Home नरेंद्र मोदी विशेष मोदी सरकार की योजनाओं पर mint का झूठ?

मोदी सरकार की योजनाओं पर mint का झूठ?

'अच्छे दिन' पर तंज कसने वालों की आंखें खोलने वाली रिपोर्ट

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”देश की सत्ता नहीं बदली… देश का मूड बदला है।” प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ये बयान 2014 में देश की कमान संभालने के बाद का है। निराशा के दौर में बदलाव के नारे के साथ सत्ता के शिखर तक पहुंचे पीएम मोदी ने देश के लोगों में आशा का माहौल बनाया। आर्थिक संकट से जूझ रहे देश में समृद्धि की उम्मीद जगाई। उन्होंने देश की क्षमताओं का आकलन करते हुए हर एक क्षेत्र में उसे अवसर में तब्दील करने की ठानी है। हालांकि अभी उनके कार्यकाल के तीन साल ही हुए हैं, फिर भी हर क्षेत्र में बदलाव के साथ प्रगति देखी जा सकती है। बावजूद इसके गाहे-बगाहे देश की प्रगति को लेकर कई सवाल भी उठाये जाते हैं। mint के संपादक आर सुकुमार ने अपने ताजा आलेख ‘If things are so good, why do we feel so bad?’ में पीएम मोदी के कार्यकाल में ‘अच्छे दिन’ के अहसास को लेकर आलोचनात्मक विश्लेषण किया है। हमने भी उनके दावों की सच्चाई जानने की कोशिश की और जिन विषयों पर उन्होंने सवाल उठाए हैं उनके बारे में तथ्य पता करने का प्रयास किया। हमने अपनी तथ्यात्मक पड़ताल में जो पाया वो आपके सामने है।  

देश को सामर्थ्यवान बनाने की पहल
आर सुकुमार ने जीएसटी, रियल इस्टेट कानून और नोटबंदी जैसी चीजों को आर्थिक गति की रफ्तार की धीमी करने वाला बताया है। लेकिन तथ्य यह है कि प्रधानमंत्री की हर नीति और कानून देश को सामर्थ्यवान बनाने की दिशा में है। स्किल इंडिया, मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्टार्ट अप इंडिया, मुद्रा योजना जैसी तमाम नीति देश के लोगों में विश्वास जगाने की एक पहल है। आधार, दिवालियापन का कानून, रियल इस्टेट बिल, जीएसटी और मौद्रिक नीति देश की आर्थिक तकदीर बदलने का माध्यम है। जबकि भ्रष्टाचार, कालाधन, उच्च शिक्षा, प्रशासनिक सुधार, बिजली सुधार, रेल सुधार के क्षेत्र में किए जा रहे कायाकल्प का प्रयास देश में सत्ता बदल जाने का अहसास जगाने का जरिया है। दौर ऐसा है जिसमें सत्ता, आवाजें, चेहरे, शब्द और शंखनाद बदल जाने का अनुभव होने लगा है। यानि अच्छे दिन आने लगे हैं।

बेहतर हो रही इकोनॉमी की गुणवत्ता
आर सुकुमार ने खास तौर पर नोटबंदी को आर्थिक प्रगति की रफ्तार में ब्रेक लगाने का जिम्मेदार ठहराया है। लेकिन हमारी पड़ताल में उनके इस दावे में दम नहीं दिख रहा है। दरअसल नोटबंदी के जरिये देश की अर्थव्यवस्था की गुणवत्ता को बेहतर बनाने की कोशिश है। 1000 और 500 के पुराने नोट बंद किए जाने के बाद से अब तक करीब 4.6 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा की नकदी पकड़ी जा चुकी है। अप्रैल 2017 तक ऑपरेशन क्लीन के तहत 60,000 लोग आयकर विभाग के रडार पर हैं। इतना ही नहीं नोटबंदी के बाद 91 लाख नये करदाता सामने आये हैं जो पिछले साल के मुकाबले 80 प्रतिशत ज्यादा हैं। जाहिर यह तो शुरुआती सफलताएं हैं, आने वाले वक्त में नोटबंदी के फैसले का असर देश की अर्थव्यवस्था पर और ज्यादा सकारात्मक पड़ने वाला है। 

नोटबंदी ने बदली देश की आर्थिक सूरत
आर सुकुमार के दावे को विश्व बैंक की रिपोर्ट भी खारिज करती है। विश्व बैंक की जून में आई एक रिपोर्ट के अनुसार 2017 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की वृद्धि दर 7.2 प्रतिशत रहेगी, जो 2016 में 6.8 प्रतिशत से अधिक है। अगर 2013 की बात करें तो ये आंकड़ा महज 4 प्रतिशत से थोड़ा ही ज्यादा था। विश्व बैंक ने जनवरी के अनुमान की तुलना में भारत की वृद्धि दर के आंकड़े को जून में 0.4 प्रतिशत संशोधित किया है। वहीं भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बना हुआ है। दूसरी तरफ कालेधन की समानांतर अर्थव्यवस्था पर नोटबंदी से चोट पड़ी है। यानि कालाधन से जुड़े आतंकवाद, हवाला, भ्रष्टाचार और तस्करी जैसी गतिविधियों पर अंकुश लगाने के जिस इरादे के साथ नोटबंदी का निर्णय लिया गया था, वो इरादे पूरे होने के मजबूत संकेत मिलने लगे हैं।

जीएसटी से बदल रही देश की आर्थिक तस्वीर
आर सुकुमार ने जीएसटी को लेकर कारोबारियों में नाराजगी की बात बताई है। उन्होंने इसके कानून को लेकर कन्फ्यूजन और इसकी अड़चनों की बात की है। लेकिन तथ्य यह है कि जीएसटी के शुरुआती 15 दिन के बाद राजस्व में सिर्फ 11 फीसदी की ही बढ़ोतरी हुई है। आंकड़े बताते हैं कि राजस्व में महीने-दर-महीने आधार पर 11 फीसदी की बढ़ोत्तरी हो  रही है। केंद्रीय उत्पाद शुल्क और सीमा शुल्क बोर्ड (सीबीईसी) की जानकारी के अनुसार एक जुलाई से 15 जुलाई के बीच आयात से प्राप्त कुल राजस्व 12,673 करोड़ रुपये रहा, जबकि जून महीने में समान अवधि में यह 11,405 करोड़ रुपये था।

जीएसटी को लेकर सकारात्मक सोच
आर सुकुमार ने जीएसटी से जुड़ी भ्रांतियों पर चर्चा की है। लेकिन यह भी सत्य है कि जीएसटी को लागू हुए अब 25 दिन हो गए… जैसे-जैसे समय बीत रहा है छोटे और मझोले कारोबारियों में इसे लेकर भ्रांतियां खत्म हो रही हैं। दूर होते कन्फ्यूजन के साथ ही व्यापारियों में सकारात्मक सोच उभर कर सामने आने लगी है। जीएसटी का सबसे ज्यादा विरोध कर रहे कपड़ा व्यवसायियों ने भी अपना विरोध वापस ले लिया है और इनमें से करीब 65 प्रतिशत व्यवसायियों ने रजिस्ट्रेशन भी करवा लिया है।

ऊर्जा के क्षेत्र में हो रहे ‘क्रांतिकारी’ बदलाव
आर सुकुमार ने ऊर्जा क्षेत्र में विकास की रफ्तार थमने की बात लिखी है। विशेषकर गैर परंपरागत ऊर्जा के बढ़ावे के साथ कोयला से उत्पादित ऊर्जा को तवज्जो नहीं देने की बात की है। लेकिन सत्य यह है कि ऊर्जा क्षेत्र देश का सबसे अधिक विकास करने वाले क्षेत्र में से एक है। यह क्षेत्र ऐसा है जिसमें देश कई चुनौतियों से जूझ रहा था। लेकिन बीते तीन सालों में ऊर्जा क्षेत्र में अच्छे दिन आने के कई सबूत सामने हैं।

  • 28 फरवरी 2017 को देश में बिजली की उच्चतम मांग 159 गीगावॉट थी, जबकि कुल उत्पादन क्षमता 315.4 गीगावॉट की हो चुकी थी।
  • 2016-17 में मांग और उत्पादन में अंतर सिर्फ 716 करोड़ यूनिट रह गया है, जो 2012-13 में 8,690.5 करोड़ यूनिट था।
  • इसमें कोयले पर 68.2 प्रतिशत, जल पर 14.1 प्रतिशत, अक्षय उर्जा पर 15.9 प्रतिशत और परमाणु ऊर्जा पर 1.8 प्रतिशत उत्पादन निर्भर था।
  • फरवरी 2017 में देश में पारंपरिक स्रोतों से 1,05,774.6 करोड़ यूनिट बिजली का उत्पादन हुआ, जो 2012-13 में मात्र 91,205.6 करोड़ यूनिट ही हुआ था।
  • देश में बिजली का ट्रांसमिशन करने वाली सरकारी कंपनी पावरग्रिड ने 31 दिसंबर, 2016 तक 1,34,018 सर्किट किलोमीटर लंबा तारों का जाल बिछाया है। 2015-16 में इसकी कुल आमदनी 6 हजार करोड़ रुपये से भी अधिक थी।
  • पावरग्रिड ने वैकल्पिक स्रोतों से प्राप्त होने वाली ऊर्जा को नेशनल ग्रिड में लेने की पूरी व्यवस्था कर ली है।
  • फरवरी 2017 के आंकड़ों के अनुसार देश में वैकल्पिक ऊर्जा में 26.54 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जो 2012-13 में कुछ भी नहीं थी।

जेनरिक दवाओं के कारोबार में भारी वृद्धि
आर सुकुमार ने फार्मा क्षेत्र में गिरावट की बात लिखी है। दरअसल कभी संरक्षणवाद और भ्रष्ट तंत्र का सबसे ज्यादा शिकार हेल्थ सेक्टर का कारोबार ही रहा करता था। विदेशी कंपनियों की मनमानी और शासन तंत्र की नाफरमानी से देश की जनता जूझ रही थी। लेकिन पीएम मोदी ने इस क्षेत्र में आमूलचूल बदलाव लाए। अमेरिकी दवा नियामकों द्वारा उठाए गए सख्त कदमों के बावजूद देश-विदेश में जेनरिक दवाओं की बिक्री में वृद्धि हो रही है। जाहिर है पीएम मोदी के कार्यकाल में फार्मा सेक्टर में जबरदस्त ग्रोथ देखने को मिल रहा है।

2020 तक 74 अरब डॉलर का होगा फार्मा कारोबार
प्राइस वाटरहाउस कूपर्स (पीडब्ल्यू सी) की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2020 तक भारत का फार्मा बाजार 74 अरब डॉलर का हो जाएगा। इस बाजार में साल-दर-साल 14 से 18 फीसदी की बढ़त होने की उम्मीद है। क्रेडिट रेटिंग एजेंसियां इस सेक्टर को लेकर काफी सकारात्मक हैं। भारतीय दवाओं का कारोबार विदेशों में तेजी से बढ़ रहा है।

बहरहाल आईटी उद्योग पर अमेरिका की नई वीजा व्यवस्था से मुश्किलें जरूर आईं, लेकिन ऐसे बाहरी कारक ज्यादा दिनों तक भारत के आईटी उद्योग को दरकिनार नहीं कर सकते। दूसरी तरफ स्मार्टसिटी परियोजना, भारत की स्वच्छ गंगा, नवीकरणीय ऊर्जा और सूचना तकनीक और संचार के कार्यक्रमों में भारत तेजी से विकास कर रहा है, जिसका आने वाले वक्त में देश की तस्वीर और तकदीर दोनों पर गहरा और सकारात्मक प्रभाव पड़ने वाला है। खैर आर सुकुमार ने अपने आलेख ‘If things are so good, why do we feel so bad?’ में इस बात का भी जिक्र किया है कि क्या किसी के पास (सरकार सहित) कोई जादू की छड़ी है कि वह उसे घुमाए और सब कुछ दुरुस्त कर दे, ताकि सभी को अच्छा महसूस हो?  तो ऐसे में यही कहा जा सकता है कि प्रक्रियागत क्रियान्वयन में देरी से असंतोष बढ़ता है, लेकिन वास्तविक तथ्य यह है कि बदलाव की दौर से गुजर रहा भारत प्रगति पथ पर चल पड़ा है। 

 

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