं मिलता। ऐसे में न तो गांधीजी का कोई जंतर और न ही मेरी अपनी अंतरात्मा आरसीईपी में शामिल होने की अनुमति देती है।”

जाहिर है कि आरसीईपी में दस आसियान देश और उनके छह मुक्त व्यापार भागीदार चीन, भारत, जापान, दक्षिण, कोरिया, भारत, आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड शामिल हैं। यदि आरसीईपी समझौते को अंतिम रूप दे दिया जाता तो यह दुनिया का सबसे बड़ा मुक्त व्यापार क्षेत्र बन जाता। इसमें दुनिया की करीब आधी आबादी शामिल होती और वैश्विक व्यापार का 40 प्रतिशत तथा वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का करीब 35 प्रतिशत इस क्षेत्र के दायरे में होता। सूत्रों ने कहा कि भारत को छोड़कर आरसीईपी के सभी 15 सदस्य देश सोमवार के शिखर सम्मेलन के दौरान करार को अंतिम रूप देने को लेकर एकमत थे। 

जाहिर है कि आरसीईपी में भारत का रुख प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मजबूत नेतृत्व और दुनिया में भारत के बढ़ते कद को दर्शाता है। भारत के इस फैसले से भारतीय किसानों, सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उपक्रमों (एमएसएमई) और डेयरी उत्पाद का हित संरक्षित होगा। यह कोई पहला मौका नहीं है जबकि प्रधानमंत्री मोदी की अगुवाई में भारत ने अंतरराष्ट्रीय व्यापार और उससे संबंधित वार्ताओं में कड़ा रुख अख्तियार किया है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी मोदी को मुश्किल वार्ताकार करार दे चुके हैं।

बताया जा रहा है कि चीन की ओर से RCEP शिखर बैठक के दौरान समझौते को पूरा करने को लेकर काफी दबाव बनाया जा रहा था। चीन के लिये यह उसके अमेरिका के साथ चल रहे व्यापार युद्ध के प्रभाव के बीच व्यापार में संतुलन बैठाने में मददगार साबित होता। साथ ही वह पश्चिमी देशों को क्षेत्र की आर्थिक ताकत का भी अंदाजा करा पाता। भारत अपने उत्पादों के लिये बाजार पहुंच का मुद्दा काफी जोरशोर से उठा रहा था। भारत मुख्यतौर पर अपने घरेलू बाजार को बचाने के लिये कुछ वस्तुओं की संरक्षित सूची को लेकर भी मजबूत रुख अपनाये हुये था। देश के कई उद्योगों को ऐसी आशंका थी कि भारत यदि इस समझौते पर हस्ताक्षर करता है तो देश में चीन के सस्ते कृषि और औद्योगिक उत्पादों की बाढ़ आ जाएगी। 

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