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मोदी राज में बच्चों के स्वास्थ्य पर फोकस, बाल मृत्यु दर में आई गिरावट

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर बहुत ही गंभीर है। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में कई ऐसी योजनाएं शुरू गई, जिनका उद्देश्य बच्चों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाना है। इन प्रयासों का असर भी सामने आने लगा है। ताजा आंकड़ों के अनुसार देश में बाल-मृत्यु दर के आंकड़ों में पहले के मुकाबले कमी आई है। 

बाल मृत्यु दर घटकर हुई 37

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्ष वर्धन ने लोकसभा में एक सवाल के जवाब में कहा कि पिछले दशक में देश में पांच साल से कम आयु की मृत्यु दर साल 2008 में प्रति एक हजार जीवित शिशु जन्म पर 69 से कम होकर 2017 में प्रति एक हजार जीवित शिशु जन्म पर 37 हो गयी है। इसके अलावा सभी राज्यों में पिछले दशक के दौरान पांच वर्ष से कम आयु की मृत्यु दर में गिरावट आयी है। सरकार राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम का भी कार्यान्वयन कर रही है जिसके तहत नवजात एवं शिशु स्वास्थ्य संबंधी जांच और उत्तरजीविता की गुणवत्ता में सुधार के लिए जन्म विकारों, रोगों, खामियों के लिए मुफ्त में शल्य चिकित्सा सहित प्रारंभिक कार्याकलाप सेवाएं एवं परिवारों का जेब खर्च कम करना शामिल है।

मिशन इंद्रधनुष के तहत टीकाकरण में बढ़ोतरी

बाल मृत्यु दर में गिरावट के लिए मिशन इंद्रधनुष ने काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में 2014 में मिशन इंद्रधनुष योजना शुरू की गई थी, जिसपर 2015 से काम शुरू हुआ । इसके तहत बच्चों के लिए सात बीमारियों – डिप्थीरिया, काली खांसी, पोलियो, टीबी, खसरा और हेपेटाइटिस बी से लड़ने के लिए वैक्सीनेशन की व्यवस्था है। इससे टीकाकरण में एक प्रतिशत की वृद्धि दर बढ़कर सीधे 6 प्रतिशत पर पहुंच गई है । उन्होंने कहा कि सरकार देश के हर कोने में बच्चों के टीकाकरण को लेकर गंभीर है और पिछले पांच वर्षों में इसमें काफी सुधार आया है। उन्होंने विश्वास जताया कि आने वाले समय में देश का हर एक बच्चा टीकाकरण के दायरे में आ जाएगा ।

मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में हेल्थ सेक्टर में ऐसे कई बड़े कदम उठाए गए, जिनसे स्वास्थ्य को लेकर देशवासियों की चिंताएं पहले से कहीं कम हो गई हैं। एक नजर डालते हैं उन कदमों पर-

मोदी सरकार में 4 pillar पर फोकस 
जनसामान्य का स्वास्थ्य देश के उन मुद्दों में से है जिनकी व्यापकता सबसे अधिक है। इसके बावजूद दशकों तक इस धारणा को खत्म करने के प्रयास नहीं के बराबर हुए कि हेल्थ सेक्टर के लिए सब कुछ स्वास्थ्य मंत्रालय ही करेगा। मोदी सरकार ने स्वास्थ्य संबंधी वास्तविक जरूरतों को समझते हुए हेल्थ सेक्टर से जुड़े अभियानों में स्वच्छता मंत्रालय, आयुष मंत्रालय, रसायन और उर्वरक मंत्रालय, उपभोक्ता मंत्रालय और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को भी शामिल किया। इन सब मंत्रालयों को मिलाकर चार Pillars पर फोकस किया जा रहा है जिनसे लोगों की स्वास्थ्य आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके।

  1. Preventive Health – इसके तहत स्वच्छता, योग और टीकाकरण को बढ़ावा देने वाले अभियान शामिल हैं जिनसे बीमारियों को दूर रखा जा सके।
  2. Affordable Healthcare – इसके अंतर्गत जनसामान्य के लिए सस्ती और सुलभ स्वास्थ्य सुविधाएं देने के लिए कई कदम उठाए गए हैं।
  3. Supply side interventions – इसमें उन कदमों पर जोर है जिनसे किसी दुर्गम क्षेत्र में भी ना तो डॉक्टरों और ना ही अस्पतालों की कमी हो।
  4. Mission mode intervention – इसमें माता और शिशु की समुचित देखभाल पर बल दिया जा रहा है।

इन चार Pillars के आधार पर ही मोदी सरकार ने हेल्थकेयर से जुड़ी अपनी योजनाओं को आगे बढ़ाया है।

बच्चों और माताओं के लिए राष्ट्रीय पोषण मिशन 
वर्ष 2018 में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर राष्ट्रीय पोषण मिशन की शुरुआत की गई। इसका उद्देश्य है बच्चों और माताओं को सही पोषण देना। इस मिशन को करीब 9 हजार करोड़ रुपये की राशि के साथ शुरू किया गया। बच्चों को तंदुरुस्त रखने के उद्देश्य के साथ ही इस मिशन के अंतर्गत आवश्यक पोषण और प्रशिक्षण, खासकर माताओं की ट्रेनिंग की व्यवस्था की गई है।

आयुष्मान भारत योजना से अब इलाज के खर्च की चिंता नहीं 
आयुष्मान भारत योजना अफॉर्डेबल हेल्थकेयर के क्षेत्र में सबसे क्रांतिकारी कदम है। इस योजना ने देश के गरीब से गरीब व्यक्ति को भी इलाज की चिंता से मुक्त कर दिया है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने लोकसभा में एक सवाल के जवाब में कहा कि आयुष्मान भारत योजना (एसबी-पीएमजेएबाई) के तहत लाभार्थी परिवारों की कुल संख्य लगभग 10.74 करोड़ है। इस योजना के तहत राज्य अपनी लागत पर अतिरिक्त परिवारों को जोड़ने के लिए स्वतंत्र है। इस योजना के तहत अब तक 16039 अस्पतालों को पैनलबद्ध किया गया है जिनमें 8059 निजी अस्पताल तथा 7980 सार्वजनिक अस्पताल हैं। अगर किसी परिवार में कोई बीमार पड़ता है, तो एक साल में 5 लाख रुपये का खर्च भारत सरकार और इंश्योरेंस कंपनी मिलकर देगी।

हर बड़ी पंचायत में हेल्थ वेलनेस सेंटर बनाने पर जोर
मोदी सरकार के 2018-19 के बजट में वेलनेस सेंटर पर भी जोर दिया गया था। हेल्थ वेलनेस सेंटर बनाने के लिए बजट में 1200 करोड़ रुपये के फंड का प्रावधान किया गया। सरकार का प्रयास है कि देश की हर बड़ी पंचायत में हेल्थ वेलनेस सेंटर बने। वेलनेंस सेंटर में इलाज के साथ-साथ जांच की सुविधा भी होगी। इतना ही नहीं इस पर भी काम चल रहा है कि जिला अस्पताल में मरीजों को जो दवाएं लिखी जाती हैं वे उन्हें अपने घर के पास के हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर में उपलब्ध हों।

जन औषधि केंद्र में सस्ती दवाएं
अपनी सेहत को दुरुस्त रखने के लिए जनसामान्य को जरूरत की दवाइयां सस्ती कीमत पर मिल सके इसी दिशा में उठाया गया यह एक बड़ा कदम है। जन औषधि केंद्रों का संचालन केंद्रीय रसायन और उर्वरक मंत्रालय की निगरानी में हो रहा है। देश भर में 3000 से अधिक जन-औषधि केंद्र खोले गए हैं जहां 800 से ज्यादा दवाइयां कम कीमत पर उपलब्ध कराई जा रही हैं।

मेडिकल संस्थानों में सीटें बढ़ीं, नए संस्थानों की भी स्थापना
देश के कई हिस्सों में विशेषकर गांवों में जो डॉक्टरों की कमी महसूस की जा रही है उसे दूर करने के लिए सरकार ने मेडिकल की सीटें बढ़ाई हैं। 2014 में जब मोदी सरकार सत्ता में आई थी तो मेडिकल में 52 हजार अंडरग्रैजुएट और 30 हजार पोस्ट ग्रैजुएट सीटें थीं। अब देश में 85 हजार से ज्यादा अंडरग्रैजुएट और 46 हजार से ज्यादा पोस्ट ग्रैजुएट सीटें हैं। इसके अलावा देश भर में नए एम्स और आयुर्वेद विज्ञान संस्थान की स्थापना की जा रही है।सरकार तीन संसदीय सीटों के बीच में एक मेडिकल कॉलेज के निर्माण की योजना पर भी काम कर रही है। जाहिर है सरकार के इन प्रयासों का सीधा लाभ युवाओं के साथ ही देश की गरीब जनता और उनके बच्चों को भी मिलेगा।

डॉक्टरों के लिए दुर्गम क्षेत्रों में भी सेवाएं देना अनिवार्य
ग्रामीण और दुर्गम क्षेत्रों में भी अच्छे डॉक्टर उपलब्ध हों, इसके लिए केंद्र सरकार के अनुमोदन पर भारतीय चिकित्सा परिषद ने चिकित्सा शिक्षा नियमों में कुछ सुधार किए। अब स्नातकोत्तर डिप्लोमा प्राप्त करने वाले सभी चिकित्सकों को अनिवार्य रूप से दो साल दुर्गम क्षेत्रों में सेवा देनी होगी। भारतीय चिकित्सा परिषद ने चिकित्सा शिक्षा नियमों में बदलाव करके स्‍नातकोत्‍तर डिप्‍लोमा पाठ्यक्रमों में 50 प्रतिशत सीटें सरकारी सेवारत ऐसे चिकित्‍सा अधिकारियों के लिए आरक्षित कर दी हैं, जिन्होंने कम से कम 3 वर्ष की सेवा दुर्गम क्षेत्रों में की हो। वहीं, स्‍नातकोत्‍तर मेडिकल पाठ्यक्रमों में नामांकन कराने के लिए प्रवेश परीक्षा में दुर्गम क्षेत्रों में सेवा के लिए प्रति वर्ष के लिए 10 प्रतिशत अंक का वेटेज दिया जाएगा।