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‘अर्बन नक्सलियों’ की गिरफ्तारी का रास्ता साफ, राहुल गांधी के ‘झूठ’ का भी हुआ पर्दाफाश

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सुप्रीम कोर्ट ने मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की आड़ में छिपे 5 ‘अर्बन नक्सलियों’ को कोई राहत नहीं दी है। कोर्ट ने वारावरा राव, वर्नोन गोंजाल्विस, गौतम नवलखा, अरुण फरेरा और सुधा भारद्वाज की हिरासत अवधि 4 हफ्ते बढ़ा दी है। सर्वोच्च न्यायालय ने साफ कहा कि गिरफ्तारियां राजनीतिक असहमति की वजह से नहीं बल्कि प्रतिबंधित सीपीआई (माओवादी) के साथ संबंध रखने के कारण हुए हैं। कोर्ट ने SIT जांच की मांग को भी खारिज करते हुए पुणे पुलिस को जांच जारी रखने को भी कहा है। जाहिर है कोर्ट का यह फैसला राहुल गांधी और उनके वकीलों की उस फौज को Expose करता है जो इन्हें बचाने में लगे हुए हैं। आपको बता दें कि भीमा कोरेगांव में हिंसा और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की हत्या की साजिश रचने का आरोप है।

गौरतलब है कि राहुल गांधी के निर्देश पर इन पांचों ‘अर्बन नक्सलियों’ को छुड़ाने के लिए कांग्रेस पार्टी का पूरा इको सिस्टम और वकीलों की सेना पिल पड़ी थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने वैसे चेहरों को बेनकाब कर दिया है जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर आघात बताते हुए देश की सुरक्षा से खिलवाड़ कर रहे थे। सुप्रीम कोर्ट का निर्णय यह भी साबित करता है कि इन कांग्रेसी और वामपंथियों को देश से कोई मतलब नहीं है। भीमा कोरेगांव में हिंसा फैलाने और पीएम मोदी की हत्या की साजिश में कांग्रेस का भी ‘हाथ’ सामने आ रहा है। नक्सलियों पर कांग्रेस के बड़े नेताओं के बयान और ‘कॉमरेडों’ के बीच हुए पत्रों के आदान-प्रदान में कांग्रेस नेताओं को जिक्र से स्पष्ट हो रहा है कि नक्सलियों और कांग्रेस में सांठगांठ है।

फैसले के बाद भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष ने ट्वीट किया, ”भारत के टुकड़े-टुकड़े गैंग, माओवादियों, फेक एक्टिविस्टों और भ्रष्ट लोगों का समर्थन करो। जो ईमानदार हैं और काम कर रहे हैं, उन सभी को बदनाम करो। राहुल गांधी की कांग्रेस का स्वागत है।”

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस ने कहा कि यह पुणे पुलिस और देश के लिए यह एक बड़ी जीत है। वे (एक्टिविस्ट) कई वर्षों से ऐसा कर रहे हैं, लेकिन उनके खिलाफ कोई पुख्ता सबूत नहीं था, इसलिए जांच पूरी नहीं हो सकी थी। वे चाहते थे कि देश में गृह युद्ध छिड़ जाए। वे नक्सलियों का बचाव करते थे और पीएम मोदी को मारना चाहते थे। अब सबकुछ सामने आ गया है।

वहीं भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा कि आज पूरी तरह से कांग्रेस पार्टी का पर्दाफाश हो गया है। गौतम नवलाखा, जो कश्मीर में रेफेरेंडम चाहता है, कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग नहीं मानता है राहुल गांधी उसके साथ खड़े थे।

भीमा-कोरेगांव हिंसा और उसके बाद कब क्या हुआ? 

31 दिसंबर, 2017 
भीमा-कोरेगांव युद्ध की 200वीं वर्षगांठ के अवसर पर पुणे के पास शनिवाड़ा में एक गोष्ठी (यलगार परिषद) का आयोजन। 

1 जनवरी, 2018 
भीमा-कोरेगांव के पास सणसवाडी के पास दो समूहों के बीच जातीय हिंसा में एक व्यक्ति की मौत, पूरे राज्य में दलितों का प्रदर्शन। 

6 जून, 2018 
पुणे पुलिस ने दलित कार्यकर्ता सुधीर धावले, नागपुर विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के संकाय प्रमुख शोमा सेन, कार्यकर्ता महेश राउत और राजनीतिक कैदियों की रिहाई के लिए काम करने वाली समिति से जुड़ी केरल निवासी रोना विल्सन को गिरफ्तार किया। 

28 अगस्त, 2018 
महाराष्ट्र पुलिस ने तेलुगु कवि वरवरा राव को हैदराबाद, कार्यकर्ताओं वरनान गोन्साल्विज और अरुण फरेरा को मुंबई से, श्रमिक संघ कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज को फरीदाबाद से और गौतम नवलखा को दिल्ली से गिरफ्तार किया। नवलखा ने अपनी गिरफ्तारी को दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दी। 

– दिल्ली हाई कोर्ट ने माओवादियों से संबंध के आरोप में गिरफ्तार नवलखा के अगले दिन सुनवाई तक दिल्ली से बाहर ले जाने पर रोक लगाई। 
– पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने सुधा भारद्वाज की ट्रांजिट रिमांड पर रोक लगाई। 

29 अगस्त, 2018 
महाराष्ट्र पुलिस ने प्राथमिकी सहित सभी दस्तावेजों की मराठी से अंग्रेजी में अनुवाद की प्रति दिल्ली हाई कोर्ट में नवलखा के अधिवक्ता को सौंपी। इतिहासकार रोमिला थापर और चार अन्य ने पांच कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के खिलाफ कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उनकी तुरंत रिहाई और एसआईटी जांच की मांग की। कोर्ट ने सभी कार्यकर्ताओं को छह सितंबर तक नजरबंद रखने को कहा। 

30 अगस्त, 2018 
दिल्ली हाई कोर्ट ने शीर्ष अदालत का आदेश आने तक नवलखा की गिरफ्तारी के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई नहीं करने का निर्णय लिया। 

5 सितंबर, 2018 
महाराष्ट्र सरकार ने कोर्ट में दावा किया कि कार्यकर्ताओं को उनके असहमति वाले विचारों के कारण गिरफ्तार नहीं किया गया है बल्कि प्रतिबंधित संगठन भाकपा (माओवादी) के साथ संबंध के पुख्ता सबूतों के आधार पर गिरफ्तार किया गया है। 

6 सितंबर, 2018 
कोर्ट ने कार्यकर्ताओं की नजरबंदी की अवधि 12 सितंबर तक बढ़ाई। 

12 सितंबर, 2018
कोर्ट ने नजरबंदी की अवधि 19 सितंबर तक बढ़ाई। 

17 सितंबर, 2018 
कोर्ट ने कार्यकर्ताओं की नजरबंदी की अवधि 19 सितंबर तक बढ़ाते हुए कहा कि वह विचार करेगा कि इनकी गिरफ्तारी के समर्थन में कोई ठोस साक्ष्य है या नहीं । 

19 सितंबर, 2018 
न्यायालय ने नजरबंदी की अवधि 20 सितंबर तक बढ़ाते हुए कहा कि गिरफ्तारी पर विचार किया जाएगा। 
20 सितंबर, 2018 
न्यायालय ने याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रखा। 

28 सितंबर, 2018 
सुप्रीम कोर्ट ने 2-1 के बहुमत के फैसले में कहा कि वह गिरफ्तारी में हस्तक्षेप नहीं करेगा और जांच के लिए एसआईटी के गठन से भी इनकार कर दिया।

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