भूमि अधिग्रहण विधेयक का विरोध, असहिष्णुता का फर्जी वातावरण, अवार्ड वापसी अभियान… जब ये सारे हथकंडे नाकाम हो गए तो कांग्रेस समेत विपक्ष का ‘डर्टी ट्रिक्स डिपार्टमेंट’ प्रधानमंत्री मोदी के विरुद्ध पूरे दम-खम से दुष्प्रचार में जुट गया है। दरअसल कांग्रेस प्रधानमंत्री मोदी का सामना करने में समर्थ नहीं हो पा रहा है इसी झल्लाहट में अनापशनाप आरोप और निगेटिव प्रोपेगेंडा का दौर चल पड़ा है। गुजरात दंगों के मामले में जब प्रधानमंत्री कोर्ट द्वारा बेदाग साबित हुए तो भी विरोधी पक्षों ने मोदी विरोध का झंडा थामे रखा। दरअसल बदले दौर में मोदी का विरोध राजनीतिक पैंतरे के साथ ही कारोबार में भी तब्दील हो चुका है। हाल में तमिल फिल्म मर्सेल में भी गलत तथ्यों और विद्वेषता के साथ कुछ इसी तरह के दृश्य डाले गए ताकि मोदी विरोध के नाम पर कंट्रोवर्सी खड़ा हो और फिल्म चल निकले।
मोदी विरोध के नामपर खड़ा किया गया कंट्रोवर्सी
तमिल अभिनेता विजय की फिल्म ‘मेरसल’ में जीएसटी और डिजिटल इंडिया की नीति पर तंज किया गया है। फिल्म में केंद्र सरकार की इन नीतियों की आधारहीन आलोचना की गई है और सांप्रदायिक रंग भी देने की कोशिश की गई है। दरअसल यह फिल्म प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरुद्ध ‘घृणा फैलाने का कैंपेन’के तौर पर चलाया जा रहा है। इस बात का प्रमाण यह भी है कि राहुल गांधी ने इस पर ट्वीट कर इसे तमिल जनभावना से जोड़ते हुए समर्थन भी किया है। स्पष्ट है कि अखबार, टीवी, वेबसाइट, सोशल मीडिया के बाद अब एंटी मोदी कैंपेन फिल्मों के जरिये भी चलाया जा रहा है।
Mr. Modi, Cinema is a deep expression of Tamil culture and language. Don’t try to demon-etise Tamil pride by interfering in Mersal
— Office of RG (@OfficeOfRG) October 21, 2017
मीडिया के एक वर्ग द्वारा मोदी विरोध का एजेंडा
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले जैसे असहिष्णुता गैंग आक्रामक था, अवॉर्ड वापसी का दौर चलाया गया था। लेकिन बिहार चुनाव जैसे ही खत्म हुआ ये अभियान रोक दिया गया। ठीक ऐसे ही अभी गुजरात और हिमाचल प्रदेश चुनाव के मद्देनजर ऐसे कैंपेन फिर से चलाया जा रहा है। फर्जी वेबसाइट बनाए गए और गलत खबरें फैलाने का अभियान चल पड़ा है। मीडिया का एक धड़ा द्वारा मोदी विरोध का जैसे ‘सुपारी’ ले लिया गया है।
बीते 8 सितंबर को कर्नाटक की पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या के विरोध में जब दिल्ली के प्रेस क्लब में पत्रकारों का जमावड़ा लगा तो स्पष्ट दिखा कि यह हत्या का विरोध नहीं, लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की सुरक्षा की लड़ाई नहीं… बल्कि विचारधारा की लड़ाई है। यहां जुटी भीड़ में पत्रकार इक्के दुक्के हों भी, लेकिन ‘पक्षकार’ अधिक थे। ये जाहिर हो गया कि यहां अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर लोकतांत्रिक मर्यादाओं से खिलवाड़ हो रहा था और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कठघरे में खड़ा करने की खुल्लमखुल्ला कोशिश थी। मंच और माइक वामपंथी और कांग्रेसी नेताओं के हाथों में दे दिया गया था मानो ‘पक्षकार’ भी किसी दल विशेष का हिस्सा हो गए हों।
सोशल मीडिया पर दुष्प्रचार का विपक्ष का हथकंडा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरोध में रोज पत्रकारिता की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। आए दिन कोई न कोई पत्रकार और विपक्ष के नेता फर्जी खबरों को सोशल मीडिया पर फैलाकर दंगा फैलाने जैसा काम कर रहे हैं। एक लड़की के साथ हुई छेड़छाड़ की घटना को बीएचयू से जोड़कर झूठ फैलाया गया। इस फर्जी खबर को फैलाने में पत्रकारों के अलावा आम आदमी पार्टी के नेता भी थे। प्रधानमंत्री मोदी को लेकर फैलाया गया झूठ ज्यादा देर तक चला नहीं और लोगों ने असली खबर दिखाकर इनकी पोल खोल दी।
दरअसल लखीमपुर खीरी में एक प्रेम प्रसंग के मामले में लड़की पर हमला हुआ जिसे सोशल मीडिया पर बीएचयू की लड़की बताकर चलाया गया और यह कहा गया कि पीएम मोदी इस तरह से छात्राओं पर अत्याचार कर रहे हैं। आप भी देखिए फर्जी खबरों के इस गोरखधंधे की कुछ झलकियां-
मॉब Lynching पर फैैलाया गया झूठ
विपक्ष हाल में मॉब लिंचिंग की कुछ वारदाताओं पर खूब हाय-तोबा मचा रहा था। लेकिन केंद्रीय गृहमंत्रालय आंकड़ों ने सारी हकीकत खोल दी है। दरअसल सांप्रदायिक हिंसा के मामलों में केरल, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल सबसे ऊपर हैं। ये आंकड़े साल 2014 से 2016 के बीच के हैं। सवाल उठना लाजिमी है कि क्या अपनी नाकामियों को छिपाने के लिये ही विपक्ष प्रधामंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार को बदनाम करके की साजिशें रच रहा है।
दरअसल केरल में अभी वामपंथी गठबंधन की सरकार है। उससे पहले कांग्रेस की अगुवाई वाली UDF की सरकार थी। इसी तरह पश्चिम बंगाल में लगातार ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस की सरकार है। जबकि यूपी में पिछले मार्च महीने तक समाजवादी पार्टी की सरकार थी। यानी अगर इन तीनों राज्यों में सांप्रदायिक हिंसा से जुड़ी वारदातें सबसे ज्यादा हुईं तो इसके लिये केंद्र की बीजेपी सरकार को कैसे दोष दिया जा रहा है?
Activist #ShabnamHashmi returns National Minority Rights Award protesting recent mob “lynchings”, including Junaid’s; was conferred in 2008 pic.twitter.com/ms1n2pWEsv
— Press Trust of India (@PTI_News) June 27, 2017
निजी हमलों के जरिये मोदी विरोध की मुहिम
भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के पुत्र जय शाह के विरुद्ध दुष्प्रचार किया जा रहा है। जय शाह की जिस कंपनी के बारे में कहा जा रहा है कि उनकी कंपनी टेंपल एंटरप्राइजेज प्रा. लि. का टर्नओवर 16 हजार गुना बढ़ गया है…तो आइये जरा इसकी हकीकत भी जान लीजिए कि ऐसा कैसे हुआ?
दरअसल जय शाह की जिस कंपनी का जिक्र किया जा रहा है उसके बारे में हकीकत यह है कि कंपनी में 50 हजार के निवेश के साथ इसे 15.78 करोड़ का लोन मिला था। राजेश खंडवाला नाम के व्यक्ति से मिला जो परिमल नाथवानी ( राज्यसभा सांसद )और रिलायंस इंडस्ट्रीज के टॉप एग्जीक्यूटिव है। अब इस लोन के बाद कंपनी का टर्न ओवर 80 करोड़ होना कोई बड़ी बात नहीं है। दरअसल एक सामान्य उत्पाद के खरीद-बिक्री के धंधे में यह आराम से किया जा सकता है और यही हुआ। सबसे विशेष है कि जय शाह को दिये गए लोन की रकम का वो ब्याज और मूलधन समेत वापस कर चुके हैं, और एक पैसा भी कर्ज नहीं है। बावजूद इसके मीडिया के एक धड़े ने इस झूठी खबर को खूब प्रसारित किया और प्रधानमंत्री मोदी को कठघरे में कड़ा करने की कोशिश की।
झूठी खबरें फैलाकर मोदी विरोध का अभियान
कई पत्रकार हैं जो मोदी विरोध के नाम पर फर्जी खबरें भी फैला रहे हैं। इन्हीं से एक हैं विनोद विप्लव। बीते दिनों उन्होंने अपनी फेसबुक वॉल पर एक गलत खबर लिखकर लोगों को भ्रमित करने की कोशिश की। उन्होंने आकाशवाणी पर प्रधानमंत्री के मन की बात कार्यक्रम के बारे में गलत सूचनाओं को फेसबुक पर शेयर करके इस माध्यम का दुरुपयोग किया है। आकाशवाणी के महानिदेशक फय्याज शहरयार ने विनोद विप्लव के इस दुर्भावनापूर्ण पोस्ट की कड़ी शब्दों में निंदा की है।
Distasteful Facebook post of one Vinod Viplav describing an imaginary incident about #MannKiBaat, maligning All India Radio is reprehensible pic.twitter.com/51YWKVODuT
— Fayyaz Shehryar (@fsheheryar) August 29, 2017
आखिर उन्होंने ऐसा क्यों किया? क्या उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि बिगाड़ने और मन की बात के बारे में दुष्प्रचार के इरादे से ऐसा किया है? कहीं वह किसी छिपे एजेंडे के तहत तो ऐसा नहीं कर रहे हैं? उनसे ऐसी शर्मनाक हरकत की उम्मीद तो नहीं ही थी। इस पोस्ट के जरिये विनोद विप्लव अपनी विश्वसनीयता के साथ-साथ पत्रकारिता की विश्वसनीयता पर भी कुठाराघात कर रहे हैं।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का नाजायज फायदा
जब से देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार बनी है, कुछ तथाकथित बुद्धिजीवी दिनरात स्वयं को सेक्युलर साबित करने के तिकड़म में लगे रहते हैं। इसके लिए उन्होंने पीड़ितों की लाश से उनकी जाति या धर्म को ढूंढ निकालने को अपना पेशा बना लिया है। जैसे ही उन्हें पता चलता है कि हिंसा में मारा गया व्यक्ति मुस्लिम है, वो दोनों हाथों से छाती पीटना शुरू कर देते हैं। कई बार दलितों के मामले में भी यही खेल खेला जाता है। लेकिन जैसे ही कोई पीड़ित हिंदू निकल जाता है या फिर हत्यारे मुस्लिम निकल आते हैं तब उनकी सारी ‘सेक्युलराई’ (Secularism) धरी की धरी रह जाती है। इन्होंने तो ऐसे मौकों पर अपने नाम को सुर्खियों में लाने का धंधा बना लिया है। ऐसे दोहरे चरित्र वाले कथित Secularist किसी आतंकवादी से कम खतरनाक नहीं हैं। आतंकी तो एक बार नरसंहार करके चले जाते हैं, लेकिन ये सेक्युलर जो मानसिक नरसंहार करते हैं, उससे आने वाली पीढ़ियों तक की सोच क्षतिग्रस्त हो जाती है।