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पाकिस्तान को बड़ा झटका: पनबिजली प्लांट निर्माण के लिए भारत को विश्व बैंक की अनुमति

सिंधु जल समझौता मामले में भारत की बड़ी जीत, एक रिपोर्ट

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल कहा था कि खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते। उनका संकेत साफ था कि भारत अब सिंधु जल समझौते को लेकर नरम नहीं रहेगा। अब केंद्र सरकार के प्रयास से विश्व बैंक ने भी पाकिस्तान को बड़ा झटका दिया है। बुधवार को विश्व बैंक ने सिंधु जल संधि (IWT) के तहत भारत को झेलम और चिनाव नदियों की सहायक नदियों पर कुछ शर्तों के साथ जल विद्युत परियोजना का निर्माण करने को मंजूरी दे दी है। वहीं किशनगंगा और रातले जलविद्युत परियोजना पर पाकिस्तान की आपत्तियों को विश्व बैंक ने नकार दिया है।

विश्व बैंक ने ये कहा
संक्षिप्त बयान देते हुए वर्ल्ड बैंक ने कहा, “1960 की सिंधु जल संधि (IWT) के तहत भारत को झेलम और चिनाव की सहायक नदियों पर प्रोजेक्ट पूरा करने की इजाजत है।” वर्ल्ड बैंक ने अपनी फैक्टशीट में कहा है कि भारत जिस प्लांट पर काम कर रहा है वह झेलम और चिनाब नदी पर है। इस संधि के तहत इन नदियों के साथ-साथ पाकिस्तान का पश्चिम की नदियों के पानी पर भी हक बनता है। इन सबके बावजूद वर्ल्ड बैंक ने कहा है कि भारत अपनी योजना को संधि तोड़े बिना पूरा कर सकता है।

विश्व बैंक ने ये अनुमति दी
दरअसल भारत झेलम और चिनाब नदी पर हाइड्रो-इलेक्ट्रिक पावर प्लांट बना रहा है, जिस पर पाकिस्तान ने आपत्ति जताई थी और सिंधु जल समझौते को लेकर विश्व बैंक के सामने मामले में सुनवाई की अपील की थी। विश्व बैंक ने कहा कि भारत और पाकिस्तान दोनों ही सितंबर में वाशिंगटन में सिंधु जल समझौते पर चर्चा के तैयार हो गए हैं। इसके साथ ही विश्व बैंक ने भारत को 330 वॉट के किशनगंगा और 850 वॉट के रैटले हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर प्लांट के निर्माण को मंजूरी दे दी है।

भारत-पाक में ये है विवाद
भारत और पाकिस्तान के बीच यही विवाद है कि यह डिजाइन संधि के अनुकूल है या नहीं। किशनगंगा प्रोजेक्ट झेलम की सहायक नदी है, जबकि रातले प्रोजेक्ट चेनाब नदी से जुड़ा हुआ है। संधि में दोनों नदियों को पश्चिमी नदी के तौर पर परिभाषित किया है। पाकिस्तान इन नदियों के पानी का असीमित इस्तेमाल कर सकता है। विश्व बैंक ने मंगलवार को फैक्टशीट जारी कर कहा कि भारत जिन रूपों में नदियों का पानी इस्तेमाल कर सकता है, उसमें पनबिजली परियोजनाएं भी शामिल हैं। हालांकि इसकी कुछ सीमाएं भी हैं।

 महबूबा और सिंधु जल समझौता के लिए चित्र परिणाम

संधि से जम्मू-कश्मीर को नुकसान
जम्मू-कश्मीर सरकार हमेशा से कहती रही है कि इस संधि से राज्य को हर साल करोड़ों रुपये का आर्थिक नुकसान हो रहा है। संधि पर पुनर्विचार के लिए विधानसभा में 2003 में एक प्रस्ताव भी पारित किया था। लेकिन पूर्ववर्ती सरकारों के ढुलमुल रवैये के कारण राज्य को भारी नुकसान झेलना पड़ता रहा है। पीएम मोदी ने 2014 में सत्ता संभालने के कुछ दिनों के बाद ही इस संधि को लेकर सवाल उठाए और इस समस्या के हल का प्रयास किया। हालांकि यह भी तथ्य है कि पाकिस्तान इस संधि के प्रस्तावों का इस्तेमाल कश्मीर में गुस्सा भड़काने के लिए करता है।

नेहरू की नीतियों से नुकसान
भारत और पाकिस्तान के बीच 57 साल पहले यह सिंधु जल समझौता हुआ था। इस अंतरराष्ट्रीय जल संधि पर 19 सितंबर, 1960 को तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और पाक राष्ट्रपति जनरल अयूब खान ने हस्ताक्षर किए थे। इसके तहत सिंधु घाटी की 6 नदियों का जल बंटवारा हुआ था। इन नदियों को दो हिस्सों (पूर्वी और पश्चिमी) दो हिस्सों में बांटा गया था। पूर्वी पाकिस्तान की तीन नदियों (व्यास, रावी और सतलज) का नियंत्रण भारत के पास है। जबकि सिंधु, चेनाब, झेलम का नियंत्रण पाकिस्तान के पास है।

नेहरू और सिंधु जल समझौता के लिए चित्र परिणाम

आतंकवादी देश पर उदारता क्यों?
सिंधु जल समझौता दुनिया की सबसे उदार जल संधियों में से एक माना जाता है। इसके तहत पाकिस्तान को उसकी तरफ जाने वाली नदियों के पानी की निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित होती है। भारत की उदारता इतनी है कि तीन बार युद्ध के बावजूद यह संधि नहीं टूटी। भारत में संधि के तहत नदियों से मिलने वाले पानी की पूरी क्षमता का इस्तेमाल करने का फैसला किया गया था। लेकिन सवाल उठता है कि भारत में आतंकवाद फैलाने वाले देश पाकिस्तान के साथ भारत इतनी उदारता क्यों बरत रहा है?

सिंधु नदी पर एक दृष्टि

  • 11.2 लाख किलोमीटर क्षेत्र में सिंधु नदी का क्षेत्रफल
  • 47 फीसदी क्षेत्र पाकिस्तान में आता है
  • 39 फीसदी इलाका भारत, 8 प्रतिशत चीन और 6 प्रतिशत अफगानिस्तान में
  • 30 करोड़ लोग सिंधु नदी के आसपास के इलाकों में रहते हैं

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