प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दृढ़ निश्चय और सुप्रीम कोर्ट के इंसाफ के हथौड़े ने मुस्लिम महिलाओं को 1000 सालों की ‘पापी प्रथा’ से मुक्ति दिला दी है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा तीन तलाक को असंवैधानिक करार देने के साथ ही 22 अगस्त से मुस्लिम महिलाओं के जीवन में स्वाभिमान और समानता के एक नये युग की शुरुआत हुई है। कोर्ट के ऐतिहासिक निर्णय के कारण सदियों से सामाजिक कुरीतियों के मकड़जाल में फंसा कर रखी गई आधी मुस्लिम आबादी को आजादी का अहसास हो रहा है। जाहिर है प्रधानमंत्री मोदी के प्रयासों से ही उनके जीवन में नया सवेरा हुआ है। इसलिए जैसे ही सुप्रीम कोर्ट नें महिलाओं के हक में अपना निर्णय सुनाया तो पीएम मोदी ने इसे महिला सशक्तिकरण की दिशा में ऐतिहासिक कदम बताया।
Judgment of the Hon’ble SC on Triple Talaq is historic. It grants equality to Muslim women and is a powerful measure for women empowerment.
— Narendra Modi (@narendramodi) August 22, 2017
15 अगस्त को पीएम मोदी ने किया था वादा
प्रधानमंत्री ने अक्सर कहा है कि तीन तलाक के मुद्दे पर देश की कुछ पार्टियां वोट बैंक की भूख में 21वीं सदी में मुस्लिम औरतों से अन्याय करने पर तुली हैं। उनका साफ मानना है कि मुस्लिम महिलाओं को समानता का अधिकार मिलना ही चाहिए। इस वर्ष लाल किले के प्राचीर से जब पीएम मोदी ने ट्रिपल तलाक का मुद्दा उठाया और कहा कि वे मुस्लिम बहनों को न्याय दिलाने में मदद करेंगे तो करोड़ों मुस्लिम महिलाओं ने पीएम मोदी को धन्यवाद दिया। केंद्र सरकार की दलील पर ही सुप्रीम कोर्ट ने संसद को इसको लेकर 6 महीने के अंदर कानून बनाने का भी निर्देश दिया।
पीएम मोदी ने कुप्रथा के विरुद्ध उठाई आवाज
प्रधानमंत्री ने निर्णय आने के पहले कम से कम छह बार सार्वजनिक मंच से तीन तलाक के मुद्दे को आवाज दी। उन्होंने पीड़ित महिलाओं के कानूनी और मानवीय हक को जायज ठहराया और हर बार साथ देने की बात दोहराई। प्रधानमंत्री 24 अक्टूबर, 2016 को यूपी के महोबा की धरती से ‘तीन तलाक’ को 21वीं सदी में चलने वाला सबसे बड़ा अन्याय बताया था। उन्होंने राजनीति से ऊपर उठकर मुस्लिम महिलाओं को न्याय दिलाने की खुली अपील की थी। जिसके बाद तीन तलाक की कुप्रथा पर कठोर प्रहार करने का अभियान चल पड़ा।
पीएम ने दी जुबान तो आंदोलन चढ़ा परवान
पीएम मोदी की अपील के बाद मुस्लिम महिलाएं खुलकर अपने साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ मैदान में उतर गयीं। सुप्रीम कोर्ट से इन महिलाओं ने तीन तलाक को खत्म करने की मांग की। मैं अकेला ही चला था जानिबे मंजिल मगर लोग आते गए कारवां बनता गया… इसी तर्ज पर पूरे देश की मुस्लिम महिलाएं इकट्ठा होने लगीं और पीएम मोदी से इस मामले में हस्तक्षेप करने की भी मांग की। तीन तलाक के बढ़ते विरोध से पीएम मोदी ने अपनी सोच को और दृढ़ किया। 29 अप्रैल, 2017 को भी एक कार्यक्रम के दौरान पीएम मोदी ने इस कुप्रथा को खत्म करने की बात दोहराई थी।
पीएम मोदी ने किया आह्वान, संघर्ष को मिला अंजाम
पीएम मोदी ने आंदोलन को आवाज दी तो मुस्लिम महिलाओं ने इस लड़ाई को अंजाम तक पहुंचा दिया। केंद्र की मोदी सरकार ने मुस्लिम महिलाओं का पग-पग पर साथ दिया और कुप्रथा के विरुद्ध इस लड़ाई में जीत हासिल की। प्रधानमंत्री से हौसला पाकर मुस्लिम महिलाएं न सिर्फ कठमुल्लों से लड़ीं, बल्कि बौद्धिक आतंकियों से भी लड़ी हैं। उन राजनीतिक गिद्धों से भी लड़ी हैं जो सुप्रीम कोर्ट के फैसले को संसद में पलट देते हैं।
पीएम मोदी ने की पर्सनल लॉ बोर्ड की बोलती बंद कर दी
तीन तलाक पर पीएम मोदी की अपील पर जिस तरह से मुस्लिम महिलाओं ने अपनी आवाज बुलन्द की, और केंद्र सरकार ने जिस तरह की दलील पेश की, उसके बाद सर्वोच्च न्यायालय में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की बोलती बंद हो गयी। जो मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इस मामले में अदालत जाने की बात तक को गलत बता रहा था, वही बोर्ड ये कहने को मजबूर हुआ कि ट्रिपल तलाक कुप्रथा है और वह इसे डेढ़ साल के भीतर खुद ही खत्म कर देगा। हालांकि पर्सनल लॉ बोर्ड कहता ही रह गया और केंद्र सरकार ने अपना काम कर दिया।
मोदी सरकार ने की तीन तलाक खत्म करने पुरजोर वकालत
5 फरवरी 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने अटार्नी जनरल मुकुल रस्तोगी से कहा कि वो ट्रिपल तलाक, निकाह हलाला और बहुपत्नी रखने के संवैधानिक अधिकार को जांचे। इसके बाद कई प्रक्रियाएं हुईं और जब केंद्र सरकार को अपना पक्ष रखना था तो केंद्र ने अपने हलफनामे में कहा, ”लैंगिक समानता और महिलाओं के मान सम्मान के साथ समझौता नहीं हो सकता।” 07 अक्टूबर 2016 को मोदी सरकार ने इसे महिलाओं के आत्मसम्मान और मूल अधिकारों से जोड़ते हुए कहा, ”मूल अधिकारों के तहत संविधान के अनुच्छेद-14 में जेंडर समानता की बात कही गई है। महिला को सामाजिक, आर्थिक और भावनात्मक तरीके से हाशिये पर रखना संविधान के अनुच्छेद-15 के तहत सही नहीं होगा। महिला के आत्मसम्मान और मान-सम्मान का जो अधिकार है वह राइट टू लाइफ के तहत दिए गए अधिकार का महत्वपूर्ण पहलू है।” साफ है कि तमाम सियासी विरोध के बावजूद मोदी सरकार अडिग रही और कोर्ट को अंतत: मुस्लिम महिलाओं के हक में फैसला देना पड़ा।
मोदी सरकार ने महिलाओं की जीत सुनिश्चित की
केद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि भारत यूएन के फाउंडर मेंबर में से एक रहा है और यूएन चार्टर से बंधा हुआ है औरर संयुक्त राष्ट्र प्रस्तावना में जेंडर समानता को मानवाधिकार माना गया है। यूएन कमिशन ने घोषित किया था कि देश, नस्ल, भाषा, धर्म अलग होने के बावजूद महिला का स्टेटस पुरुषों के समान होगा। केंद्र ने अपने हलफनामे में वियना घोषणा का भी जिक्र किया है। सरकार ने कहा है कि वियना घोषणा में कहा गया है कि महिला के साथ किसी भी तरह का भेदभाव नहीं होगा। उसकी प्रस्तावना कहती है कि महिला के साथ भेदभाव समानता के सिद्धांत के खिलाफ है और भारत भी इसे स्वीकार चुका है। जाहिर है केंद्र सरकार कहीं से नहीं चाहती थी कि इस कुप्रथा को खत्म करने में कोई अड़चन आए।
शाहबानो से शायरा बानो तक ट्रिपल तलाक
तीन तलाक की पीड़ित एक मुस्लिम महिला शायरा बानो ने इसके खिलाफ कोर्ट में एक अर्जी दाखिल की थी। इस पर शायरा का तर्क था कि तीन तलाक न तो इस्लाम का हिस्सा है और न ही आस्था का मामला। उन्होंने कहा कि उनकी आस्था ये है कि तीन तलाक मेरे और ईश्वर के बीच में पाप है। इसी तरह 39 साल पहले इंदौर की रहने वाली मुस्लिम महिला शाहबानो को उसके पति मोहम्मद खान ने 1978 में तलाक दे दिया था। पांच बच्चों की मां 62 वर्षीय शाहबानो ने गुजारा भत्ता पाने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ी और पति के खिलाफ गुजारे भत्ते का केस जीत भी लिया। लेकिन ऑल इंडिया पर्सनल लॉ बोर्ड के विरोध के कारण उन्हें हर्जाना नहीं मिला। AIPLB ने इसका पुरजोर विरोध किया ।
राजीव गांधी ने पलट दिया था कोर्ट का फैसला
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के विरोध के बाद राजीव गांधी की सरकार ने फैसला पलट दिया और 1986 में राजीव गांधी की सरकार ने मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 1986 पारित कर दिया। इस अधिनियम के तहत शाहबानो को तलाक देने वाला पति मोहम्मद गुजारा भत्ता के दायित्व से मुक्त हो गया था। जाहिर है कांग्रेस ने ऐसा तुष्टिकरण की नीति के तहत किया था। लेकिन केंद्र की मोदी सरकार का साफ कहना है कि किसी का नहीं हो तुष्टिकरण, सबका हो सशक्तिकरण।