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प्रायश्चित करना चाहती है कांग्रेस या हिंदुओं के अपमान का नया तरीका ढूंढ रही है ?

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लगता है कि कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को भी अब ये एहसास होने लगा है कि पार्टी ने कभी न तो हिंदुओं की परवाह की और न ही हिंदू धर्म की। उसकी राजनीति ऐतिहासिक रूप से तुष्टिकरण के भरोसे टिकी रही है, ये सच्चाई किसी से छिपी नहीं है। यही वजह है कि राजनीतिक विरोध दिखाने के लिए केरल में कांग्रेसियों ने गोहत्या तक करने का पाप कर डाला। उन्होंने जरा भी संकोच नहीं किया कि, इस जघन्य अपराध से हिंदुओं की आस्था पर कैसी चोट लगेगी ? लगता है इसी के चलते पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा है कि, अब उन्होंने भी हिंदू धार्मिक ग्रंथों को पढ़ना शुरू कर दिया है।

चलो! गीता-उपनिषद तो पढ़ने लगे हैं राहुल
राहुल गांधी ने कहा है कि, वो आजकल गीता और उपनिषद पढ़ रहे हैं। हालांकि उन्होंने कहा है कि वो आरएसएस और बीजेपी से लड़ने के लिए ऐसा कर रहे हैं। हिंदी समाचार पोर्टल जनसत्ता के अनुसार राहुल ने कहा है, “आजकल मैं उपनिषद और गीता पढ़ता हूं, क्योंकि मैं आरएसएस और बीजेपी से लड़ रहा हूं।” यही नहीं उन्होंने ये भी कहा है, “मैं उनसे पूछता हूं, (आरएसएस से) मेरे दोस्तों तुम ऐसा करते हो, लोगों को तंग करते हो, लेकिन तुम्हीं कहते हो कि सभी लोग बराबर हैं, तुम अपने ही धर्म में लिखी बात को कैसे नकार सकते हो।” राहुल के मन में धर्मग्रंथों को पढ़ने की भावना जगी है ये बहुत ही अच्छी बात है। हो सकता है कि पारिवारिक परिस्थितियों ने अबतक उन्हें इससे विमुख रहने पर मजबूर कर दिया हो। लेकिन राहुल ने गीता-उपनिषद पढ़ने का जो कारण बताया है (शायद अज्ञानता के चलते), वो इन महान और पावन ग्रथों की पवित्रता की भावना के ठीक विपरीत है। क्योंकि ये ग्रंथ तो ‘वसुधैव कुटुंबकम’ वाली चिर-स्थायी भारतीयता के सिद्धांतों से ओत-प्रोत हैं। उम्मीद है कि धीरे-धीरे इनके श्लोकों और भावार्थों को आत्मसात करने के बाद वो भी उसकी भावनाओं को अपने मन के अंदर उतार सकेंगे।

गोहत्या के बाद आया ज्ञान ?
अभी हाल ही में कांग्रेस पार्टी के नेताओं ने केरल में सरेआम एक गाय काट डाली। वो लोग पशु हत्या को रोकने के लिए केंद्र सरकार की अधिसूचना का विरोध कर रहे थे। जब राहुल गांधी को लगा कि गाय को सरेआम कटवाने से पार्टी को भारी नुकसान हो जाएगा, तो उन्होंने जल्दबाजी में कुछ स्थानीय नेताओं को पार्टी से निलंबित कर दिया। मजबूरी में उन्हें ये भी कहना पड़ा कि उनकी पार्टी इस कृत्य का समर्थन नहीं करती है। हालांकि मुख्य आरोपी ने इन दावों की पोल ये कहकर खोल दी कि, उसे गाय काटने का निर्देश राज्य में पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से मिला था।

कांग्रेस करती आई है हिंदुओं का विरोध
कांग्रेस धर्मनिरपेक्षता का ढोंग सिर्फ हिंदुओं के लिए ही करती रही है। वो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे देशभक्त संगठन पर सांप्रदायिकता का लांछन लगाने में नहीं चूकती। लेकिन जाकिर नाइक जैसी खतरनाक सोच वालों पर सवाल उठाने तक की हिम्मत नहीं जुटा पाती। यही वजह है कि जाकिर नाइक जैसा अपराधी राजीव गांधी फाउंडेशन को चंदा देकर आराम से अपने गुनाहों पर पर्दा डाल लेता है। इसी तरह जब पीएम मोदी योग को अंतरराष्ट्रीय मंच दिलाने के प्रयासों में जुटे थे, तो उसे हिंदुओं का संस्कार बताकर विरोध का रास्ता तलाशने की कोशिश हुई। पूर्ववर्ती कांग्रेसी सरकारों की ये कोशिश रहती थी कि राष्ट्रीय संस्थाओं को उन्हीं व्यक्तियों के हवाले करें जो हिंदू परंपरा और धर्म का उपहास उड़ाने में अपना गौरव समझते हों। आरोप तो यहां तक हैं कि ऐसे लोगों को इतिहास लिखने को दिया गया, जिन्होंने ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करने के ठेके लिए थे। इसी तरह हिंदू कोड बिल लेकर आने वाली कांग्रेस ने हमेशा कॉमन सिविल कोड का विरोध किया और ट्रिपल तलाक के मसले को साजिश ठहराने की कोशिश की। 2012 में तो तत्कालीन मनमोहन सिंह के चेहरे वाली सोनिया की सरकार ने मुस्लिम आरक्षण विधेयक लाकर अपना असली चेहरा सार्वजनिक कर दिया था। यही नहीं जब पिछले साल मोदी सरकार ने असम में हिंदुओं और गैर-मुसलमानों को नागरिकता देने का फैसला किया, तो कांग्रेस ने उसका विरोध किया। इतना ही नहीं जबरिया धर्म-परिवर्तन के हर मामले में कांग्रेस गैर-हिंदुओं के साथ खड़ी रही। लेकिन जब कोई हिंदू बना तो उसे गलत करार देने में पल भर का भी समय नहीं लिया।

एंटनी ने भी माना था हिंदुओं की उपेक्षा की बात
2014 में करारी हाल मिलने के बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ए के एंटनी ने भी पहली बार स्वीकार किया था कि पार्टी को हिंदू विरोधी छवि के चलते नुकसान हुआ है। तब ये बात सामने आई थी कि हर मुद्दे पर कांग्रेस जिस तरह से तुष्टिकरण की लाइन लेती है, वो बात अब आम जनता भी महसूस करने लगी है। बहुसंख्यक हिंदू समझ चुके हैं कि कांग्रेस सिर्फ और सिर्फ मुसलमानों के लिए सोचती है। इसी के चलते बचे-खुचे हिंदू मतदाताओं ने भी कांग्रेस से मुंह मोड़ना शुरू कर दिया है। लेकिन, सोनिया गांधी या राहुल गांधी ने फिर भी इस कड़वी सच्चाई से मुंह मोड़े रखा। परिणाम देश के सामने है। कांग्रेस का अस्तित्व मिटता जा रहा है।

राहुल ने कहा था- मंदिर जाने वाले ही लड़कियां छेड़ते हैं
कांग्रेस या राहुल गांधी की हिंदू विरोधी मानसिकता एक दिन में पैदा नहीं हुई है। विचारों की अभिव्यक्ति के नाम पर नित्य नया ज्ञान देने वाली पार्टी ‘द सैटेनिक वर्सेज’ पर तो रोक लगा देती है। लेकिन हिंदुओं को अपमानित करने का कोई मौका नहीं छोड़ती। यही राहुल गांधी हैं, जो कहते हैं कि मंदिरों में मत्था टेकने वाले ही, बसों में लड़कियों को छेड़ते हैं। अब राहुल को ये दिव्य ज्ञान कहां से मिला कि छेड़खानी करने वाला हर लड़का हिंदू ही होता है ? वो लड़की छेड़ने से पहले मंदिर में दर्शन करने के लिए जरूर जाता है ? ये जानबूझकर हिंदुओं और हिंदू धर्म को नीचा दिखाने की मानसिकता नहीं है तो क्या है ? राहुल ये क्यों नहीं बताते कि अभी ही हाल में यूपी के रामपुर में 15-16 गुंडों ने एक लड़की के साथ जो सरेआम अश्लील हरकतें कीं और उसका वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर डाला, वो किस मंदिर से दर्शन करके आए थे ?

गीता पढ़ने से ‘परिपक्वता’ आने का भरोसा
अगर वरिष्ठ कांग्रेसी नेता और दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षिक ने कहा था, कि राहुल में परिपक्वता की कमी है तो यूं ही नहीं कहा होगा। जिस पार्टी (परिवार वाली) की उन्होंने ताउम्र सेवा की, उसके सियासी वारिश के बारे में उन्होंने जरूर कुछ अनुभव किया होगा। शायद राहुल अब अपने आप में वही परिपक्वता लाने के लिए प्रयासरत हैं। कांग्रेस वाले प्रार्थना कर सकते हैं कि शीला की चिंता दूर हो जाए। वो अच्छे से गीता और उपनिषद पढ़कर ज्ञान प्राप्त करें।

संघ को समझना है तो स्वयं सेवक बनिए
राहुल गांधी की बातों से एक बात तो तय है कि वो अबतक संघ और बीजेपी पर बिना समझे-बूझे, अज्ञानता में ही टीका-टिप्पणी करते रहे हैं। क्योंकि अगर उन्हें इसके बारे में पता होता तो वो अब जाकर इसके लिए प्रयास शुरू नहीं करते। वैसे राहुल गांधी और उनकी पुश्तैनी पार्टी के लिए बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का विरोध करना सियासी मजबूरी हो सकती है। लेकिन अगर वो वास्तव में संघ के विचारों को समझना चाहते हैं, तो उन्हें शाखाओं में भी जरूर जाना चाहिए। तब शायद उन्हें संघ के बारे में ज्यादा करीब से और अधिक बेहतर तरीके से समझने का मौका मिलेगा। क्योंकि कांग्रेस के इस युवा नेता (सिर्फ 47 साल) के मन में बैठाई गई धारणा को परखने का इससे बढ़िया तरीका नहीं हो सकता।

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