Home तीन साल बेमिसाल मोदी सरकार में महिला एवं बाल विकास के क्षेत्र में कायापलट

मोदी सरकार में महिला एवं बाल विकास के क्षेत्र में कायापलट

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मोदी सरकार के तीन साल के कार्यकाल में महिला एवं बाल विकास के क्षेत्र में जितना काम हुआ है, वो एक रिकॉर्ड से कम नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में सरकार ने अपने कार्यकाल के पहले दिन से ही महिलाओं एवं बाल विकास से जुड़े तमाम पहलुओं पर ध्यान देना शुरू किया। उसी का परिणाम है कि बीते तीन साल में महिलाओं के सशक्तिकरण का जो काम हुआ है वैसा पहले कभी नहीं देखा गया। विशेषतौर पर जरूरतमंद महिलाओं और बच्चों की सेहत, शिक्षा और देखभाल के लिए तीन साल में कई ऐतिहासिक और सराहनीय कदम उठाए गए हैं। यहां पर मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान महिला सशक्तिकरण को ध्यान में रखकर किये गए प्रयासों के बारे में संक्षेप में बताने की कोशिश की जा रही है।

राष्‍ट्रीय महिला नीति का मसौदा तैयार
मोदी सरकार ने राष्ट्रीय महिला नीति का मसौदा तैयार कर लिया है और अब किसी भी समय इसकी घोषणा की जा सकती है। राष्‍ट्रीय महिला अधिकारिता नीति, 2001 के लगभग डेढ़ दशक के बाद केंद्र सरकार ने महिलाओं के संपूर्ण विश्वास को ध्यान में रखते हुए इस तरह की राष्ट्रीय नीति पर काम किया है। सूचना प्रौद्योगिकी के इस युग में जब भारत विश्व की तेजी से विकसित हो रही अर्थव्यवस्था बन चुका है। ऐसी स्थिति में मोदी सरकार ने महिला सशक्तिकरण के लिए विशेष कदम उठाने की ओर काम करने का निर्णय लिया है। इसके तहत अकेले जीवनयापन करनेवाली महिलाओं की आमदनी पर कम टैक्स लगाने का प्रस्ताव है। दरअसल राष्ट्रीय महिला नीति का मसौदा तैयार करने वाले मंत्रियों के समूह ने महसूस किया है कि समाज में ऐसी महिलाओं की संख्या में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है।

आंकड़े बताते हैं कि 2001 से 2011 के बीच इस श्रेणी की महिलाओं की संख्या में 39 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। प्रस्तावित नीति में माहवारी के दौरान साफ-सफाई के लिए आवश्यक वस्तुओं पर भी टैक्स खत्म करने की भी बात है, ताकि ये उत्पाद कम दाम पर आसानी से उपलब्ध हो सकें। इसमें महिलाओं के लिए अधिक सार्वजनिक शौचालय बनाने पर भी बल दिया गया है। एक महत्वपूर्ण बात यह है कि इस नीति में यौन हिंसा की शिकार महिलाओं को मुफ्त चिकित्सा, कानूनी सहायता दिए जाने के साथ-साथ उन्हें आश्रय प्रदान कर उनकी काउंसलिंग किए जाने की भी व्यवस्था है।

राष्ट्रीय महिला नीति को केंद्रीय कैबिनेट की मंजूरी मिलते ही सरकार बुजुर्ग और खासकर विधवा महिलाओं के जीवनयापन में मदद को प्राथमिकता देगी। लैंगिक भेदभाव की वजह से महिलाओं की देखभाल में कमी को देखते हुए इस नीति में हेल्थ कार्ड बनाने का भी प्रस्ताव है। ताकि महिलाओं को रक्त की कमी, विभिन्न प्रकार के कैंसर जैसी बीमारियों की मुफ्त में जांच, गर्भवती महिलाओं के लिए कैशलेस सर्विस और गंभीर बीमारियों की हालत में व्यापक स्वास्थ्य बीमा की सुविधा दी जाएगी। महिला कल्याण की दिशा में इन कदमों को ‘तत्काल कार्रवाई’ के योग्य माना गया है। मंत्री समूह से सुझाव पर एक विशेष सेक्शन में ‘शीघ्र कार्रवाई वाले क्षेत्रों’ की पहचान की गई है।

राष्ट्रीय महिला नीति में देश के कार्यबल में महिलाओं की संख्या वर्ष 2030 तक बढ़ाकर 50 प्रतिशत करने का भी लक्ष्य है। इसके तहत सरकार या एजेंसियों की ओर से आयोजित प्रतियोगी या प्रवेश परीक्षाओं में उपस्थिति के लिए महिलाओं को मुफ्त रजिस्ट्रेशन, मुफ्त कोचिंग और महिला कामगारों के लिए बड़े एवं छोटे शहरों में और अधिक हॉस्टल की सुविधा उपलब्ध कराने पर भी जोर दिया गया है। राष्ट्रीय महिला नीति में प्रवासी भारतीय (एनआरआई) महिलाओं की भूमिका और उनके मुद्दों एवं सांस्कृतिक क्षेत्र में उनके योगदान को भी ध्यान में रखा गया है। इसमें भारत की विविध संस्कृति की सुरक्षा, संरक्षण और प्रचार में महिलाओं की भूमिका का भी जिक्र है। प्रस्तावित दस्तावेज में एक से ज्यादा विवाह, पति द्वारा छोड़ दिए जाने, घरेलू हिंसा और बच्चों पर बलपूर्वक हक जमाने जैसे मामलों से प्रभावित प्रवासी भारतीय महिलाओं की समस्याओं का भी जिक्र किया गया है।

मातृत्व लाभ पर संशोधित कानून लागू
नया मातृत्व लाभ संशोधित कानून एक अप्रैल 2017 से देश भर में लागू हो गया है। इसके तहत 50 या उससे ज्यादा कर्मचारियों वाले संस्थान में एक तय दूरी पर क्रेच सुविधा मुहैया कराना अनिवार्य है। हर नियोक्ता को यह सुनिश्चित करना होगा कि मां दिन में चार बार क्रेच जा सके। संशोधित कानून के तहत सरकार ने वैतनिक मातृत्व अवकाश की अवधि 12 सप्ताह से बढ़ा कर 26 सप्ताह कर दी है। हर नियोक्ता को महिला कर्मचारी की नियुक्ति के समय लिखित में कानून के सभी नियमों को समझाने की जिम्मेदारी होगी। इसमें महिला को मातृत्व अवकाश के समय घर से भी काम करने की छूट है।

मातृत्‍व लाभ कार्यक्रम (MBP) का देशभर में विस्‍तार
एक कुपोषित महिला अधिकांश तौर पर कम वजन वाले बच्‍चे को जन्‍म देती है। जब इस कुपोषण का प्रारंभ गर्भाशय से होता है तो विशेष रूप से इसका प्रभाव महिला के सम्‍पूर्ण जीवन चक्र पर पड़ता है। आर्थिक और सामाजिक दवाब के कारण बहुत सी महिलाओं को अपनी गर्भावस्‍था के अंतिम दिनों तक परिवार के लिए आजीविका कमानी पड़ती है। इन समस्याओं के समाधान के लिए महिला और बाल विकास मंत्रालय ने राष्‍ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम की धारा 4 (बी) के प्रावधानों के अनुसार गर्भवती और स्‍तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए विशेष प्रयास किए हैं। इसके तहत ऐसी महिलाओं के लाभ के लिए सशर्त नकद हस्‍तांतरण योजना का कार्यक्रम चलाया जा रहा है। इसके अंतर्गत गर्भवती और स्‍तनपान कराने वाली माताओं को नकद प्रोत्‍साहन दिया जाता है।

इस योजना के अंतर्गत केंद्र सरकार अथवा राज्‍य सरकार अथवा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में नियमित रूप से रोजगार करने वाली अथवा इसी प्रकार की किसी योजना की पात्र महिलाओं को छोड़कर सभी गर्भवती और स्‍तनपान कराने वाली माताओं को पहले दो जीवित शिशुओं के जन्‍म के लिए तीन किस्‍तों में 6000 रुपये का नकद प्रोत्‍साहन दिया जाता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 31 दिसम्‍बर, 2016 को राष्‍ट्र को दिये गये अपने संबोधन में सभी जिलों में मातृत्‍व लाभ कार्यक्रम के अखिल भारतीय विस्‍तार की घोषणा की और यह 1 जनवरी 2017 से लागू है। इससे करीब 51.70 लाख लाभार्थियों को प्रतिवर्ष लाभ मिलने की उम्‍मीद है।

बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ
बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना की रूपरेखा गिरते शिशु लिंगानुपात के समाधान के लिए बनाई गई है। प्रारंभ में 2015 में, चुने हुए 100 जिलों में यह योजना शुरू की गई। यह महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के साथ स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्‍याण मंत्रालय तथा मानव संसाधन विकास मंत्रालय की एक त्रि- मंत्रिस्‍तरीय पहल है। 19 अप्रैल 2016 को 11 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के कम लिंगानुपात वाले 61 अतिरिक्त जिलों में ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ कार्यक्रम’ (BBBP) की शुरुआत की गई। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू की गई इस योजना के पहले साल में BBBP जिलों में जन्म के समय लिंगानुपात में 49 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखी गई है। BBBP जिलों में जन्म के समय लिंगानुपात में न्यूनतम 10 अंकों की वृद्धि का लक्ष्य है और अगले पांच सालों में धीरे-धीरे इसे और अधिक करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इस योजना से कुछ अन्य उपलब्धियां भी हासिल हुईं हैं, जिसमें बालिकाओं के स्कूल ड्रॉपआउट में गिरावट, 100 प्रतिशत संस्थागत प्रसव, हर गांव में गुड्डा-गुड़िया बोर्ड का गठन, लड़कियों/महिलाओं की सुरक्षा एवं स्कूलों में लड़कियों के लिए शौचालयों की व्यवस्था भी शामिल है।

कीकृत बाल विकास योजना (ICDS)
इसके तहत 6 से 36 महीने की आयु के बच्चों ( कुपोषण के शिकार बच्चों सहित), गर्भवती महिलाओं और दुग्धपान कराने वाली महिलाओं को घर ले जाने के राशन के रूप में पूरक आहार दिया जाता है। लेकिन 3 से 6 वर्ष के बच्चों को आंगनवाड़ी केंद्रों में पका-पकाया खाना मिलता है। घर ले जाने के राशन(THR) की गुणवत्ता में आने वाली शिकायतों को दूर करने के लिए सरकार प्रणाली में सुधार करने और उसे पारदर्शी बनाने के उपायों पर काम कर रही है। इसलिए एक विकल्प के रूप में चयनित जिलों में पायलट प्रोजेक्ट के आधार पर THR के बदले सशर्त नकद भुगतान की योजना शुरू की गई है। राशन डिलिवरी में चोरी को नियंत्रित करने और उसमें पारदर्शिता लाने के लिए सरकार ने हाल ही में भारत की आकस्मिक निधि से धन पोषित अनेक कल्याणकारी योजनाओं में ‘आधार’ के इस्तेमाल का आदेश जारी किया है, ये योजना भी उसमें से एक योजना है। इसके अंतर्गत कार्यक्रम का लाभ लेने के लिए आधार आवश्यक है। लेकिन, फिर भी यह सुनिश्चित किया गया है कि आधार के अभाव में किसी को लाभों से वंचित नहीं किया जाये।

बाल सुविधा संस्‍थानों के लिए ऑनलाइन पंजीकरण
बाल सुविधा संस्‍थान (CCI) के लिए ऑनलाइन पंजीकरण की शुरुआत सुशासन के दृष्टिकोण से एक बहुत महत्‍वपूर्ण कदम है। ऑनलाइन पंजीकरण से एक केंद्रीय प्रणाली उपलब्‍ध हुई है जिससे देश में CCI के बारे में सूचना प्राप्‍त होती है। इससे पता चलता है कि देश के प्रत्‍येक CCI में कितने बच्‍चे हैं और कितने गोद लेने के लिए उपलब्‍ध हैं। इस ऑनलाइन पंजीकरण प्रक्रिया से प्रणाली में पारदर्शिता आने के साथ ही बच्‍चों की सुरक्षा और देखभाल संभव होगी। वर्तमान में CCI के लिए परंपरागत पंजीकरण प्रणाली मौजूद है, इसके कारण CCI की संख्‍या के बारे में कोई राष्‍ट्रीय डाटा बेस उलब्ध नहीं है। इसके अलावा पारदर्शिता का भी अभाव है तथा सीसीआई की गतिविधियों की निगरानी करना कठिन होता है।

गोद लेने की प्रक्रिया को आसान बनाया
16 जनवरी, 2017 से दत्तक ग्रहण विनियमन लागू हो गया है। दत्तक ग्रहण विनियमन की रूप रेखा इस काम में जुटी एजेंसियों और भावी दत्तक माता पिता (पीएपी) सहित इससे जुड़े अन्य लोगों के सामने आ रहे मुद्दों और चुनौतियों को ध्यान में रखकर बनायी गयी है। यह भविष्य में गोद लेने की प्रक्रिया को व्यवस्थित करने और देश में गोद लेने के कार्यक्रम को मजबूत बनाने के लिए है। इसकी मुख्य विशेषताएं –

• देश के भीतर और विदेशों में रिश्तेदारों द्वारा गोद लेने की प्रक्रिया से संबंधित प्रक्रियाओं को परिभाषित किया गया है।
• संबंधित बच्चे को आरक्षित करने के बाद मिलान और स्वीकृति के लिए घरेलू भावी दत्तक माता पिता के लिए उपलब्ध समयसीमा को वर्तमान में पंद्रह दिनों से बढ़ाकर 20 दिन कर दिया गया है।
• जिला बाल संरक्षण इकाई (DCPU)के पास व्यावसायिक रूप से योग्य या प्रशिक्षित सामाजिक कार्यकर्ताओं का एक पैनल होगा।
• न्यायालय में दायर किए जाने वाले मॉडल दत्तक ग्रहण आवेदनों से लेकर न्यायालय के आदेश प्राप्त करने में वर्तमान में लगने वाली देरी में काफी हद तक कमी आएगी।

महिलाओं के लिए पासपोर्ट बनवाना आसान
13 अप्रैल 2017 को प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने इंडियन मर्चेन्ट चैम्बर की लेडीज विंग के गोल्डन जुबली समारोह में महिलाओं को पासपोर्ट बनवाने में दी जाने वाली रियायतों का ऐलान किया। अब महिलाओं के लिए शादी के बाद पासपोर्ट में अपना नाम बदलवाना जरूरी नहीं है, उनको पासपोर्ट के लिए शादी या तलाक का सर्टिफिकेट देने की भी जरूरत नहीं है। महिलाएं पासपोर्ट के लिए आवेदन में अपने पिता या मां का नाम लिख सकती हैं।

महिला पुलिस स्वयंसेवी ‘पहल’
हरियाणा, देश में पहला राज्य बना जिसने महिलाओं की सुरक्षा के लिए इस नई योजना को लागू किया। करनाल और महेंद्रगढ़ जिलों में इस पहल को शुरू किया गया है। इसके तहत 1000 महिला पुलिस स्वयंसेवी के पहले बैच को शामिल किया गया जिन्हें इस काम के लिए प्रशिक्षिण दिया गया है। इसमें पुलिस स्वयंसेवी पुलिस अधिकारियों और गांवों में रहने वाले स्थानीय समुदायों के बीच एक कड़ी का काम करती हैं। इन स्वंयसेवी पुलिसकर्मीयों का काम केवल उन मामलों पर नजर रखना होता है जहां महिलाओं को परेशान किया जा रहा है या उन्हें उनके अधिकारों और हकों से वंचित किया जा रहा है या फिर उनके विकास को रोका जा रहा है।

POSCO ई-बॉक्स प्रणाली की शुरुआत
POSCO ई-बॉक्स के नाम से बच्चों के खिलाफ होने वाले यौन अपराधों को दर्ज करने के लिए एक प्रत्यक्ष एवं आसान ऑनलाइन शिकायत प्रबंधन प्रणाली की शुरुआत की गई। इससे यौन अपराधियों के खिलाफ POSCO अधिनियम, 2012 के तहत समय पर कार्रवाई सुनिश्चित होगी। ऐसी घटनाओं की बड़ी संख्या नजदीकी रिश्तेदारों के खिलाफ होती है और उन्हें दबा दिए जाने की प्रवृत्ति होती है। ई-बॉक्स का प्रयोग बहुत ही आसान है और इससे शिकायतकर्ता की गोपनीयता को बनाया रखा जा सकेगा। इस ई-बॉक्स को राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की वेबसाईट http://ncpcr.gov.in/ के मुख पृष्ठ पर प्रमुख रूप से उपलब्ध है। यहां प्रयोगकर्ता को सामान्य रूप से POSCO ई-बॉक्स का बटन दबाना होता हैस जो आपको उससे जुड़े एक नए पेज पर ले जाता है।

ऑफिस में यौन उत्पीड़न की शिकायत के लिए ई-प्लेटफॉर्म
कार्यालयों में यौन उत्पीड़न की घटनाएं रोकने और इसके खिलाफ लड़ने के लिए ई-प्लेटफॉर्म लॉन्च किया गया है। इस सुविधा के माध्यम से केंद्र सरकार की महिला कर्मचारी ऐसे मामलों में ऑनलाइन ही शिकायत दर्ज करा सकेंगी। केंद्र सरकार में करीब 30 लाख से ज्यादा कर्मचारी हैं। 2011 के जनगणना के अनुसार केंद्रीय कर्मचारियों में महिलाओं का प्रतिशत 10.93 है।

मोबाइल में पैनिक बटन और GPS
किसी भी आपात स्थिति में महिलाओं को अपने परिजनों या पुलिस तक अपना संदेश पहुंचाने के लिए ये अत्यंत ही सराहनीय कदम है। दूरसंचार विभाग ने ‘मोबाइल फोन हैंडसेट में पैनिक बटन और ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम नियम 2016’ को 22 अप्रैल, 2016 को भारतीय वायरलेस टेलीग्राफ एक्ट 1933 की धारा 10 के तहत जारी कर दिया। इन नियमों के तहत 1 जनवरी, 2017 से सभी फीचर फोन में पैनिक बटन की सुविधा होना अनिवार्य है। इसके लिए फोन के की-पैड के 5वें अथवा 9वें बटन को निर्धारित किया गया है। इसी तरह सभी स्‍मार्ट फोन में भी पैनिक बटन की सुविधा होगी, जिसके लिए इसके की-पैड के ऑन-ऑफ बटन को तीन बार बेहद थोड़े समय के लिए दबाने की व्यवस्था है। यही नहीं, 1 जनवरी, 2018 से सभी मोबाइल फोन में ऐसी विशेष सुविधा देनी होगी, जिससे उपग्रह आधारित GPS के माध्यम से यह पता लगाया जा सकेगा कि किसी खास समय पर वह फोन किस स्‍थान पर था।

निर्भया फंड के अधिकतर प्रपोजल मंजूर
जनवरी 2017 की सूचना के अनुसार निर्भया निधि के तहत, 21 प्रस्तावों के लिए 2195.97 करोड़ रुपये के प्रपोजल राज्यों से आये थे, जिनमें से 2187.47 करोड़ रुपये की 16 प्रपोजल को केंद्र सरकार की एक उच्चस्तरीय कमेटी ने मंजूरी दे दी है। निर्भया निधि का सबसे महत्वपूर्ण घटक है, सेंट्रल विक्टिम कॉम्पेन्सेशन फंड जिसमें 200 करोड़ रुपये का संग्रह है। इस फंड के तहत बलात्कार पीड़ितों की मदद की जाती है। रेप या ऐसिड अटैक की पीड़िताओं को 3 लाख रुपये का मुआवजा देने का प्रावधान है। इसमें से 50 प्रतिशत भाग राज्य सरकारों को वहन करना है, लेकिन राज्य सरकारें अपना भाग नहीं दे रही हैं। इसके अलावा महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने वन स्टॉप सेंटर, वीमेन हेल्पलाइन और महिला पुलिस वॉलंटियर की योजनाएं भी शुरू की हैं।

पंचायत की महिला जनप्रतिनिधियों के लिए राष्ट्रव्यापी प्रशिक्षण कार्यक्रम
इस कार्यक्रम का उद्देश्य पंचायतों की निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों की क्षमता, शासन संचालन और उनका कौशल बढ़ाना है, ताकि वो गांवों का प्रशासन बेहतर तरीके से चला सकें। पंचायती संस्थाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण के बावजूद निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों को कई बार काम में मुश्किलें आती हैं। अक्सर उनमें प्रशासन का ज्ञान और कौशल का अभाव दिखता है और कई बार तो उनकी ओर से उनके पति या बेटे कार्य करते हैं। इसलिए महिला सरपंचों तथा निचले स्तर पर महिला प्रतिनिधियों को प्रशिक्षित करने के लिए देश-व्यापी कार्यक्रम की आवश्यक्ता की गई है। यह कार्यक्रम इंजीनियरिंग (सड़क, नाली, शौचालय आदि निर्माण), वित्त, सामाजिक विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य तथा पर्यावरण जैसे क्षेत्रों में प्रशिक्षित करने के लिए है। इसी तरह प्रधानमंत्री मोदी द्वारा अनेक नई योजनाएं लॉन्च की गई हैं जो शोषित और वंचित लोगों के लाभ के लिए हैं। उम्मीद है महिला सरपंचें प्रशिक्षण के बाद इन योजनाओं को लोगों तक ले जाने में मददगार साबित होंगी। इन योजनाओं में फसल बीमा योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना, सुरक्षा बीमा योजना, सुकन्या समृद्धि योजना और मातृत्व लाभ योजना शामिल है।

बाल अपराधियों के पुनर्वास पर विशेष जोर
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने किशोर न्याय प्रणाली के तहत आपराधिक बच्चों के पुनर्वास के लिए एक मानक संचालनकारी प्रक्रिया (SOP) का विकास किया है। इसका उद्देश्य ऐसे बच्चों के लिए संस्थागत देखभाल, देखभाल के बाद की सेवाओं और सामाजिक पुनर्वास पर ध्यान देना है। ये कार्यक्रम ऐसे बच्चों के सर्वश्रेष्ठ हित के सिद्धांतों पर आधारित है। इसके अलावा इसका उद्देश्य जेल में कैद करने के मामलों में कमी लाना तथा हिंसा, उत्पीड़न एवं शोषण से बच्चों की सुरक्षा करना है। SOP ऐसे पुनर्वास को बढ़ावा देता है जो दंडात्मक कदमों के बजाए एक सुरक्षित, अधिक उपयुक्त दृष्टिकोण के रूप में परिवारों एवं समुदायों को शामिल करता है।

सोशल मीडिया अभियान #WeAreEqual
8 मार्च को मनाए जाने वाले अंतराष्‍ट्रीय महिला दिवस के पहले लैंगिक भेदभाव के बारे में जागरूकता फैलाने के उद्देश्‍य से सोशल मीडिया अभियान #WeAreEqual शुरू किया गया। यह अभियान अंतर्राष्‍ट्रीय महिला दिवस के दिन समाप्‍त हुआ। उस दिन राष्‍ट्रपति ने महिला सशक्‍तिकरण में विशिष्‍ट योगदान के लिए व्‍यक्‍तियों और संस्‍थानों को प्रतिष्‍ठित नारी शक्‍ति पुरस्‍कार से सम्‍मानित किया।

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