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नगर निकायों के चुनावों में भाजपा की जीत ने ममता का डर बढ़ाया

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भाजपा, पश्चिम बंगाल में कांग्रेस और वामपंथियों को रौंदते हुए, विपक्ष की सबसे बड़ी और मजबूत पार्टी बन गई है। 13 अगस्त को 7 नगर निकायों के 148 वार्डों के लिए हुए चुनावों के परिणाम 18 अगस्त को जब घोषित हुए तो कांग्रेस कोई भी सीट जीतने में सफल न हो सकी वहीं लेफ्ट की सहयोगी पार्टी, फॉरवर्ड ब्लॉक को मात्र एक सीट पर जीत से संतोष करना पड़ा।

लेफ्ट, कांग्रेस खत्म हुई
लेफ्ट फ्रंट, जिसका राज्य में 34 सालों तक लगातार शासन रहा उसकी आज ऐसी हालत हो चुकी है कि वह किसी तरह एक सीट जीत पाने में सफल हो सकी, दूसरी तरफ विधानसभा में विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी का दम भरने वाली कांग्रेस को तो कोई सीट ही नहीं मिल सका। लेफ्ट फ्रंट और कांग्रेस का राज्य में इस खस्ताहाल के पीछे सबसे बड़ा कारण उनसे जनता का भंग होता मोह है। इन पार्टियों ने केन्द्र या राज्य में अपने शासन के दौरान यह साबित कर दिया कि वे जनता की आंकाक्षाओं और जरूरतों को पूरा करने में सक्षम नहीं है।ममता बनर्जी की मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति
ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने लेफ्ट फ्रंट के 34 साल के लंबे वर्चस्व को समाप्त करके 2011 में राज्य की सत्ता पर कब्जा जमाया, लेकिन ममता बनर्जी की भी राजनीति कांग्रेस के समान मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति पर चलती है। ममता, 30 प्रतिशत मुस्लिम आबादी को तमाम योजनाओं के जरिए धन देकर और भय दिखाकर वोट बटोरने का काम करती हैं। इन सात नगर निकायों के 148 वार्डों के लिए हुए चुनावों में टीएमसी को 140 वार्डों पर जीत हासिल हुई है, जिसमे उसे 85 प्रतिशत के आसपास वोट मिले, इन एकतरफा आंकड़ों को देखते हुए चुनावों पर नजर रखने वाले विश्लेषकों का मानना है कि ममता बनर्जी ने बड़े पैमाने पर चुनावों में धांधलेबाजी की है।

ममता बनर्जी ने अपनी सत्ता बनाये रखने के लिए राज्य की प्रशासन व्यवस्था का बड़े ही क्रूर तरीके से इस्तेमाल किया है, ऐसी विषम राजनीतिक परिस्थितियों में भी भाजपा ने प्रदेश के 6 महत्वपूर्ण वार्डों पर अपना कब्जा जमा लिया है, जबकि राज्य की स्थापित राजनीतिक पार्टियां खत्म हो चुकी हैं। भाजपा का पश्चिम बंगाल में शिफर से शिखर तक की यह यात्रा, ममता बनर्जी के लिए एक चुनौती बनकर सामने खड़ी हो गई है। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने जिस तेजी से पश्चिम बंगाल की जनता के बीच अपनी पकड़ मजबूत की है, उसकी काट के लिए ममता बनर्जी मंत्र ढूंढने का प्रयास कर रही हैं।ममता को मोदी का डर
ममता बनर्जी जानती हैं कि राज्य में भाजपा उनके भ्रष्ट प्रशासन के लिए 2019 के लोकसभा चुनाव में जबरदस्त चुनौती है इसलिए वह अपने राजनीतिक विरोधियों कांग्रेस और लेफ्ट फ्रंट से भी समझौता करने का मन बना चुकी हैं। हाल ही में हुए राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनावों के लिए उन्होंने सभी पार्टियों को एक मंच पर लाकर विपक्ष की तरफ से साझा उम्मीदवार खड़ा किया। यही नहीं राज्यसभा के लिए कांग्रेस के उम्मीदवार प्रदीप भट्टाचार्य को समर्थन देकर, राज्यसभा चुनाव जीतने में सहयोग भी दिया।

ममता बनर्जी जिस डर से अपने राजनीतिक प्रतिद्वदियों से हाथ मिला रही थी, वह डर नगर निकायों के चुनावों ने सही साबित कर दिया है। पश्चिम बंगाल में मोदी के नेतृत्व में भाजपा ही ममता बनर्जी की तथाकथित धर्मनिरपेक्ष सत्ता को 2021 में उखाड़ फेंकने का दम रखती है।

 

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