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तो इसलिए घबराए हुए हैं लालू !

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आरजेडी अध्यक्ष लालू यादव बुरी तरह से घिर चुके हैं। जनता के 950 करोड़ रुपये लूटने के लिए उन्हें देश के कानून से सजा मिली हुई है। लेकिन, उन्होंने फिर भी अभी तक कभी कानून की परवाह नहीं की। उनके और उनके परिवार के घोटालों और भ्रष्टाचार का सिलसिला जारी रहा। हजारों करोड़ की बेनामी संपत्ति बनाने के आरोप हैं। संपत्ति हड़पने के लिए ऐसे-ऐसे हथकंडे अपनाए जिनके बारे में कभी किसी ने सुना तक नहीं। वो सोच रहे थे कि उनके सियासी मित्र कानून के हर शिकंजे से उन्हें बचा लेंगे। जबतक कांग्रेस की सरकार रही, उन्हें मनमानी करने की छूट मिली। लेकिन अब उन्हें भी लग रहा है कि उनके पापों का घरा भर चुका है। देश की गरीब जनता से लूटी गई पाई-पाई का हिसाब देने का समय आ चुका है। इसीलिए वो बिलबिला उठे हैं। कभी वो प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी पर भड़ास निकालते हैं, तो कभी मीडिया पर हमला कर देते हैं।

भ्रष्टाचार के मामलों में कस चुका है शिकंजा
समाचार पोर्टल जागरण के अनुसार लालू यादव और उनके परिवार वालों के खिलाफ अब नए सिरे से सीबीआई जांच भी शुरू हो सकती है। दरअसल लालू और उनके परिवार के कई सदस्य पहले से ही अनगिनत बेनामी संपत्तियों के मामले में आयकर जांच के दायरे में हैं। सच्चाई ये है कि लालू के परिवार ने जो भी गैर-कानूनी संपत्ति जमा की है वो लोकसेवक के पदों पर रहते हुए बनाई है। जैसे स्वयं लालू यादव बिहार के मुख्यमंत्री से लेकर केंद्रीय मंत्री और सांसद रह चुके हैं, उनकी पत्नी राबड़ी देवी बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री हैं, उनके छोटे बेटे बिहार के डिप्टी सीएम हैं और बड़े बेटे भी महत्वपूर्ण कैबिनेट मंत्री हैं। जबकि बड़ी बेटी मीसा भारत राज्यसभा सांसद हैं। इन सभी के कभी न कभी लोकसेवक रहने के चलते जांच सीबीआई के दायरे में आ सकती है।

नित्य नये कारनामों का खुलासा
लालू यादव स्वयं चारा घोटाले के सजायाफ्ता मुजरिम हैं। लेकिन हाल के कुछ महीनों में उनके और उनके परिवार के एक के बाद एक कारनामों का जो खुलासा हुआ है, उससे देश की जनता सन्न रह गई है। पटना से लेकर दिल्ली तक उनके परिवार के नाम अनगिनत बेनामी संपत्तियां होने के आरोप हैं। एक बेनामी संपत्ति की जांच शुरू होती है, तबतक दूसरी संपत्ति निकल आती है। इन सभी मामलों में लालू के परिवार वालों पर आरोप है कि उन्होंने गलत तरीके से संपत्ति तो बनाई ही, इसके लिए तरह-तरह की जालसाजी का भी सहारा लिया। आयकर विभाग आय से अधिक संपत्ति और बेनामी संपत्तियों का हिसाब लगा रही है। हालांकि तबतक परिवार की सारी बेनामी संपत्तियों को जब्त किया जा चुका है। आयकर विभाग मीसा भारती से पूछताछ भी कर चुका है। फर्स्ट पोस्ट पोर्टल के अनुसार प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने भी करीब 1 हजार करोड़ रुपये के बेनामी संपत्ति सौदे के सिलसिले में एफआईआर दर्ज किया है।

मोदी सरकार में भ्रष्टाचारियों की खैर नहीं
कालाधन और भ्रष्टाचार विरोधी पीएम मोदी की नीति से लालू शुरू से ही परेशान रहे हैं। उन्हें पता है कि भ्रष्टाचारी चाहे कितनी ही रसूख वाला क्यों न हो, मोदी सरकार में किसी की भी बचने की गुंजाइश नहीं। लालू की इसी मानसिकता ने उन्हें मोदी सरकार का विरोधी बना रखा है। विमुद्रीकरण हो या सर्जिकल स्ट्राइक वो हर मुद्दे पर कांग्रेस के पिछलग्गू बने रहे हैं। जबकि राजनीति को किनारे रखकर इन मसलों पर उनके सहयोगी नीतीश कुमार ने मोदी सरकार का खुलकर साथ दिया है। लालू को यही भय सताता रहा है कि उन्होंने जिस तरह की लुट मचाई थी, उन सबका भांडाफोड़ होने वाला है। यही कारण है कि वो मोदी विरोध में देश के दुश्मनों को भी पीछे छोड़ने की कोशिश करते दिखते हैं।

अबतक कांग्रेस बचाती थी!
लालू बिहार की सत्ता में हों या केंद्र में , कांग्रेस के साथ उनकी पार्टी का चोली-दामन का संबंध रहा है। शायद भ्रष्टाचार और घोटालों की मानसिकता दोनों के वैचारिक गठबंधन की सबसे बड़ी वजह है। यही वजह है कि कांग्रेस को जब भी मौका मिला उसने लालू यादव को सियासी संरक्षण देने का काम किया है। इसके लिए कांग्रेस सरकारों पर केंद्रीय एजेंसियों के भी गलत इस्तेमाल के आरोप लग चुके हैं। दुनिया जानती है कि मनमोहन के नाम वाली (सोनिया- राहुल की सरकार) सरकार के जिस अध्यादेश को कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने सार्वजनिक रूप से फाड़ने की नौटंकी की थी, वो किसे बचाने के लिए लागू किया जा रहा था ?

नीतीश ने भी किनारा करना शुरू किया!
विमुद्रीकरण के बाद सबसे पहले बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने ही प्रधानमंत्री मोदी से बेनामी संपत्ति कानून को भी कड़ाई से लागू करने की अपील की थी। जब से लालू का परिवार बेनामी संपत्तियों के मामले में घिरने लगा है, तब से लोग पूछने लगे हैं कि कहीं नीतीश का इशारा लालू की अकूत संपत्तियों की ओर ही तो नहीं था ? आशंका बेवजह नहीं है। नीतीश सरकार ने बिहार में लालू के परिवार वालों के भ्रष्टाचार के विरोध में भले ही कोई कदम नहीं उठाए हों, लेकिन लालू परिवार पर बेनामी संपत्ति कानून के तहत हो रही कार्रवाई पर उनकी चुप्पी लालू यादव को अंदर ही अंदर खाए जा रही है। उनसे महागठबंधन को न तो निगलते बन रहा है और न ही वो उगल ही पा रहे हैं। ऊपर से बिहार के राज्यपाल रामनाथ कोविंद की एनडीए के राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी का समर्थन करके तो नीतीश ने लालू की नींद ही उड़ा दी है। लेकिन वो मजबूरी में कोई निर्णय नहीं कर पा रहे हैं।

महागठबंधन लालू की मजबूरी
लालू जानते हैं कि अगर बिहार में सत्ता से बेदखल हुए तो उनके परिवार की मुश्किलें और भी बढ़ जाएंगी। अभी तक नीतीश उनके और उनके परिवार के भ्रष्टाचार के मामलों को केंद्र के मत्थे छोड़कर निश्चिंत बैठे हुए हैं। यही नहीं, लालू की नकेल कसने के लिए हत्या के मुजरिम शहाबुद्दीन से जेल में उनकी बात करने की वारदात ही काफी है। अगर राज्य सरकार ने सही तरीके से कार्रवाई शुरू की और कानूनी दखल का इस्तेमाल किया तो लालू कहीं के नहीं रह जाएंगे। यही वजह है कि आरजेडी के सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद लालू, नीतीश कुमार के खिलाफ मुंह नहीं खोल पा रहे हैं।

मोदी विरोध में ही लालू को आस
लालू जानते हैं कि देश की जनता के सामने उनका चरित्र उजागर हो चुका है। यही कारण है कि वो हर बार अपनी करतूतों से देश का ध्यान हटाने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाते हैं। जब भी उनके नए कारनामों का खुलासा होता है वो केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ हल्ला बोलना शुरू कर देते हैं। वो हर राजनीतिक मसले को जाति और सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश शुरू कर देते हैं। उन्हें लगता है कि धर्मनिरपेक्षता-धर्मनिरपेक्षता का हंगामा करेंगे, तो उनकी करतूतों पर से लोगों का ध्यान हट जाएगा।

चारा चोर और मोदी विरोधी एक-दूसरे के पूरक
जहां लालू अपने घोटालों पर पर्दा डालने के लिए विपक्ष का इस्तेमाल करना जानते हैं। वहीं देश की राजनीति में अलग-थलग पड़ा मोदी विरोधी विपक्ष भी लालू में अपने सियासी फायदे तलाशने में लगा रहता है। देश की राजनीति की दुर्दशा देखिए कि सजाप्राप्त मुजरिम भी धर्मनिरपेक्षता और जातिवाद के नाम पर मोदी विरोधियों का अगुवा बन बैठता है। सब जानते हैं कि लालू ने गरीब जनता के खजाने को लूट लिया है। उनका शहाबुद्दीन जैसे खतरनाक अपराधियों से संबंध हैं। शहाबुद्दीन वो अपराधी है जो जेल में रहकर उन्हें एसपी जैसे अफसरों तक को हटाने का निर्देश देता है। लेकिन, फिर भी उन्हें लगता है कि लालू अपराधी हैं तो क्या हुआ, उनके नाम पर हिंदू विरोधियों को तो एकजुट किया जा सकता है। सबसे बड़ी बात है कि स्वयं को सबसे पुरानी पार्टी कहने वाली कांग्रेस भी मोदी विरोध के नाम पर घोषित चारा चोर के सामने नतमस्तक हो जाती है।

कहते हैं कि काठ की हांडी ज्यादा देर तक नहीं चलती। ये देश संविधान और कानून से चला है। अपराधी कितना भी बड़ी न हो जाए, कानून के सामने वो अपराधी ही रहता है और उसे वही सजा मिलती है, जिसका वो गुनहगार है। शायद लालू यादव को भी धीरे-धीरे इस कटू सच्चाई का एहसास हो चुका है। उनकी तात्कालिक बौखलाहट इसी एहसास का परिणाम लगता है।

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