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जर्जर आर्थिक व्यवस्था को मजबूत करने के लिए ही प्रधानमंत्री मोदी ने कदम उठाये

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देश की जर्जर अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए  प्रधानमंत्री मोदी के नोटबंदी, जीएसटी और अन्य आर्थिक सुधार कार्यक्रमों का आने वाले समय में प्रभाव बहुत व्यापक और सशक्त होगा, ऐसा विश्व बैंक ने अपनी ताजा रिपोर्ट  में माना है। रिपोर्ट के अनुसार यह वृद्धि दर बढ़ते हुए 2018-19 में 7.4 प्रतिशत होगी। विश्व बैंक के अनुमानों को भारत सरकार द्वारा 12 अक्टूबर को जारी आंकड़े सही साबित कर रहे हैं। अगस्त माह के आंकड़े बताते हैं कि देश में औघोगिक उत्पादन का इंडेक्स 4.7 प्रतिशत रहा, जो नौ महीनों में सबसे अधिक है। साथ ही सितंबर माह में मंहगाई दर भी 3.28 प्रतिशत पर ही टिकी रही।

देशहित में प्रधानमंत्री मोदी द्वारा लिए गए फैसले 

कांग्रेस के दस सालों, 2004-14, के शासनकाल में देश को मिले भ्रष्टाचार, कालेधन, नौकरियों में कमी और नकारात्मकता के माहौल को बदलने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी पूरी राजनीतिक शक्ति लगा दी है। वे जानते हैं कि इन समस्याओं को जब तक जड़ से खत्म नहीं किया जाएगा, तब तक देश की आर्थिक व्यवस्था पटरी पर नहीं आएगी। किसानों के ऋण माफ कर देने, बिजली व पानी पर सब्सिडी देने और मनरेगा में 150 दिनों के रोजगार देने से देश का दीर्घकालिक दृष्टि में नुकसान ही होगा, जो कांग्रेस की सरकारें पिछले कई दशकों से करती चली आ रही हैं और समस्या जस की तस बनी हुई है।

 प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी कार्यशैली और निर्णय क्षमता से हर क्षेत्र की समस्याओं का दीर्घकालिक समाधान निकाला । गरीबों के लिए बिजली, पानी, सड़क, स्वच्छता और गैस सिलेंडर की व्यवस्था करने के लिए ऐसी योजनाओं को लागू किया, जिससे गरीबों की समस्याएं जड़ से खत्म हो जाएं। इसी तरह से लोगों के हाथों में धन पहुंचाने के लिए जनधन खाता, रोजगार, उद्यमिता और व्यापार करने की व्यवस्था को मजबूत करने वाली योजनाओं को लागू किया। आर्थिक व्यवस्था में ही नहीं, सामरिक और विदेश नीति में भी पैनेपन के साथ तेज धार दी । प्रधानमंत्री मोदी के कदमों से आज देश में जो सकारात्मक माहौल बना है, उससे कोई इंकार नहीं कर सकता। 

कांग्रेस के कुकर्मों का परिणाम देश भुगत रहा है– मनमोहन सिंह के नेतृत्व में दस सालों का कांग्रेस शासन काल देश के लिए काला अध्याय साबित हुआ। इस दौरान देश की आर्थिक व्यवस्था को सुधारने के लिए कोई ठोस उपाय नहीं किए गए। इन सालों में देश ने बहुत कुछ खो दिया-

• दस सालों में किसानों की आमदनी बढ़ाने और खेती की लागत को कम करने के लिए कोई काम नहीं किया गया, बल्कि तात्कालिक लाभ का झुनझुना पकड़ाते हुए 2006 में 60,000 करोड़ रुपये का ऋण  किसानों के लिए माफ कर दिया।

• इसी तरह से युवाओं को बदलते आर्थिक परिदृश्य में रोजगार योग्य बनाने के लिए शिक्षा या कौशल विकास पर कोई काम नहीं किया गया, जिसका परिणाम हुआ कि नई आर्थिक गतिविधियों से उत्पन्न हुए अवसरों का लाभ लेने में युवा पीछे रह गए।

• भ्रष्टाचार और पंगु निर्णय व्यवस्था ने देसी और विदेशी निवेशकों को आर्थिक गतिविधियों से दूर रहने के लिए मजबूर कर दिया।

• इन दस सालों में सरकार जनता को लुभाने के लिए अधिकारों की खाली पोटली पकड़ाती रही- सूचना का अधिकार, शिक्षा का अधिकार, काम का अधिकार और खाद्य सुरक्षा का अधिकार। इन अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए एक ईमानदार व्यवस्था को स्थापित करने में कांगेस सरकर पूरी तरह से नाकाम रही।

• एक ईमानदार व्यवस्था को स्थापित कर, नीतियों को लागू करने की कांग्रेस ने न तो राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखाई और न ही समेकित दृष्टि।


आर्थिक मोर्चे पर जंग जारी है- कांग्रेसी संस्कृति ने आर्थिक गतिविधियों के रास्ते में जो रुकावटें खड़ी की थीं, उनको एक-एक कर दूर करने में समय भी लगा है और आर्थिक रफ्तार इस साल थोड़ी धीमी भी हुई है, जो व्यवस्था परिवर्तन के दौरान होना लाजिमी है। नोटबंदी और जीएसटी जैसे बड़े सुधार कार्यक्रम लागू करने के बाद भी 5.7 प्रतिशत की आर्थिक वृद्धि का बने रहना एक विशेष उपलब्धि है। आने वाले महीनों में यह आर्थिक वृद्धि दर और बढ़ेगी, ऐसा सभी विशेषज्ञों का मानना है। देश में, इस महत्वपूर्ण आर्थिक मोड़ पर प्रधानमंत्री मोदी ने आर्थिक विशेषज्ञों की एक विशेष समिति बनाकर आर्थिक गतिविधियों में रोजगार अधिक से अधिक उपलब्ध हो, इसके लिए रोडपैम तैयार करने के लिए कहा है।

आर्थिक गतिविधि को तीव्र करने के लिए टीम गठित प्रधानमंत्री मोदी ने अर्थशास्त्री विवेक देबराव की अध्यक्षता वाली टीम को आर्थिक वृद्धि, रोजगार और रोजगार सृजन, असंगठित क्षेत्र व उनका समन्वय, राजकोषीय स्थिति, मौद्रिक नीति, सार्वजनिक व्यय, आर्थिक क्षेत्र में काम करने वाले संस्थान, कृषि एवं पशुपालन, उपभोग की प्रवृत्ति और उत्पादन व सामाजिक क्षेत्र  में सुधार करने के लिए उपायों पर सुझाव देने का काम सौंपा है।

प्रधानमंत्री मोदी ने जिस तरह से देश की समस्याओं के समाधान के लिए राजनीतिक नफे-नुकसान से ऊपर उठकर निर्णय लिया है, उससे यह एहसास होता है कि देर भले हो, लेकिन जनता के लिए जिन अच्छे दिनों के लिए प्रधानमंत्री मोदी संघर्ष कर रहे हैं, वे दिन अवश्य आएंगे।

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