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कांग्रेस के घोटाले को मोदी सरकार के मत्थे मढ़ने की साजिश का खुलासा

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पीएनबी फर्जीवाड़ा मामले को राजनीतिक रंग दिया जा रहा है, लेकिन तथ्य ये है कि कांग्रेस के कुकर्मों का आरोप मोदी सरकार को झेलना पड़ रहा है। दरअसल मीडिया का एक धड़ा भी मोदी सरकार को इस घोटाले का जिम्मेदार ठहरा रहा है, लेकिन आईने की तरह बिल्कुल साफ है कि इस मामले में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ही कठघरे में खड़ी है और इसकी पोल धीरे-धीरे खुल भी रही है। 

इलाहाबाद बैंक के पूर्व निदेशक ने खोल दी कांग्रेस की पोल
पीएनबी जैसे फर्जीवाड़े को बढ़ावा देने के लिए मूल रूप से कांग्रेस ही जिम्मेवार इसलिए है कि उस दौर में भी ऐसे बैड लोन और एनपीए को लेकर सवालात खड़े किए गए, लेकिन कांग्रेस की सरकारों ने इसे अनसुना कर दिया। ऐसे भी मामले सामने आए हैं जब मुंह बंद रखने तक की धमकी दी जाती थी। इलाहाबाद बैंक के पूर्व निदेशक दिनेश दूबे के इस पत्र को देखिये तो काफी कुछ समझ में आ जाएगा।


मेहुल चोकसी को गलत तरीके से दिया गया ऋण
दिनेश दुबे के अनुसार पीएनबी घोटाले की शुरुआत 2013 में इलाहाबाद बैंक की निदेशक मंडल की बैठक में ही हो गई थी। नई दिल्ली में हुई उस बैठक में गीतांजलि ज्वेलर्स के मालिक मेहुल चोकसी को 550 करोड़ रुपये देने को मंजूरी दी गई थी और चोकसी को बैंक की हांगकांग शाखा से भुगतान किया गया था। गौरतलब है कि मेहुल चोकसी रिश्ते में घोटालेबाज नीरव मोदी के मामा हैं।

2013 में हुए फर्जीवाड़े को कांग्रेस ने दबा दिया
दरअसल इलाहाबाद बैंक पीएनबी सहित देश के चार अन्य सरकारी बैंकों को लीड करता है। नई दिल्ली के होटल रेडीसन में 14 सितंबर, 2013 को इलाहाबाद बैंक के निदेशक मंडल की बैठक हुई। इसमें भारत सरकार की ओर से नियुक्त निदेशक दिनेश दुबे ने चोकसी को 550 करोड़ लोन देने का विरोध किया। 16 सितंबर को इस बैठक की जानकारी दुबे ने भारतीय रिजर्व बैंक के तत्कालीन डिप्टी गवर्नर केसी चक्रवर्ती को भी दी। इसके बाद बैंक अधिकारियों को तलब भी किया गया, बावजूद इसके मेहुल चोकसी को बैंक की हांगकांग शाखा से भुगतान कर दिया गया। केंद्रीय वित्त सचिव और आरबीआई को इस फैसले की जानकारी भी लगी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई। असल में उस समय बैंक के अधिकारी मेहुल चोकसी को सैकड़ों करोड़ देकर खुद भी करोड़ों रुपये डकारने में लगे थे, जिसके चलते मामला दब गया। बाद में यही घपला हजारों करोड़ तक पहुंच गया।

व्हिसल ब्लोअर की गलत जानकारी पर राजनीति
एशिया टाइम्स का दावा है कि वर्ष 2016 में ही पीएमओ को फर्जीवाड़े की जानकारी दे दी गई। इस दावे के अनुसार 26 जुलाई 2016 को व्हिसल ब्लोअर हरि प्रसाद ने पीएमओ को पत्र लिखकर नीरव द्वारा पीएनबी को भारी वित्तीय नुकसान पहुंचाने की सूचना दी थी। दावे के अनुसार पत्र में हरि प्रसाद ने यह भी कहा कि वह इससे पहले वित्त मंत्री सहित वित्तीय गड़बड़ियों की जांच से जुड़ी सभी एजेंसियों के संज्ञान में यह मामला ला चुके हैं, लेकिन इस पर कोई कार्रवाई नहीं होने के बाद वह पीएमओ को इसकी सूचना दे रहे हैं। इस बाबत हरि प्रसाद के लेटर को कांग्रेस के ट्विटर हैंडल से पब्लिक भी किया गया है। 

दरअसल एशिया टाइम्स ने अपनी रिपोर्ट का आधार इसी हरि प्रसाद के पत्र को बनाया है जो कांग्रेस के आरोपों के अनुरूप ही है। इसमें ये साफ है कि हरि प्रसाद 2012 में मेहुल चोकसी के ज्वेलरी फ्रैंचाइजी के रूप में बिजनेस में आए थे। उन्होंने दावा किया है कि मुंबई के व्यक्ति और कंपनी द्वारा किए गए धोखाधड़ी पर जानकारी दी जिसमें सार्वजनिक धन के नुकसान भी शामिल हैं। दरअसल हरि प्रसाद के ये पत्र एक नहीं कई वित्तीय अनियमितताओं की बात करता है और वे अभियुक्तों के बैलेंस शीट में कई कमियों की बात करते हैं।

हरि प्रसाद का कहना है कि 31 बैंकों ने लगभग 25 करोड़ रुपये की संपत्ति के बदले लगभग 9872 करोड़ के ऋण दिए इस कारण टैक्स देनदारियां बढ़ी और बकाया शेष रहे। हरि प्रसाद का दावा है कि भारतीय कंपनियां नुकसान में हैं और विदेशी लाभ में हैं, इसलिए यह माना जा सकता है कि मेहुल चोकसी ने विदेशों में धन भुगतान किया। लेकिन पब्लिक किए गए इन पत्रों में न तो नीरव मोदी का जिक्र है और न ही पीएनबी बैंक का। इसके अलावा न तो लेटर ऑफ अंडर टेकिंग (LOU) और क्रेडिट लेटर की ही बात है। इसमें दो बैंक कर्मचारियों के बीच तालमेल और स्विफ्ट मैसेजेज के बारे में चर्चा नहीं की गई है। जबकि 11 हजार करोड़ रुपये के फर्जीवाड़े के लिए सबसे बड़ी चीजें यही हैं।

दरअसल हरि प्रसाद द्वारा यह जिक्र जरूर है कि फ्रेंचाइजी को चोकसी ने धोखा दिया और उनकी अचल संपंतियों के बदले अधिक कर्ज दिया गया। जाहिर है कि इससे वर्तमान घोटाले का कोई लेना देना नहीं है, क्योंकि मौजूदा घोटाला ‘ऑफ बैलेंस शीट’ आइटम से संबंधित है।

देखा जाए तो यह घोटाला बहुत लंबे समय तक नहीं चल पाया क्योंकि अंडरटेकिंग्स के पत्र फंड बेस्ड क्रेडिट सुविधाएं नहीं थीं और आरोपी दोनों कंपनियों की बैलेंस शीट भी बंद थीं।

जाहिर है हरि प्रसाद के पत्रों के आधार पर यह गलत और गुमराह करने वाला है, क्योंकि पीएमओ को दी गई सूचना में सामान्य अनियमितता का संकेत दिया गया था क्योंकि वे फ्रेंचाइजी के रूप में पीड़ित थे। अगर हरि प्रसाद के पास वर्तमान घोटाले से संबंधित कोई पत्र है तो उसे जरूर सार्वजनिक किया जाना चाहिए। कांग्रेस पार्टी ऐसे पत्र लेकर सामने आए तो उनका दावा पुख्ता हो सकता है, अगर नहीं ला पाती है तो यह सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस द्वारा अपने कुकर्मों को छिपाने की जुगत मानी जा सकती है।

रघुराम राजन ने बंद कर रखी थींं आंखें
यह सर्वविदित है कि बैंक सहित तमाम वित्तीय संस्थाओं के कार्यों की देखरेख पर नजर केंद्र सरकार नहीं बल्कि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया करता है। 4 सितंबर 2013 से सितंबर 2016 तक RBI के गवर्नर रघुराम राजन ही थे। उनकी नियुक्ति कांग्रेस ने की थी और यह माना जा सकता है कि देश की वित्तीय संस्थाओं पर अप्रत्यक्ष रूप से ही सही, 2016 तक कांग्रेस का ही कब्जा रहा है। जाहिर है रघुराम राजन की जिम्मेदारी बनती थी कि बैंकों में हो रहे ऐसे फर्जीवाड़ों पर रोक लगाने की कवायद करते। अलबत्ता यह भी देखने वाली बात है कि इस दौरान उन्होंने कभी ऐसे मामलों पर ध्यान भी नहीं दिया, जबकि एनपीए और बैड लोन जैसे मामले 2008 से ही बढ़ते जा रहे थे।

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