कर्नाटक की कांग्रेस सरकार के नाक के नीचे एक ‘वामपंथ से प्रभावित’ पत्रकार की हत्या हो गई। बजाय कर्नाटक की सरकार को कोसने के तथाकथित सेक्युलर जमात ने इसके लिए हिंदुत्व की विचारधारा को हत्यारा करार दे दिया। लेकिन फर्जी खबर छापने वाली इस पत्रकार का कांग्रेस नेताओं से किस तरह का कनेक्शन था, इसका कोई जिक्र नहीं किया जा रहा। इस बात पर भी कोई सवाल नहीं कि कर्नाटक में किसकी सरकार है? कानून-व्यवस्था किसकी जिम्मेदारी है? तथाकथित सेक्युलर गिरोह का ये दोहरा नजरिया क्यों?
बौद्धिकता की Lynching पर उतारू हैं ये पत्रकार!
अपने आपको प्रगतिशील मानने वाले तथाकथित सेक्युलर गिरोह के वैचारिक आकाओं ने तो फैसला सुना दिया कि पनसारे, दाभोलकर और कलबुर्गी की तरह कट्टर हिंदूवादी संगठनों ने हत्या की है, क्योंकि पत्रकार कट्टर हिंदूवाद की विरोधी थी। लेकिन इस बात पर इनके मुंह नहीं खुलते कि कलबुर्गी की हत्या को दो साल हो गए हैं, लेकिन अब तक इसके वास्तविक हत्यारों का पता क्यों नहीं लगाया जा सका है? दाभोलकर की हत्या के वक्त भी महाराष्ट्र में कांग्रेस की ही सरकार थी, फिर क्यों नहीं हत्यारे पकड़े गए? सवाल उठ रहे हैं कि किसी की मौत पर बिना किसी पुख्ता सबूत के बौद्धिक जुगाली करने का अधिकार इन्हें किसने दिया? अगर हत्यारे दक्षिणपंथी नहीं निकले तो क्या ऐसे बौद्धिक आतंकवादियों को सरेआम फांसी पर लटका दिया जाए?
Dhabolkar , Pansare, Kalburgi , and now Gauri Lankesh . If one kind of people are getting killed which kind of people are the killers .
— Javed Akhtar (@Javedakhtarjadu) September 5, 2017
Shocking & tragic! Brave journalist Gauri Lankesh who exposed the BJP has been shot dead in her home in Bangalore!https://t.co/bBl9wnHZJA
— Prashant Bhushan (@pbhushan1) September 5, 2017
Pansare, Kalburgi, Dabholkar, Lankesh, who is next? What is going on? Why haven’t the guilty been caught in previous cases? #GauriLankesh
— Rajdeep Sardesai (@sardesairajdeep) September 5, 2017
In India we bow to frauds like Ram Rahim and kill men and women of reason & inquiry like Pansare, Dabholkar, Kalburgi & now #gaurilankesh
— barkha dutt (@BDUTT) September 5, 2017
मुंह में राम, बगल में छुरी लेकर चलते हैं ये ‘बौद्धिक आतंकवादी’!
साफ है कि इस सेक्युलर गिरोह का निशाना सिर्फ और सिर्फ मोदी सरकार है। पत्रकार की हत्या कर्नाटक में हुई है लेकिन वे सवाल पीएम मोदी से करते हैं। क्या यह उनका बौद्धिक दिवालियापन नहीं है। वे यह सवाल कांग्रेस के अध्यक्ष या उपाध्यक्ष से नहीं कर सकते हैं कि आप नकारे सीएम को क्यों नहीं हटा देते? कहीं यह बड़ी साजिश तो नहीं कि ऐसे शिगूफे छोड़ दिए जाएं कि कांग्रेस की सरकार को बचा लिया जाए? ये वही जमात है जिन्हें हिंदुओं की हत्या पर कभी भी रहम नहीं आती और न ही कभी एक शब्द निंदा की भी बोलते हैं।
Why everyone is talking abt #GauriLankeshMurder
Here is list of RSS/BJP Activist who got murderd in Karnataka & no one tweeted a single word pic.twitter.com/fXm6x2wzaX— Milan Patel ?? (@thegreatmeet) September 6, 2017
एक गंभीर मुद्दा पत्रकारों की अपरिपक्वता की भेंट चढ़ गई!
हेमंत यादव, राजदेव रंजन, संजय पाठक, ब्रजेश कुमार जैसे न जाने कितने पत्रकारों ने पहले भी जान गंवाई है- वैचारिक झंडाबरदारी करते हुए नहीं, खबरों के पीछे भागते हुए, लेकिन अफसोस उनके लिए ना तो राजनीतिक पार्टियों को शर्मिंदगी हुई ना ही उनकी कौम के कथित ठेकेदार पत्रकारों को। एक संवेदनशील घटना पर इतना त्वरित और अपरिपक्व रवैया अपनाकर इन बौद्धिक मुर्दों ने हिंदूवादी संगठनों के नाम ठीकरा फोड़ कर और प्रधानमंत्री से जवाब मांग कर, सिद्धारमैया को इशारा दे दिया गया है कि आपका इस्तीफ़ा नहीं मांगेंगे।
.@BDUTT Anr. #NotInMyName Sham. “Protest” would be credible ONLY if FAILURE of Cong Govt. Of Karnataka is highlighted #GauriLankeshMurder
— Rosy (@rose_k01) September 6, 2017
सिद्धारमैया की नाकामी पर खामोश क्यों है बौद्धक जमात!
कर्नाटक में सरकार संघ (भाजपा) की नहीं है, कांग्रेस की है तो लीपापोती के आरोप नहीं लग सकता है। ऐसे में इस बौद्धिक गिरोह ने सीधे पीएम मोदी पर हमला बोल दिया ताकि सिद्धारमैया की सरकार पर सवाल न उठे। दरअसल खबर है कि सिद्धरमैय्या की सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ ही खबर पर काम कर रही थीं। इन बौद्धिक आतंकवादियों ने मौत के आधे घंटे में ये तय कर दिया कि हत्या किसने की और किसलिए की। ये बौद्धिक आतंकी आधे घंटे के भीतर बैनर/पोस्टर छपवा चुके थे और एक सुर, एक ताल, एक लय में मामले का भगवाकरण करने में जुट गए।
Ravish Kumar on #GauriLankeshMurder https://t.co/oISfKGVA5a
— Smita Sharma (@Smita_Sharma) September 6, 2017
मौत का मातम नहीं, लानत-मलानत की खुशी का इजहार!
दरअसल ये लोग गौरी लंकेश की की मौत पर मातम नहीं खुशी मना रहे हैं। इन्हें इस बात की प्रसन्नता है कि इनके हाथ मोदी सरकार की लानत-मलानत करने का एक मौका और लग गया है। इनकी असंवेदनशीलता और अपरिपक्वता ने एक गंभीर सवाल को सियासत के रंग में घोल दिया है। ये कथित बुद्धिजीवी जमात का दिवालियापन है कि इन लोगों ने ऐसा माहौल तैयार कर दिया है कि नक्सलियों की हमदर्द माने जाने वाली पत्रकार की मौत का कुछ लोग जश्न मना रहे हैं। दरअसल यह न्यूटन की गति के तीसरे नियम जैसा ही है-हर क्रिया के विपरीत प्रतिक्रिया।
किसी की हत्या, किसी के जश्न का सबब क्यों बन जाती है?
बहरहाल ऐसी लानत-मलानत के लिए बौद्धिक आतंकियों से क्या सवाल किए जाएं। इन्हें तो बस ये बताना जरूरी है कि नक्सल हमलों का जश्न मनाने वालों, नक्सलियों के हमदर्दों… ये तो होना ही था। इसी साल अप्रैल में सुकमा में नक्सलियों के हमले में CRPF के 24 जवान शहीद हुए। एक IITian और मशहूर ‘हिंदी आंदोलनकारी’ गिद्ध पाठक सोशल मीडिया पर उस हमले का जश्न मनाता रहा, लेकिन किसी भी बौद्धिक आतंकी ने उसकी आलोचना नहीं की। सियासी मकसद से मौत पर जश्न जैसे अमानवीय व्यवहार करने के बाद जाहिर है कि किसी की हत्या की निंदा का नैतिक हक खो चुका है ये बौद्धिक जमात।
पता नहीं पत्रकारों ने #GauriLankesh पर सभा में वामपंथी नेताओं को बुलाया या आने दिया. इन्हें माइक थमा कर मीडिया के अभियान का अपमान ज़रूर किया
— Manak Gupta (@manakgupta) September 7, 2017
बौद्धिक गिद्ध हैं, लाशों के चीथड़े तो उड़ाएंगे ही!
गौरी लंकेश नक्सलियों की हमदर्द थीं, यह उनके ही भाई का आरोप है। वह झूठ फैलाने की दोषी भी थीं और कोर्ट से उन्हें 6 महीने जेल की सजा भी हुई थी, जुर्माना भी लगा था। उनकी हत्या के पीछे पारिवारिक रंजिश से लेकर right wing extremists का हाथ होने की बातें कही जा रही है लेकिन हत्यारों का सर्टिफिकेट देने वाले बौद्धिक आतंकियो अब तक कम से कम लाशों पर राजनीति करना बंद करो। लेकिन क्या तुम करोगे… शायद नहीं, क्योंकि तुम सिर्फ बौद्धिक आतंकी भर नहीं … ‘बौद्धिक गिद्ध’ जो ठहरे।