पत्रकार के हत्यारे तो फिर भी पकड़ लिए जाएंगे लेकिन क्या पत्रकारिता के हत्यारों को छू भी पाएंगे?... दरअसल ये सवाल इसलिए कि तथाकथित बौद्धिक पत्रकारों ने गौरी लंकेश की हत्या को नौटंकी बना दिया है। प्रेस क्लब में जुटे तो पत्रकारों पर हो रहे हमलों का विरोध करने के लिए, लेकिन मंच और माइक राजनीतिक आकाओं के हाथों में दे दिया गया और वास्तविक पत्रकारों की आत्मा पर आघात किया गया।
तस्वीर में दिख रहे चंद मठाधीश पत्रकार जो अपनी उम्र, अपने अनुभव की परवाह किए बिना जुमा-जुमा चार रोज के कन्हैया जैसे लड़कों के चरणों में लोट गए। खुद अपना मंच अपनी मेज नेताओं के हवाले कर दिया और कहते रहे कि अब तो ‘गोदी मीडिया’ का जमाना है।
३. दुख इस पर भी कि बिना यह जाने कि हत्या किसने की और क्यों, मित्रों, नेताओं ने शोक सभा की गरिमा को राजनीतिक मंच की भाषणबाजी में बदल दिया।
— राहुल देव Rahul Dev (@rahuldev2) September 6, 2017
सवाल ये कि पत्रकार गौरी की हत्या पर पत्रकारों के विरोध प्रदर्शन पर राजनीति का मुलम्मा क्यों? सवाल ये भी कि क्या देशद्रोह के आरोपी रहे कन्हैया और वामपंथी शेहला रशीद ने तमाम बड़े बौद्धिक पत्रकारों को उनकी औकात नहीं बता दी? डी राजा, सीताराम येचुरी, स्वामी अग्निवेश, आशुतोष, संजय सिंह जैसे नेताओं ने पत्रकारों की आत्मचेतना को चोट नहीं पहुंचाई?
इसे अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला नहीं कहते क्या?
दरअसल गौरी लंकेश की हत्या के खिलाफ पत्रकारों के विरोध कार्यक्रम को ‘वामपंथी गैंग’ ने सरेआम हाईजैक कर लिया। पत्रकार की हत्या के खिलाफ पत्रकारों का कार्यक्रम…लेकिन इन पत्रकारों का ‘दोहरापन’ तो देखिए, एक चैनल विशेष के पत्रकार को कवरेज से रोक दिया गया लेकिन ये कुछ नहीं बोले।
एकबारगी मान भी लिया जाए कि अमुक पत्रकार BJP के कथित समर्थक चैनल का था, तब भी क्या हुआ? लंकेश तो घोषित बीजेपी विरोधी होकर भी पत्रकार थीं तो वह पत्रकार आखिर पत्रकार क्यों नहीं है? वहां मौजूद कथित पत्रकारों ने इस हरकत का विरोध क्यों नहीं किया?
बहरहाल ‘पक्षकारों’ ने भारत की सुप्रीम कोर्ट से बड़ी प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में फैसले का एलान कर दिया है। पहली बार देश ने जाना कि कोई पत्रकार भाजपा या कांग्रेस विरोधी होता है। मीडिया के मुताबिक गौरी भाजपा विरोधी थी। यदि ऐसा है तो वो पत्रकार कैसे थी?
रिपब्लिक टीवी या किसी भी चैनल से इस तरह की असहिष्णुता रखने वाला गैंग और उसके समर्थक एक मीडिया समूह के मालिक के कथित भ्रष्टाचार की जांच को अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमला, लोकतंत्र पर हमला, फासीवाद, अघोषित आपातकाल करार देते हैं। लेकिन क्या ‘वामपंथी’ गैंग और उसकी, अभिव्यक्ति की आजादी क्या मनी लॉन्ड्रिंग वालों की ही है? जाहिर है प्रेस क्लब दिल्ली में जमा पत्रकारों ने पत्रकारिता की ही तो हत्या की है!
बिना सबूत, बिना जांच दोषी ठहराना पत्रकारों का काम है?
हमारा संविधान कहता है कि किसी भी अपराधी को सजा सिर्फ कानून दे सकता है, लेकिन उसने कानून हाथ में ले लिया तो कानून के मुताबिक अपराधी पर कारवाई हो इसके लिए सबसे जरूरी है कि अपराधी पकड़ में आए। लेकिन दिल्ली में बैठकर ‘पक्षकारों’ ने बिना जांच, बिना मुकदंमा, बिना आरोपी के पकड़ में आए फैसला सुना दिया है। अब इस पर कोई सवाल नहीं और कोई जांच की बात नहीं होनी चाहिए।
धर्मांतरण कराने वालों का पत्रकारों के बीच क्या काम?
पत्रकारिता बचाने के लिए वामपंथी पक्षकारों का जो जमावड़ा प्रेस क्लब में हुआ था उसमें यह गुलाबी शर्ट वाला नौजवान भी था। इसके हाथ में जो तख्ती है वह गौरी लंकेश की हत्या को असुरक्षा से जोड़ रही है। यहां तक तो ठीक। लेकिन यह कोई पत्रकार नहीं है। यह नौजवान एक ईसाई मिशनरी संस्था कैरिटास इंडिया से जुड़ा है। हाथ में जो तख्ती है वह भी कैरिटास इंडिया की है जिसका उल्लेख बहुत छोटे शब्दों में तख्ती पर लिखा भी है। यह कैरिटास इंडिया भारत में ईसाई धर्मांतरण का काम करती है
सीबीआई जांच से बच क्यों रही है कर्नाटक सरकार?
मामले की गंभीरता को देखते हुए, राज्य सरकार मामले की जांच एसआईटी से कराना चाहती है, लेकिन परिवार वाले सीबीआई से। गौरी लंकेश के भाई इंद्रेश ने कहा, “मैं सीबीआई जांच की मांग करता हूं। जैसा कि पहले भी देखा जा चुका है कि कलबुर्गी के मामले में, जिसमें राज्य सरकार ने जांच की थी जो काफी निराशाजनक रही। मैं कह सकता हूं कि उन्होंने कुछ नहीं किया। कोई नहीं जानता कि गुनाहगार कौन है।“
इंद्रेश की बातों से कम से कम यह बात तो साफ है कि उनकी नजर में राज्य सरकार पर विश्वास नहीं किया जा सकता, यानी इंद्रेश भी कविता लंकेश द्वारा पैदा किए हुए संदेह के बादल को और घना करते रहे हैं। सवाल यह है कि राज्य सरकार सीबीआई जांच से क्यों बचना चाह रही है?
परिवारवालों के संदेह के पीछे एक बड़ी वजह कर्नाटक सरकार की नाकामी है। दरअसल इससे पहले भी कई हत्याएं हुई हैं जिनके हत्यारों का पता नहीं लगाया जा सका है। सबसे खास यह है कि इनमें कई हत्याएं राजनीतिक भी हैं और अफसरों की भी हैं।
बीजेपी नेताओं और संघ कार्यकर्ताओं की हत्या
बीजेपी सदस्य और दलित नेता श्रीनिवास प्रसाद उर्फ की थागनहल्ली वासु की बेंगलुरू में 15 अगस्त 2017 को हत्या कर दी गई थी। दो सालों में बीजेपी, विश्व हिन्दू परिषद् समेत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 10 नेताओं की हत्या हुई है।
Why everyone is talking abt #GauriLankeshMurder
Here is list of RSS/BJP Activist who got murderd in Karnataka & no one tweeted a single word pic.twitter.com/fXm6x2wzaX— Milan Patel ?? (@thegreatmeet) September 6, 2017
कन्नड़ के विद्वान और हंपी में कन्नड़ यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर रहे एमएम कलबुर्गी की 30 अगस्त 2015 को हत्या कर दी गई थी।
कर्नाटक के वे ऑफिसर जिनकी मौत संदिग्ध रही
- अनुराग तिवारीः 2007 बैच के कर्नाटक कैडर के आईएएस अधिकारी अनुराग तिवारी 17 मई 2017 को लखनऊ के हजरतगंज इलाके में अपने बर्थडे के दिन मृत पाए गए।
- डीके रविः नवंबर 2015 में साउथ बेंगलुरू में तवारेकेरे स्थित अपने प्राइवेट अपार्टमेंट के बेडरूम में डीके रवि का शव पंखे से झूलता हुआ मिला।
- एस. पी. महंतेशः कर्नाटक सरकार में एडमिनिस्ट्रेटिव ऑफिसर एसपी महंतेश ने को-ऑपरेटिव सोसायटी के आवंटन में अनियमितताओं का खुलासा किया था। महंतेश पर हमला हुआ और उन्हें रॉड से पीटा गया। गंभीर रूप से चोटिल महंतेश की मौत हो गयी।
- मल्लिकार्जुन बंदेः कर्नाटक पुलिस के सब इंस्पेक्टर मल्लिकार्जुन बंदे की अंडरवर्ल्ड के शार्पशूटर मुन्ना दरबदर और पुलिस के बीच हुई मुठभेड़ के दौरान मौत हो गई थी।
- कलप्पा हंडीबागः 5 जुलाई 2017 को चिकमंगलूरू के डीएसपी कलप्पा हंडीबाग का बेलागावी के मुरागोद में अपने रिश्तेदार के घर शव मिला।
- एमके गणपतिः 8 जुलाई 2017 को डीएसपी एमके गणपति को होटल में मृत पाया गया. गणपति के पास से मिले सुसाइड नोट ने बवाल खड़ा कर दिया। 51 वर्षीय ऑफिसर ने अपने नोट में राज्य के गृहमंत्री केजे जॉर्ज और दो पुलिस अधिकारियों पर उत्पीड़न का आरोप लगाया था।
- राघवेंद्रः पुलिस इंस्पेक्टर राघवेंद्र ने 18 अक्टूबर 2016 अपने सर्विस रिवॉल्वर से खुद को ही गोली मार कर आत्महत्या कर ली।
सिद्धारमैया की नाकामी पर खामोश क्यों हैं ‘पक्षकार’?
कर्नाटक में सरकार संघ (भाजपा) की नहीं है, कांग्रेस की है तो लीपापोती के आरोप नहीं लग सकता है। ऐसे में इन पक्षकारों ने सीधे पीएम मोदी पर हमला बोल दिया ताकि सिद्धारमैया की सरकार पर सवाल न उठे। दरअसल खबर है कि सिद्धरमैय्या की सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ ही खबर पर काम कर रही थीं। इन बौद्धिक आतंकवादियों ने मौत के आधे घंटे में ये तय कर दिया कि हत्या किसने की और किसलिए की। ये बौद्धिक आतंकी आधे घंटे के भीतर बैनर/पोस्टर छपवा चुके थे और एक सुर, एक ताल, एक लय में मामले का भगवाकरण करने में जुट गए।
राहुल-सोनिया से क्यों नहीं करते सवाल?
गौरी लंकेश का नक्सलियों से कनेक्शन की बात सरेआम है। उनके मनमुटाव की बात भी सभी जानते हैं। इसके साथ ही तथ्य यह कि पत्रकार की हत्या कर्नाटक में हुई है लेकिन ये पक्षकार सवाल पीएम मोदी से करते हैं। क्या यह उनका बौद्धिक दिवालियापन नहीं है? वे यह सवाल कांग्रेस के अध्यक्ष या उपाध्यक्ष से नहीं कर सकते हैं कि आप नकारे सीएम को क्यों नहीं हटा देते? सवाल उठ रहे हैं कि कहीं यह बड़ी साजिश तो नहीं कि ऐसे शिगूफे छोड़ दिए जाएं कि कांग्रेस की सरकार को बचा लिया जाए!
दरअसल प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के भीतर कल हुए ‘पाप’ ने वास्तविक पत्रकारों को हिला कर रख दिया है। क्या ये पक्षकार दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की अस्मत लूट लेंगे और हम चैन की बंशी बजाते रहेंगे?
गौरी लंकेश की हत्या से सभी आहत हैं। दुखी इसलिये की उनकी हत्या को चौथे स्तंभ की असुरक्षा से जोड़कर देखना चाहिए। लेकिन गौरी की हत्या के बाद एक खास दल और संगठन पर आरोप लगाने के लिए छाती पीटने वालों को पत्रकार माना जा सकता है?