Home पोल खोल सामने आया रोहित वेमुला के ‘दलित’ होने का सियासी सच !

सामने आया रोहित वेमुला के ‘दलित’ होने का सियासी सच !

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”रोहित वेमुला ने कॉलेज प्रशासन से तंग आकर खुदकुशी नहीं की थी बल्कि वह अपनी कुछ निजी वजहों से परेशान था। वह अपनी निजी वजहों से परेशान और निराश हुआ रहता था। सुसाइड नोट में भी रोहित ने किसी को भी उसकी मौत के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया है।” जुडिशल इंक्वॉयरी पैनल की इस रिपोर्ट के सार्वजनिक होने के साथ ही उस सच से पर्दा उठ गया है जो पिछले डेढ़ साल से छिपाया जा रहा था। सवाल यह भी है कि आखिर जिस छात्र की आत्महत्या को इस देश में ‘दलित’ शोषण का इतना बड़ा मुद्दा बना दिया गया और केंद्र सरकार और उसके दो-दो मंत्रियों को जिम्मेदार ठहरा कर कठघरे में खड़ा किया गया, क्या यह एक बड़ी सियासी साजिश थी?

निजी कारणों से की आत्महत्या
रोहित वेमुला आत्महत्या मामले की जांच के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा बनाए गए न्यायिक आयोग में इलाहबाद हाई कोर्ट के जज जस्टिस ए के रूपनवाल शामिल थे। इन्होंने जो रिपोर्ट दी है इसके अनुसार हैदराबाद यूनिवर्सिटी द्वारा रोहित पर की गयी कार्रवाई के चलते उसने आत्महत्या नहीं की थी बल्कि ऐसा उसने स्वेच्छा से किया था। इस कदम के पीछे निजी कारण जिम्मेदार थे।

दलित नहीं था रोहित वेमुला
हैदराबाद यूनिवर्सिटी के छात्र रोहित वेमुला ने 17 जनवरी 2016 को हॉस्टल के कमरे में सुसाइड कर लिया था। उसकी मौत के बाद समर्थन कर रहे नेताओं और संगठनों ने रोहित व्रेमुला को दलित कहा था। लेकिन रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है,  ”रिकॉर्ड में मौजूदा सबूत बताते हैं कि वह (रोहित की मां) वढेरा समुदाय से ताल्लुक रखी हैं, इसलिए रोहित वेमुला को मिला अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र असली नहीं कहा जा सकता और वह अनुसूचित जाति से नहीं थे।”

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ईरानी-दत्तात्रेय की भूमिका नहीं
रिपोर्ट में कहा गया है कि तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी और बीजेपी नेता बंडारू दत्तात्रेय का रोहित की मौत से कोई लेना-देना नहीं था। रिपोर्ट में यह बताया गया है कि अगर रोहित यूनिवर्सिटी के फैसले से नाराज होते तो वो जरूर इसके बारे में लिखकर इशारा देते जबकि उन्होंने आत्महत्या के लिए किसी को दोष नहीं दिया।

मोदी सरकार को बदनाम करने की साजिश
रोहित वेमुला की मौत के साथ ही उसे एक दलित छात्र के रूप में स्थापित किया जाने लगा था। केंद्र की सरकार को कठघरे में खड़ा किया गया। तत्कालीन मानव संसाधन मंत्री और बंडारू दत्तात्रेय से इस्तीफा मांगने को लेकर बवाल मचा दिया गया। आखिर सवाल उठता है कि रोहित के एक महीने के भीतर ही जब गंटूर जिला प्रशासन ने स्पष्ट कर दिया था कि रोहित वेमुला दलित परिवार से नहीं आता है तो दलित होने का झूठ क्यों फैलाया गया?

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लेफ्ट, कांग्रेस AAP ने रची सियासी साजिश!
17 जनवरी, 2016 के बाद हैदराबाद तो जैसे राष्ट्रीय राजनीति का अखाड़ा बन गया। राज्य सरकार की रिपोर्ट को धता बताकर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी और दिल्ली के विवादास्पद सीएम अरविंद केजरीवाल ने इस सियासी आग में अपनी रोटी सेंकनी चाही। दौरे किये, रोहित के परिवार से मिले, धरने दिये और मीडिया में खूब बोले। लेकिन सच छिपा ले गए। वामपंथी छात्र संगठनों ने तो देश के सभी शहरों में हंगामा मचा दिया। जाहिर है रोहित वेमुला का सच सामने आने के साथ ही यह साफ हो गया है कि कई दल मोदी विरोध की राजनीति में किसी मुद्दे को किसी गिद्ध की तरह झपट पड़ते हैं और देश को गुमराह करते हैं।

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अफवाहों पर क्यों उड़ता है मीडिया?
खबर सच हो तो उसे दिखाने में कोई हर्ज नहीं। लेकिन कई बार जो खबरें छाई होती हैं वो सच नहीं होती हैं। आश्चर्य की बात यह है कि गंटूर जिला प्रशासन ने जब घटना के एक महीने बाद ही साफ कर दिया था कि रोहित दलित नहीं है तो मीडिया बार-बार उसे दलित क्यों कहता रहा? लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहलाने वाला मीडिया आखिर ऐसी गलत रिपोर्टिंग से देश को कब तक गुमराह करता रहेगा? आखिर सच जानने और उसे बाहर लाने की कोशिश क्यों नहीं किया गया? सवाल उठता है कि क्या मीडिया भी पार्टी बनकर कार्य करता है? क्या मीडिया का एक तबका भी मोदी विरोध की राजनीति से प्रेरित होकर कार्य करता है?

राजनीतिक दलों ने क्रिएट किया मुद्दा
दरअससल रोहित वेमुला ने 17 जनवरी, 2016 को अपने कॉलेज हॉस्टल के कमरे में आत्महत्या कर ली थी। रोहित वेमुला और उसके 4 अन्य साथियों पर एक एबीवीपी नेता को पीटने का आरोप लगा था। इस आरोप के बाद उन्हें नवंबर, 2015 में रोहित वेमुला समेत 5 छात्रों को निष्कासित कर दिया गया था। निष्कासन झेल रहे सभी छात्रों को लेक्चर और रिसर्च जारी रखने की छूट थी। उन्हें कॉलेज हॉस्टल और कैंपस एरिया में रुकने का आदेश नहीं था। राजनीतिक दलों ने सभी छात्रों को दलित बताया था और इस घटना को जातिगत राजनीति से प्रेरित कहा था। इस घटना के बाद रोहित वेमुला की जाति को लेकर राजनीति शुरू हो गई थी और तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी और भाजपा नेता बंडारू दत्तात्रेय को रोहित वेमुला की ख़ुदकुशी का जिम्मेदार कहा गया। स्मृति ईरानी से इस्तीफे की मांग भी की गई थी और इस घटना की वजह से जनता के बीच ‘मोदी सरकार’ को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की गई थी।

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