Home पश्चिम बंगाल विशेष ममता का दोहरा चरित्र उजागर, तसलीमा नसरीन ने किया बेनकाब

ममता का दोहरा चरित्र उजागर, तसलीमा नसरीन ने किया बेनकाब

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भारत में निर्वासित जीवन जी रहीं बांग्लादेशी लेखिका तसलीमा नसरीन ने टीएमसी अध्यक्ष ममता बनर्जी को एनआरसी मुद्दे पर आईना दिखा दिया है। ममता बनर्जी एक राज्य की मुख्यमंत्री होकर भी इस समय देश में गृह युद्ध और खून-खराबे की धमकी दे रही हैं, जबकि राज्य की कानून और व्यवस्था बनाए  रखना उनकी संवैधानिक जिम्मेदारी है। ऐसे समय में तसलीमा नसरीन ने उनके दोहरे चरित्र को उजागर करते हुए उनकी असल मंशा जगजाहिर कर दी है। 

वैध बांग्लादेशी ने ममता की ‘अवैध’ मानसिकता की बखिया उधेड़ी
बांग्लादेशी लेखिका तसलीमा ने ममता से सीधा पूछ लिया है कि आज वो जिन बांग्ला भाषियों के लिए हमदर्दी दिखाने का नाटक कर रही हैं, उनकी ये हमदर्दी उस वक्त कहां चली गई थी, जब वो संकट में घिर हुईं थीं। उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा है, “ममताजी के मन में अपनी जड़ों से कट चुके और बेघर हुए सभी बांग्ला भाषियों के लिए सहानुभूति नहीं है। अगर ऐसा होता तो वो ये सहानुभूति मेरे लिए भी होती और उन्होंने मुझे भी पश्चिम बंगाल में घुसने की इजाजत दी होती।”

एक दूसरे ट्वीट में तसलीमा ने लिखा है- “देखकर अच्छा लगा कि ममताजी को 40 लाख बांग्ला भाषियों से इतनी हमदर्दी है। उन्होंने ये भी कहा कि असम से निकले लोगों को पश्चिम बंगाल में शरण देंगी। लेकिन, उनके मन में मेरे लिए तब हमदर्दी क्यों नहीं पैदा हुई, जिसे उनकी विरोधी पार्टी ने बंगाल से बाहर फेंक दिया था।”

तुष्टिकरण के लिए ममता ने तब भी कठमुल्लों का साथ दिया था
तसलीमा नसरीन ने 2004 में भारत में शरण लिया था और वो कोलकाता में रह रही थीं। लेकिन, 2007 में उनकी किताब ‘लज्जा’ के चलते उनकी जान पर बन आई। मुस्लिम कठमुल्लों ने उनका हिंसक विरोध शुरू कर दिया था। उस समय पश्चिम बंगाल की तत्कालीन वामपंथी सरकार ने मुसलमानों को खुश करने के लिए बेबस तसलीमा को राज्य से बाहर निकलने पर मजबूर कर दिया था। लेकिन, देश की शरण में आई एक विदेशी महिला की ये हालत देखकर भी तब ममता बनर्जी की ‘ममता’ नहीं जागी थी। जबकि, उस समय वो लेफ्ट सरकार पर हल्ला बोलने का कोई भी मौका नहीं गंवाती थी। लेकिन, तसलीमा के केस में वो भी वामपंथियों की तरह ही कठमुल्लों को हरगिज नाराज नहीं करना चाहती थीं। न्यूज पोर्टल माय नेशन में छपी खबर के मुताबिक 2017 में एक इंटरव्यू में तस्लीमा नसरीन ने ममता के बारे में कहा था, “हालांकि मैं यहां नहीं रहने वाली, ममता ने मेरी किताब ‘निर्वासन’ को प्रकाशित नहीं होने दिया। मुस्लिम कट्टरपंथियों के विरोध के बाद ममता ने मेरे द्वारा लिखे गए एक टीवी सीरियल का प्रसारण भी रोक दिया। वह मुझे बंगाल में प्रवेश नहीं करने दे रहीं।” तसलीमा नसरीन वही लेखिका हैं, जिन्होंने मुसलमान होकर भी अपने देश में कट्टरपंथी मुल्लों की पोल खोल कर रख दी थी, जिसके चलते उन्हें तीन दशकों से निर्वासित जीवन जीना पड़ रहा है।

बांग्लादेशी घुसपैठियों पर 13 साल में कितना बदल चुका है ममता का रंग
बात 13 साल पहले की है। तब ममता बनर्जी ने संसद में बाग्लादेशी घुसपैठियों को लेकर ही जो रंग दिखाया था, उससे आज के उनके रंग में जमीन-आसमान का फर्क है। 2005 में उन्होंने बांग्लादेश से घुसपैठ के मुद्दे पर स्पीकर के आसन पर कागज फाड़ कर फेंक दिया था। दरअसल, जब तत्कालीन डिप्टी स्पीकर ने उनसे कहा कि स्पीकर ने इस मुद्दे पर उनका स्थगन प्रस्ताव खारिज कर दिया है, तब उन्होंने कागज फाड़कर न सिर्फ डिप्टी स्पीकर पर फेंक दिया था, बल्कि लोकसभा की सदस्यता से भी इस्तीफा दे दिया था। हालांकि, बाद में जब स्पीकर ने उनका इस्तीफा नामंजूद कर दिया तो उन्होंने अपनी सदस्यता बचाए रखी। दिलचस्प बात ये है कि उस समय लेफ्ट की सहयोग वाली यूपीए सरकार थी, जो आजकल टीएमसी के सहयोगी बन गए हैं। 

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