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पान खाकर पिचकारी फेंकने वालों को वंदे मातरम बोलने का हक नहीं- पीएम मोदी

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि पान खाकर भारत माता पर पिचकारी फेंकने वालों को वंदे मातरम बोलने का हक नहीं है। स्वामी विवेकानंद के ऐतिहासिक शिकागो भाषण के सवा सौ वर्ष पूरे होने के अवसर पर यंग इंडिया, न्यू इंडिया कार्यक्रम के तहत छात्र-छात्राओं को संबोधित करते हुए उन्होंने ये बातें कहीं।

उन्होंने कहा कि, ‘वंदे मातरम सुनकर रौंगटे खड़े हो जाते हैं। हृदय में भारत भक्ति का भाव सहज रूप से जग जाता है। मैं पूरे हिंदुस्तान को पूछ रहा हूं कि क्या हमें वंदे मातरम कहने का हक है। मैं जानता हूं कि मेरी ये बात बहुत लोगों को चोट पहुंचायेगी। 50 बार सोच लीजिए कि क्या हमें वंदे मातरम कहने का हक है क्या? हम लोग पान खाकर के उस मारत मां पर पिचकारी मारें और फिर वंदे मातरम बोलें। सारा कूड़ा-कचरा भारत मां पर फेंकें और फिर वंदे मातरम बोलें। वंदे मातरम बोलने का पहला हक सफाई करने वाले उन सच्चे संतानों का है।’

शिकागो में स्वामी विवेकानंद के संबोधन की 125वीं वर्षगांठ के अवसर पर आयोजित समारोह को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि, ‘हम ये जरूर सोचें कि भारत माता सुजलाम सुफलाम है। हम सफाई करें या न करें, गंदा करने का हक हमें नहीं है। गंगा के प्रति श्रद्धा हो, गंगा में डुबकी लगाने से पाप धुलते हों, लेकिन उस गंगा को गंदा करने से हम रोक पाते हैं क्या। क्या आज विवेकानंद होते तो इस बात पर हमें डांटते कि नहीं डांटते। हम अस्पतालों और अच्छे डॉक्टरों के चलते नहीं, सफाई करने वाले लोगों के चलते स्वस्थ हैं। डॉक्टर से भी ज्यादा अगर उनके प्रति आदर रहे, तब वंदे मातरम कहने का आनंद आता है।’

उन्होंने कहा कि, ‘एकबार मैंने बोल दिया पहले शौचालय फिर देवालय, तो बहुत लोगों ने मेरे बाल नोच लिये। लेकिन आज मुझे खुशी है कि देश में ऐसी बेटियां हैं कि जो शौचालय नहीं तो शादी नहीं ऐसा व्रत लेती हैं। हम समयानुकल परिवर्तन में भरोसा करने वाले लोग हैं, इसीलिये हजारों साल से टिके हैं। हमारे बीच ऐसे लोग होते हैं जो बुराइयों के खिलाफ लड़ने में आगे आते हैं। विवेकानंद नहीं होते तो हम सांप सपेरों के देश, एकादशी और पूर्णिमा को क्या खाना, यही हमारी पहचान थी। उन्होंने दुनिया को बता दिया कि जो आप सोचते हैं वो हमारी संस्कृति नहीं है।’

उन्होंने विवेकानंद जी को याद करते हुए कहा कि पिछली शताब्दी में एक 9/11 वो था, जब उन्होंने अपने ओजस्वी भाषण से दुनिया को हिला दिया था। जबकि इस सदी की शुरुआत में जो 9/11 हुआ उसने अमेरिका समेत पूरे विश्व की मानवीयता को झकझोर कर रख दिया। पीएम के अनुसार अगर दुनिया विवेकानंद जी के विचारों को लेकर आगे बढ़ी होती तो इस सदी के 9/11 जैसी मानवता विरोधी घटना नहीं होती।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि, ‘विश्व को 2001 से पहले पता ही नहीं था कि 9/11 का मतलब क्या है। दोष दुनिया का नहीं, दोष हमारा था कि हमने ही उसे भुला दिया था। अगर हम न भुलाते तो शायद 21वीं सदी का 9/11 न होता। सवा सौ साल पहले भी एक 9/11 हुआ था जिस दिन इस देश के एक नौजवान ने दुनिया को भारत की ताकत का परिचय करा दिया।’

प्रधानमंत्री ने कहा कि, ‘उस समय तक विश्व को पता नहीं था कि लेडीज एंड जेंटलमैन के सिवा भी कोई बात हो सकती है। जिस समय सिस्टर्स एंड ब्रदर्स ऑफ अमेरिका के शब्द निकले मिनटों तक तालियों की गूंज थी। उस महापुरुष ने पल दो पल में पूरे विश्व को अपना बना लिया। वो पूरे विश्व की संस्कृतियों को अपने में समेट कर पूरे विश्व को अपनत्व का प्रमाण देता है।’

श्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि, ‘आज विवेकानंद जी को अलग रूप में समझने की आवश्यकता है। आप बारीकी से देखेंगे तो उनका दो रूप ध्यान में आएगा। उन्हें विश्व में जहां अवसर मिला भारत का महिमामंडन, भारतीय चिंतन, परंपराओं का महिमामंडन करने से वो कभी थकते नहीं थे। ये एक रूप था विवेकानंद का। दूसरा रूप ये था कि जब भारत में बात करते थे तो हमारी बुराइयों को खुलेआम कोसते थे। हमारी भीतर की दुर्बलताओं पर कुठाराघात करते थे। काफी कठोर भाषा का प्रयोग करते थे। समाज की हर बुराइयों के खिलाफ आवाज उठाते थे। उस समय के सामाज की कल्पना कीजिए। जब रिचुअल्स का महत्व ज्यादा था। पूजा-पाठ परंपरा समाज की सहज प्रवृत्ति थी। ऐसे समय 30 का नौजवान कह दे कि मंदिर में बैठे रहने से भगवान मिलने वाले नहीं हैं। ये जन सेवा, वही प्रभु सेवा, जनता जनार्दन की सेवा करो तब जाके प्रभु प्राप्त होगा, कितनी बड़ी ताकत थी।’

उन्होंने कहा कि,’वो संत परंपरा के थे, लेकिन जीवन में कभी गुरु खोजने नहीं निकले थे। ये सीखने और समझने का विषय है। वो गुरु खोजने नहीं निकले थे,वे सत्य की तलाश में थे। महात्मा गांधी भी जीवन भर सत्य की तलाश से जुड़े रहे थे। परिवार में आर्थिक स्थिति कठिन थी। रामकृष्ण जी मां काली के पास भेजते हैं, जो तुझे जो चाहिए मां काली से मांग। जब बाद में पूछा कि कुछ मांगा तो कहा कि नहीं। कौन सा मिजाज होगा। जो काली के सामने खड़े होकर भी मांगने के लिये तैयार नहीं है। भीतर वो कौन सा लौह तत्व होगा, कौन सी ऊर्जा होगी जिसमें ये सामर्थ्य पैदा हुआ।’

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि, ‘क्या हम अपने समाज की बुराइयों के खिलाफ नहीं लड़ेंगे। अमेरिका की धरती पर विवेकानंद जी ब्रदर्स एंड सिस्टर्स ऑफ अमेरिका कहें तो हम नाच उठें। लेकिन अपने नौजवानों को कहना चाहूंगा कि क्या हम नारी का सम्मान करते हैं। हम लड़कियों के प्रति आदर भाव से देखते हैं क्या। जो देखते हैं उनको मैं सौ बार नमन करता हूं। अगर जो उन्हें बराबरी से नहीं देखते तो फिर उन्हें विवेकानंद जी के सिस्टर्स एंड ब्रदर्स ऑफ अमेरिका पर तालियां बजाने का हक है कि नहीं इस पर पचास बार सोचना पड़ेगा।’

प्रधानमंत्री ने कहा कि, ‘लगभग 120 साल पहले उन्होंने रामकृष्ण मिशन को जन्म दिया। विवेकानंद मिशन को जन्म नहीं दिया। बात छोटी होती है, लेकिन इशारा काफी होता है। उसकी कैसी नींव मजबूत बनाई होगी उन्होंने।
फाउंडेशन कितना स्ट्रॉन्ग होगा, विजन कितना क्लीयर होगा, एक्शन प्लान कितना साफ होगा। भारत के विषय में कितनी गहराई से अनुभूति होगी तब 120 साल बाद भी वो आंदोलन उसी भाव से चल रहा है।’

प्रधानमंत्री ने साफ कहा कि, ‘विवेकानंद की सफलता का कारण ये था कि उनके भीतर आत्मसम्मान और आत्म गौरव का भाव था। आत्म मतलब व्यक्ति नहीं जिस देश को वो प्रतिनिधित्व कर रहे थे उसकी महान विरासत।विवेकानंद ने जमशेद जी टाटा से कहा था कि भारत में उद्योग लगाओ न, मेक इन इंडिया बनाओ न। जमशेद जी टाटा ने स्वयं माना है कि उनके उद्योग लगाने के पीछे विवेकानंद जी की ही प्रेरणा थी।’ 

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि, भारत में प्रथम कृषि क्रांति का विचार भी उन्होंने ही दिया था। उस उम्र में उन्होने आधुनिक खेती की बात की थी। वो नवाचार और अनुसंधान के हिमायती थे। हमारी देश के युवा पीढ़ी में भी ये जज्बा होना चाहिए। कभी-कभी असफलता ही सफलता ही सफलता का रास्ता दिखाता है। हिंदुस्तान बहुत बड़ा मार्केट है अपने देश के नौजवानों की बुद्धि और सामर्थ्य का इंतजार कर रहा है’

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