Home नोटबंदी नोटबंदी में फर्जीवाड़ा करने वाली कंपनियों की खैर नहीं

नोटबंदी में फर्जीवाड़ा करने वाली कंपनियों की खैर नहीं

SHARE

नोटबंदी के दौरान बैंक खातों में बड़े पैमाने पर राशि जमा करने वाली फर्जी कंपनियों की अब खैर नहीं है। इन फर्जी कंपनियों को नए कंपनी लॉ के तहत आपराधिक केस का भी सामना करना पड़ सकता है। रिटर्न फाइल न करने वाली 2 लाख कंपनियों का पंजीकरण रद्द करने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। फर्जीवाड़ा करने वाली कंपनी में दोषी पाए गए लोगों को तीन से 10 साल तक की सजा हो सकती है। इसके साथ ही जुर्माना भी लगाया जा सकता है।

इकॉनोनिक टाइम्स की खबर के मुताबिक किसी चीज को छिपाना या जानकारी ना देना फ्रॉड के दायरे में आता है। ऐसी कंपनियों को मिलने वाले फंड के स्रोतों का भी पता लगाया जाएगा। इसके बाद ऐसे डायरेक्टर्स पर बैन भी लगाया जा सकता है। इनमें से कुछ बड़ी कंपनियों के बोर्ड में भी शामिल हैं। इसके अलावा ऐसी कंपनियों के बैंक खातों को फ्रीज भी किया जा सकता है। आयकर विभाग के मुताबिक 6,000 कंपनियों के बैंक खातों से 4,600 करोड़ रुपये तक की हेराफेरी की गई। कुछ कंपनियों के पास 900 बैंक खाते हैं।

भ्रष्टाचार पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जीरो टॉलरेंस की नीति रही है।
केंद्र सरकार की ओर से भ्रष्टाचार को जड़ से खत्म करने के लिए एक के बाद एक कई निर्णय लिए गये हैं।

जन धन योजना- इसके तहत गरीबों के लिए अब तक लगभग 30 करोड़ खाते खोले जा चुके हैं। सरकारी योजनाओं में सब्सिडी बिचौलियों के हाथों से दिये जाने के बजाय सीधे लाभार्थियों के खाते में पहुंचने लगे हैं।

कर बचाने में मददगार देशों के साथ कर संधियों में संशोधन- मॉरीशस, स्वीटजरलैंड, सऊदी अरब, कुवैत आदि देशों के साथ कर संबंधी समझौता करके सूचनाओं को प्राप्त करने का रास्ता सुगम कर लिया गया है।

नोटबंदी- कालेधन पर लगाम लगाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आजादी के बाद सबसे बड़ा कदम 08 नवंबर 2016 को उठाया। नोटबंदी के जरिए कालेधन के स्रोतों का पता लगा। लगभग तीन लाख ऐसी शेल कंपनियों का पता चला जो कालेधन में कारोबार करती थी। इनमें से लगभग दो लाख कंपनियों और उनके 1 लाख से अधिक निदेशकों की पहचान करके कार्रवाई की जा रही है।

बेनामी लेनदेन रोकथाम (संशोधन) कानून- नोटबंदी के बाद सरकार के पास बेनामी संपत्तियों के बारे में पुख्ता जानकारी उपलब्ध हो चुकी है। बेनामी लेनदेन रोकथाम (संशोधन) कानून, जिसे सालों से कांग्रेस ने लटकाये रखा था, उसे लागू करके इन संपत्तियों के खिलाफ जांच चल रही है।

फर्जी कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई-  सीबीआई ने छद्म कंपनियों के माध्यम से कालेधन को सफेद करने वाले कई गिरोहों का भंडाफोड़ किया है। देश में करीब तीन लाख ऐसी कंपनियां हैं, जिन्होंने अपनी आय-व्यय का कोई ब्योरा नहीं दिया है। इनमें से ज्यादातर कंपनियां नेताओं और व्यापारियों के कालेधन को सफेद करने का काम करती हैं।

रियल एस्टेट कारोबार में 20,0000 रुपये से अधिक कैश में लेनदेन पर जुर्माना- रियल एस्टेट में कालेधन का निवेश सबसे अधिक होता था। पहले की सरकारें इसके बारे में जानती थीं, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं करती थी। इस कानून के लागू होते ही में रियल एस्टेट में लगने वाले कालेधन पर रोक लग गई।

राजनीतिक चंदा- राजनीतिक दलों को 2,000 रुपये से ज्यादा कैश में चंदा देने पर पाबंदी। इसके लिए बॉन्ड का प्रावधान।

स्रोत पर कर संग्रह- 2 लाख रुपये से अधिक के कैश लेनदेन पर रोक लगा दी गई है। इससे ऊपर के लेनदेन चेक, ड्रॉफ्ट या ऑनलाइन ही हो सकते हैं।

‘आधार’ को पैन से जोड़ा- कालेधन पर लगाम लगाने के लिए ये एक बहुत ही अचूक कदम है। ये निर्णय छोटे स्तर के भ्रष्टाचारों की भी नकेल कसने में काफी कारगर साबित हो रहा है।

सब्सिडी में भ्रष्टाचार पर नकेल- गैस सब्सिडी को सीधे बैंक खाते में देकर, मोदी सरकार ने हजारों करोड़ों रुपये के घोटाले को खत्म कर दिया। इसी तरह राशन कार्ड पर मिलने वाली खाद्य सब्सिडी को भी 30 जून 2017 के बाद से सीधे खाते में देकर हर साल लगभग 50 हजार करोड़ रुपये से ऊपर की बचत की जा रही है। इससे निचले स्तर पर चल रहे भ्रष्टाचार को पूरी तरह से खत्म करने में कामयाबी पायी है।

• ऑनलाइन सरकारी खरीद- मोदी सरकार ने सरकारी विभागों में सामानों की खरीद के लिए ऑनलाइन प्रक्रिया लागू कर दी गई है। इसकी वजह से पारर्दशिता बढ़ी है और खरीद में होने वाले घोटालों में रोक लगी है।

प्राकृतिक संसाधानों की ऑनलाइन नीलामी- मोदी सरकार ने सभी प्राकृतिक संसाधनों की नीलामी के लिए ऑनलाइन प्रक्रिया शुरू कर दी है। इसकी वजह से पारदर्शिता बढ़ी है और घोटाले रुके हैं। यूपीए सरकार के दौरान हुए कोयला, स्पेक्ट्रम नीलामी जैसे घोटालों में देश का इतना खजाना लूट लिया गया था कि देश के सात आठ शहरों के लिए बुलेट ट्रेन चलवायी जा सकती थी।

आधारभूत संरचनाओं के निर्माण की जियोटैगिंग- सड़कों, शौचालयों, भवनों, या ग्रामीण क्षेत्रों में होने वाले सभी निर्माण की जियोटैगिंग कर दी गई है। इसकी वजह से धन के खर्च पर पूरी निगरानी रखी जा रही है

इन कदमों के साथ ही सरकार ने दशकों से चली आ रही लालफीताशाही और भ्रष्टाचार में लिप्त कार्य संस्कृति को बदलने का काम किया। सरकारी योजनाओं में दूर​दर्शिता और समयबद्धता के साथ पारदर्शिता भी स्पष्ट दिखने लगी है।

DBT से जुड़ी 224 योजनाएं
मोदी सरकार ने देश में एक नयी चुस्त-दुरूस्त, पारदर्शी, जवाबदेह और भ्रष्टाचार मुक्त कार्यसंस्कृति को जन्म दिया है, इस तथ्य से चाहकर भी मुंह नहीं मोड़ा जा सकता है। सभी योजनाओं को आधार से जोड़ने की प्रक्रिया पूरे देश में जोरों से चलायी जा रही है। अब तक 46 मंत्रालयों की 224 योजनाएं डीबीटी यानि प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण प्लेटफॉर्म से जुड़ गई हैं। सरकार ने ढाई साल पहले ही आधार कानून बनाया है जिसके लागू होने के बाद सभी तरह की सरकारी सब्सिडी का लाभ लेने के आधार नंबर जरूरी हो गया है।

32 करोड़ खाते DBT से जुड़े
डीबीटी स्कीम के तहत सरकार ने लगभग 32 करोड़ लोगों के खाते में दो लाख करोड़ रुपये डायरेक्ट पहुंचाए हैं। मई 2017 तक के आंकड़ों के अनुसार केंद्र सरकार ने 2014 से लेकर मार्च 2017 तक डीबीटी के जरिये कुल 57,029 करोड़ रुपये बचाए हैं। आधार से डीबीटी योजना के जुड़ने से बिचौलिये और फर्जी लाभार्थी खत्म हो चुके हैं। आधार लिंक की प्रक्रिया शुरू होने से पहल योजना के तहत 2015-16 के तहत पकड़े 3.5 करोड़ फर्जी और नकली LPG खाते पकड़े गए। इस साल अप्रैल 2017 तक 1.30 लाख फर्जी ग्राहकों की पहचान हुई है।

मनरेगा में ‘दलाली’ सिस्टम पर रोक
मनरेगा के तहत जॉब कार्ड को आधार कार्ड से लिंक करने से करोड़ों रुपये की बचत हुई है। वित्त वर्ष 2016-17 में मनरेगा के लिए डीबीटी भुगतान से 8,741 करो़ड़ रुपये की बचत की, जबकि पहल के जरिये बचत की राशि 8,185 करोड़ रुपये रही। दरअसल अब मनरेगा खातों को आधार से लिंक करने से एक करोड़ फर्जी जॉब कार्ड खत्म किए जा सके। मनरेगा के तहत जॉब कार्ड्स की कुल संख्या 13 करोड़ थी, जो 2016-17 में घटकर अब 12 करोड़ हो गई है। सरकार ने अभियान चलाकर पिछले एक साल में इस स्कीम से जुड़ी गड़बड़ियों को खत्म किया है। गौरतलब है कि जून के पहले सप्ताह तक 85 प्रतिशत मनरेगा खातों को आधार से लिंक कर दिया गया है।

मनरेगा और मोदी आधार के लिए चित्र परिणाम

तीन लाख से ज्यादा फर्जी कंपनियां बंद
नोटबंदी के बाद सरकार ने काला धन जमा करने के लिए बनाई गई तीन लाख से भी अधिक फर्जी कंपनियों का पता लगाया है। इनमें से 1,75,000 कंपनियों का पंजीकरण रद्द किया जा चुका है। इतना ही नहीं कई ऐसी कंपनियों का पता लगा है जहां एक पते पर ही 400 फर्जी कंपनियां चलाई जा रहीं थी। अगस्त के पहले सप्ताह में ही शेयर बाजार नियामक ‘सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया’ (सेबी) ने ऐसी 331 कंपनियों पर व्यापार प्रतिबंध लगा दिया, जिन पर फर्जी कंपनियां होने का संदेह था।  इनमें कम से कम 145 कंपनियां कोलकाता में रजिस्टर्ड हैं और 127 कंपनियां गंभीर जांच के घेरे में हैं।

दो करोड़ 33 लाख फर्जी राशन कार्ड पकड़े गए
भारत में बीते तीन साल में दो करोड़ 33 लाख फर्जी राशन कार्ड रद्द कर दिए गए हैं, जिससे सरकार को हजारों करोड़ रुपये की बचत हुई है। पश्चिम बंगाल से 66 लाख 13 हजार 961 फर्जी राशन कार्ड पकड़े गए हैं और वे सभी के सभी अवैध बांग्लादेशियों के नाम पर हैं। अरबों रुपये का ये घोटाला पश्चिम बंगाल में सरकार के नाक के नीचे चल रहा था। बिहार में भी दस लाख लोगों ने बोगस राशन कार्ड बनवा लिए थे। इन बोगस कार्ड के जरिए पिछले एक साल में अनाज सब्सिडी के नाम पर 777.6 करोड़ रुपए भी सरकार से ले लिए गए। राशन कार्डों का इलेक्ट्रॉनिक डाटा बेस तैयार करने के क्रम में यह खुलासा हुआ है। इसी के मद्देनजर मोदी सरकार 2017 तक देश में 3 लाख राशन दुकानों को इलेक्ट्रॉनिक प्वाइंट ऑफ सेल (ईओपीएस) में बदल रही है।

सरकारी लाभ आधार और बैंक से जुड़े
मोदी सरकार जब से सत्ता में आयी है तब से एक-एक सिस्टम पारदर्शी हो रहा है, बैंक खाते आधार से लिंक हो गए, हर तरह का सरकारी लाभ सीधे बैंक खातों में मिलने लगा। हाल ही में उत्तराखंड सरकार ने सभी छात्रों के बैंक खातों को आधार कार्ड से लिंक करने की घोषणा की तो देखते ही देखते मदरसों से ढाई लाख छात्र गायब हो गए। मदरसों में फर्जी छात्रों का नाम लिखकर उनके नाम की स्कॉलरशिप मदरसा चलाने वाले खुद खा जाते थे। इन ढाई लाख छात्रों को करीब 17 करोड़ रुपये की स्कॉलरशिप मिलती थी, मतलब फर्जी छात्रों का नाम लिखकर सरकारी रुपये लूट लिए जाते थे लेकिन सरकार ने छात्रों के बैंक खाते को आधार कार्ड से लिंक करके ना सिर्फ ढाई लाख छात्रों को गायब कर दिया बल्कि हर साल 17 करोड़ रुपये भी बचाएंगे।

आधार और पीएम मोदी के लिए चित्र परिणाम

नोटबंदी के बाद रिश्वतखोरी में कमी हुई
थिंकटैंक सीएमएस- इंडियन करपशन स्टडी की प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार पिछले साल 8 नवम्बर को पीएम नरेंद्र मोदी द्वारा नोटबंदी का ऐलान करने के बाद से भ्रष्टाचार में कमी आई है। इसकी रिपोर्ट में बताया गया है कि 2005 के मुकाबले सरकारी अधिकारियों में घूसखोरी घटी है। यह सर्वे जनवरी में 20 राज्यों में फोन के द्वारा करवाया गया था। सर्वे के दौरान 56 प्रतिशत लोगों ने यह बात कही की नोटबंदी की वजह से भ्रष्टाचार में कमी आई है। रिपोर्ट के मुताबिक देश में सालाना 6350 करोड़ रुपए रिश्वत का लेन-देन होता है। जबकि 2005 में सालाना 20500 करोड़ रुपए रिश्वत का लेन-देन होता था।

नोटबंदी से रिश्वतखोरी कमी के लिए चित्र परिणाम

Leave a Reply